तारीख (Date): 01-08-2023
प्रासंगिकता - जीएस पेपर 2 - सोशल मीडिया और इसका प्रभाव
की-वर्ड - सोशल मीडिया, विषाक्त वातावरण, अग्निवीर
सन्दर्भ:
- सोशल मीडिया के बढ़ते क्रांतिक उपयोग ने उस माहौल को व्यापक रूप से प्रभावित किया है जिसमें युवा पीढ़ी बड़ी होती है, जिससे उनके दृष्टिकोण, मूल्यों और विश्वासों को एक आकार मिलता है।
- इस डिजिटल क्रांति का प्रभाव सशस्त्र बलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है।
- पश्चिम देशों में कई अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल मीडिया सेवारत सैन्य कर्मियों को कैसे प्रभावित करता है और उनके राजनीतिक अभिविन्यास पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, किन्तु इस बात पर अभी भी किसी आधिकारिक शोध की कमी है, कि भारत में आज के सोशल मीडिया से प्रभावित सैन्यकर्मी दो दशक पहले के अपने समकक्षों से कैसे भिन्न हैं।
- इस तरह के अध्ययन की तात्कालिकता को हाल की घटनाओं से रेखांकित किया गया है, जैसे कि कश्मीर में कर्मियों के बीच कथित अनुशासनहीनता और सोशल मीडिया पर सेना की छवि को खराब करने वाली अपमानजनक टिप्पणी करने वाले आला अधिकारियों के लिए पेंशन के निलंबन की बात की गई है।
सोशल मीडिया का विषाक्त वातावरण:
- आज के सोशल मीडिया ने एक दूषित वातावरण तैयार कर दिया है, जो हानिकारक प्रभावों से भरा हुआ है, यह युवा मस्तिष्कों को बहुमुखी तरीकों से प्रभावित करता है।
- उपभोक्तावाद का आकर्षण, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से तत्काल प्रसिद्धि की तलाश तथा राजनीतिक और सामाजिक मानदंडों को नया आकार देना डिजिटल युग द्वारा प्रस्तुत कुछ नई चुनौतियां हैं।
- विशेष चिंता का विषय सांस्कृतिक, जातीय, भाषाई और धार्मिक आधार पर विचारों के ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति है।
- सोशल मीडिया पर वीडियो अक्सर स्कूल स्तर तक फैली फूट को दर्शाते हैं, जिससे यह चिंता पैदा होती है कि यह माहौल सशस्त्र बलों में प्रवेश करने वाले अग्निवीरों की मानसिकता को कैसे प्रभावित करता है।
आने वाली चुनौतियाँ:
- पहली चुनौती प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश करने वाली जनता को सोशल मीडिया के प्रभाव से मुक्त करना है।
- यह विश्वास बनाना आवश्यक कि सशस्त्र बलों के भीतर, धार्मिक, जाति या पंथ-आधारित पहचान से परे सभी भारतीय समान हैं।
- जबकि किसी भी प्रशिक्षण प्रयास की नींव सिद्धांत पर आधारित होती है, कनिष्ठ नेतृत्व की क्रियाएं, स्पष्ट और सूक्ष्म दोनों,अग्निवीरों की मानसिकता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- इसलिए, मौजूदा प्रशिक्षण व्यवस्थाओं की सूक्ष्मता से पुनः जांच की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सोशल मीडिया के विषाक्त प्रभाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकें।
- सूचीबद्ध अग्निवीरों की संक्षिप्त प्रशिक्षण अवधि एक अतिरिक्त चुनौती प्रस्तुत करती है। हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि उन्हें परिचालन इकाइयों में आगे का प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा, चार साल की अवधि सैन्य सेवा के आधारभूत मूल्यों और अनुशासन को आत्मसात करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है।
- सीमित प्रशिक्षण समय सीमा के बावजूद, इन अग्निवीरों के मध्य अनुशासन, सत्यनिष्ठा और सौहार्द के महत्व को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
सैन्य-कार्यों का रणनीतिक महत्व:
- यह धारणा कि सैनिक केवल अनुशासित अनुयायी होते हैं जो तर्क नहीं करते बल्कि केवल आदेशों का पालन करते हैं, समकालीन परिस्थितियों में पुरानी हो चुकी है।
- आधुनिक अग्निवीर शिक्षित और विचारशील व्यक्ति हैं, और उनके कार्यों का उन संघर्षों में दूरगामी रणनीतिक प्रभाव हो सकता है जिनमें मानवीय सहायता, शांति स्थापना, संचालन और मध्य-स्तरीय तीव्रता वाले संघर्ष शामिल हैं।
- यूएस मरीन कॉर्प्स के जनरल चार्ल्स क्रिक ने 1999 में "रणनीतिक कॉर्पोरल" की अवधारणा पेश की, जिसमें सैन्य अभियानों और यहां तक कि एक राष्ट्र की नीतियों पर व्यक्तिगत कार्यों के संभावित प्रभाव पर प्रकाश डाला गया।
- सोशल मीडिया के व्यापक कवरेज के साथ, अग्रिम पंक्ति पर एक सैनिक की कार्रवाई और भी अधिक रणनीतिक महत्व रखती है। इसलिए, प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों को एक युवा अधिकारी के कार्यों के गैर-सैन्य, अमूर्त प्रभावों पर जोर देना चाहिए और अग्निवीरों के बीच जिम्मेदारी और जागरूकता की भावना उत्पन्न करनी चाहिए।
आत्मनिरीक्षण और 'भारतीयता' को सुदृढ़ करना:
- कश्मीर में सैन्य-कर्मियों के बीच कथित अनुशासनहीनता जैसी घटनाओं के मद्देनजर, आत्मनिरीक्षण करना और उन क्षेत्रों की पहचान करना महत्वपूर्ण है जहां यह सिस्टम लड़खड़ा सकता है।
- हालांकि कुछ लोग ऐसी घटनाओं को महज संयोग मान सकते हैं, लेकिन नेताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यवस्था संदेह से मुक्त हो। ऐसा करने के लिए, वरिष्ठ नेतृत्वकर्ता को सेना के भीतर "भारतीयता" के सार को लगातार मजबूत करना चाहिए, जिससे अग्निवीरों के बीच एकता की मजबूत भावना को बढ़ावा मिल सके।
- सशस्त्र बलों को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रचलित सामाजिक शोर-शराबे से दूर रहना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें धर्म, जाति या पंथ के आधार पर विभाजन से ऊपर उठकर भारतीय समाज की एकता में ईमानदारी से विश्वास करना चाहिए।
- राष्ट्रीय गौरव और अनुशासन की भावना का निर्माण यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, कि सशस्त्र बल पूरे देश के लिए प्रेरणा के प्रतीक के रूप में कार्य करते हुए अपने मूल मूल्यों और जिम्मेदारियों को कायम रखें।
निष्कर्ष:
- सोशल मीडिया के व्यापक प्रभाव ने युवा पीढ़ी के परिदृश्य को बदल दिया है, जिसमें भारत के सशस्त्र बलों में प्रवेश करने वाले लोग भी शामिल हैं।
- इस प्रभाव को स्वीकार करना और संबोधित करना आने वाले अग्निवीरों को सोशल मीडिया के प्रभाव से मुक्त करने और सेना के भीतर राष्ट्रीय एकता और अनुशासन की मजबूत भावना पैदा करने के लिए आवश्यक है।
- एक सैनिक के कार्यों के रणनीतिक महत्व को पहचान कर और जिम्मेदार नेतृत्व को बढ़ावा देकर, सशस्त्र बल विषाक्त सोशल मीडिया वातावरण से उत्पन्न चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सकते हैं।
- आत्मनिरीक्षण और "भारतीयता" की अवधारणा को सुदृढ़ करने के निरंतर प्रयास यह सुनिश्चित करने में सर्वोपरि हैं कि सशस्त्र बल अपने मूल मूल्यों और जिम्मेदारियों के प्रति सच्चे अनुशासन और राष्ट्रीय गौरव का गढ़ बने रहें। तभी वे जिस राष्ट्र की सेवा करते हैं, उसकी एकता और ताकत के प्रतीक के रूप में खड़े रह सकते हैं।
आज के युवाओं, जिनमें सशस्त्र बलों में शामिल होने वाले लोग भी शामिल हैं, पर सोशल मीडिया के प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता है। सेना के मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए, अग्निवीरों को सोशल मीडिया के व्यापक एवं हानिकर प्रभाव से मुक्त करने, "भारतीयता" के सार को मजबूत करने और राष्ट्रीय एकता और अनुशासन की मजबूत भावना को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है। एक सैनिक के कार्यों के रणनीतिक महत्व को पहचान कर और जिम्मेदारी की भावना पैदा करके, सशस्त्र बल डिजिटल युग की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकते हैं और राष्ट्र के लिए गौरव और प्रेरणा का प्रतीक बने रह सकते हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- प्रश्न 1. सोशल मीडिया भारत के सशस्त्र बलों में युवा प्रवेशार्थियों की मानसिकता और मूल्यों को कैसे प्रभावित करता है? सेना के अनुशासन और एकता पर इसके प्रभाव की चुनौतियों और निहितार्थों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2. भारतीय सशस्त्र बलों के भीतर सोशल मीडिया से संबंधित अनुशासनहीनता की घटनाओं के परिणामों का विश्लेषण करें। सेना के मूल मूल्यों और जिम्मेदारियों को सुदृढ़ करने और आने वाले अग्निवीरों पर सोशल मीडिया के विषाक्त प्रभाव को संबोधित करने के लिए वरिष्ठ नेतृत्व के लिए रणनीतियों की चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत - इंडियन एक्सप्रेस