Date : 19/12/2023
प्रासंगिकता: GS पेपर-3 भारतीय अर्थव्यवस्था
की-वर्ड्स: ToT , GVA, नीति आयोग, MS
संदर्भ:
भारतीय कृषि के लिए व्यापार की शर्तों (terms of trade ,ToT) में पिछले पंद्रह वर्षों में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए है। इसका संकेत गैर-कृषि वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्ष कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव से मिलता है। यह विश्लेषण राष्ट्रीय आय के आंकड़ों, विशेष रूप से वर्तमान और स्थिर कीमतों पर सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) पर आधारित है और व्यापार की शर्तों की गणना करने के लिए मूल्य अपस्फीतिकारकों को नियोजित करता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोणः
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद और सलाहकार जसपाल सिंह के शोध से पता चला है कि कृषि के लिए व्यापार की शर्तों (terms of trade ,ToT) में 1973-74 में 90.2 से 1985-96 तक 72.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी। इसके बाद, 2000 के दशक के मध्य तक, यह पुनः 85% के स्तर तक पहुंच गया था। हालांकि 2009-10 के बाद से इसमें महत्वपूर्ण बदलाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 2020-21 में ToT 130.2 के शिखर तक पहुँच गया था, हालांकि 2022-23 में पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा कम 126.6 के स्तर पर रहा है।
ToT को प्रभावित करने वाले कारकः
भारत की कृषि विकास दर में 2005-06 से 2021-22 तक औसतन 3.7% की वृद्धि प्रति वर्ष रही है, यह इस क्षेत्र के लिए बेहतर ToT के लिए जिम्मेदार है। इन सुधारों का कारण 2004 से 2014 तक वैश्विक स्तर पर कृषि-वस्तुओं के मूल्य में उछाल और नीतिगत हस्तक्षेपों, विशेष रूप से फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि आदि कारक रहे हैं।
ToT की गणनाः
ToT की गणना अंतर्निहित मूल्य अपस्फीति का उपयोग करके की जाती है और अंतर्निहित मूल्य अपस्फीति को वर्तमान कीमतों पर जीवीए की तुलना स्थिर कीमतों पर जीवीए से करके निकाला जाता है। कृषि जीवीए के लिए अपस्फीति को गैर-कृषि जीवीए से विभाजित करके, किसी दिए गए वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए ToT निर्धारित किया जा सकता है। कृषि के लिए ToT में वास्तविक सुधार किसानों और कृषि मजदूरों पर इसके प्रभाव को समझने में सहायक है।
किसानों और कृषि मजदूरों पर प्रभावः
निहित मूल्य अपस्फीतिकारकों पर आधारित ToT गैर-कृषि वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्ष कृषि वस्तुओं की कीमतों के उतार-चढ़ाव पर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है, हालांकि इससे स्पष्ट रूप से यह पता नहीं चलता है कि ये परिवर्तन प्रत्यक्ष फसल उत्पादन में लगे लोगों को कैसे प्रभावित करते हैं। किसानों द्वारा प्राप्त कीमतों और भुगतान की गई कीमतों पर कृषि मंत्रालय के आंकड़े अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
प्राप्त मूल्यों (आईपीआर) और भुगतान मूल्यों (आईपीपी) के लिए मंत्रालय के सूचकांक किसानों के लिए ToT की गणना के आधार के रूप में काम करते हैं। एक से अधिक का अनुपात किसानों के लिए अनुकूल मूल्य निर्धारण का संकेत देता है, जबकि एक से कम का अनुपात प्रतिकूल मूल्य का संकेत देता है। आँकड़े 2004-05 और 2010-11 के बीच किसानों के ToT अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाते हैं, लेकिन बाद के वर्षों में ठहराव या गिरावट देखी गई है, जो किसानों के लिए चुनौतियों का संकेत देता है।
तुलनात्मक रूप से, कृषि मजदूरों के ToT अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि रही है, जो वास्तविक मजदूरी में वृद्धि को दर्शाता है। यह त्वरित आर्थिक विकास, कृषि के बाहर रोजगार के नए अवसरों और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसे सरकारी हस्तक्षेपों से प्रेरित रहा है। हालांकि, कृषि मजदूरों के लिए भी, ToT अनुपात में 2018-19 के बाद गिरावट देखी गई है, इससे ग्रामीण मजदूरी भी प्रभावित हुई है।
राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रभावः
विकसित हो रहे ToT का किसानों और कृषि मजदूरों की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता से संबंधित राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कृषि मजदूर ऐतिहासिक रूप से भारत की सामाजिक सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर रहे हैं। 2003-04 के बाद हुए तेज विकास ने उनके लिए कृषि के अतिरिक्त वैकल्पिक रोजगार के अवसर पैदा किए, जिससे उनकी वास्तविक मजदूरी में वृद्धि हुई।
ToT विश्लेषण से पता चलता है कि श्रम बाजारों में तेजी आई है, जो मजदूरों को पारंपरिक कृषि गतिविधियों से परे विकल्प प्रदान करता है। इसके साथ सरकारी हस्तक्षेपों के कारण कृषि मजदूरों के लिए वास्तविक मजदूरी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसका प्रभाव उन किसानों पर पड़ा है जो उपज मूल्यों में समान वृद्धि के बिना उच्च उत्पादन लागत का सामना करते हैं।
सब्सिडी और एमएसपी खरीद के बावजूद पिछले एक दशक में किसानों के लिए ToT में ठहराव, किसान समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करता है। बढ़ती उत्पादन लागत, फसल उपज में कमी और भूमि स्वामित्व के विखंडन जैसे कारक इस ठहराव में योगदान करते हैं। इसका एक परिणाम यह दिखाई दे रहा है प्रमुख कृषि समुदायों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग की जा रही है।
निष्कर्ष :
पिछले डेढ़ दशक में भारत के कृषि व्यापार की शर्तों में परिवर्तन का इस क्षेत्र के विकास पर सकारात्मक प्रभाव रहा है। वैश्विक कृषि-वस्तु मूल्य रुझानों और नीतिगत हस्तक्षेपों से प्रेरित ToT में सुधार ने कृषि विकास दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हालांकि, किसानों और कृषि मजदूरों के लिए ToT की सूक्ष्म जांच करने से अलग-अलग रुझानों का पता चलता है। यद्यपि समग्र रूप से कृषि क्षेत्र के लिए ToT में सुधार हुआ है, लेकिन यह किसानों की तुलना में कृषि मजदूरों के लिए यह सुधार अधिक सकारात्मक रहा है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में दोनों के लिए ToT में ठहराव या गिरावट देखी गई है, जो कृषकों के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को दर्शाती है।
राजनीतिक अर्थव्यवस्था के निहितार्थ व्यापक नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं जो किसानों और कृषि मजदूरों की चिंताओं को दूर करें। जैसा कि भारत समावेशी और सतत विकास के लिए प्रयास कर रहा है, कृषि क्षेत्र में सभी हितधारकों को लाभान्वित करने वाली नीतियों को आकार देने के लिए व्यापार की कृषि शर्तों की गतिशीलता को समझना और संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- भारत की कृषि व्यापार शर्तों (ToT) में हाल के परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या करें। कृषि क्षेत्र के लिए ToT को आकार देने में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि और वैश्विक कृषि-वस्तु मूल्य रुझानों की भूमिका का विश्लेषण करें।(10 marks, 150 words)
- भारत में किसानों और कृषि मजदूरों के लिए व्यापार की शर्तों (ToT) के रुझानों का विश्लेषण करें। हाल के वर्षों में इनके लिए ToT में ठहराव या गिरावट के कारणों और राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की पहचान करें । कृषि क्षेत्र में समावेशी और सतत विकास के लिए नीतिगत उपायों का सुझाव भी दें । (15 marks, 250 words)
Source- Indian Express