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Daily-current-affairs / 19 Dec 2023

तृणमूल लोकतंत्र और माओवादी विद्रोह - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 20/12/2023

प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2- राजव्यवस्था - लोकतंत्र (सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3- आंतरिक सुरक्षा)

कीवर्ड्स: माओवादी विद्रोह, जनताना सरकार, पेसा अधिनियम 1996 , आदिवासी आकांक्षाएं

संदर्भ-

  • हाल ही में सम्पन्न छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव राज्य में आदिवासी मतदाताओं और राजनीतिक गतिशीलता के बीच जटिल संबंध को रेखांकित करते हैं। 34% की मत भागीदारी के साथ आदिवासी आबादी का समर्थन प्रायः इस राज्य में सत्ता निर्धारण का कार्य करता है ।
  • हालांकि इस राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से बस्तर में व्याप्त माओवादी विद्रोह, एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। चुनाव के बाद का परिदृश्य माओवादी प्रभाव को कम करने में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।


पृष्ठभूमि:

नक्सलवाद या माओवादी विद्रोह की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में हुई थी। वहाँ के किसानों ने एक भूमि विवाद के परिणामस्वरूप स्थानीय जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया था। कानू सान्याल और जगन संथाल के नेतृत्व में इस आंदोलन का लक्ष्य न्यायसंगत भूमि पुनर्वितरण था।

पश्चिम बंगाल से उत्पन्न होकर, यह छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के कम विकसित क्षेत्रों में फैल गया। नक्सल माओवादी विचारधारा का अनुसरण करते हैं जो कि सशस्त्र विद्रोह, जन आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के माध्यम से राज्य की सत्ता पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से प्रेरित हैं।

माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में लोकतंत्र:

  • बीजापुर और कोंटा जैसे माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में मतदान काफी कम हुआ, जिससे विद्रोह से प्रभावित क्षेत्रों में लोकतंत्र की प्रभावकारिता के बारे में चिंता उत्पन्न हुई है।
  • पाँचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 3% से 4% की मतदान भागीदारी वहां व्याप्त चुनौतियों और हिंसा को दर्शाती है।
  • यह विश्लेषण माओवाद के प्रभाव के संदर्भ में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले बहुआयामी मुद्दों पर पुनर्विचार करने का आह्वान करता है।

लोकतंत्र और माओवाद का दृष्टिकोण:

  • राज्य के विरुद्ध लोगों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला माओवाद विरोधाभासी रूप से उसी आबादी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह विरोधाभास इस भ्रम को कायम रखने के लिए लक्षित है कि नक्सलवादी जनता के सशक्तीकरण का समर्थन करते हैं।
  • यह परिदृश्य माओवादी रणनीतियों जैसे कि जनताना सरकार' नामक एक समानांतर सरकार की स्थापना, की निरंतरता पर संदेह उत्पन्न करता है। यह माओवादी विचारधारा और स्थानीय आबादी की जागरूकता के बीच विसंगति को उजागर करता है।

मोहभंग और जनभागीदारी:

  • हाल के रुझानों का विश्लेषण आदिवासी समुदायों के बीच विश्वास उत्पन्न करने में राज्य के प्रयासों की प्रभावकारिता में कमी को उजागर करता है। यह चुनाव प्रक्रिया में निम्न भागीदारी के अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता के बारे में प्रासंगिक सवाल उठाता है।

धर्मान्तरण और कृत्रिम एजेंडा:

  • जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण जैसे मुद्दे प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में उभरे हैं। यह विश्लेषण राजनीतिक अभिकर्ताओं द्वारा "कृत्रिम एजेंडा" के रूप में धर्मांतरण की धारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करता है।
  • यह मूल्यांकन भ्रमित करने की रणनीति के आगे झुकने के बजाय मौलिक चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर जोर देता है।

PESA अधिनियम- प्रभावकारिता और माओवादी शोषण:

  • 1996 में अधिनियमित पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) का नीतिगत ढांचे पर केंद्रित विश्लेषण इसकी सीमित प्रभावकारिता पर प्रकाश डालता है।
  • इसमें जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को नियंत्रित करने के लिए ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है। इसके बावजूद किसी भी राज्य सरकार ने इस अधिनियम को इसके वास्तविक उद्देश्यों के अनुरूप लागू नहीं किया है।
  • इस विधायी अंतराल ने माओवादियों को जनजातीय शिकायतों का फायदा उठाने और 'जनताना सरकार' के माध्यम से अपने प्रभाव को मजबूत करने के लिए एक आधार प्रदान किया है।

माओवादी प्रभाव को कम करने में चुनौतियां:

  • विश्लेषकों का तर्क है कि माओवादी चुनौती का समाधान सुरक्षा और विकास केंद्रित पारंपरिक दृष्टिकोणों से परे है।
  • यह आदिवासियों को नेतृत्व प्रदान करने के साथ उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी आवाज उठाने के लिए मंच प्रदान करता है।
  • आदिवासी आकांक्षाओं को पहचानने के लिए माओवादिओं का प्रमुख तर्क जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना है, जो माओवादी प्रभाव को कम करने में बाधक बना हुआ है।
  • विश्लेषक बहुआयामी रणनीति के महत्व को रेखांकित करते हैं, जो माओवादियों के तथाकथित समर्थन को उजागर करते हुए स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाता है।

माओवादी प्रभाव को कम करने हेतु प्रयास:

  • PESA के माध्यम से आदिवासियों का सशक्तीकरण: आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए एक परिवर्तनकारी उपाय के रूप में PESA अधिनियम के ठोस कार्यान्वयन की आवश्यकता है। विश्लेषकों का तर्क है कि PESA का प्रभावी कार्यान्वयन माओवादियों को अप्रासंगिक बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में काम कर सकता है।
  • आदिवासी आकांक्षाएं, जागरूकता और गरिमा: इन नीतिगत चर्चाओं के दृष्टिगत आदिवासी समुदायों के बीच बढ़ी हुई जागरूकता और आकांक्षाओं को स्वीकार किया गया है। झारखंड में पथलगड़ी आंदोलन को एक उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है जहां जनजातीय अपने अधिकारों का दावा करते हैं और अनुभूत अन्याय का विरोध करते हैं। यह बताता है कि आदिवासी आबादी लोग गरिमा के साथ अपने संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों की मांग करते हैं।
  • ऑपरेशन ग्रीन हंट (2010): इसके तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की रणनीतिक तैनाती की गई। विगत बारह वर्षों में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 223 से घटकर 90 हो गई।
  • आकांक्षी जिला कार्यक्रम (2018): यह कार्यक्रम समग्र विकास हेतु मुख्य रूप से सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत धीमी प्रगति वाले जिलों में तीव्र विकास का लक्ष्य रखता है।

निष्कर्ष

माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में चुनावों के बाद के गतिशीलता की जांच उग्रवाद के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार के रूप में तृणमूल लोकतंत्र को मजबूत करने की तात्कालिकता को रेखांकित करती है। माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में कम मतदान राज्य की रणनीतियों के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करता है। माओवादियों का विरोधाभासी रुख लोकतांत्रिक प्रक्रिया के समर्थन हेतु एक सूक्ष्म प्रतिक्रिया की आवश्यकता को उजागर करता है। धर्मान्तरण और PESA अधिनियम का अप्रभावी कार्यान्वयन जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण नीतिगत सुधार की मांग करते हैं।
एक परिवर्तनकारी उपाय के रूप में PESA का प्रभावी कार्यान्वयन माओवादियों को अप्रासंगिक बनाने की क्षमता रखता है। माओवादी प्रभाव को कम करने के लिए पारंपरिक सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोणों से अलग एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। जनजातीय नेतृत्व को बढ़ावा देना, स्थानीय आवाजों को सशक्त बनाना और जमीनी स्तर लोकतंत्र का पोषण करना इस रणनीतिक अनिवार्यता में महत्वपूर्ण तत्व हैं। इन संवेदनशील क्षेत्रों में लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बनाए रखते हुए दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना आवश्यक है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासी लोगों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और पंचायत प्रावधानों (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) को लागू करने के संभावित प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए, माओवादी उग्रवाद का सामना करने में तृणमूल लोकतंत्र की भूमिका पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. लोकतंत्र पर माओवादी दृष्टिकोण, विशेष रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर रहने के लिए स्थानीय आबादी पर उनका दबाव, प्रभावित क्षेत्रों में किस प्रकार चुनौतियाँ पैदा करता है? माओवादी प्रभाव का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए जनजातीय नेतृत्व के सशक्तिकरण और तृणमूल लोकतंत्र सहित एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता का विश्लेषण करें। (15 अंक, 250 शब्द)

Source- The Hindu