तारीख Date : 08/11/2023
प्रासंगिकता : जीएस पेपर 3 - पर्यावरण और पारिस्थितिकी (जीएस पेपर 1 के लिए भी प्रासंगिक - शहरीकरण और संबंधित मुद्दे)
की-वर्ड : ईपीआईसी, एक्यूआई, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन, विश्व शहर दिवस
सन्दर्भ:
विगत 31 अक्टूबर को, समग्र वैश्विक समुदाय ने "सभी के लिए सतत भविष्य का वित्तपोषण" थीम के साथ 'विश्व शहर दिवस' मनाया। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की एक बड़ी संख्या भारत में अवस्थित है, जो भारतीय शहरी क्षेत्रों में स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण बनाने के लिए नीतिगत बदलावों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है।
भारत में वायु प्रदूषण की चिंताजनक वास्तविकता: विस्तार और परिणाम
- भारत में प्रदूषण की सीमा
- वायु प्रदूषण: सभी क्षेत्रों में बढ़ती चिंता
- जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव
- वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ
वर्तमान में भारत गंभीर वायु प्रदूषण संकट से जूझ रहा है, जैसा कि शिकागो में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) ने स्पष्ट किया है। इस संस्थान द्वारा प्रदत्त रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 शहर भारत में स्थित है। यह गंभीर आंकड़ा पूरे देश में एक व्यापक समस्या को रेखांकित करता है।
सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों सहित, वायु प्रदूषण का खतरा अब भारत के तटीय शहरों पर भी मंडरा रहा है, जो एक खतरनाक राष्ट्रव्यापी प्रवृत्ति का संकेत देता है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण मुंबई और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र है, जहां हाल ही में अत्यधिक असंतोषजनक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) स्तर के कारण वायु गुणवत्ता को "Death by Breath" करार दिया गया था।
वायु प्रदूषण के कारण भारतीय अपने औसत रूप से जीवन के 5.3 वर्ष खो देते हैं। दिल्ली के निवासी विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हैं, उन्हें औसतन 11.9 वर्षों की जीवन हानि होती है।
वायु प्रदूषण के कारण भारतीय शहर वासियों के स्वास्थ्य पर दिखने वाले प्रभाव गंभीर रूप से चिंताजनक हैं, जो आंखों, नाक और गले में जलन, खांसी, सांस फूलना और अस्थमा जैसी बीमारी के रूप में प्रकट हो रहे हैं। इसके अलावा, वायु प्रदूषण हृदय संबंधी बीमारियों और इससे जुड़ी कई स्वास्थ्य समस्याओं की वृद्धि में योगदान देता है। यह देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक गंभीर तस्वीर पेश करता है।
भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारक
- रियल एस्टेट का विस्तार
- ऑटोमोबाइल सेक्टर में विस्फोटक वृद्धि
- सड़क की धूल और वाहन उत्सर्जन
- कंक्रीट बैचिंग और औद्योगिक इकाइयों का प्रभाव
- हरित स्थानों की तुलना में ग्रे इन्फ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता
भारत में शहरी विकास रणनीतियाँ अक्सर रियल एस्टेट विकास को प्राथमिकता देती हैं, जिससे व्यापक निर्माण और बुनियादी ढांचे का विस्तार होता है। नतीजतन, निर्माण गतिविधियों के दौरान निकलने वाली धूल और प्रदूषक हवा की गुणवत्ता को खराब करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
भारत का ऑटोमोबाइल बाजार तेजी से विकास कर रहा है, 8.1% की पर्याप्त वृद्धि दर के साथ वर्ष 2027 तक इसका बाजार मूल्य लगभग 160 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप सड़कों पर अधिक वाहन दौड़ रहे हैं, जो अधिक निजी कार स्वामित्व को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे यातायात की भीड़ बढ़ जाती है और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
सड़क की टूट-फूट से उत्पन्न सड़क की धूल में कई हानिकारक कण होते हैं जो हवा में फैल जाते हैं, इससे हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है। वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन समस्या को और भी बढ़ा देता है, जिससे वातावरण में प्रदूषक तत्व फैल जाते हैं। शहरी प्रदूषण में केवल मोटर चालित परिवहन का योगदान 60% है।
कंक्रीट बैचिंग, कंक्रीट सामग्री के मिश्रण से जुड़ी एक प्रक्रिया है, जो हवा में कण पदार्थ और प्रदूषक मुक्त करती है। इसके अतिरिक्त, शहरों की औद्योगिक इकाइयाँ विभिन्न प्रदूषकों का उत्सर्जन करती हैं, जो वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
शहरों के जल निकाय, शहरी वन, सार्वजनिक हरित स्थान और शहरी खेती जैसे प्राकृतिक हरित क्षेत्रों का आकार कम हो गया है। इसके विपरीत, ग्रे बुनियादी ढांचे के विकास में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे शहरी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच असंतुलन बढ़ गया है।
उत्तर भारत, विशेषकर एनसीआर में शीतकालीन वायु प्रदूषण: कारण और चुनौतियाँ
- धान की पुआल (पराली) जलाना
- निर्माण गतिविधियां:
- त्रुटिपूर्ण शहरी विकास विकल्प
सर्दियों के महीनों के दौरान, विशेषकर हरियाणा और पंजाब में धान की पराली जलाने से दिल्ली एनसीआर के वायु गुणवत्ता की समस्या काफी हद तक बढ़ जाती है। हालांकि यह एक मौसमी समस्या है।
लगभग हर भारतीय शहर (सर्वाधिक एनसीआर क्षेत्र में लगभग 10%) में व्याप्त निर्माण गतिविधियां, वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। यहाँ, प्रभावी निगरानी और नियंत्रण उपायों की कमी है और इस सम्बन्ध में कोई मानकीकृत प्रक्रिया नहीं है।
बिगड़ती वायु गुणवत्ता को संबोधित करने के लिए शहरी नियोजन, परिवहन और प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक स्थायी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। वर्तमान निम्नस्तरीय शहरी विकास से शहर के निवासियों की भागीदारी सीमित हो गई है और शहरीकरण प्रक्रिया के बीच उनकी भूमिका निष्क्रिय हो गई है।
भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने की रणनीतियाँ: बदलाव के लिए एक रोडमैप
- शहरी नियोजन रणनीतियों को नया रूप देना
- सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना को बढ़ाना
- निजी वाहनों पर सख्त नियंत्रण करना
- शासन और हितधारक सम्बंधों को मजबूत करना
सार्वजनिक परिवहन में सुधार, सुरक्षित पैदल यात्री पथ और समर्पित साइकिल लेन बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए शहरी विकास में एक बुनियादी बदलाव जरूरी है। साइकिल अधिकारियों की नियुक्ति और निर्माण गतिविधियों के लिए मानकीकृत संचालन प्रक्रियाओं का कार्यान्वयन इस दिशा में आवश्यक प्रयास हो सकते हैं।
इस समय लगभग 10 लाख इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करने सहित मजबूत सार्वजनिक परिवहन में निवेश, शहरी गतिशीलता मांगों को पूरा करने के लिए अनिवार्य है। साथ ही जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन जैसी पहल को दोहराया जाना चाहिए, जिससे सार्वजनिक परिवहन सुलभ और किफायती हो, खासकर अनौपचारिक क्षेत्र के 85% लोगों के लिए।
शहर प्रशासन को निजी वाहनों की आवाजाही पर निर्णायक नियम लागू करने चाहिए। पीक आवर्स के दौरान भीड़ कर जैसे उपायों को लागू करने और सम-विषम नंबर प्लेट प्रणाली को अपनाने से प्रदूषण पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। 'नो कार डेज़' जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और शहर के नेताओं द्वारा सार्वजनिक परिवहन का विकल्प चुनने के साथ उदाहरण पेश करना, प्रेरणा के प्रतीकात्मक स्रोतों के रूप में काम कर सकता है।
वायु गुणवत्ता स्तर के आधार पर दिल्ली की ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) को अन्य शहरों में लागू किया जाना चाहिए। वास्तविक समय में औद्योगिक प्रदूषण की निगरानी और शहरी स्थानों के संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त प्रभावी शासन पर जोर देने, प्रदूषण दिशानिर्देशों को दैनिक जीवन में एकीकृत करने और सम-विषम प्लेट प्रणाली जैसे उपायों को लागू करने के लिए मजबूत शासन और सार्वजनिक समर्थन की भी आवश्यकता है।
निष्कर्ष
नागरिकों के लिए इस धारणा को स्वीकार करना अनिवार्य है कि वायु प्रदूषण जैसे कारकों के कारण उनका जीवनकाल कम हो सकता है। यह भी स्वीकार करते हुए कि प्रदूषण का बोझ समाज के गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्गों पर अधिक पड़ता है, जो अक्सर इसके लिए सबसे कम जिम्मेदार होते हैं; अनिवार्य समाधान ढूँढना आवश्यक है। प्रत्येक नागरिक जीवन की बेहतर गुणवत्ता और प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से सुरक्षा का हकदार है। नतीजतन, सरकार को शहरी भारतीयों के लिए बेहतर जीवन प्रदान करने, उनकी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न :
- प्रश्न 1: शहरी विकास विकल्पों, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारकों पर चर्चा करें। इन चुनौतियों का समाधान करने और एक स्थायी शहरी वातावरण बनाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव दें। (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2: भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रस्तावित रणनीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें, जैसे सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाना, निजी वाहनों पर सख्त नियम लागू करना और शासन को मजबूत करना। उनके कार्यान्वयन में संभावित बाधाओं का विश्लेषण करें और इन चुनौतियों से निपटने के लिए नवीन समाधान प्रस्तावित करें। (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत- द हिंदू