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Daily-current-affairs / 01 Nov 2023

भारत में भूजल संरक्षण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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Date : 02/11/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - पर्यावरण और पारिस्थितिकी

कीवर्ड :हरित क्रांति, भूजल का क्षरण, जलवायु संकट, अटल भूजल योजना

संदर्भ -

संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि देश के 31 में से 27 जलभृत अपनी प्राकृतिक रूप से भरने की क्षमता से अधिक तेजी से घट रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर कम से कम एक दशक से चिंता जताई जा रही है।

भारत में भूजल का क्षरण

अवलोकन: भारत वर्तमान में चीन और अमेरिका को मिलाकर भी भूजल निकासी में विश्व में अग्रणी है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, देश के कुल जल उपयोग का लगभग 70 प्रतिशत भूजल स्रोतों पर निर्भर करता है।यह अत्यधिक निकासी भारत की पर्यावरणीय स्थिरता और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ और जोखिम उत्पन्न करती है।

भूजल क्षरण के कारण:

  • रित क्रांति का प्रभाव: भारत की बड़ी आबादी की खाद्य मांगों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण होने के बावजूद, भूजल-आधारित सिंचाई के विस्तार ने विभिन्न पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न की हैं।
  • पिंग सिंचाई : कृषि सिंचाई के लिए भूजल पंपिंग क्षरण को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक है, जो जलवायु परिवर्तन के सामने, विशेष रूप से खाद्य और जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है।
  • जलभृतों का क्षरण: भूजल का स्रोत जलभृत हैं जो संतृप्त चट्टानें हैं। ये जल को भूमि के नीचे संग्रहीत करते हैं । इन भंडारों से पानी के लगातार पंपिंग से वे खत्म हो रहें हैं, जिससे भारत की जल जरूरतों को पूरा करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो रही है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: मानवीय गतिविधियां मुख्य रूप से भूजल क्षरण को बढ़ावा देती हैं, जलवायु परिवर्तन से संबंधित कारक भी क्षरण प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं।

ये चुनौतियां आने वाली पीढ़ियों के लिए इस महत्वपूर्ण संसाधन को संरक्षित करने के लिए भारत में स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं की अत्यावश्यकता को रेखांकित करती हैं।

भूजल संरक्षण के लिए चुनौतियाँ और चिंताएँ

  1. संस्थागत नवाचारों का अभाव: ट्यूबवेल और बोरवेलों ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, 2016 की मिहिर शाह समिति ने जल क्षेत्र में संस्थागत नवाचारों की कमी की ओर इशारा किया, जिससे स्थायी समाधान बाधित हो रहे हैं।
  2. भूजल का कुप्रबंधन: पंजाब जैसे राज्यों में बिजली सब्सिडी और गिरते जल स्तर के बीच संबंध स्पष्ट हो गया है जिससे मांग-पक्ष प्रबंधन को संबोधित करना एक जटिल चुनौती बनी हुई है, जो प्रभावी समाधानों में कठिनाइयां उत्पन्न कर रहें है।
  3. भूजल कमी पर रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय, नीति आयोग और केंद्रीय जल आयोग सहित प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट देश के जलभृतों की खतरनाक स्थिति पर प्रकाश डालती हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 31 में से 27 जलभृतों से जल निकासी पुनर्भरण से तीव्र है , और कुछ राज्यों में 78% कुओं का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
  4. जलवायु संकट का संभावित प्रभाव: शोधकर्ताओं ने भूजल निष्कर्षण और जलवायु संकट के बीच संबंध स्थापित किए हैं, विशेषकर दक्षिण-पश्चिम जैसे क्षेत्रों में, जहां कठोर चट्टान के जलभृत पुनर्भरण को सीमित करते हैं। बढ़ता तापमान मिट्टी की नमी को कम करके भूजल पुनर्भरण और भी बाधित कर रहा हैं।

भूजल पुनर्भरण के लिए सरकारी पहलें

  1. अटल भूजल योजना: 2020 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य सात राज्यों के 78 जल-संकटग्रस्त जिलों में सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन लाना है। प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 तक विभिन्न उद्देश्यों के लिए भूजल निष्कर्षण में 6 बिलियन क्यूबिक मीटर की कमी आई है।
  2. केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी): जल शक्ति मंत्रालय के तहत शीर्ष संगठन के रूप में, सीजीडब्ल्यूबी भूजल-संबंधी मुद्दों को संबोधित करता है। यह प्रबंधन और विनियमन के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  3. जल शक्ति अभियान (जेएसए): इसे राज्यों के सहयोग से 2019 में शुरू किया गया, जल शक्ति अभियान का उद्देश्य 256 जल-संकटग्रस्त जिलों में भूजल की स्थिति सहित जल उपलब्धता बढ़ाना है।
  4. राष्ट्रीय जल नीति: वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए तैयार की गई यह नीति वर्षा के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से जल उपलब्धता बढ़ाने, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने पर जोर देती है।
  5. राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM): भूजल प्रबंधन और विनियमन (GWM&R) योजना के भाग के रूप में केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा कार्यान्वित,राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम देश के जलभृतों के मानचित्रण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा कुशल उपयोग और संरक्षण सुनिश्चित करता है।

भूजल संरक्षण के लिए प्रभावी समाधान

  1. व्यक्ति-केंद्रित संरक्षण: व्यक्तियों को गैर-आवश्यक उद्देश्यों, जैसे सजावटी जल सुविधाओं और स्विमिंग पूल के लिए पानी के उपयोग को कम करने के लिए प्रोत्साहित करना, पानी के संरक्षण में काफी योगदान दे सकता है। घर पर नल बंद करना, जल आधारित उपकरणों के उपयोग को सीमित करना और पानी की बर्बादी करने वाली आदतों से बचना जैसी सरल प्रथाएं पानी की पर्याप्त मात्रा बचाने में आवश्यक हैं।
  2. व्यक्तिगत भूजल निगरानी: भूजल संसाधनों के बारे में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है। लोगों को अपने बोरवेल में जल स्तर की निगरानी करने में सक्षम बनाने वाली तकनीकों का उपयोग जिम्मेदार जलभृत प्रबंधन को बढ़ावा दे सकता है। ये उपकरण व्यवहार परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकते हैं तथा भूजल संरक्षण के महत्व को रेखांकित कर सकते हैं।
  3. जल प्रदूषण का प्रबंधन: जल प्रदूषण को रोकना महत्वपूर्ण है। व्यवसायों और आवासीय क्षेत्रों को रासायनों के उपयोग कम करना चाहिए और उचित निपटान विधियों को सुनिश्चित करना चाहिए। जल प्रणालियों में विषाक्त पदार्थों के प्रवेश को कम करके, हम अपनी जल आपूर्ति को दूषित होने से बचा सकते हैं।
  4. नियमों, अनुसंधान और धन की आवश्यकता: अनुसंधान और निगरानी के प्रयासों के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना आवश्यक है। यह धनराशि जिम्मेदार भूजल उपयोग को सुनिश्चित करते हुए सीमा निर्धारित करने और स्थायी प्रथाओं को अपनाने में सहायता कर सकती है। भूजल पंपिंग को नियंत्रित करने वाले कड़े नियम, विशिष्ट दिशानिर्देशों और प्रवर्तन के साथ, प्रभावी संरक्षण के लिए अनिवार्य हैं।
  5. वैकल्पिक जल स्रोतों की खोज: भूजल पर निर्भरता कम करना महत्वपूर्ण है। वैकल्पिक जल स्रोतों की खोज प्राकृतिक जलभृत पुनर्भरण में मदद करती है और पानी के उपयोग को कम करने वाली स्थायी प्रथाओं और तकनीकों को बढ़ावा देती है। यह दृष्टिकोण जल आपूर्ति को विविधता प्रदान करता है, जिससे यह बदलती मांगों के लिए अधिक लचीला और अनुकूलन योग्य हो जाता है।
  6. कृषि प्रथाओं का प्रबंधन: स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसी जल-बचत करने वाली तकनीकों को अपनाना , साथ ही कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा देना , सीमित भूजल संसाधनों के प्रभावी उपयोग को बढ़ाता है। मोटे अनाज जैसी फसलों को बढ़ावा देना, जिनके लिए कम पानी की आवश्यकता होती है, और कुशल सिंचाई तकनीकों को प्रोत्साहित करना स्थायी कृषि प्रथाओं की ओर कदम हैं। ये पहल भूजल के संरक्षण और दीर्घकालिक कृषि व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।

भावी रणनीति

संकट की गंभीरता केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से तेज कार्रवाई की मांग करती है। जल उपलब्धता और खाद्य सुरक्षा चुनौती को दूर करने के लिए विज्ञान-संचालित नीति-निर्माण के आधार पर सहयोगी प्रयासों की आवश्यकता है। सिंचाई दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से किन रणनीतियों और तकनीकी समाधानों का विस्तार करना है, इस पर निर्णय वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और शोध द्वारा निर्देशित होना चाहिए।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. 1. "पर्यावरणीय , सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर जोर देते हुए, अपने भूजल संसाधनों के प्रबंधन में भारत के सामने आने वाली बहुमुखी चुनौतियों की जांच करें। इन चुनौतियों को कम करने में वैज्ञानिक नवाचारों और नीतिगत सुधारों की भूमिका पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)"
  2. 2. "भारत में भूजल संरक्षण के लिए की जा रही सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। कृषि प्रथाओं और जल सुरक्षा पर इन पहलों के संभावित प्रभाव का आकलन भी करें। देश में भूजल संसाधनों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए क्या अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)"

Source - Indian Express