ारीख Date : 29/12/2023
प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 - विज्ञान और प्रौद्योगिकी - अंतरिक्ष
की-वर्ड्स: जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA), चंद्रयान - 4 मिशन, होहमैन ट्रांसफर ऑर्बिट, SLIM, लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (LUPEX) मिशन
सन्दर्भ:-
- जापान के स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) अंतरिक्ष यान ने हाल ही में 19 जनवरी को पूर्वनिर्धारित चंद्रमा पर लैंडिंग प्रयास के साथ चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया है। यह मिशन चंद्र अन्वेषण के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है और चंद्रमा की सतही लैंडिंग दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
- जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) द्वारा विकसित SLIM अंतरिक्ष यान, अपने हल्के डिजाइन, अभिनव ईंधन-कुशल प्रक्षेप-वक्र और अभूतपूर्व सटीक लैंडिंग क्षमताओं के माध्यम से खुद को सबसे विशिष्ट बनाता है।
- इस लेख में हम अन्य चंद्र अन्वेषण मिशनों की तुलना में स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) के कम वजन, इसके अद्वितीय प्रक्षेप-वक्र, चंद्रमिशन के उद्देश्यों, भारत और जापान के बीच संयुक्त उद्यम प्रयास सहित आगामी चंद्रयान - 4 मिशन पर इसके संभावित प्रभाव में योगदान देने वाले कारकों पर विचार करेंगे।
SLIM का हल्का डिज़ाइन: ईंधन दक्षता और पेलोड वहन क्षमता
- विगत 7 सितंबर, 2023 को अपने लॉन्च के समय, SLIM का वजन मात्र 590 किलोग्राम था, जो भारत के चंद्रयान - 3 के वजन 3,900 किलोग्राम से अपेक्षाकृत बहुत ही हल्का था। अन्तरिक्ष यान के वजन में यह उल्लेखनीय अंतर काफी कम ईंधन के साथ यात्रा करने के SLIM के उद्देशों के अनुरूप है। तुलनात्मक रूप से, अकेले चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल का वजन 2.1 टन था, जो SLIM के समग्र वजन से काफी अधिक था। SLIM का हल्का डिज़ाइन; ईंधन-दक्षता और इसके पेलोड वहन क्षमता के बीच एक संतुलन का परिणाम है, जो इसे कम द्रव्यमान के साथ अपने मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
SLIM का प्रक्षेपवक्र: ईंधन-मितव्ययी मार्ग बनाम होहमैन स्थानांतरण कक्षा
- चंद्रमा की यात्रा किसी भी चंद्र अन्वेषण मिशन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है इसी सन्दर्भ में SLIM ने अपने प्रक्षेप पथ के लिए कमजोर-स्थिरता सीमा सिद्धांत(WSB) के आधार पर एक गैर-परंपरागत लेकिन ईंधन-मितव्ययी मार्ग अपनाया।
- चंद्रयान-3, जो होहमैन स्थानांतरण कक्षा काकरते हुए एक महीने से भी कम समय में चंद्रमा पर पहुंच गया; के विपरीत SLIM के प्रक्षेप-पथ को चार महीने तक का समय लगा। इस लम्बे पथ में पृथ्वी के चारों ओर कई बार चक्कर लगाना ही, चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ने से पहले इस यान के गतिज ऊर्जा के निर्माण का कारण बना है।
- चंद्रयान-3 की तेज़ यात्रा और इस दौरान लगने वाला कम समय, इसके अत्यधिक सीधे मार्ग पर गमन करने का परिणाम था, जो ऊर्जा-गहन होहमैन स्थानांतरण कक्षा द्वारा संचालित थी। इसके विपरीत, SLIM का प्रक्षेप-पथ, अपेक्षाकृत अधिक समय लेने वाला, अपने मिशन लक्ष्यों के अनुरूप ईंधन दक्षता और पेलोड वहन क्षमता प्रदर्शित करता है।
होहमैन स्थानांतरण कक्षा
- वर्ष 1925 में जर्मन वैज्ञानिक होहमैन द्वारा परिकल्पित और उनके सम्मान में नामित होहमैन स्थानांतरण कक्षा, एक ईंधन-कुशल युक्ति है। यह कक्षीय स्थानांतरण तकनीक एक अण्डाकार प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करके किसी अंतरिक्ष यान को एक गोलाकार कक्षा से दूसरी कक्षा तक ले जाने की सुविधा प्रदान करती है।
कमजोर-स्थिरता सीमा सिद्धांत
- वर्ष 1987 में एडवर्ड बेलब्रूनो द्वारा प्रस्तुत, कमजोर स्थिरता सीमा (WSB) की अवधारणा, जिसमें कम ऊर्जा हस्तांतरण शामिल है; यह बताती है कि एक अंतरिक्ष यान न्यूनतम ईंधन खपत के साथ अपनी कक्षा को कैसे बदल सकता है।
- कमजोर स्थिरता सीमा को विशेष रूप से त्रि-आयामी संदर्भ में परिभाषित किया गया है, जिसमें किसी दो बड़े निकायों (P1 और P2) के संबंध में P के रूप में चिह्नित एक नगण्य द्रव्यमान वाले कण की गति शामिल होती है। यहाँ P1 और P2 एक दूसरे के सापेक्ष गोलाकार या अण्डाकार कक्षाओं में अपनी यात्रा करते हैं।
- इस प्रतिबंधित तीन पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल न्यूटन के आधुनिक सिद्धांतों का पालन करता है। उदाहरण के लिए, P1 पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कर सकता है, P2 चंद्रमा का, और P अंतरिक्ष यान का, या P1 सूर्य का, P2 बृहस्पति का, और P एक धूमकेतु का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
- कमजोर स्थिरता सीमा P2 के आसपास के क्षेत्र की पहचान करती है जहां P अस्थायी नियंत्रण का अनुभव कर सकता है। इस क्षेत्र को स्थिति-वेग स्थान में परिभाषित किया गया है, और यहाँ P1 और पी 2 के बीच केपलर ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है।
SLIM के उद्देश्य:
- SLIM की विशेषता "मून स्नाइपर" के रूप में उल्लेखित इसके पदनाम से ही परिलक्षित होती है, जो इसकी सटीक लैंडिंग क्षमताओं का एक प्रमाण है। आगामी 19 जनवरी को, SLIM का लक्ष्य शिओली क्रेटर के पास अपने चुने हुए लैंडिंग स्थल के अभूतपूर्व 100 मीटर के दायरे में उतरना है। यह सटीकता पिछले कई चंद्रमा-लैंडिंग मिशनों से कहीं अधिक सटीक है, जैसे कि चंद्रयान -3 के विक्रम लैंडर, जिसने डाउनरेंज और क्रॉस-रेंज दोनों दिशाओं में दूरी मापने वाले वहां के अण्डाकार क्षेत्र को लक्षित किया था।
- इस सटीक लैंडिंग को SLIM के कम द्रव्यमान (ईंधन को छोड़कर लगभग 120 किलोग्राम) द्वारा सुविधाजनक बनाया गया है, जिससे इसकी गतिशीलता में वृद्धि होगी। चुनी गई लैंडिंग साइट और शिओली क्रेटर से इसकी निकटता वैज्ञानिक रूप से चंद्रमा के सतही अन्वेषण में SLIM की भूमिका को रेखांकित करतीहै।
- लैंडिंग से पहले, SLIM अपने दो छोटे रोवर्स तैनात करेगा, जिनका नाम चंद्र भ्रमण वाहन (Lunar Excursion Vehicle - LEV) 1 और 2 है। ये रोवर्स, SLIM के साथ मिलकर, अपने लैंडिंग बिंदु के पास चंद्रमा की सतह का व्यापक अध्ययन करेंगे, तापमान और विकिरण रीडिंग एकत्र करेंगे। इसके अतिरिक्त, इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के बाह्य आवरण की भी जांच करना है, जिससे चंद्र-भूविज्ञान की गहरी समझ को नई दिशा दी जा सके।
चंद्रयान - 4 मिशन पर SLIM का प्रभाव:
- SLIM की सफलता या विफलता भारत और जापान द्वारा नियोजित सहयोगी लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (LUPEX) मिशन के व्यापक प्रभाव को उजागर करती है। LUPEX, जिसे चंद्रयान - 4 के नाम से भी जाना जाता है, जिसके वर्ष 2026 में लॉन्च के साथ ही भारत और जापान की एक संयुक्त उद्यम बनने के लिए तैयार है। इसके लिए JAXA द्वारा लॉन्च वाहन और चंद्र रोवर प्रदान करने की उम्मीद है, जबकि भारत लैंडर मॉड्यूल निर्माण में योगदान देगा।
- LUPEX का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के आसपास के क्षेत्रों का पता लगाना है। इस सन्दर्भ में यह एक ऐसा प्रयास है जो सटीक लैंडिंग प्रौद्योगिकियों की मांग को प्रोत्साहित करता है। चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में चट्टानी इलाके, गड्ढों और खड़ी ढलानों के कारण लैंडिंग यथासंभव निर्दिष्ट स्थल के करीब होना आवश्यक हो जाता है। सटीक लैंडिंग में SLIM के अग्रणी प्रयास, एक परिष्कृत एल्गोरिदम और उन्नत नेविगेशन सिस्टम जैसी सुविधाओं द्वारा सुगम, LUPEX के दौरान नियोजित प्रौद्योगिकियों को आकार देने में सहायक होंगे।
निष्कर्ष
- निष्कर्षतः, जापान का स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) मिशन चंद्र अन्वेषण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही यह अंतरिक्ष यान डिजाइन, प्रक्षेपवक्र योजना और सटीक लैंडिंग के लिए अभिनव दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है। इसका हल्का डिज़ाइन, पेलोड वहन क्षमता और ईंधन दक्षता आगामी अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नया मानक स्थापित करता है। कमजोर-स्थिरता सीमा सिद्धांत द्वारा निर्देशित विस्तारित प्रक्षेप-वक्र, भविष्य के मिशनों के लिए ईंधन की खपत को अनुकूलित करने के महत्व पर भी जोर देता है।
- SLIM के उद्देश्य, विशेष रूप से "मून स्नाइपर" सटीक लैंडिंग, चंद्रमा अन्वेषण के इतिहास में एक अभिनव प्रयास है। इसमें छोटे रोवर्स की तैनाती वैज्ञानिक अन्वेषण की एक अतिरिक्त क्षमता को चिन्हित करती है, जिससे चंद्रमा की सतह और इसकी भूवैज्ञानिक विशेषताओं के बारे में मानवीय समझ बढ़ सकती है।
- यद्यपि, SLIM की सफलता या विफलता LUPEX मिशन पर भारत और जापान के बीच सहयोगात्मक प्रयासों में प्रतिबिंबित होगी। फीचर-मैचिंग एल्गोरिदम और नेविगेशन सिस्टम सहित JAXA द्वारा परीक्षण की गई प्रौद्योगिकियां LUPEX की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। इसके साथ ही साथ यह अंतरराष्ट्रीय चंद्र अन्वेषण की सहयोगात्मक प्रकृति को भी संबोधित करेंगी।
- इस समय SLIM 19 जनवरी को अपने ऐतिहासिक लैंडिंग प्रयास की तैयारी कर रहा है और वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय उन परिणामों का उत्सुकता से इंतजार कर रहा है जो संभावित रूप से चंद्र अन्वेषण के भविष्य को नया आकार दे सकते हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
- उन प्रमुख विशेषताओं की चर्चा कीजिए जो जापान के स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) मिशन को चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती हैं, साथ ही इसके हल्के डिजाइन, प्रक्षेपवक्र और सटीक लैंडिंग क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। SLIM का दृष्टिकोण होहमैन ट्रांसफर ऑर्बिट जैसे पारंपरिक तरीकों से कैसे भिन्न है, और भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए संभावित निहितार्थ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत और जापान के बीच सहयोगी लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (LUPEX) मिशन, जिसे चंद्रयान-4 के नाम से भी जाना जाता है, पर SLIM की सफलता या विफलता के महत्व की जांच करें। SLIM की अग्रणी सटीक लैंडिंग तकनीक भविष्य के चंद्र मिशनों की योजना और निष्पादन को कैसे प्रभावित करती है, विशेषकर चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में? SLIM मिशन द्वारा उजागर किए गए अंतरराष्ट्रीय चंद्र अन्वेषण के सहयोगात्मक पहलुओं पर भी चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)
Source- THE HINDU