तारीख Date : 17/11/2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- राजव्यवस्था-न्यायिक सुधार
कीवर्ड: भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023, मृत्युदंड, संसदीय पैनल, क्षमा करने की शक्तियाँ
संदर्भ:
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023, जिसका उद्देश्य प्राचीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को प्रतिस्थापित करना है, विशेष रूप से मृत्युदंड के संबंध में महत्वपूर्ण बदलाव को रेखांकित करता है। इस प्रस्तावित कानून ने भारत में मृत्युदंड की वर्तमान उपयुक्तता और उसकी सीमा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
संविधान में परिभाषित क्षमादान शक्तियाँ
- क्षमा: इसका अर्थ है, व्यक्ति को अपराध से पूरी तरह मुक्त कर देना और उसे आजाद कर देना। माफ़ किया गया अपराधी एक सामान्य नागरिक की तरह ही होगा।
- रूपान्तरण: इसका आशय है, कि दोषी को दी जाने वाली सजा के प्रकार को कम करना या उसे प्रदत्त सजा से काम कठोर सज़ा में बदलना, उदाहरण के लिए, मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलना।
- सजा का निलंबन (Reprieve) : इसका तात्पर्य है, किसी दोषी व्यक्ति को सजा; आम तौर पर मौत की सजा, को निष्पादित करने में दी जाने वाली देरी, ताकि उसे अपनी बेगुनाही साबित करने या राष्ट्रपति क्षमादान अथवा किसी अन्य कानूनी उपाय के लिए आवेदन करने के लिए कुछ समय मिल सके।
- स्थगन (Respite): इसका अर्थ है कुछ विशेष परिस्थितियों, जैसे गर्भावस्था, मानसिक स्थिति आदि को देखते हुए किसी अपराधी की सजा की मात्रा या उसकी डिग्री को कम करना।
- परिहार (Remission) : इसका अर्थ है सज़ा की प्रकृति को बदले बिना उसकी मात्रा को बदलना, उदाहरण के लिए बीस वर्ष के कठोर कारावास को घटाकर दस वर्ष करना।
भारत में मृत्युदंड का विकास
- औपनिवेशिक युग: ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में व्यक्तियों को मुकदमे के बाद या उससे पहले भी फांसी दिए जाने के कई उदाहरण देखे गए हैं। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद, भारत एक लोकतांत्रिक राज्य में परिवर्तित हो गया, जिससे मृत्युदंड की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए।
- वर्तमान स्थिति: 31 दिसंबर, 2022 तक, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में 539 कैदी मौत की सज़ा पर थे, जो वर्ष 2016 के बाद से सबसे अधिक संख्या है। भारत ने ऐतिहासिक रूप से कुछ वैश्विक पहलों का विरोध भी किया है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के मृत्युदंड को समाप्त करने की वकालत करने वाले मसौदा प्रस्ताव का।
भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023
बीएनएस विधेयक, 2023, 160 वर्ष पुराने आईपीसी को निरस्त करने और प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है। इसके विभिन्न अनुभागों में निम्न परिवर्तन शामिल हैं
- आईपीसी धारा 420 (धोखाधड़ी): धोखाधड़ी का अपराध अब धारा 316 के अंतर्गत आता है, इसके लिए कोई अलग धारा 420 नहीं है।
- आईपीसी धारा 124ए (राजद्रोह): धारा 150 में "देशद्रोह" शब्द को "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य" से बदल दिया गया है।
- मृत्यु दंड: बीएनएस विधेयक मृत्युदंड के योग्य अपराधों के दायरे को 11 से बढ़ाकर 15 कर दिया गया है, जिसमें मॉब लिंचिंग, संगठित अपराध, आतंकवाद और नाबालिग से बलात्कार जैसे अपराध शामिल हैं।
- आईपीसी धारा 302: हत्या
- आईपीसी धारा 307: हत्या का प्रयास
- आईपीसी धारा 375 और 376: बलात्कार
- आईपीसी धारा 120 बी: आपराधिक षड्यंत्र, आदि।
उदाहरण के लिए, नाबालिगों से सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्युदंड: आईपीसी 12 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मौत की सजा की अनुमति देता है। वर्तमान विधेयक 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्युदंड की अनुमति देता है।
संसदीय पैनल की सिफारिशें: मौत की सजा पर सरकार से विचार करने का आग्रह
- संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में मृत्युदंड पर फैसले को सरकार के सावधानीपूर्वक विचार करने तक; टालने का सुझाव दिया है। विशेषज्ञ परामर्शों में मृत्युदंड को समाप्त करने की आवश्यकता पर लंबे विचार-विमर्श पर जोर दिया गया है।
- संसदीय पैनल की समिति मृत्युदंड के तीव्र विरोध को स्वीकार करती है, इसके लिए न्यायिक प्रणाली की विफलता और गलत सजा की संभावना को जिम्मेदार ठहराती है, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्तियों को मृत्युदंड का सामना करना पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त विशेषज्ञ, समिति को अपने प्रस्तुतीकरण के दौरान, 'दुर्लभ से दुर्लभतम मामले' सिद्धांत के परिशोधन का प्रस्ताव करते हैं, और यदि मृत्युदंड को बरकरार रखना आवश्यक समझा जाता है तो अधिक वस्तुनिष्ठ मानदंडों की आवश्यकता पर बल देते हैं ।
मृत्युदंड पर बहस
पक्ष में तर्क
- विधिक सहायता: ऐतिहासिक रूप से, भारत के विधि आयोग ने अपनी 35वीं रिपोर्ट (1962) में कानून और व्यवस्था बनाए रखने का हवाला देते हुए मृत्युदंड को बरकरार रखने की वकालत की थी।
- निवारक प्रभाव: समर्थकों का तर्क है कि मृत्युदंड एक निवारक के रूप में कार्य करता है और विशिष्ट मामलों में उचित सजा के लिए सामाजिक कुकृत्यों का जवाब देता है।
- कानून एवं व्यवस्था का रखरखाव: कानून और व्यवस्था बनाए रखने हेतु, किसी भी अनुभवजन्य अनुसंधान की अनुपस्थिति और अन्य समान कारकों के कारण, "भारत मृत्युदंड के उन्मूलन के प्रयोग का जोखिम नहीं उठा सकता"।
विपक्ष में तर्क
- वैश्विक रुझान; वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत, जहां अधिकांश देशों ने मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है, भारत ने इसके उपयोग को बनाए रखना और विस्तारित करना जारी रखा है।
- सामाजिक आर्थिक प्रभाव: आलोचकों का तर्क है कि गरीबों और अशिक्षितों को मौत की सजा का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, भारत में मौत की सजा पाने वाले 74.1% व्यक्ति आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं।
- प्रभाव-शून्यता: विरोधियों का तर्क है कि फांसी और मृत्युदंड तरीके, विभिन्न घटनाक्रमों को प्रभावी ढंग से कम करने में अभी भी अपेक्षित रूप से सफल नहीं रहे हैं।
- कम अधिरोपण: विभिन्न आंकड़ों से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 6 वर्षों में केवल 7 मामलों में मौत की सजा की पुष्टि की है, जिससे सजा की पुष्टि या रद्द होने से पहले अनिश्चित इंतजार के कारण होने वाली परेशानी बढ़ गई है।
- सिफारिशें और भविष्य पर विचार: संसदीय पैनल की सिफारिश है कि मौत की सजा पर फैसला सरकार के विवेक पर छोड़ दिया जाए। यदि मृत्युदंड को बरकरार रखना है तो विशेषज्ञ "दुर्लभतम मामलों में से दुर्लभतम" सिद्धांत की अधिक वस्तुनिष्ठ परिभाषा का प्रस्ताव करते हैं।
आगे की रणनीति
मृत्युदंड से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए विशेषज्ञ निम्नलिखित सुझाव देते हैं:
- मृत्युदंड की सजा में मनमानी को कम करना।
- हाशिए पर रहने वाले समूहों पर भेदभावपूर्ण प्रभाव को पहचानना।.
- मृत्युदंड पर जीवन की कठोर वास्तविकताओं को कम करना।
- मृत्युदंड पर होने के मानसिक स्वास्थ्य परिणामों पर विचार करना।
- इसके अलावा, परिवीक्षा, कम्यूटेशन और छूट के लिए अर्ध-न्यायिक बोर्डों की स्थापना का प्रस्ताव है, जिससे पीड़ितों को अधिक अधिकार मिलेगा। इसके अतिरिक्त, निष्पक्ष और कुशल कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए दया याचिकाओं के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करने की सिफारिश की गई है।
निष्कर्ष;
जैसे ही भारत मृत्युदंड पर भारतीय न्याय संहिता विधेयक के निहितार्थों पर विचार करता है, एक जटिल बहस उभर कर सामने आती है। प्रस्तावित कानून न केवल मृत्युदंड अपराधों के दायरे का विस्तार करता है बल्कि मृत्युदंड प्रणाली की प्रभावकारिता और निष्पक्षता पर भी चर्चा करता है। जबकि विशेषज्ञ वस्तुनिष्ठ मानदंड और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को संबोधित करने का आह्वान करते हैं, मृत्युदंड का निर्णय सरकार पर छोड़ने की सिफारिश इस विवादास्पद मुद्दे पर भारत के रुख को आकार देने में एक महत्वपूर्ण प्रयास हो सकते हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023, भारत में मृत्युदंड के परिदृश्य को कैसे बदलने का प्रस्ताव करता है, और यह मौजूदा कानूनी ढांचे में क्या विशिष्ट परिवर्तन लाता है? (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत में उभरते विधायी परिदृश्य के संदर्भ में मृत्युदंड के पक्ष और विपक्ष में प्रस्तुत किए गए प्रमुख तर्क क्या हैं और ये तर्क चल रही बहस में कैसे योगदान देते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu