तारीख Date : 30/12/2023
प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन पत्र 2 - अंतर्राष्ट्रीय संबंध
की-वर्ड्स: यहूदीवाद(Zionism) ,यहूदी-विरोध ( Anti-Zionism), एंटी-सेमिटिज्म (Anti-Semitism), बलफोर घोषणा, IHRA
संदर्भ:-
भू-राजनीतिक परिदृश्य में यहूदीवाद, यहूदी-विरोध और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष एक बार फिर प्रमुखता से उभर रहा है। हाल ही में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित करके यहूदी-विरोध और एंटी-सेमिटिज्म के बीच संबंध को स्वीकार किया है। इस प्रस्ताव को मिले व्यापक समर्थन से अमेरिकी संस्थापन के भीतर यहूदीवाद के प्रति सहानुभूति स्पष्ट होती है।
यहूदीवाद (Zionism),यहूदी-विरोधी ( Anti-Zionism) और एंटी-सेमिटिज्म (Anti-Semitism) को समझना
यहूदीवाद (Zionism):
यहूदीवाद एक राष्ट्रवादी विचारधारा है जो यहूदियों के लिए अपनी मातृभूमि, जिसे "यहूदी राष्ट्र" या "इस्राइल" कहा जाता है, में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का समर्थन करती है।
विचारधारा:
- यहूदीवाद का मानना है कि यहूदी लोगों का अपना स्वतंत्र राज्य होना चाहिए।
- यहूदीवाद ,यहूदी धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास का समर्थन करता है।
- यहूदीवाद ,यहूदियों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है।
- 1948 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन के विभाजन और दो राज्यों, एक यहूदी और एक अरब राज्य, के निर्माण को मंजूरी दी।
- 1948 में, इस्राइल राज्य की स्थापना हुई।
एंटी-सेमिटिज्म (Anti-Semitism):
: "यहूदी लोगों के प्रति शत्रुता और पूर्वाग्रह है"- यहूदी विरोधी भावना विशेष रूप से यहूदी लोगों के खिलाफ उनकी जातीयता या धर्म के आधार पर निर्देशित पूर्वाग्रह और शत्रुता में निहित है।
- यह भेदभाव का एक रूप है जो व्यक्तियों को उनकी यहूदी पहचान के आधार पर लक्षित करता है।
- एंटी-जियोनिज्म एक राजनीतिक दृष्टिकोण है जो इज़राइल की ऐतिहासिक भूमि में यहूदी राज्य की स्थापना की वकालत करने वाली विचारधारा और आंदोलन का विरोध करता है।
- इसमें एक जातीय या धार्मिक समूह के रूप में यहूदियों के प्रति स्वाभाविक रूप से शत्रुता व्यक्त किए बिना इजरायली सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना शामिल है।
हालाँकि दोनों विचार मौलिक रूप से एक-दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन उनके संबंधों की विशिष्टताओं पर लगातार चर्चा होती रहती है, जिसमें मुख्य ध्यान इस संभावना पर है कि यहूदी-विरोधी और एंटी-सेमिटिज्म पर्यायवाची हैं।
यहूदीवाद की जड़ें:
- यहूदीवाद विचारधारा का मूल इस्राइल में यहूदी लोगों के लिए एक मातृभूमि स्थापित करने की आकांक्षा में निहित है। यह इस विश्वास पर आधारित है कि यह भूमि उन्हें ईश्वरीय आदेश द्वारा देने का वादा किया गया था।
- 1897 की पहली यहूदी कांग्रेस ने कानून द्वारा सुरक्षित यहूदी राज्य के निर्माण पर जोर देते हुए इस उद्देश्य को स्पष्ट किया।
- यहूदीवाद फ़िलिस्तीन के साथ बाइबिल के संबंध पर जोर देता है, संयुक्त राष्ट्र में इस्राइल के राजदूत डैनी डैनन ने सुरक्षा परिषद सत्र के दौरान भूमि के लिए एक प्रतीकात्मक कार्य के रूप में हिब्रू बाइबिल का नाटकीय रूप से प्रचार किया। इस पौराणिक बाइबिल ने दो ऐतिहासिक घोषणाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई - 1917 का बाल्फोर घोषणा और 1947 का संयुक्त राष्ट्र संकल्प 181 (II)।
बाल्फोर घोषणा की दुविधा:
- बाल्फोर घोषणा धर्मशास्त्र, इतिहास और कानून का एक जटिल मिश्रण है। इस घोषणा ने इजराइल के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन इसने फिलिस्तीनियों के अधिकारों को नजरअंदाज कर दिया। यह घोषणा आज भी मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- यह घोषणा, ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बाल्फोर द्वारा लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड को लिखे गए पत्र के रूप में, फिलिस्तीन में "यहूदी लोगों के लिए राष्ट्र" की स्थापना के लिए ब्रिटिश समर्थन का वादा करती है।
- यह घोषणा "यहूदी लोगों" शब्द का प्रयोग करती है, जो धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है।
- यह घोषणा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जारी की गई थी, जब ब्रिटिश साम्राज्य अपने चरम पर था। ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा कई कारणों से की थी, जिसमें यहूदी लोगों का समर्थन प्राप्त करना, फिलिस्तीन में अपना प्रभाव बढ़ाना और युद्ध में जीत हासिल करना शामिल था।
- इस घोषणा को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, क्योंकि इसमें फिलिस्तीनियों के अधिकारों को नजरअंदाज कर दिया गया था ।
21वीं सदी में यहूदीवाद-विरोध:
- इजरायल के अस्तित्व के अधिकार को नकारने के साथ यहूदी-विरोध के ऐतिहासिक मिश्रण के विपरीत, समकालीन यहूदी-विरोध मुख्य रूप से फिलिस्तीनियों के प्रति इजरायली नीतियों की आलोचना करने पर केंद्रित है।
- इंटरनेशनल होलोकॉस्ट रिमेंबरेंस एलायंस (IHRA) की परिभाषा में प्रकट किया गया है कि, यहूदी-विरोधी और एंटी-सेमिटिज्म के बीच अंतर है। IHRA इस बात पर जोर देता है कि किसी भी अन्य देश की आलोचना के समान, इस्राइल की आलोचना स्वाभाविक रूप से यहूदी-विरोधी नहीं है।
- यहूदी-विरोधी आज राज्य के अस्तित्व पर सवाल उठाए बिना गाजा में चल रहे संघर्षों और नरसंहारों के संदर्भ में, इस्राइल के कार्यों की आलोचना करता है।
भ्रमपूर्ण प्रचारवादी एजेंडा :
- इतिहासकार एवी श्लेम यहूदी-विरोध और एंटी-सेमिटिज्म के मिश्रण को एक "प्रचारवादी चाल" कहते हैं जो इस्राइल की नीतियों की वैध आलोचना को दबाने के लिए बनाई गई रणनीति है।
- इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा प्रदर्शित यह रणनीति, इजरायल के किसी भी कार्य के विरोध को यहूदी विरोधी भावना के समान समझने का प्रयास करती है। मार्च 2021 में, नेतन्याहू ने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा कथित इजरायली युद्ध अपराधों की जांच की निंदा करते हुए इसे " यहूदी-विरोध और पाखंड की पराकाष्ठा" बताया और जवाबदेही से ध्यान भटकाने के लिए इस रणनीति का उपयोग किया।
यहूदी विरोधी भावना और स्वतंत्र भाषण को परिभाषित करना:
- यहूदी विरोध के सभी रूपों का मुकाबला करने के महत्व को स्वीकारते हुए यह आवश्यक है कि इतिहास के नाम पर इजरायल के आलोचकों को दबाने और स्वतंत्र भाषण के अधिकार का हनन करने से बचा जाए।
- अमेरिकी विदेश विभाग का स्पष्टीकरण रेखांकित करता है कि जब किसी अन्य राष्ट्र की आलोचना की तुलना में इजरायल की आलोचना की जाती है, तो उसे स्वाभाविक रूप से यहूदी विरोधी नहीं माना जाना चाहिए।
- यहूदी-अमेरिकी दार्शनिक सुज़ैन नीमन ऐतिहासिक अपराध बोध के हथियारबंदी के खिलाफ चेतावनी देती हैं और असहमति को चुप कराने के लिए अपराध-प्रेरित सेंसरशिप का वर्णन करने के लिए "फिलोसेमिटिक मैक्कार्थीवाद" शब्द का इस्तेमाल करती हैं।
फिलिस्तीन पर कब्जा और विरोध:
इजरायली सरकार की विस्तारवादी नीतियों की समीक्षा करने से स्पष्ट है कि इजरायल का लक्ष्य संपूर्ण फिलिस्तीनी क्षेत्र पर नियंत्रण करना है जो कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा ग्रेटर इजरायल के मानचित्र के प्रदर्शन से स्पष्ट होता है। मानव अधिकारों के उल्लंघन और कब्जे के बारे में चिंताओं पर आधारित आलोचना, राष्ट्रों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने के अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है। यदि यहूदीवाद का लक्ष्य संपूर्ण फिलिस्तीनी क्षेत्र पर नियंत्रण है, तो इस उद्देश्य के विरोध को स्पष्ट रूप से यहूदी-विरोध के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
- यहूदी-विरोध ( Anti-Zionism), एंटी-सेमिटिज्म(Anti-Semitism) और इस्राइल -फिलिस्तीन संघर्ष की जटिलता एक ऐसी गहरी समझ की मांग करती हैं जो मिथ्या अवधारणाओं और पूर्वाग्रहों से परे हो।
- वास्तव में इन विचारधाराओं की ऐतिहासिक जड़ें, धार्मिक आधार और समकालीन राजनीतिक निहितार्थ एक जटिल चित्र बनाते हैं जिसके लिए सावधानीपूर्वक परीक्षण की आवश्यकता है।
- यहूदीवाद और इस्राइल की स्थापना के बीच ऐतिहासिक संबंध को स्वीकार करते हुए, इजरायली नीतियों की आलोचना को यहूदी-विरोध के आरोपों से अलग करना आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मध्य पूर्व में चुनौतियों का सामना कर रहा है इसके लिए वार्ता को बढ़ावा देना और विविध दृष्टिकोणों का सम्मान करना यहूदीवाद के आसपास की जटिल गतिशीलता और इस्राइल -फिलिस्तीन संघर्ष के लिए एक अधिक सूक्ष्म और न्यायपूर्ण समाधान आवश्यक है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- यहूदीवाद को आकार देने में बाल्फोर घोषणा की ऐतिहासिक जड़ों और निहितार्थों का परीक्षण कीजिए । बाइबिल के संबंधों पर आधारित इस घोषणा ने इस्राइल की स्थापना में कैसे योगदान दिया और कानूनी अधिकार के संदर्भ में चुनौतियां कैसे उत्पन्न कीं ? (10 अंक, 150 शब्द)
- IHRA की परिभाषा पर जोर देते हुए यहूदी-विरोधी और एंटी-सेमिटिज्म के बीच समकालीन अंतरों पर चर्चा करें। विद्वानों द्वारा पहचाने गए इन शब्दों को मिलाने के संभावित परिणामों का विश्लेषण कीजिए, और स्वतंत्र भाषण और इस्राइल की नीतियों की वैध आलोचना पर इसके प्रभाव का विश्लेषण भी कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu