तारीख (Date): 25-09-2023
प्रासंगिकता - जीएस पेपर 2 - सामाजिक न्याय
की-वर्ड - पोषण माह 2023, सुपोषित भारत, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013
सन्दर्भ:
- पोषण माह, जिसे राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में भी जाना जाता है, भारत में एक वार्षिक कार्यक्रम है। यह पोषण के महत्व को लेकर जागरूकता लाने और नागरिकों के बीच स्वस्थ आहार आदतों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। यह सम्पूर्ण सितंबर माह में महिला और बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) द्वारा मनाया जाता है। ।
- छठे राष्ट्रीय पोषण माह 2023 की थीम, "सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत" का अनुवाद "पोषण-समृद्ध भारत, शिक्षित भारत और सशक्त भारत" है। यह विषय देश की विकास यात्रा में पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण के बीच गहन अंतर संबंध को रेखांकित करता है।
पोषण अभियान के बारे में
सरकार ने निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्यों के साथ 8 मार्च, 2018 को पोषण अभियान शुरू किया, जिसे राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में भी जाना जाता है:
- लक्षित कटौती: अभियान का लक्ष्य स्टंटिंग में 2%, अल्पपोषण में 2%, एनीमिया में 3% (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों में) और जन्म के समय कम वजन में 2% की वार्षिक कमी प्राप्त करना है।
- स्टंटिंग में कमी: प्राथमिक लक्ष्य वर्ष 2022 तक 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में बौनापन की व्यापकता को 38.4% से घटाकर 25% करना है।
- प्रौद्योगिकी-संचालित सेवा वितरण: पोषण अभियान कुशल सेवा वितरण और मानव हस्तक्षेप कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने पर जोर देता है।
- व्यवहार परिवर्तन और अभिसरण: यह मिशन समन्वित प्रयासों तथा विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और पहलों के अभिसरण के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
- निगरानी और विशिष्ट लक्ष्य: यह अभियान अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न निगरानी मापदंडों में विशिष्ट लक्ष्य का निर्माण करता है।
- स्वस्थ भारत प्रेरक: अभियान के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए प्रत्येक जिले में एक स्वस्थ भारत प्रेरक तैनात किया गया है। ये प्रेरक कुशल निष्पादन की सुविधा के लिए जिला अधिकारियों के साथ मिलकर काम करते हैं।
पोषण अभियान के व्यापक लक्ष्यों में; 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में स्टंटिंग और अल्पपोषण को रोकना या कम करना, जन्म के समय कम वजन को नियंत्रित करना, छोटे बच्चों (6-59 महीने) और महिलाओं एवं किशोर लड़कियों (15-49 वर्ष) दोनों में एनीमिया की व्यापकता को कम करने सहित एनीमिया की घटनाओं को कम करना शामिल है।
सुपोषित भारत: राष्ट्र का पोषण
- "सुपोषित भारत" भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य का मूलभूत स्तंभ और मानव विकास की आधारशिला है। यह कुपोषण के व्यापक मुद्दे को संबोधित करने और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य-कल्याण को बढ़ावा देने के लिए देश की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पर्याप्त पोषण न केवल शारीरिक विकास का मामला है, बल्कि संज्ञानात्मक विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य और समग्र स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- हालांकि, वर्तमान भारत कुपोषण के रूप में एक बड़ी चुनौती से जूझ रहा है। 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के आंकड़े चिंताजनक हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे बौनेपन से पीड़ित हैं, 19.3 प्रतिशत बच्चे कमजोरी से पीड़ित हैं, 32.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं साथ ही एनीमिया से 67.1 प्रतिशत आबादी प्रभावित है। ध्यान देने योग्य बात यह है, कि पांच वर्ष से कम उम्र के आधे से भी कम बच्चों को समय पर पूरक आहार मिल पाता है, और उनमें से केवल 11.3 प्रतिशत को ही न्यूनतम पर्याप्त आहार मिलता है।
- कुपोषण से निपटने के लिए, भारत सरकार ने कई उपाय और कार्यक्रम लागू किए हैं। इन योजनाओं में एकीकृत बाल विकास सेवाएं, मध्याह्न भोजन/पीएम पोषण, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के माध्यम से सशर्त नकद हस्तांतरण और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, शामिल हैं। ये सभी कार्यक्रम कमजोर और कम आय वाले परिवारों के लिए भोजन की पहुंच सुनिश्चित करता है।
- इन पर्याप्त प्रयासों के बावजूद, कुपोषण की समस्या बनी हुई है, जिसका मुख्य कारण जागरूकता की कमी, आर्थिक और लैंगिक असमानताएँ, बढ़ती जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ हैं। कुपोषण से निपटना एक जटिल एवं दीर्घकालीन प्रयास है जिस पर निरंतर ध्यान देने और नवीन नीति निर्माण की आवश्यकता है। इस वर्ष की थीम का "सुपोषित भारत" घटक इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
साक्षर भारत: सशक्तिकरण के लिए शिक्षा
- "साक्षर भारत" भारतीय आबादी को सशक्त बनाने में शिक्षा के महत्व पर जोर देता है। शिक्षा न केवल एक मौलिक अधिकार है बल्कि आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति का प्रमुख चालक भी है। भारत ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए विभिन्न शिक्षा पहल और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनका लक्ष्य शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना, शिक्षा तक सबकी पहुंच बढ़ाना और शिक्षा क्षेत्र के भीतर विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करना है।
- भारत में शिक्षा पर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के 2017-18 के आंकड़ों से शिक्षा तक पहुंच में असमानताओं का पता चलता है। शहरी क्षेत्रों में 70 प्रतिशत की तुलना में केवल 38 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास अपने घरों से 1 किमी के भीतर माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच है। जबकि 7 वर्ष और उससे अधिक उम्र की साक्षरता दर; ग्रामीण क्षेत्रों में 73.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 87.7 प्रतिशत है, फिर भी इसमें सुधार की गुंजाइश है।
- इसके अलावा, शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) 2021-22 डेटाबेस इस बात पर प्रकाश डालता है, कि भारत में केवल 33.9 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की पहुंच है, और केवल 45.8 प्रतिशत के पास कार्यात्मक कंप्यूटर हैं। हालांकि भारत में इंटरनेट की पहुंच 2007 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 48.7 प्रतिशत हो गई है, फिर भी लैंगिक अंतर बना हुआ है, महिलाओं (33.3 प्रतिशत) की तुलना में पुरुष (57.1 प्रतिशत) अधिक इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं।
- इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत ने विभिन्न शिक्षा पहल और कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने और लैंगिक अंतर को समाप्त के लिए सर्व शिक्षा अभियान, माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शामिल हैं। ये सभी प्रयास शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए एक व्यापक रोड मैप की रूपरेखा तैयार करती है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और लाड़ली लक्ष्मी योजना जैसी योजनाएं बालिकाओं के स्कूल में नामांकन और ठहराव को बढ़ावा देती हैं।
- इन प्रगति के बावजूद, शिक्षा तक असमान पहुंच, धन की कमी, बुनियादी ढांचे की कमी और कुशल संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियां आज भी बनी हुई हैं। इस प्रकार "साक्षर भारत" का विषय तेजी से विकसित हो रही दुनिया में व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उनकी संभावनाओं को बढ़ाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
सशक्त भारत: लैंगिक समानता के माध्यम से सशक्तिकरण
- "सशक्त भारत" पोषण संबंधी मुद्दों को संबोधित करने में लैंगिक विषमता और महिला सशक्तिकरण के महत्व को उजागर करता है। महिलाएं, प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में, अपने परिवारों की पोषण संबंधी भलाई सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। हालांकि, शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक सीमित पहुंच सहित महिलाओं के सामने आने वाली कई चुनौतियां उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बनाती हैं और घरों के भीतर उनकी शक्ति को कम करती हैं, जिससे अंततः खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
- भारत में घरेलू हिंसा एक चिंता का विषय बनी हुई है, जिसकी घटना 2015-16 में 29.3 प्रतिशत से बढ़कर 2019-21 में 31.2 प्रतिशत हो गई है। 2005 के "घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम" के अस्तित्व के बावजूद, अभी भी लगभग 3.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं (18-49 वर्ष की आयु) को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें पोषण अभियान भी शामिल है। यह अभियान गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं तथा किशोर लड़कियों में पोषण संबंधी परिणामों में सुधार लाने पर केंद्रित है। उज्ज्वला योजना गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों तक एलपीजी की पहुंच बढ़ाकर, स्वच्छ खाना पकाने और महिला सुरक्षा को बढ़ावा देती है। आंगनवाड़ी सेवाएं जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाती हैं, जबकि जननी सुरक्षा योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से संस्थागत जन्म को प्रोत्साहित करती है।
- इसके अतिरिक्त, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं के रोजगार और सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना महिला उद्यमियों को सूक्ष्म ऋण प्रदान करती है। हालांकि, इन योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः उपलब्ध अवसरों के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाकर, उनकी सुरक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए कानूनों और नीतियों के सख्त कार्यान्वयन के माध्यम से इसका समाधान किया जा सकता है।
पोषण संबंधी चुनौतियों के प्रति समग्र दृष्टिकोण
- कुपोषण से निपटना सरकार के लिए एक बहुआयामी और दीर्घकालीन प्रयास है; जिसके लिए निरंतर प्रतिबद्धता, बहु-क्षेत्रीय सहयोग और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल अनुकूलन की आवश्यकता होती है। हालांकि इस सन्दर्भ में प्रगति हुई है, भारत का आकार, विविधता और कई चुनौतियां इसे एक सतत मुद्दा बनाती हैं जो नीति निर्माण और कार्यान्वयन में निरंतर ध्यान और नवाचार की मांग करती है।
- पोषण माह की थीम, "सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत" भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक स्वस्थ, अधिक साक्षर और सशक्त राष्ट्र की दिशा में काम कर सकता है।
निष्कर्ष
- भारत का राष्ट्रीय पोषण माह, देश के विकास में पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण के अंतर्संबंध की एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। थीम का प्रत्येक तत्व, "सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत," भारत के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को संबोधित करता है।
- "सुपोषित भारत" कुपोषण से निपटने और सभी नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। "साक्षर भारत" व्यक्तियों को सशक्त बनाने और सामाजिक-आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने में शिक्षा की भूमिका पर जोर देता है। "सशक्त भारत" खाद्य सुरक्षा और समग्र विकास सुनिश्चित करने में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व को रेखांकित करता है।
- एक स्वस्थ, अधिक शिक्षित और सशक्त राष्ट्र की दिशा में भारत की यात्रा जारी है, और पोषण माह इन प्रतिबद्धताओं को नवीनीकृत करने, जागरूकता बढ़ाने और कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। निरंतर प्रयासों, नवीन नीतियों और सहयोगात्मक पहलों के माध्यम से भारत "सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत" के दृष्टिकोण (एक ऐसा राष्ट्र जो अच्छे पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण पर पनपता है) को साकार कर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
- "पोषण माह की 'सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत' थीम भारत के विकास में पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण के बीच अंतर संबंध को कैसे उजागर करती है? प्रमुख चुनौतियों, सरकारी पहल और समग्र दृष्टिकोण की भूमिका पर चर्चा करें।" (10 अंक, 150 शब्द)
- "भारत में कुपोषण को दूर करने में पोषण अभियान के उद्देश्य और महत्व क्या हैं? विशिष्ट लक्ष्य और प्रौद्योगिकी की भूमिका बताएं। 'सुपोषित भारत' के संदर्भ में, लगातार चुनौतियों का विश्लेषण करें और पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएं।" (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत - ओआरएफ