तारीख Date : 1/12/2023
प्रासंगिकता : जीएस पेपर 2- सामाजिक न्याय - शिक्षा
की-वर्ड: सहमति से बने रिश्ते, चुनावी लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और यौन शिक्षा, यौन शिक्षा तक पहुंच का अधिकार, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम
सन्दर्भ:
भारतीय समाज के जटिल ताने-बाने में जाति और लैंगिक असमानताएँ आज भी पूरी तरह से व्याप्त हैं। यह विशेष रूप से स्कूलों और कॉलेजों में, किशोरों तथा युवा वयस्कों के जीवन को प्रभावित कर रही हैं। जाति और लैंगिक अंतर्विरोध अक्सर सामाजिक और लोकतान्त्रिक विवादों को जन्म देता है, परिणामतः सहमति के बावजूद बने रिश्ते और संबंधों को भी कानूनी दांव-पेंच का सामना करना पड़ता है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए शिक्षा में सामाजिक न्याय और यौन शिक्षा की दिशा में एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है।
लोकतंत्र के लिए शिक्षा: पदानुक्रमों पर नियंत्रण:
- पदानुक्रमों से चिह्नित समाज में, समान अधिकारों पर आधारित कार्यात्मक लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
- पारंपरिक व्यवहार अक्सर जातीय विशेषता को मजबूत करते हैं और उनके सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं, तथापि कमजोरों वर्गों पर बहुसंख्यक या शक्तिशाली समूहों का प्रभुत्व सशक्त होता जा रहा है।
- चुनावी लोकतंत्र सकारात्मक कार्रवाई के लिए प्रयास करता है, इस सन्दर्भ में भेदभाव-विरोधी कानूनों को व्यावहारिक परिवर्तन में तब्दील करना मुश्किल है।
- सच्ची लोकतांत्रिक नागरिकता सहानुभूतिपूर्ण समझ और आलोचनात्मक सोच की मांग करती है। शिक्षा को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करके और पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती देकर इन मूल्यों को स्थापित करना चाहिए।
- चूंकि शिक्षण भेद्यता शारीरिक कमजोरियों से परे सामाजिक और आर्थिक संदर्भों तक फैली हुई है, अतः इस भेद्यता को पहचानना और संबोधित करना सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रक्रिया में एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए जो व्यक्तियों को कमजोर वर्गों के हित के लिए आवाज उठाने हेतु सशक्त बनाए।
सामाजिक न्याय शिक्षा में शिक्षकों की भूमिका
- सामाजिक न्याय की शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सुचारु रूप से कार्यशील लोकतंत्र के लिए ऐसी शिक्षा की आवश्यकता को स्वीकार करना सर्वोपरि है।
- शिक्षकों की अनुपस्थिति तथा कथित तौर पर सीखने की कमियों के लिए छात्रों को दोषी ठहराना गलत है और यहां तक कि शारीरिक शोषण भी सामाजिक न्याय शिक्षा में विश्वास की कमी से उत्पन्न होता है।
- जब शिक्षकों को लोकतांत्रिक शिक्षा में अपनी भूमिका का एहसास होता है, तो समाज को कार्यशाला के रूप में और शैक्षणिक सामग्री को मार्गदर्शक पथ के रूप में उपयोग करके उपयुक्त शिक्षाशास्त्र विकसित किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय के एक घटक के रूप में यौन शिक्षा:
- यौन शिक्षा सामाजिक न्याय शिक्षा का एक अभिन्न अंग है।
- स्वस्थ यौन विकास के बारे में ज्ञान प्रदान करने के अलावा, यह लैंगिक पहचान और पारस्परिक संबंधों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सहमति के महत्व पर जोर देना, व्यक्तिगत सीमाओं को समझना और यौन शोषण को रोकना यौन शिक्षा के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
- हाल की कानूनी पुष्टि, जैसे कि कलकत्ता उच्च न्यायालय का यह दावा कि बच्चों को यौन शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है; यौन शिक्षा को व्यापक शैक्षिक पाठ्यक्रम में एकीकृत करने के महत्व को रेखांकित करता है।
- अन्य अनुसंधान भी यह इंगित करता है, कि यौन शिक्षा गतिविधि; यौन शोषण की आवृत्ति को कम करके जोखिम भरे यौन व्यवहार को सीमित करने में योगदान देती है।
- लैंगिक समझ को बढ़ावा देने और विविध यौन प्राथमिकताओं का सम्मान करके, यौन शिक्षा सामाजिक न्याय का एक साधन बन जाती है।
- शैक्षिक ढांचे में यौन शिक्षा को शामिल करने से घर और समाज में लैंगिक संबंधों में बदलाव एक वांछनीय परिणाम बन जाता है।
सरकारी सहायता की आवश्यकता: व्यापक यौन शिक्षा का आह्वान
- जिस तरह सामाजिक न्याय की शिक्षा के लिए मजबूत सरकारी समर्थन की आवश्यकता होती है, उसी तरह यौन शिक्षा भी उसी तरह के प्रोत्साहन की मांग करती है।
- किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य रणनीति (एआरएसएच) सहित राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएएचपी) जैसी पहल आज भी मौजूद हैं, भारतीय स्कूलों में यौन शिक्षा का व्यावहारिक कार्यान्वयन अभी भी अधूरा है।
- यौन शिक्षा के बारे में पूर्व-किशोरों की स्वाभाविक जिज्ञासा का लाभ उठाते हुए, एक विवेकपूर्ण रणनीति में उन्हें सुरक्षित और स्वस्थ यौन जीवन के लिए तैयार करने और लैंगिक भेद के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने के लिए सही प्रकार की यौन शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है।
- आज अदालतें किशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध घोषित करने की समस्या से जूझ रही हैं, ऐसे में शिक्षा क्षेत्र को ऐसे रिश्तों के कानूनी पहलुओं की जानकारी देने में भूमिका निभानी चाहिए।
- यौन शिक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में पाठ्यक्रम डिजाइन, शिक्षण सहायक सामग्री और शैक्षणिक संसाधन अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय निकायों से उपलब्ध हैं। अतः शिक्षकों का प्रशिक्षण और यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाना अनिवार्य है।
राज्य की पहल: तमिलनाडु की भूमिका
- स्कूलों और कॉलेजों में जाति और समुदाय के आधार पर भेदभाव को दूर करने की आवश्यकता को पहचानते हुए, तमिलनाडु सरकार ने न्यायमूर्ति के. चंद्रू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।
- जहां तमिलनाडु इस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वहीं अन्य राज्य इसी तरह की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
- जातिगत टकराव अक्सर किशोरों और युवा वयस्कों के यौन व्यवहार से जुड़े होते हैं, जो सामाजिक न्याय और यौन शिक्षा के अंतर्संबंध पर जोर देते हैं।
निष्कर्ष
सामाजिक न्याय शिक्षा और यौन शिक्षा हमारे समय के लिए अनिवार्यता बनकर उभरी है। आलोचनात्मक सोच, सहानुभूति और विविध पहचानों की समझ को बढ़ावा देकर, शिक्षा एक लोकतांत्रिक समाज बनाने में एक शक्तिशाली उपकरण बन जाती है जहां प्रत्येक नागरिक के अधिकारों का सम्मान किया जाता है। सामाजिक न्याय और व्यापक यौन शिक्षा की ओर यात्रा एक कानूनी या सरकारी आदेश और एक सामाजिक जिम्मेदारी है। यह शिक्षकों, नीति निर्माताओं और समग्र रूप से समाज के लिए शिक्षा के इन आवश्यक घटकों को प्राथमिकता देने, एक ऐसे भविष्य को आकार देने का आह्वान है जहां समानता, सम्मान और समझ कायम हो।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- 1. शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करके सामाजिक न्याय शिक्षा को बढ़ावा देने में चुनौतियों और रणनीतियों का पता लगाएं। शिक्षा प्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए उदाहरण और प्रभावी रणनीतियाँ प्रदान करें। (10 अंक, 150 शब्द)
- 2. केस स्टडी के रूप में तमिलनाडु की पहल का उपयोग करते हुए, भारत में जाति, लिंग और यौन शिक्षा के अंतर्संबंध की जांच करें। मूल्यांकन करें कि व्यापक यौन शिक्षा को एकीकृत करने से असमानताओं को कैसे दूर किया जा सकता है, और राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक न्याय और यौन शिक्षा को बढ़ावा देने में राज्य की पहल की भूमिका पर चर्चा की जा सकती है। (15 अंक,250 शब्द)
स्रोत- द हिंदू