तारीख Date : 02/01/2024
प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2,राजव्यवस्था - नियमन
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3,विज्ञान और प्रौद्योगिकी - आईटी प्रौद्योगिकी
की-वर्ड्स : आईएफएफ, ओटीटी, आईपीटीवी, प्रसार भारती
संदर्भ -
केंद्र सरकार द्वारा प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 प्रस्तुत करने से मीडिया और मनोरंजन परिदृश्य में व्यापक परिवर्तन का दौर आरंभ हो रहा है । यह महत्वाकांक्षी विधेयक नियमों का आधुनिकीकरण करने और व्यापार में सहजता का प्रयास करता है, जबकि इसके नियामक क्षेत्र के अंतर्गत अब ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म और डिजिटल कंटेन्ट को भी सम्मिलित किया गया है। हालांकि विधेयक के प्रावधानों पर जोरदार बहस भी आरंभ हो गई है, क्योंकि विधि विशेषज्ञ इसके प्रभाव से संभावित सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।
मुख्य उद्देश्य एवं परिवर्तन
भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023, देश के प्रसारण परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रयास करता है। यह विधेयक प्रसारण सेवाओं को विनियमित करने के लिए एक समेकित ढांचा प्रदान करता है, जिसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म और डिजिटल समाचार शामिल हैं। यह मौजूदा केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 मे परिवर्तन को भी प्रस्तावित करता है ।
विधेयक के मुख्य उद्देश्य:- प्रसारण क्षेत्र में डिजिटलीकरण के कारण आवश्यक बदलाव लाना
- व्यापार सहजता को सुनिश्चित करना
- प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड का अनुपालन सुनिश्चित करना
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक स्वतंत्रता का संरक्षण करना
- दर्शकों के हितों की रक्षा करना
मुख्य परिवर्तन
- यह विधेयक OTT प्लेटफॉर्म (जैसे Netflix, Amazon Prime Video) और डिजिटल समाचारों को भी नियंत्रित करेगा।
- प्रसारण कंपनियों को दर्शकों के लिए बेहतर कार्यक्रम दिखाना होगा।
- विज्ञापनों के लिए नए नियम होंगे।
- दिव्यांगों के लिए कार्यक्रमों को सुलभ बनाया जाएगा।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- अनिवार्य पंजीकरण:
- यह विधेयक एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव करता है, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति या प्रसारण कंपनी जो सेवाएं प्रदान करती है या नेटवर्क चलाती है, उन्हें सरकार के पास औपचारिक पंजीकरण या सूचना देना अनिवार्य होगा।
- यद्यपि प्रसार भारती या संसद चैनल जैसे अधिकृत निकायों के लिए इसमें छूट दी गई है।
- यह केबल और सैटेलाइट प्रसारण नेटवर्क ऑपरेटरों के लिए मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप है, जो अनुमोदन और ग्राहक डेटा के रखरखाव की आवश्यकता पर जोर देता है।
- एकीकरण और आधुनिकीकरण:
- यह विभिन्न प्रसारण सेवाओं के लिए विनियामक प्रावधानों को एकल विधायी ढांचे में समेकित करता है, नियामक प्रक्रिया को सरल बनाता है, तथा इस प्रक्रिया में नवीन प्रौद्योगिकियों और सेवाओं को सम्मिलित करता है ।
- इस प्रकार यह विधेयक इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीविजन (आईपीटीवी) और ओटीटी प्लेटफॉर्म सहित प्रसारण सेवाओं के लिए इंटरनेट का उपयोग करने वाले नेटवर्कों को कवर करता है।
- हालांकि यह केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है, कि कितने सब्सक्राइबर या दर्शकों को इस दायरे में लाया जाए । इस प्रावधान से मनमाने निर्णय लेने की चिंता व्यक्त की जा रही है ।
- समसामयिक परिभाषाएं और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रावधान:
- उभरती प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए यह विधेयक समसामयिक प्रसारण शब्दावलियों के लिए व्यापक परिभाषाएं प्रस्तुत करता है और उभरती हुई प्रसारण प्रौद्योगिकियों के प्रावधानों को सम्मिलित करता है।
- कंटेन्ट गुणवत्ता और सुगम्यता:
- यह विभिन्न सेवाओं में कार्यक्रम और विज्ञापन संहिताओं के लिए पृथक दृष्टिकोण की अनुमति देता है तथा प्रतिबंधित कंटेंट के लिए प्रसारकों द्वारा स्व-वर्गीकरण और मजबूत पहुंच नियंत्रण उपायों को आवश्यक बनाता है।
- यदपि इन्हें अभी तक परिभाषित नहीं किया गया है। प्रसारकों को अपने कार्यक्रमों को संदर्भ, थीम, स्वर, प्रभाव और लक्षित दर्शकों के आधार पर वर्गीकृत करना आवश्यक है, और इसे प्रत्येक शो के आरंभ होने पर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा ।
- प्रतिबंधित कंटेन्ट के लिए नियंत्रण उपाय और विकलांग व्यक्तियों के लिए सुगम्यता बढ़ाने के लिए दिशानिर्देश भी उल्लिखित हैं।
- स्व-नियमन तंत्र:
- इस मसौदे की एक उल्लेखनीय विशेषता प्रस्तावित स्व-नियमन व्यवस्था है। प्रसारकों और प्रसारण नेटवर्क ऑपरेटरों को विभिन्न सामाजिक समूहों के सदस्यों से युक्त एक कंटेन्ट मूल्यांकन समिति (सीईसी) स्थापित करने का आदेश दिया गया है।
- सीईसी कार्यक्रमों को प्रमाणित करेगी, और यह सुनिश्चित करेगी कि वे कार्यक्रम और विज्ञापन कोड का अनुपालन करें। सरकार समिति के संचालन विवरण को परिभाषित करने का अधिकार रखती है, जिसमें उसका आकार और कोरम भी शामिल है।
- तीन स्तरीय नियामक ढांचा:
- नियामक ढांचे को तीन स्तरों में विभाजित किया गया है: ऑपरेटरों द्वारा स्व-नियमन, स्व-नियामक संगठन और एक प्रसारण सलाहकार परिषद।
- ऑपरेटरों को शिकायत निवारण अधिकारी के माध्यम से शिकायतों का समाधान करना होगा। यदि शिकायतें अनसुलझी रह जाती हैं, तो विवाद को स्व-नियामक संगठनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जिनके पास सदस्यों को निष्कासित करने, निलंबित करने या दंडित करने का अधिकार है।
- स्वतंत्र विशेषज्ञों और सरकारी प्रतिनिधियों से बना प्रसारण सलाहकार परिषद नियमों के कार्यान्वयन की देखरेख करता है और कंटेन्ट उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करता है।
- निरीक्षण और जब्ती प्रावधान:
- विधेयक सरकार को औचक निरीक्षण करने का अधिकार देता है।
- नियमों के उल्लंघन का संदेह होने पर ऑपरेटरों को अपनी लागत पर निगरानी की सुविधा सरकार को प्रदान करनी होगी और उपकरण जब्त करने का जोखिम उठाना पड सकता है ।
- हालाँकि, यदि नियमों या दिशानिर्देशों का अनुपालन 30 दिनों के अंतर्गत सुनिश्चित कर लिया जाता है, तो जब्त किए गए उपकरणों की वापसी के प्रावधान भी विधेयक मे उपस्थित है ।
- गैर-अनुपालन के लिए दंड:
- कार्यक्रम और विज्ञापन कोड का पालन न करने पर दंड में आपत्तिजनक शो को हटाना, आदेश, माफी, ऑफ-एयर अवधि और यहां तक कि पंजीकरण रद्द करना भी सम्मिलित है।
- केंद्र , सार्वजनिक हित या राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कार्यक्रम प्रसारण या प्रसारक संचालन पर रोक लगा सकता है।
- गंभीर अपराधों के लिए मौद्रिक दंड और कारावास का प्रावधान है, जिसमें राशि संस्था की वित्तीय क्षमता के आधार पर भिन्न होती है।
चिंताएं और आलोचनाएं:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव:
- इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन (आईएफएफ) जैसे डिजिटल अधिकार संगठन, संभावित अतिरेक हस्तक्षेप के प्रति सावधान करते हैं।
- प्रस्तावित कोड केबल टीवी पर लागू होने वाले कोड के समान हैं, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पत्रकारिता अभिव्यक्ति और कलात्मक रचनात्मकता पर प्रभाव को लेकर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
- आशंका यह है कि प्रकाशक व्यापक विवेकाधीन दंड से बचने के लिए सरकारी पसंद के अनुरूप समायोजित हो सकते हैं।
- नियम बनाने की शक्तियों का प्रत्यायोजन:
- IFF , केंद्र को नियम बनाने की शक्तियों के व्यापक प्रत्यायोजन को उजागर करता है, जिससे बाद में कई प्रावधानों को निर्धारित किया जाना शेष है।
- अत्यधिक प्रत्यायोजन हितधारकों के लिए अनिश्चिताएं उत्पन्न करता है, क्योंकि बिल में "जैसा निर्धारित किया जा सकता है" और "केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित" के कई उदाहरण शामिल हैं।
- मनमाने नियम-निर्माण के विरुद्ध सुरक्षा उपायों की कमी भी विवाद का एक मुद्दा है।
- कंटेन्ट मानकों में विषयनिष्ठता:
- प्रौद्योगिकी नीति विशेषज्ञ, ऑनलाइन कंटेन्ट रचनाकारों को प्रोग्राम कोड का पालन करने की आवश्यकता के बारे में सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
- 'अच्छा ' और 'शालीनता' जैसे शब्दों की व्यक्तिपरक प्रकृति अस्पष्ट व्याख्याओं को जन्म दे सकती है और संभावित रूप से डिजिटल स्पेस में विकसित हो रही गतिशील रचनात्मकता और अभिव्यक्ति को दबा सकती है।
प्रावधानों का गहन विश्लेषण:
- विनियमन और स्वतंत्रता को संतुलित करना:
- प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक का मसौदा ,वाक तथा कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के साथ नियामक निरीक्षण की आवश्यकता को संतुलित करने में एक सूक्ष्म चुनौती प्रस्तुत करता है।
- जबकि सरकार का मानना है कि यह विधेयक नियमों को आधुनिक बनाने की दिशा में एक कदम है परंतु आलोचकों का तर्क है कि यह रचनात्मकता को दबा सकता है और कंटेन्ट निर्माताओं पर प्रतिबंध लगा सकता है।
- ओटीटी प्लेटफार्मों की विकसित प्रकृति:
- विवाद का एक प्रमुख बिन्दु विधेयक के व्यापक दायरे से उत्पन्न होता है जिसमें पारंपरिक प्रसारकों और उभरते ओटीटी क्षेत्र दोनों शामिल हैं।
- ओटीटी प्लेटफॉर्म एक अलग व्यवसाय मॉडल और कंटेन्ट वितरण तंत्र पर काम करते हैं जो मुख्य रूप से पारंपरिक मीडिया के लिए डिज़ाइन किए गए नियामक ढांचे को लागू करने में अद्वितीय चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं।
- डिजिटल मीडिया परिदृश्य में नवाचार और विविधता को बढ़ावा देने के लिए इन अंतरों को संबोधित करने वाला संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
- अति-अनुपालन और स्व-सेंसरशिप की संभावना:
- अति-अनुपालन और स्व-सेंसरशिप के संबंध में डिजिटल अधिकार संगठनों द्वारा उठाई गई चिंताएं, ऑनलाइन कंटेन्ट को विनियमित करने में आवश्यक संतुलन को प्रकट करती हैं।
- कुछ आलोचकों का तर्क है कि कड़े नियम और संभावित दंड ओटीटी प्लेटफार्मों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जो नवाचार को बाधित कर सकता है।
- नियम-निर्माण में स्पष्टता की आवश्यकता:
- आईएफएफ के अनुसार केंद्र के नियम बनाने की शक्तियों का व्यापक प्रतिनिधिमंडल अनिश्चितता उत्पन्न करता है। कंटेन्ट निर्माताओं और प्लेटफार्मों सहित हितधारकों को पारदर्शी और पूर्वानुमानित नियामक वातावरण प्रदान करने के लिए नियम-निर्माण में स्पष्टता आवश्यक है।
- कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए नियम-निर्माण में लचीलेपन और विशिष्टता के बीच सही संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।
- पहुंच और विविधता को संबोधित करना:
- विधेयक में पहुंच और विविधता के लिए दिशानिर्देशों को शामिल करना एक समावेशी मीडिया वातावरण को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम को दर्शाता है।
- प्रसारकों को विकलांग व्यक्तियों के लिए उपायों को लागू करने के लिए बाध्य करना और कंटेन्ट मूल्यांकन समिति में विभिन्न सामाजिक समूहों से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना कंटेन्ट निर्माण में विविधता और पहुंच को बढ़ावा देने के सराहनीय प्रयास हैं।
- रचनात्मक गतिशीलता पर संभावित प्रभाव:
- डिजिटल स्पेस की गतिशीलता पर संभावित प्रभाव के संबंध में प्रौद्योगिकी नीति विशेषज्ञों द्वारा उठाई गई चिंताएँ प्रासंगिक हैं।
- 'अच्छा ' और 'शालीनता' जैसे शब्दों की व्यक्तिपरक प्रकृति अस्पष्टता का एक तत्व प्रस्तुत करती है जो डिजिटल क्षेत्र में कंटेन्ट निर्माण की गतिशील और नवीन प्रकृति में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
निष्कर्ष:
प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023, नियमों को आधुनिक बनाने और बढ़ते डिजिटल मीडिया परिदृश्य पर निगरानी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि कंटेन्ट की गुणवत्ता, पहुंच और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का उद्देश्य सराहनीय हैं, लेकिन नियंत्रणकारी प्रावधानों का व्यापक दायरा और संभावनाएं वैध चिंताएं उत्पन्न करती हैं। अतः नियामक निरीक्षण और संरक्षण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है ।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के संभावित प्रश्न-
- प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 का ओटीटी प्लेटफार्मों और कंटेन्ट निर्माताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा? डिजिटल अधिकार संगठनों द्वारा उठाए गए चिंताओं का मूल्यांकन करें और प्रस्तावित स्व-नियमन तंत्र की प्रभावशीलता का विश्लेषण करें। (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 द्वारा पारंपरिक और ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए उत्पन्न चुनौतियों की जांच करें। डिजिटल मीडिया में नवाचार और विविधता के संभावित अवरोधों का मूल्यांकन करें और अति-अनुपालन और स्व-भेदभाव के बारे में चिंताओं का समाधान करें। एक संतुलित नियामक दृष्टिकोण के लिए सिफारिशें प्रस्तावित करें। (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu