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Daily-current-affairs / 25 Dec 2023

भारतीय कुश्ती महासंघ चुनावः विश्वास का क्षरण और महिलाओं की सुरक्षा पर प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 26/12/2023

प्रासंगिकता- सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 और 2, भारतीय समाज (महिलाओं से संबंधित मुद्दे) सामाजिक न्याय

कीवर्डस- भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स (शी-बॉक्स) का कार्यान्वयन, आंतरिक शिकायत समितियाँ (ICCs)

संदर्भ –

हाल ही में 21 दिसंबर को संपन्न हुए भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के चुनावों के उपरांत कई ऐसी घटनाएं हुईं , जिसके कारण खेल मंत्रालय द्वारा नवनिर्वाचित निकाय को निलंबित कर दिया गया । इन घटनाओं के खेलों में महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित दूरगामी परिणाम होंगे।


विवादास्पद चुनाव परिणाम और ओलंपिक खिलाड़ियों का आक्रोशः

  • चुनावों के परिणामस्वरूप एक 15-सदस्यीय निकाय का गठन किया गया था, जिसके सभी सदस्य पुरुष थे। इसमें से 13 सदस्य पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण सिंह के साथ निकटता से जुड़े हुए थे। चुनाव में विजयी सदस्यों के पैनल का व्यवहार चौंकाने वाला था, विशेष रूप से बृज भूषण की उनके समर्थकों से घिरी तस्वीरों ने उन पहलवानों के बीच असंतोष की लहर पैदा कर दी थी, जो पहले बृज भूषण सिंह के खिलाफ लड़ रहे थे ।
  • ओलंपिक खिलाड़ी साक्षी मलिक की सन्यास लेने की भावनात्मक घोषणा और टेबल पर अपने जूते रखने के प्रतीकात्मक भाव ने एथलीटों के बीच गहरी निराशा को उजागर किया है। बजरंग पूनिया द्वारा पद्मश्री वापस करने के निर्णय के साथ निंदा व्यक्त करने वाले कड़े शब्दों से युक्त एक पत्र ने इस निराश को और बढा दिया है। इसके अलावा तीन बार से अधिक के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता वीरेंद्र सिंह ने भी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए अपना पद्मश्री वापस लौटा दिया।
  • यौन शोषण के मामलों में बृज भूषण के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर जंतर मंतर पर पहलवानों द्वारा किए गए आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर सभी का ध्यान आकर्षित किया था। केंद्रीय खेल मंत्रालय ने पहलवानों को बृज भूषण के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने और उनके करीबी सहयोगियों को चुनावों में डब्ल्यूएफआई पर कब्जा करने से रोकने का आश्वासन दिया था। हालाँकि दोनों वादे पूरे नहीं किए गए, जिससे खिलाड़ियों को ऐसा महसूस हुआ जैसे कि उनके साथ विश्वासघात हुआ हो।
  • जब यह आरोप सामने आए कि बृज भूषण ने नाबालिग शिकायतकर्ताओं में से एक को अपने आरोप वापस लेने के लिए दबाब डाला तो इससे आक्रोश और बढ गया। ध्यातव्य हो कि नाबालिक द्वारा आरोप वापस लेने से बृज भूषण यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत गिरफ्तारी से बच सकते थे । सरकार द्वारा उसे कानूनी कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से रोकने की विफलता ने न्याय मांगने वालों की हताशा को और बढ़ा दिया है।

यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए निम्नलिखित निवारक उपाय मौजूद हैं-

  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013
  • यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (पीओएसएच) अधिनियम, 2013
  • यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स का कार्यान्वयन (SHe-Box)
  • राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा निगरानी और हस्तक्षेप (NCW)
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012

खेलों का महिलाओं पर प्रभाव और लोगों में विश्वास –

राजनैतिक तथा प्रशासनिक उथल-पुथल के अतिरिक्त ,यह परिदृश्य सार्वजनिक विश्वास (विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा के संबंध मे ) की कमी संबंधी चिंताओं को उत्पन्न करता है । हालिया घटनाओं ने न केवल पहलवानों, खेल प्रेमियों और न्याय की मांग करने वालों को प्रभावित किया है, बल्कि उन अभिभावकों को भी एक बड़ा झटका दिया है जो अपनी बेटियों को खेल को एक पेशे के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
महिला खिलाड़ियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो खेल के क्षेत्र में उनकी प्रगति और समान भागीदारी में बाधा डालती हैं-

  • वित्तीय विभेदन :- पुरुष एथलीटों की तुलना में महिला खिलाडियों को असमान वित्त आवंटित होता है, जिससे प्रतिस्पर्धा करने और कार्यक्रमों को चलाने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
  • लैंगिक विभेद : महिलाएं ,पेशेवर और व्यक्तिगत, दोनों क्षेत्रों में व्यापक लैंगिक विभेद का सामना करती हैं। खेलों मे महिलाओं को वर्बल तथा फिज़िकल दोनों प्रकार के विभेदो का सामना करना पड़ता हैं।
  • लैंगिक विषमताः लैंगिक समानता के लिए चल रहे व्यापक प्रयासों के बावजूद, खेलों में महिला एथलीट अभी भी अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में सम्मान और मान्यता की कमी से जूझ रही हैं।
  • सीमित पहुंच और उच्च लागतः स्कूलों में अपर्याप्त शारीरिक शिक्षा, लड़कियों के लिए खेल में शामिल होने के सीमित अवसर उन्हें अधिक लागत पर अन्य विकल्प खोजने के लिए मजबूर करते है। अपर्याप्त स्थानीय सुविधाएं उनकी भागीदारी को और भी सीमित करती हैं।
  • सुरक्षा और परिवहन की चुनौतियां: खेल सुविधाओं तक पहुंच के लिए सुरक्षित परिवहन(विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों के लिए) की आवश्यकता होती है । परिवहन विकल्पों की कमी दूर स्थित सुविधाओं तक पहुँचने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं।
  • सामाजिक दृष्टिकोण और भेदभावः महिला एथलीटों को यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे इनका सामाजिक अलगाव और नकारात्मक मूल्यांकन होता हैं। यह किशोरावस्था के दौरान महिला खिलाड़ियों की उच्च ड्रॉपआउट दर में योगदान देता है।
  • प्रशिक्षण के अल्प अवसरः लड़कियों को प्रायः खेलने के लिए कम सुविधाएं और कम समय मिलता है। गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षकों की सीमित उपलब्धता और उपकरणों के लिए अपर्याप्त धन जैसी समस्याएँ देखनें को मिलती है।
  • सकारात्मक भूमिका वाली मॉडल की कमीः मजबूत, आत्मविश्वास वाली महिला एथलेटिक रोल मॉडल की अनुपस्थिति खेलों में भाग लेने के लिए लड़कियों की प्रेरणा को कमजोर करती है, यह विशेष रूप से तब और अधिक घातक हो जाता है जब सामाजिक दबाव महिलाओं की बाहरी सुंदरता पर जोर देते हैं।
  • सीमित मीडिया कवरेजः महिला खेलों को मीडिया में पर्याप्त कवरेज नहीं मिलता है, जिससे महिला एथलीटों को मान्यता और प्रायोजन के अवसर प्राप्त करने की संभावना बाधित होती है।
  • गर्भावस्था और मातृत्व की चुनौतियां: खेल करियर के साथ मातृत्व को संतुलित करना महिला खिलाड़ियों के लिए एक बडी चुनौती है, जो उनके प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धी अवसरों को प्रभावित करता है।

व्यापक परिवर्तन की आवश्यकताः

निर्वाचित निकाय को महज निलंबित करन ,जनता के विश्वास को पुनर्जीवित करने के लिए अपर्याप्त है। सभी खेल महासंघों के संपूर्ण और पूर्ण परिवर्तन के लिए कठोर कदमों को उठाने के साथ, चल रहे संघर्ष की एक व्यापक और गहन जांच आवश्यक है। इसके अलावा एक नवीन खेल नीति आवश्यकता है, जिसमें खेलों में महिलाओं को शामिल करने और हाल के दशकों में देखी गई उत्साहजनक प्रवृत्ति को बनाए रखने पर जोर दिया जाए ।

प्रणालीगत परिवर्तन की आवश्यकता

  • खेल संस्थानो को सही मायने में समावेशी, लोकतांत्रिक, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए महिला संगठनों, किसान संघों और सामाजिक संगठनों सहित सभी हितधारकों को व्यापक-स्तर पर शामिल करने की आवश्यकता है। जंतर मंतर पर पहलवानों के आंदोलन द्वारा प्रदर्शित भावना और शक्ति को मजबूत और विस्तारित किया जाना चाहिए ताकि स्थायी प्रणालीगत परिवर्तन सुनिश्चित किया जा सके।
  • च्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने खेलों में लिंग आधारित भेदभाव से निपटने के लिए एक मजबूत तंत्र की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में "खेल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण" पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोलते हुए, न्यायमूर्ति कोहली ने हेल्पलाइनों की स्थापना, जांच के लिए स्वतंत्र वैधानिक समितियों और अपराधियों के लिए कड़े दंड की वकालत की है। उन्होंने कई राष्ट्रीय खेल महासंघों में आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) की कमी पर भी प्रकाश डाला।

आगे का रास्ता

  • ऐतिहासिक रूप से, भारत में खेलों में महिलाओं की भागीदारी न्यूनतम रही है, जो मुख्य रूप से सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों से प्रभावित है। हालाँकि, हाल की पहलों का उद्देश्य महिला एथलीटों के लिए वित्त और संसाधनों को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करके इस परिदृश्य को बदलना है। इसके अतिरिक्त, खेलों में महिलाओं की शीघ्र भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम भी आरंभ किये गए।
  • इन सकारात्मक प्रगति के बावजूद भारत में खेल भागीदारी और प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता प्राप्त करना एक बडी चुनौती बनी हुई है। देश में खेल क्षेत्र विकास के चरणों से गुजर रहा है और इसकी प्रगति में तेजी लाने के लिए एक व्यापक रणनीति आवश्यक है। इसमें बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना, खेल प्रतिभाओं की पहचान करना, नियमित खेल आयोजनों की मेजबानी करना और जमीनी स्तर पर जागरूकता बढ़ाना शामिल है। भारत में खेलों के विकास में तेजी लाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष-

भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनावों और उसके बाद नवनिर्वाचित निकाय के निलंबन ने न केवल राजनीतिक षड्यंत्रों पर प्रकाश डाला है, बल्कि यह खेलों में महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित गहरे मुद्दों को भी उजागर किया है। ध्यान देने वाली बात है कि खेलों में हो रहे व्यापक परिवर्तन में समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज प्रतिध्वनित हो रही है। जैसे-जैसे स्पष्ट स्थिति सामने आती है, घटनाक्रम पर बारीकी से नज़र रखने के साथ न्याय सुनिशिचित करना तथा खेल प्रशासन बाहरी प्रभाव को रोकना सुनिशिचित किया जाए।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  1. भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के हालिया चुनाव विवादों और खेलों में महिलाओं की सुरक्षा पर इसके प्रभावों का विश्लेषण करें। इस तरह के मुद्दों को संबोधित करते हुए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम जैसे मौजूदा कानूनी ढांचे की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। (10 marks, 150 Words)
  2. खेलों में महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में सार्वजनिक विश्वास पर डब्ल्यूएफआई चुनाव के प्रभाव की जांच करें। महिला एथलीटों के लिए एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण सुनिश्चित करने के लिए लागू किए जा सकने वाले कानूनी और संगठनात्मक निवारक उपायों का आकलन करें। (15 marks, 250 Words)

Source- Indian Express