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Daily-current-affairs / 22 Dec 2023

डाकघर विधेयक, 2023: भारतीय डाक प्रणाली में आधुनिकीकरण और गोपनीयता संबंधी चिंताओं को संतुलित करना - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 23/12/2023

प्रासंगिकता : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 – राजव्यवस्था

मुख्य बिन्दु : सत्ता का प्रत्यायोजन, जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023, सार्वजनिक आपातकाल, अवरोधन प्राधिकरण

संदर्भ -

18 दिसंबर, 2023 को, भारतीय संसद ने डाकघर विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी है, यह 1898 के प्राचीन भारतीय डाकघर अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संसोधन का प्रावधान करता है। इस कानून का उद्देश्य डाक विभाग को आधुनिक बनाना और संदेशवाहक सेवा से बैंकिंग सुविधाकर्ता के रूप बदलना है। .हालाँकि, इस संसोधन विधेयक ने राजनीतिक क्षेत्र में नए विवाद को पैदा कर दिये है , जिसमें विपक्षी संसद सदस्यों (सांसदों) द्वारा गोपनीयता अधिकारों और सरकारी अधिकारियों को दी गई व्यापक निगरानी शक्तियों के संभावित उल्लंघनों के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं।


डाकघर विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएं:

अवरोधन प्राधिकरणः

  • यह विधेयक, राज्य सुरक्षा, विदेशी संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, आपातकाल, सार्वजनिक सुरक्षा या अन्य कानूनों के उल्लंघन जैसे कारणों से डाक लेखों के अवरोधन की अनुमति देता है।
  • विधेयक केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त प्रभारी अधिकारी को उल्लिखित साक्ष्यों के आधार पर डाक लेखों को "रोकने, खोलने या हिरासत में लेने" हेतु सशक्त करता है ।

निपटान प्राधिकरणः

  • यह विधेयक सरकार को उचित समझी जाने वाली वस्तुओं के निस्तारण का अधिकार देता है।

शक्ति का प्रत्यायोजनः

  • केंद्र सरकार किसी भी डाकघर के अधिकारी को सीमा शुल्क या निर्दिष्ट अधिकारियों को प्रतिबंधित वस्तुओं वाली डाक वस्तु देने के लिए अधिकृत कर सकती है।

देयता छूटः

  • डाकघर को अपनी सेवाओं के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • अधिकारी को तबतक उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि वे धोखाधड़ी से या जानबूझकर सेवाओं के नुकसान, देरी या गलत वितरण का कारण नहीं बनते।

अपराध और दंडः

  • विधेयक मे भूमि राजस्व के बकाया के रूप में अवैतनिक राशि की वसूली के अलावा कोई निर्दिष्ट अपराध और दंड नहीं का प्रावधान नही है।

1898 अधिनियम से बदलावः

  • यह विधेयक डाक वस्तुओं की चोरी, गबन या विनाश जैसे कार्यों को अपराधों को श्रेणी से हटाता है, जो 1898 अधिनियम के तहत कारावास और जुर्माने से दंडनीय थे।
  • जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 ने इन अपराधों और दंडों को समाप्त कर दिया है ।

विपक्षी सांसदों द्वारा व्यक्त की गई चिंताएँ

गोपनीयता संबंधी चिंताएँ

  • निजता के अधिकार के संभावित उल्लंघन संबंधी चिंताओं के आधार पर विधेयक की आलोचना की जा रही है।
  • विपक्षी सांसदो ने इसमे दी गई व्यापक शक्तियों और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता के बारे में विशिष्ट चिंताएं व्यक्त की है।

स्पष्ट दिशानिर्देशों की अनुपस्थितिः

  • विपक्षी सांसद ,विधेयक के भीतर स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी के बारे में चिंता व्यक्त कर रहे हैं।
  • इस बात पर चिंता जताई गई कि विशिष्ट नियमों की अनुपस्थिति से राज्य द्वारा अनियंत्रित निगरानी हो सकती है।

डाक अधिकारियों का सशक्तिकरणः

  • तलाशी और जब्ती की शक्तियों के साथ डाक अधिकारियों के सशक्तिकरण को गोपनीयता संबंधी चिंता के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • नागरिक गोपनीयता के संभावित समझौते और सूचना लीक के खिलाफ सुरक्षा उपायों के अभाव संबंधी मुद्दे उठाए गए है ।

सरकारी निगरानी का डरः

  • आलोचकों का तर्क है कि विधेयक "बिग ब्रदर सिंड्रोम" प्रदर्शित करता है।
  • पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन के बिना सरकारी निगरानी की सीमा के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई ।

अवरोधन के लिए अस्पष्ट आधारः

  • विपक्षी सांसद अवरोधन के आधार पर स्पष्टता की कमी की ओर इशारा करते हैं, विशेष रूप से आपातकालीन स्थितियों में।
  • अवरोधन के लिए अच्छी तरह से परिभाषित प्रक्रियाओं की अनुपस्थिति के कारण मनमानेपन की संभावना बढ़ गई है।

अधिकार प्राप्त अधिकारियों का चयन और जवाबदेहीः

  • अधिकारियों के चयन और उन्हें सशक्त बनाने में अस्पष्टता के बारे में चिंता व्यक्त की गई।
  • स्पष्ट दिशानिर्देशों के बिना इंटरसेप्ट शिपमेंट पर अधिकार रखने वाले अधिकारियों के साथ मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।

शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थितिः

  • विधेयक में नागरिकों के लिए शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है।
  • सांसद नागरिकों को प्रतिस्पर्धा करने या अवरोधन कार्यों के बारे में चिंताओं को उठाने की अनुमति देने वाले तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

नागरिक अधिसूचना और उचित प्रक्रिया का अभावः

  • विधेयक के बारे में किए गए अवलोकन में सरकार को नागरिकों को अवरोधन कार्यों के बारे में सूचित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • विपक्षी सदस्यों द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और कानून की उचित प्रक्रिया के कथित उल्लंघन पर जोर दिया गया।

विपक्ष की चिंताओं के जवाब में, केंद्रीय संचार, सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भारत के जटिल और विविध समाज में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अवरोधन के महत्व पर जोर देते हुए विधेयक का बचाव किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार जल्द ही एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करते हुए अवरोधन की प्रक्रिया संबंधी नियम बनाएगी।

डाकघर विधेयक का इतिहास

भारत में अवरोधन कानूनों का इतिहास की जड़ें 1898 के अधिनियम से प्राप्त होती हैं । इस अधिनियम में "सार्वजनिक आपातकाल" के आधार पर अवरोधन की अनुमति दी गई थी। भारत के विधि आयोग ने अपनी 38वीं रिपोर्ट में कहा था कि "आपातकाल" शब्द में स्पष्ट परिभाषा का अभाव है, जो अवरोधन के लिए एक व्यापक आधार प्रदान करता है। आयोग ने इस बात पर जोर दिया था कि चूंकि इस शब्द को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया था, इसलिए इसके आधार पर अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकारों के निलंबन को उचित नहीं ठहराया जा सकता। आयोग ने अवरोधन कानूनों को संवैधानिक सिद्धांतों के साथ संरेखित करने के लिए विधायी संशोधनों का सुझाव दिया, जिसके बाद 1981 का टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम लागू हुआ। भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक, 1986 ने अवरोधन के लिए एक प्रावधान पेश किया था , जो केंद्र या राज्य सरकार या अधिकृत अधिकारियों को विभिन्न आधारों पर डाक वस्तुओं को रोकने या अवरोधित करने की शक्ति प्रदान करता है। इसमें सार्वजनिक सुरक्षा, भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, अपराधों के लिए उकसावे की रोकथाम या सार्वजनिक आपातकाल संबंधी प्रावधान शामिल थे। यद्यपि विधेयक को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया था, परंतु राष्ट्रपति ज़ैल सिंह ने न तो इसे मंजूरी दी और न ही इसे पुनर्विचार के लिए वापस किया था, जिससे यह विधेयक कानूनी रूप नहीं ले सका तथा वाजपेयी सरकार ने सन 2002 में इस विधेयक को वापस ले लिया।

निगरानी शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक निर्णय

1. पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1996)

1996 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम भारत संघ के मामले में, टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) की संवैधानिक वैधता को पर्याप्त उचित प्रक्रिया सुरक्षा उपायों के बिना टेलीफोनिक अवरोधन की अनुमति के कारण चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि इस तरह की टेलीफोन टैपिंग गोपनीयता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण करती है और राज्य की निगरानी शक्तियों के मनमाने प्रयोग के लिए अवसर स्थापित करती है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अवरोधन शक्तियों को विनियमित करने के लिए एक निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रक्रिया के बिना, अनुच्छेद 19 (1) (ए) और अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना असंभव होगा।

2. न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017)

2017 में न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के महत्वपूर्ण मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से घोषणा की कि निजता का अधिकार सभी भारतीयों का मौलिक अधिकार है। सरकार द्वारा इस अधिकार मे हस्तक्षेप की अवस्था मे न्यायालय ने कुछ शर्तों को रेखांकित किया है , जिन्हे पूरा करने पर ही सरकार हस्तक्षेप कर सकती है । ये शर्तें निम्नवत हैं-

  • वैधानिकताः किसी भी सरकारी कार्रवाई को कानून द्वारा अधिकृत किया जाना चाहिए।
  • वैध लक्ष्यः सरकार की कार्रवाई का एक उचित और वैध उद्देश्य होना चाहिए।
  • उपयुक्तताः कार्रवाई को अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सार्थक कदम उठाने चाहिए।
  • आवश्यकताः सरकार को समान रूप से प्रभावी विकल्पों में से कम से कम घुसपैठ करने वाले उपायों का चयन करना चाहिए।
  • आनुपातिकताः कार्रवाई को व्यक्तिगत अधिकारों को असमान रूप से प्रभावित नहीं करना चाहिए।
  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायः ऐसे सरकारी उपायों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सार्थक सुरक्षा उपाय होने चाहिए।

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार निजता के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का एक व्यापक बहाने के रूप में उपयोग नहीं कर सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं की न्यायपालिका द्वारा जांच करने और यह सुनिश्चित करने से नहीं रोकना चाहिए कि सरकार के कार्य आवश्यक कानूनी और नैतिक मानकों को पूरा करते हों ।

ये घटनाक्रम कानूनी और न्यायसंगत राज्य उपायों की आवश्यकता को पहचानते हुए व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।

डाकघर विधेयक पर विशेषज्ञों की राय

कुछ विशेषज्ञों ने विधेयक में सुरक्षा उपायों की कमी की आलोचना की है। उन्होंने अवरोधन आदेशों के लिए अनिवार्य कारणों जैसी आवश्यकताओं की अनुपस्थिति पर जोर दिया, जिससे निगरानी शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता बढ़ गई। अवरोधन प्रावधानों और नागरिक सेवाओं के बीच संबंध को उजागर किया गया है, जो उचित सुरक्षा उपायों के बिना राज्य की निगरानी के संकटों को इंगित करता है । यह विधेयक पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन के बिना राज्य की निगरानी को प्रोत्साहित करता है। सख्त निरीक्षण तंत्र की अनुपस्थिति और अधिकारियों को दी गई व्यापक कानूनी और गोपनीयता संबंधी शक्तियों ने विशेषज्ञों के बीच चिंता पैदा कर दी है।

निष्कर्ष

डाकघर विधेयक, 2023, भारत के डाक विभाग के आधुनिकीकरण के उद्देश्य से एक परिवर्तनकारी कानून के रूप में लाया गया है। हालाँकि, विपक्षी सांसदों, कानूनी विशेषज्ञों और गोपनीयता अधिवक्ताओं द्वारा उठाई गई चिंताएँ व्यक्तिगत गोपनीयता के लिए संभावित खतरों और निगरानी शक्तियों के दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर करती हैं। निष्पक्ष और पारदर्शी अवरोधन प्रक्रियाओं को तैयार करने का सरकार का आश्वासन एक कदम आगे है, चूंकि विधेयक का इतिहास अवरोधन कानून के पिछले प्रयासों के साथ जुड़ा हुआ है, इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के फैसले कड़े सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर जोर देते हैं , इन दोनों संदर्भों के मध्य डाकघर विधेयक का प्रक्षेप वक्र व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यताओं को संतुलित करने के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है। यह देखा जाना बाकी है कि भविष्य मे सरकार इन चिंताओं को कैसे दूर करती है तथा क्या किए गये संसोधन तेजी से डिजिटल दुनिया में नागरिकों के निजता के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए आवश्यक नियंत्रण और संतुलन प्रदान करते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. डाकघर विधेयक, 2023 की प्रमुख विशेषताओं का आकलन करें और विपक्षी सांसदों द्वारा उठाई गई चिंताओं पर चर्चा करें। विधेयक व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों को कैसे प्रभावित करता है, और व्यापक जांच और जब्ती शक्तियों के साथ डाक अधिकारियों को सशक्त बनाने के क्या निहितार्थ हैं? (10 marks, 150 words)
  2. भारत में अवरोधन कानूनों के ऐतिहासिक विकास और पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1996) और न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ सहित सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के प्रभाव का अन्वेषण करें। मूल्यांकन करें कि ये कानूनी उदाहरण निगरानी शक्तियों और गोपनीयता के अधिकार के लिए परिदृश्य को कैसे आकार देते हैं, विशेष रूप से डाकघर विधेयक, 2023 के संबंध में, उठाई गई चिंताओं पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया है। स्पष्ट करे । (15 marks, 250 words)

Source- The Hindu



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