तारीख Date : 30/11/2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2 - राजनीति और शासन
की-वर्ड : लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, वित्तीय जवाबदेही, चुनावी बांड, चुनावी न्याय
सन्दर्भ:
भारत में चुनावी बांड को चुनौती देने से सम्बन्धित सुप्रीम कोर्ट में की गई हालिया सुनवाई; लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की भूमिका को प्रकट करती है। सरकार बनाने और उसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार संस्थाओं के रूप में, राजनीतिक दलों को जनता का विश्वास बनाए रखते हुए, प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। हालाँकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन, राजनीतिक फंड दाताओं के लिए गुमनामी के साथ चुनावी बांड पेश करना; वैश्विक मानदंडों के बिल्कुल विपरीत है। ये सभी कारक पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग की अनिवार्य आवश्यकता पर जोर देते हैं।
राजनीतिक फंडिंग पर वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
संयुक्त राज्य अमेरिका, जो राजनीतिक फंडिंग नियमों के पालन में अग्रणी देश है, ने 1910 में प्रचार अधिनियम लागू किया। इस ऐतिहासिक कानून ने न केवल राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को उनके सभी फंडिंग के प्रकटीकरण को अनिवार्य कर दिया, बल्कि कई राजनीतिक सीमाएं भी लगा दीं। बकले बनाम वैलेओ (1976) विवाद में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सार्वजनिक प्रकटीकरण आवश्यकताओं की संवैधानिकता को मजबूत किया। साथ ही इस बात पर जोर दिया, कि संभावित बदले के निहितार्थ वित्तीय फंडिंग लोकतंत्र की अखंडता को कमजोर करते हैं। इस सन्दर्भ में अदालत ने राजनीतिक व्यवस्था में जनता के विश्वास के संभावित क्षरण को स्वीकार करते हुए, न केवल वास्तविक भ्रष्टाचार बल्कि भ्रष्टाचार की उपस्थिति से बचने के महत्व को भी पहचाना।
वर्ष 2014 में, यूरोपीय संघ ने यूरोपीय राजनीतिक दलों और फाउंडेशनों के वित्तपोषण पर एक विनियमन बनाकर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इस विनियमन ने राजनीतिक फंडिंग की अधिकतम सीमाएं स्थापित कीं, जिसमें निर्दिष्ट सीमा से अधिक राजनीतिक फंडिंग के लिए प्रकटीकरण और तत्काल रिपोर्टिंग की आवश्यकता अनिवार्य थी। यूनाइटेड किंगडम ने राजनीतिक दल, चुनाव और जनमत संग्रह अधिनियम 2000 के माध्यम से, राजनीतिक दलों के राजनीतिक फंडिंग और ऋण पर प्रतिबंध लगा दिया, साथ ही राजनीतिक फंडिंग के स्रोत की घोषणा करने के लिए कठोर आवश्यकताएं भी लागू कीं ।
सामान्य वैश्विक आवश्यकताएँ:
वैश्विक स्तर पर विभिन्न न्यायक्षेत्रों से सम्बंधित, राजनीतिक फंडिंग नियम; एक न्यूनतम राशि से ऊपर के दानदाताओं का पूर्ण प्रकटीकरण और दान की सीमा के निर्धारण को अनिवार्य बनाती है। इन उपायों का उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही सुनिश्चित करना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर अनुचित प्रभाव की रोकथाम करना है। ऐसे नियमों की आवश्यकता इस विश्वास में निहित है कि राजनीतिक दल प्रतिनिधि लोकतंत्र के स्तंभ हैं, और राजनीतिक व्यवस्था में नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए पारदर्शी वित्तीय प्रथाएं आवश्यक हैं।
प्रकटीकरण का महत्व:
पारदर्शी फंडिंग हेतु वित्तीय खाते राजनीतिक दलों और राजनेताओं में नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने, कानून का शासन बनाए रखने और चुनावी एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए मौलिक आधार का निर्माण करते हैं। फंडिंग स्रोतों को उजागर करना इसलिए भी अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि यह धन को सत्ता से अलग करने के लोकतांत्रिक सिद्धांत को बनाए रखता है, जिससे चुनावी परिणामों पर वित्तीय संसाधनों के अनुचित प्रभाव को रोका जा सके। लोकतंत्रों में, चुनावों की अखंडता का वित्तीय कौशल पर निर्भरता से समझौता, यह सुनिश्चित करते हुए कि चुनावी खेल का मैदान सभी दलों के लिए समान बना रहे; नहीं किया जाना चाहिए।
भारतीय लोकतंत्र के लिए आगे की राह:
लोकतंत्र और चुनावी न्याय के सिद्धांतों की रक्षा के लिए, भारत में चुनावी बांड के निहितार्थ का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक है। चुनावी बांड के माध्यम से दाता के विवरण को अज्ञात रखने की वर्तमान प्रथा पारदर्शिता और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के संभावित क्षरण को चिन्हित करती है। चुनावी बांड की असंवैधानिकता की मात्र घोषणा, पर्याप्त नहीं हो सकती है; इसके बजाय, राजनीतिक दलों के वित्तपोषण को विनियमित करने के लिए व्यापक कानून की तत्काल आवश्यकता है।
कानून के अनिवार्य घटक:
सार्वजनिक प्रकटीकरण:
- राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों, या राजनीतिक फाउंडेशनों को एक निश्चित सीमा से ऊपर दिए गए सभी दान का पूर्ण प्रकाशन अनिवार्य करना।
- वास्तविक समय में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को बड़ी राजनीतिक फंडिंग की तत्काल रिपोर्टिंग करना।
वित्तीय जवाबदेही:
- राजनीतिक दलों को अपने खाते सार्वजनिक करने और चुनाव आयोग को वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
- वित्तीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकारी द्वारा राजनीतिक दल के खातों की ऑडिटिंग की सुविधा प्रदान करना।
फंडिंग और व्यय पर सीमाएँ:
- अनियंत्रित वित्तीय प्रभाव को रोकने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा फंडिंग और व्यय पर स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करना।
- कानून के शासन का पालन सुनिश्चित करते हुए, इन सीमाओं को लागू करने के लिए तंत्र स्थापित करना।
स्वतंत्र निरीक्षण:
- राजनीतिक फंडिंग नियमों की निगरानी और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय की स्थापना करना।
- कानूनी प्रक्रियाओं और निर्णयों का पालन सुनिश्चित करके चुनावी न्याय के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कायम रखना।
निष्कर्ष:
भारत में चुनावी बांड की चुनौती का परिणाम, देश के लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए, केवल असंवैधानिकता की घोषणा से आगे बढ़ना और व्यापक कानून बनाने पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है। वैश्विक मॉडलों से प्रेरणा लेते हुए, भारत को एक ऐसा ढांचा अपनाना चाहिए जो सार्वजनिक प्रकटीकरण, वित्तीय जवाबदेही, फंडिंग की सीमा और स्वतंत्र निरीक्षण को प्राथमिकता दे। एक मजबूत कानूनी ढांचा न केवल लोकतांत्रिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखेगा, बल्कि जनता के विश्वास को भी बढ़ावा देगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि स्वतंत्र, निष्पक्ष और वास्तविक चुनावों के लोकतांत्रिक आदर्शों को बरकरार रखा जा सके। भारत में स्वस्थ लोकतंत्र की दिशा में यात्रा के लिए पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग के लिए विधायी प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, जिससे प्रतिनिधि शासन के मूल सिद्धांतों की रक्षा की जा सके।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- भारत में चुनावी बांड का उपयोग वैश्विक मानदंडों से कैसे भिन्न है, और इसके संभावित परिणाम क्या हैं? पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुधारों का सुझाव दें। (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत में राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए प्रस्तावित विधायी सुधारों का आकलन करें। सार्वजनिक प्रकटीकरण, वित्तीय जवाबदेही, फंडिंग सीमा और स्वतंत्र निरीक्षण जैसे घटकों की जांच करें। व्यवहार्यता, चुनौतियों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और चुनावी न्याय को बनाए रखने पर प्रभाव पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत- द हिंदू