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Daily-current-affairs / 25 Jun 2023

प्रवासी भारतीयों तक पहुँच और राजनैतिक कौशल का महत्व - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 26-06-2023

प्रासंगिकता : जीएस पेपर 2: भारतीय प्रवासी

की-वर्ड : प्रवासी भारतीय दिवस, तमिल प्रवासी, 1964 का सिरिमावो-शास्त्री समझौता, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए)

सन्दर्भ

  • मई 2023 में जापान और सिंगापुर के अपने विदेशी दौरे के दौरान तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा दिये गये भाषण ने तमिल प्रवासियों की सुरक्षा और समर्थन के लिए तमिलनाडु सरकार की प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया।

तमिल प्रवासी:

  • तमिल प्रवासी वैश्विक सन्दर्भ में भारतीय प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। तमिल लोग मलेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका, म्यांमार, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों सहित कई अन्य देशों में निवासी हैं।
  • ये प्रवासी मुख्य रूप से तीन पहचान रखते हैं: तमिल, भारतीय और संबंधित मेजबान देशों की राष्ट्रीयता। हालाँकि प्रवासन पैटर्न, शिक्षा स्तर, पेशेवर उपलब्धियाँ, आर्थिक प्रभाव और मेजबान देशों में बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक गतिशीलता जैसे कारक तमिल प्रवासी के सामने आने वाली आशाओं और चुनौतियों को नवीन आकार देते हैं।
  • इस सन्दर्भ में राजनीति, अर्थशास्त्र, साहित्य, कला, खेल और विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में तमिल प्रवासी की उल्लेखनीय उपलब्धियाँ देखी जा सकती हैं।

मेज़बान देश की नीतियों का प्रभाव:

  • विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा और एकता के लिए प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू की आकांक्षाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • स्वतंत्रता के बाद सीलोन में पारित पहले विधायी अधिनियम ने भारतीय तमिल प्रवासियों को प्रभावित किया, जिन्हें ब्रिटिश द्वारा चाय बागानों में मजदूरी के लिए वहां ले जाया गया था। पं. नेहरू ने उन लोगों को नागरिकता देने की वकालत की जो सीलोन को अपना घर मानते थे। हालाँकि, सीलोन ने नागरिकता नियम लागू करने के अपने संप्रभु अधिकार के लिए तर्क दिया, जिससे भारतीय तमिलों को मताधिकार से वंचित होना पड़ा।
  • इसी तरह, बर्मा में भारतीय तमिलों को गैर-नागरिकता और निष्कासन का सामना करना पड़ा, उनके प्रवासन के दौरान कठोर नियम लागू किए गए। पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में, भारत की नीतियों ने कभी-भी भारतीय प्रवासियों के हितों विरूद्ध समझौता नहीं किया।
  • वर्ष 1964 का सिरिमावो-शास्त्री समझौता एक उल्लेखनीय उदाहरण है, क्योंकि इसने मद्रास प्रेसीडेंसी में प्रभावशाली नेताओं द्वारा व्यक्त विरोध के विपरीत, भारतीय तमिल समुदाय को भारत और श्रीलंका के बीच विभाजित कर दिया था।

तमिल भाषा की सुरक्षा क्यों ?

  • तमिल भाषा की रक्षा और प्रचार-प्रसार पर मुख्यमंत्री स्टालिन द्वारा विशेष बल दिया जा रहा है। हालांकि, यह चिंताजनक है कि कई देशों में, तमिल समुदाय का तमिल संस्कृति से संपर्क टूट गया है।

केंद्र-राज्य सम्बन्ध

  • केंद्र सरकार के पास प्रवासी नीतियों पर विशेष अधिकार क्षेत्र है, जबकि राज्य सरकारें जनता की राय बनाकर इन नीतियों को प्रभावित कर सकती हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और तमिलनाडु की डीएमके सरकार जैसे अन्य विचारधाराओं वाले राज्य सरकारों के बीच सौहार्द और मित्रता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण कदम है। यहाँ संघर्षपूर्ण रुख अपनाने के बजाय सहयोग की अधिक आवश्यकता है।

नागरिकता संबंधी मुद्दों का समाधान:

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) में "उत्पीड़ित अल्पसंख्यक" शब्द को शामिल किया जा सकता था यद्यपि इस सन्दर्भ में श्रीलंका की चिंताएं बढ़ गई हैं, जहां जातीय संघर्षों ने कई तमिलों को पुनः तमिलनाडु में शरण लेने के लिए मजबूर किया है।
  • भारत भी श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को अवैध अप्रवासी मानता है और उनकी श्रीलंका वापसी की वकालत करती है। हालाँकि, ये शरणार्थी भारतीय नागरिकता की इच्छा रखते हैं और भारतीय नागरिकता अधिनियम में उल्लिखित आवासीय योग्यताएँ पूरी भी करते हैं।
  • भारतीय तमिल शरणार्थियों की राज्यविहीनता, जिनकी संख्या 29,500 है, एक सौहार्दपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर जोर देती है। श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी भारतीय नागरिकता के बदले अपनी श्रीलंकाई नागरिकता छोड़ने को भी तैयार हैं।

किसी देश की प्रगति में प्रवासी भारतीयों की भूमिका

भारतीय प्रवासी में भारतीय मूल के 18 मिलियन से अधिक व्यक्ति और 13 मिलियन अनिवासी भारतीय शामिल हैं, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे बड़ा विदेशी समुदाय बनाता है। भारतीय प्रवासियों का सामाजिक-सांस्कृतिक और भौगोलिक वितरण विदेशों में देश की सॉफ्ट नीति और सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन द्वारा तैयार विश्व प्रवासन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनिया की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है, इसके बाद मैक्सिको, रूस और चीन का स्थान है।

प्रवासी भारतीयों का योगदान:

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व: प्रवासी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं और वैश्विक मंच पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और प्रभाव में वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाती है।
  • आर्थिक योगदान: प्रवासी अपने मूल देशों में निवेश करते हैं, विशेष रूप से वित्त, रियल एस्टेट, सेवाओं और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में। ये निवेश आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और स्थानीय अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में योगदान करते हैं।
  • प्रेषण: भारतीय प्रवासी, विशेष रूप से, प्रेषण के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसका ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास, गरीबी में कमी और उपभोग पैटर्न पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: तकनीकी रूप से उन्नत देशों में रहने वाले प्रवासी निवेश और सहयोग के माध्यम से अपने मूल देश में प्रौद्योगिकी और नवाचार के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे उनका तकनीकी प्रगति में अमूल्य योगदान होता है।
  • कूटनीति: बड़े प्रवासी समुदाय लोगों से लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देकर और राष्ट्रों के बीच घनिष्ठ संबंधों को सुविधाजनक बनाकर कूटनीतिक लाभ उपलब्ध कराया जाता है। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि कैसे प्रवासी अपने देश के हितों की प्रभावी ढंग से समर्थन कर सकते हैं।
  • सांस्कृतिक संवर्धन: प्रवासी अपने देश की स्वदेशी संस्कृति और परंपराओं को विस्तार देने में मदद करते हैं, जिससे घरेलू व्यंजनों, सेवाओं, संस्कृतियों और संबंधित वस्तुओं का निर्यात होता है। बदले में, यह स्थानीय प्राथमिकताओं और स्वाद को पूरा करने के लिए मेजबान देशों में निवेश के अवसर उत्पन्न करता है।
  • राजनीतिक प्रभाव: प्रवासी अपने मेजबान देशों की नीतियों और राजनीति को भी प्रभावित कर, अपने मूल देश के हितों की वकालत करते हैं और दोनों राष्ट्रों के मध्य सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • द्विपक्षीय संबंध: प्रवासी भारतीयों के यूके और यूएसए जैसे देशों के उच्च कार्यालयों में प्रमुख पदों पर रहने के कारण, वे आर्थिक संबंधों को मजबूत करने और करीबी द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने में भी योगदान करते हैं।

चुनौतियां:

  • प्रवासी भारतीयों द्वारा उठाए गए मुद्दों में गरीब वर्गों का बहिष्कार, कम तेल की कीमतों के कारण नौकरियों में कटौती, भेदभावपूर्ण प्रथाओं का जारी रहना, असंगत समर्थन, दोहरी नागरिकता बनाए रखना, प्रेषण का दुरुपयोग, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में प्रतिभा पलायन और अन्य देशों के श्रमिकों के पक्ष में नीतियां निर्माण आदि शामिल हैं। ये सभी कारक कहीं न कहीं प्रवासियों के हितों के लिए संकट उत्पन्न करते हैं।
  • यद्यपि सरकार ने भारतीय प्रवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई उपाय लागू किए हैं। इनमें प्रवासी भारतीय मामलों के एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना, उनके योगदान का सम्मान करने के लिए प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन, प्रवासी भारतीय बीमा योजना जैसी कल्याणकारी योजनाएं, प्रवासी युवाओं के लिए भारत को जानें कार्यक्रम, कुछ लाभ प्रदान करने वाली भारतीय प्रवासी नागरिकता योजना, "ट्रेसिंग द रूट्स" पहल, कौशल विकास के लिए स्वर्ण प्रवास योजना और विदेशो के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर आदि शामिल हैं।
  • इन उपायों का उद्देश्य व्यापक समर्थन प्रदान करना और भारतीय प्रवासियों के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देना है।

आगामी रणनीति:

इसमें प्रवासी सम्मेलनों में भागीदारी को व्यापक बनाना, आव्रजन प्रक्रियाओं में सुधार करना, विदेशी फंड की सुविधा देना, ब्लू-कॉलर श्रमिकों के कल्याण को संबोधित करना, समावेशी कूटनीति को बढ़ावा देना, दूसरी पीढ़ी के पीआईओ के बीच पर्यटन पर ध्यान केंद्रित करना, एनआरआई / पीआईओ से विवाहित भारतीय महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना आदि शामिल है। आर्थिक विकास के लिए प्रवासी पेशेवरों का लाभ उठाना, और बुनियादी ढांचे बांड के माध्यम से एनआरआई/पीआईओ निवेश को आकर्षित करना। भारत को अपने व्यापक प्रवासी भारतीयों की वित्तीय और बौद्धिक पूंजी का प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिए।

निष्कर्ष:

  • भारतीय प्रवासियों के हितों की रक्षा के लिए, राज्य सरकारों को राजनीतिक अवसरवाद के स्थान पर राजनीतिक कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए केंद्र सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोगात्मक दृष्टिकोण, सौहार्द और मैत्रीपूर्ण संबंध आवश्यक हैं। इसके लिए प्रवासी भारतीयों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने, उनकी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने और नागरिकता संबंधी मुद्दों का समाधान खोजने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  • प्रश्न 1: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग के निर्माण पर ध्यान देने के साथ, भारतीय प्रवासियों से संबंधित मुद्दों से निपटने में राजनीतिक कौशल की अवधारणा और इसके महत्व को विस्तार से बताएं। (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2: भारतीय प्रवासियों पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के प्रभाव का विश्लेषण करें, विशेषकर श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों के संबंध में। उनकी राज्यहीनता के समाधान के लिए एक सौहार्दपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत ; हिन्दू

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