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Daily-current-affairs / 21 Dec 2023

सतत भविष्य के लिए सीओपी-28 जलवायु शिखर सम्मेलन के परिणाम - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 22/12/2023

प्रासंगिकता- सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : पर्यावरण और पारिस्थितिकी

कीवर्डस- लॉस एंड डैमेज फंड, ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) सीएचजी, ग्लोबल मीथेन प्लेज

संदर्भ:

दुबई में आयोजित 28वां कॉप शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से निस्तारण हेतु वैश्विक प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। शमन, अनुकूलन, वित्तपोषण और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच मतभेद के समाधान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, सीओपी-28 सम्मेलन का उद्देश्य विश्व को एक हरित और अधिक सतत भविष्य की ओर ले जाना रहा है। इस लेख में हम सीओपी-28 के परिणाम, ‘हानि और क्षति कोष’, ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ (जीएसटी) पर प्रगति, स्वास्थ्य और मीथेन में कमी संबंधी घोषणा और इन पर भारत के पक्ष की जांच करेंगे ।


हानि और क्षति कोष (Loss and Damage Fund)

  • सीओपी-28 के महत्वपूर्ण परिणामों में से एक लॉस एंड डैमेज (एलएंडडी) फंड का संचालन रहा है। यह फंड सीओपी-27 में किये गए एक समझौते पर आधारित है।
  • हालांकि इस उपलब्धि के बावजूद, अभी भी व्यापक चिंता बनी हुई है, क्योंकि केवल 790 मिलियन डॉलर के कोष का ही वादा किया जा सका, जो 100 से 400 बिलियन डॉलर के आवश्यक वार्षिक कोष की तुलना में काफी कम है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, जो कि ऐतिहासिक रूप से सबसे बडा उत्सर्जक देश रहा है , इसने केवल $17.5 मिलियन के योगदान की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

इसके अलावा, विश्व बैंक को इस कोष की देखरेख और प्रशासन का दायित्व सौंपने के निर्णय ने भी विकासशील देशों के बीच आशंकाओं को बढ़ा दिया है। इससे विकासशील देशों में इस फंड को लेकर कानूनी स्वायत्तता, लचीलापन, निर्णय लेने के अधिकार और आपात स्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया के विषय में संदेह उत्पन्न हुआ है । सम्मेलन के दौरान इन राष्ट्रों ने जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावित समुदायों को ऋण के बजाय अनुदान के रूप में सीधे धन प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी)

  • सीओपी-28 सम्मेलन में प्रथम ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) प्रस्तुत किया गया। ध्यातव्य हो कि ग्लोबल स्टॉकटेक, पेरिस समझौते के लक्ष्यों की दिशा में विभिन्न देशों की प्रगति का सामूहिक रूप से आकलन करने वाला एक तंत्र (mechanism) है।
  • 2030 तक जीवाश्म ईंधन में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता को पूर्ण करने में कई चुनौतियाँ सामने आ रहीं है।
  • सम्मेलन में स्पष्ट हुआ है कि जीवाश्म ईंधन से संक्रमण ऊर्जा प्रणालियों तक ही सीमित रहा है, जबकि इसका प्लास्टिक, परिवहन और कृषि क्षेत्रों में निरंतर उपयोग किया जा रहा है।
  • सम्मेलन में की गई घोषणा में प्राकृतिक गैस जैसे 'संक्रमणकालीन ईंधन' की अवधारणा पेश की गई, जिससे विभिन्न उद्योगों में यथास्थिति बनाए रखने के बारे में चिंता बढ़ गई है।
  • इसके अलावा, सम्मेलन के दौरान त्वरित जलवायु शमन के आह्वान ने कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) और कार्बन हटाने जैसी तकनीकों के उपयोग करने का संदर्भ दिया गया है, लेकिन यह तकनीकें अप्रमाणित और जोखिम से परिपूर्ण हैं। इस आह्वान ने जलवायु न्याय की खोज में अनिश्चितता का एक तत्व प्रस्तुत किया है ।

हरित वित्त तंत्रः

  • सीओपी-28 में जलवायु वित्त में नेतृत्व करने के लिए विकसित देशों की जिम्मेदारी को मान्यता दी गई।
  • जीएसटी ढांचे में वित्तीय कमियों को दूर करने में निजी क्षेत्र की भूमिका पर जोर दिया गया है और विकासशील देशों को संक्रमण की सुविधा प्रदान करने के लिए अनुदान-उन्मुख, रियायती वित्त के पूरक की वकालत की गई।
  • सम्मेलन में नवीन वैश्विक हरित वित्त तंत्र प्रस्तुत किए गए। इस दौरान ग्रीन क्लाइमेट फंड को 3.5 बिलियन डॉलर का नवीन समर्थन प्राप्त हुआ और अनुकूलन कोष में 188 मिलियन डॉलर के अतिरिक्त वित्त का योगदान किया गया ।
  • नवीकरणीय ऊर्जा, टिकाऊ कृषि और बुनियादी ढांचे में निवेश जुटाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी की वकालत गई।
  • सम्मेलन में ALTERRA नामक निवेश पहल की शुरुआत की गई, जिसके तहत 2030 तक वैश्विक स्तर पर 250 बिलियन डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया गया ।

हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, उपलब्ध वित्त, अनुकूलन के लिए अनुमानित $194-366 बिलियन वार्षिक वित्त पोषण की आवश्यकता से काफी कम है। यह जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक पर्याप्त संसाधनों की कमी संबंधी चुनौती को उजागर करता है।

सीओपी-28 में भारत की स्थितिः

  • सीओपी-28 में भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण घोषणाओं पर विशिष्ट रुख के साथ सम्पन्न हुई है।
  • कॉप 28 सम्मेलन में जलवायु और स्वास्थ्य पर यूएई घोषणा को जलवायु-स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने के लिए $1 बिलियन की प्रतिबद्धता के साथ प्रस्तावित किया गया था । इस पर 123 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए। लेकिन भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं करने का विकल्प चुना।
  • भारत का तर्क था कि इससे स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे पर ,विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में,संभावित नकारात्मक पड सकता है, क्योंकि स्वास्थ्य क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने से आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं से समझौता हो सकता है।

मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित ग्लोबल मीथेन प्लेज पर सीओपी-28 में नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया और इस पर 150 से अधिक देशों ने हस्ताक्षर किए। हालांकि, भारत ने कार्बन डाइऑक्साइड से मीथेन में परिगमन का हवाला देते हुए और मीथेन के अल्प जीवनकाल प्रभाव पर बल देते हुए हस्ताक्षर नहीं किए। भारत का विशिष्ट मीथेन उत्सर्जन, मुख्य रूप से चावल की खेती और पशुपालन से होता है जो छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत है।

सीओपी-28 में कई अभूतपूर्व समझौते हुए , जिसमें जलवायु और स्वास्थ्य पर घोषणा, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों की स्वीकृति और 134 देशों द्वारा टिकाऊ और लचीली खाद्य प्रणालियों में संक्रमण के लिए प्रतिबद्धता शामिल है। हालाँकि, अभी भी जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी जैसे विवादास्पद क्षेत्र में काफी चुनौतियां बनी हुई हैं। जहां एक तरफ विकसित देशों ने इनकी चरणबद्ध वापसी की वकालत की है , वहीं भारत सहित विकासशील देशों ने आर्थिक वृद्धि, विकास और इसके सामाजिक प्रभावों निहितार्थ का हवाला देते हुए विरोध किया है।
सम्मेलन के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को बढ़ाने की प्रतिबद्धता एक सकारात्मक कदम था। लेकिन एलएंडडी फंड, विश्व बैंक द्वारा इसका प्रबंधन, बाजार तंत्र, जोखिम भरी प्रौद्योगिकियों, विभिन्न क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन के निरंतर उपयोग और संक्रमणकालीन ईंधन के रूप में प्राकृतिक गैस की भूमिका के बारे में कई चिंताएं बनी हुई हैं।

निष्कर्ष-

सीओपी-28 सम्मेलन के मिश्रित परिणाम रहे है जिसमें कुछ क्षेत्रों में प्रगति को प्रदर्शित करते हुए निरंतर वैश्विक सहयोग और निरंतर चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना, ग्लोबल स्टॉकटेक की शुरुआत और हरित वित्त तंत्र में प्रगति सकारात्मक प्रगति का संकेत देती है। हालांकि, विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद, विशेष रूप से जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी जैसे मुद्दों पर आगे की बातचीत और आम सहमति बनाने की आवश्यकता है।
सीओपी-28 में की गई प्रतिबद्धताएं महत्वपूर्ण होने के बावजूद, सामूहिक जलवायु कार्रवाई की खोज में राष्ट्रों के विविध हितों और प्राथमिकताओं को समायोजित करने की जटिलता को उजागर करती हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि दुनिया जलवायु संकट की तात्कालिकता से जूझ रही है और सीओपी-28 के परिणाम जारी प्रयासों के लिए एक नींव के रूप में काम करेंगे, जो एक लचीले और सतत भविष्य के निर्माण के लिए मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निरंतर प्रतिबद्धता की आवश्यकता पर जोर देते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. वैश्विक जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में पार्टियों के सम्मेलन (कॉप) के 28वें सत्र के प्रमुख परिणामों और चुनौतियों पर चर्चा करें। लॉस एंड डैमेज निधि, वैश्विक स्टॉकटेक और हरित वित्त तंत्र में प्रगति के महत्व का विश्लेषण करें। ये घटनाक्रम जलवायु न्याय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर व्यापक विमर्श में कैसे योगदान करते हैं? स्पष्ट करें । (10 marks, 150 words)
  2. जलवायु और स्वास्थ्य घोषणा और वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं करने के भारत के निर्णय की जांच करते हुए सीओपी-28 में महत्वपूर्ण घोषणाओं पर इसके रुख का मूल्यांकन करें । ये निर्णय भारत की विकास प्राथमिकताओं और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ किसप्रकार सहयुग्मित होते हैं ? वैश्विक जलवायु कार्यक्रम में भारत की भूमिका के निहितार्थ और जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने में इसके सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें। (15 marks, 250 words)

Source- The Hindu