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Daily-current-affairs / 21 Dec 2023

भारत का रक्षा बजट और राष्ट्रीय सुरक्षा में संतुलन - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 22/12/2023

प्रासंगिकता- सामान्य अध्ययन पेपर 3 - राष्ट्रीय सुरक्षा,अर्थव्यवस्था - बजट

कीवर्डस- मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) कार्यक्रम, रूस-यूक्रेन युद्ध, तेजस एमके1ए लड़ाकू विमान, चुनावी अनिवार्यताएं,

संदर्भ:

  • भारत का रक्षा परिदृश्य बहुआयामी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें उत्तरी सीमाओं पर लगातार खतरे से लेकर समुद्री क्षेत्र में उभरती गतिशीलता तक शामिल है।
  • जैसे-जैसे देश 2024-25 के लिए आगामी बजट के करीब पहुंच रहा है, चुनावी उत्साह और रणनीतिक तैयारियों की आवश्यकता के बीच रक्षा आवंटन को लेकर चिंताएं उत्पन्न हो रहीं हैं। यह लेख भारत के रक्षा बजट के महत्वपूर्ण पहलुओं और चुनावी अनिवार्यताओं के मध्य अंतर्संबंधों का विश्लेषण करता है।


किफायती रक्षा व्यय बनाम सैन्य प्रभावशीलता:

स्क्वाड्रन की घटती क्षमता के समाधान की चुनौती:

2007 में 10 बिलियन डॉलर की अनुमानित लागत के साथ शुरू किए गए मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) की खरीद प्रक्रिया को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा था । यद्यपि, 2017 में स्क्वाड्रन की घटती क्षमता को बढ़ाने के लिए 36 राफेल जेट की खरीद की गई परंतु यह संख्या भारतीय वायु सेना (IAF) के लिए आवश्यक 42 लड़ाकू विमानों से काफी कम थी । इसलिए आगामी बजट में इस महत्वपूर्ण पहलू को संबोधित करने और किफायती रक्षा व्यय और रक्षा क्षमता विकास के बीच संतुलन का रणनीतिक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

बजट आवंटन:

यहाँ महत्वपूर्ण प्रश्न यह उभरता है कि क्या बजटीय बाधाएं रक्षा क्षमताओं को निर्धारित करेंगी या राष्ट्र की सुरक्षा अनिवार्यताएं रक्षा बजट आवंटन को चलाएंगी? 114 बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की प्रारंभिक योजना से हटकर 97 तेजस एमके1ए लड़ाकू विमानों को प्राप्त करने का भारतीय वायुसेना का नवीनतम निर्णय रक्षा योजना और संसाधन आवंटन के विवेकपूर्ण मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

विभिन्न मोर्चों पर खतरों का समाधान :

भारत की उत्तरी सीमाओं पर उपस्थित खतरे और पश्चिमी पड़ोसी की अप्रत्याशितता के कारण एक व्यापक रक्षा रणनीति की आवश्यकता है। भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं को देखते हुए, प्रभावशीलता के साथ सामर्थ्य को संतुलित करना महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत अपनी रक्षा संबंधी तैयारियों को कैसे आगे बढ़ाने की योजना बना रहा है,इसका विवेकपूर्ण मूल्यांकन वर्तमान चुनावी परिदृश्य में अनिवार्य हो जाता है।

सभी सेवाओं में आधुनिकीकरण की अनिवार्यताएँ:

  • भारतीय वायुसेना के अतिरिक्त, भारतीय थल सेना और नौसेना दोनों को अपनी क्षमताओं में कथित कमियों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मलक्का जलडमरूमध्य और हिंद महासागर में चीन को रोकने के लिए नौ-सैन्य शक्ति को मजबूत करने की अनिवार्य आवश्यकता है।
  • इसी संदर्भ में एक अन्य आति महत्वपूर्ण मुद्दा सेना के आधुनिकीकरण का भी है। भारतीय सेना के आकार को देखते हुए, सेना के आधुनिकीकरण के लिए विशाल बजट की आवश्यकता होती है।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष से पहले, सेना की योजना एक छोटे और तीव्र संघर्ष के आसपास केंद्रित थी, जिसमें 10-दिवसीय युद्ध के लिए रसद और 40-दिवसीय बिल्डअप अवश्यकताएं शामिल थी। परंतु हाल ही में यूक्रेन की स्थिति के समान विस्तारित युद्ध परिदृश्य की ओर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो रणनीतिक योजना पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

स्वदेशीकरण, अनुसंधान एवं विकास की भूमिका:

  • वर्तमान सरकार आत्मनिर्भर भारत पहल को बढ़ावा दने के लिए इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) जैसी योजनाओं का संचालन कर रही है।
  • इसी परिप्रेक्ष्य में भारत द्वारा स्थानीय रक्षा उद्योग को विकसित करने की लंबी अवधि को रेखांकित किया गया है,परंतु भारत के रक्षा बजट में वास्तविक रूप से और केंद्र सरकार के व्यय के प्रतिशत के रूप में ठहराव, उभरती सुरक्षा चुनौतियों के समक्ष देश की तैयारियों के बारे में चिंता उत्पन्न करता है।

अनुसंधान एवं विकास परिदृश्य:

  • रक्षा तैयारियों का एक महत्वपूर्ण पहलू अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2022 से पता चलता है कि भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय इसके सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7% है, जो विश्व स्तर पर 53वें स्थान पर है।
  • इसके विपरीत चीन ने 2022 में R&D में 421 बिलियन डॉलर का पर्याप्त निवेश किया जो भारत को अपने R&D आवंटन को प्राथमिकता देने और इसमें पर्याप्त वृद्धि करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

रक्षा व्यय में चुनौतियाँ:

    रक्षा मंत्रालय ने 2023-24 में पूंजीगत अधिग्रहण के लिए 1,76,346 करोड़ रुपए का अनुरोध किया था, लेकिन केवल 1,62,600 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, जिससे 13,746 करोड़ रुपए का कम आवंटन हुआ। यह भारत के जीवंत लोकतंत्र में रक्षा बजट में निरंतर गति बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

चुनावी अनिवार्यताओं के बीच संतुलन बनाना:

  • आयुध निर्माणी बोर्ड का पुनर्गठन और नकारात्मक आयात सूचियों की स्थापना निजी क्षेत्र के लिए विश्वास-निर्माण के उपायों का संकेत देती है जिससे उन्हें सतत रूपसे अनुबंधों का आश्वासन मिलता है। हालांकि ये पहल सकारात्मक हैं और रक्षा निर्यात में वृद्धि उत्साहजनक है परंतु यह स्वीकार करना भी आवश्यक है कि ऐसे प्रयासों की पूर्ण सफलता में लंबी अवधि का समय लगता है।
  • इसलिए राष्टीय सुरक्षा को अभेद्य बनाए रखने के लिए एक सुसंगत नीतिगत ढांचे और मजबूत रक्षा बजट की आवश्यकता है जो हमारे गतिशील लोकतंत्र में चुनावी उतार-चढ़ाव से प्रतिरक्षा सुनिश्चित कर सके ।
  • दो विरोधी पड़ोसी देशों से घिरे भारत जैसे देशों के लिए रक्षा लागत पर विचार करना सर्वोपरि हो जाता है। साथ ही एक दुर्जेय विरोधी का मुकाबला करने के लिए विशाल संसाधनों का आवंटन आवश्यक है। यद्यपि यह परिदृश्य तब और भी अधिक जटिल हो जाता है जब दो सैन्य रूप से कुशल विरोधियों का सामना एक साथ करना पड़ता है जिनमें से किसी को भी काम नहीं माना जा सकता।
  • जैसा कि चीन की आक्रामकता ने जापान को अपने रक्षा बजट को दोगुना करने के लिए प्रेरित किया है, संयुक्त राज्य अमेरिका ताइवान की सैन्य क्षमताओं को मजबूत कर रहा है, और क्षेत्रीय गठबंधन परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं ऐसे में वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों को पहचानना अनिवार्य हो जाता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यताओं के आलोक में भारत के रक्षा बजट पर उचित ध्यान न देना, विशेषकर चुनावी दबावों के सामने, एक गैर-जिम्मेदाराना और गैर-पेशेवर रणनीति होगी ।
  • यह रक्षा बजट के लिए एक निरंतर और व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए द्विदलीय व्यवस्था राष्ट्र के सुरक्षा हितों की रक्षा करती है।

द्विदलीय व्यवस्था का राष्टीय सुरक्षा में महत्व:

  • चुनावी दबाव से मुक्त रक्षा नीति: इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा राजनीतिक हितों से ऊपर रहती है और रणनीतिक निरंतरता सुनिश्चित होती है ।
  • दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान: इसमें अल्पकालिक लाभों के लिए रणनीतिक लक्ष्यों का त्यागा नहीं किया जाता बल्कि नीतिगत निरन्तरता बनी रहती है ।
  • संसदीय सहमति: द्विदलीय व्यवस्था में रक्षा नीति में व्यापक सहमति बनाने का प्रयास करना तुलनात्मक रूप से सहज होता है ।

निष्कर्ष:

वर्तमान में भारत का रक्षा बजट, चुनावी अनिवार्यताओं और विकसित हो रहे सुरक्षा परिदृश्यों की चुनौतियों से गुजर रहा है ऐसे में वहनशीलता और प्रभावशीलता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना आवश्यक है। प्रभावी प्रतिरोध की अनिवार्यता के लिए एक रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता भी होती है जो यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र कई मोर्चों पर खतरों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार व सक्षम हो । 2024-25 का आगामी बजट चुनावी गतिशीलता के सामने राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक लिटमस टेस्ट होगा।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. बदलती सुरक्षा गतिशीलता के बीच भारत की रक्षा बजट चुनौतियों का मूल्यांकन करें। रक्षा योजना पर चुनावी गतिशीलता के प्रभावों का परीक्षण भी कीजिए । (10 अंक, 150 शब्द)
  2. सामर्थ्य और रक्षा क्षमता के बीच संतुलन पर विचार करते हुए, विस्तारित युद्ध परिदृश्यों की ओर भारत के बदलाव के निहितार्थों का विश्लेषण करें। लाइव खतरों से निपटने में रणनीतिक योजना की भूमिका और एक सुसंगत रक्षा नीति ढांचे को बनाए रखने में द्विदलीय राज्य कौशल के महत्व का परीक्षण कीजिए । (15 अंक, 250 शब्द)

Source- The Hindu