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Daily-current-affairs / 27 Nov 2023

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 28/11/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- सामाजिक न्याय - स्वास्थ्य

की-वर्ड: यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी), आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई), आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, COVID-19

सन्दर्भ:-

  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) को आज बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, सभी राष्ट्र 2030 के लिए निर्धारित, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। यूएचसी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करने में निहित है, कि सभी व्यक्तियों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं बिना किसी वित्तीय बाधाओं के प्राप्त हो सके।
  • भारत में, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) यूएचसी प्राप्त करने के लिए एक प्रमुख पहल के रूप में कार्य करती है। हालांकि, वर्तमान दुनिया ऑफ-ट्रैक प्रगति से जूझ रही है, जो कि COVID-19 महामारी, जनशक्ति की कमी और अमीर व गरीब परिवारों के बीच बढ़ते असमानता के कारण और बढ़ गई है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी)

  • यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) वह सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय बाधाओं के बावजूद प्रत्येक व्यक्ति को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी श्रृंखला तक पहुंच प्राप्त हो। इसमें स्वास्थ्य संवर्धन, निवारक उपाय, उपचार, पुनर्वास और उपशामक देखभाल सहित सभी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं।
  • यूएचसी प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल को संबोधित करता है, जिससे यह वित्तीय स्थिति, लिंग, जाति, निवास स्थान, भुगतान करने की क्षमता या किसी अन्य कारकों के आधार पर भेदभाव के बिना सभी व्यक्तियों के लिए सस्ती कीमत पर सुलभ हो जाता है।
  • वर्ष 1977 में हाफडैन महलर द्वारा प्रस्तावित और विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा समर्थित नारा "2000 तक सभी के लिए स्वास्थ्य", स्वाभाविक रूप से सार्वभौमिकरण का प्रतीक है। इसमें, इस बात पर जोर दिया गया है कि स्वास्थ्य सेवा बिना किसी इन्कार या भेदभाव के सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। यूएचसी वैश्विक सार्वजनिक नीति में व्यापक रूप से स्वीकृत लक्ष्य के रूप में विकसित हुआ है।
  • वर्ष 2012 में बीजिंग स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान सम्मेलन के बाद से स्थापित स्वास्थ्य प्रणालियों में एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत अवधारणा, एक बहु-नोडल प्रणाली का विचार है। इस प्रणाली में विविध क्षेत्र और कई विशेषताएं शामिल हैं, जो व्यापक सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं।

वर्तमान परिदृश्य एवं चुनौतियाँ

  • वैश्विक संघर्ष और स्थिरता:
    एसडीजी लक्ष्य 3.8 में उल्लिखित यूएचसी की दिशा में आज की प्रगति विश्व स्तर पर लड़खड़ा गई है। 2015 के बाद से, स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज में सुधार रुक गया है, और स्वास्थ्य खर्च का बोझ 2000 के बाद से लगातार बढ़ता चला गया है।
  • जनशक्ति की कमी:
    पश्चिमी और मध्य एशियाई देश स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी में एक महत्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न हो रही है।
  • महामारी संबंधी व्यवधान:
    कोविड-19 महामारी ने अधिकांश देशों में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित कर दिया है, जो बाहरी जोखिमों के प्रति स्वास्थ्य प्रणालियों की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है।
  • आर्थिक असमानताएँ:
    आज गरीब और गैर-गरीब परिवारों के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि बीमारी व्यक्तियों को रोजगार से हटने के लिए मजबूर करती है, जिससे वित्तीय तनाव बढ़ जाता है और उत्पादकता में कमी आती है।
  • गरीबी और स्वास्थ्य व्यय:
    विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय सालाना 55 मिलियन लोगों को गरीबी में धकेल देता है, जो व्यापक यूएचसी उपायों की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।

भारत में यूएचसी को लागू करने में चुनौतियाँ:

असमान स्वास्थ्य बीमा पहुंच:

  • आर्थिक रूप से वंचित लोगों के बीच सबसे कम स्वास्थ्य बीमा कवरेज पाया जाता है, जो असमान पहुंच के मुद्दे को दर्शाता है।
  • एनएफएचएस-5 के परिणाम एक महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करते हैं, जिसमें सबसे कम संपत्ति वाले घरों में केवल 36.1% स्वास्थ्य कवरेज है।

वित्तीय सुरक्षा अंतराल:

  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसी योजनाओं के बावजूद, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जेब से अधिक खर्च आज भी जारी है।
  • भारतीय राज्यों में व्यय और स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में असमानताएं मौजूद हैं, साथ ही कई क्षेत्रों में जेब से होने वाली लागत भी बढ़ रही है।

बीमा पॉलिसी त्रुटियाँ:

  • कई अध्ययनों से प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना सहित स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों में समावेशन और बहिष्करण त्रुटियों का पता चलता है, जिससे पात्र और अपात्र परिवारों के लिए स्वास्थ्य कवरेज संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं।

सेवा उपलब्धता संबंधी चिंताएँ:

  • आज PMJAY-सूचीबद्ध अस्पतालों में से 56% अस्पताल सार्वजनिक क्षेत्र से सम्बंधित हैं, 40% निजी लाभ क्षेत्र में हैं, जो संभावित रूप से विशिष्ट क्षेत्रों में सेवाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
  • यह सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के पूर्व अनुभव के आधार पर सेवा उपलब्धता में संभावित असंतुलन को इंगित करता है।

अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:

  • स्वास्थ्य सुविधाओं, उपकरणों और चिकित्सा आपूर्ति सहित अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, यूएचसी प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों की 79.5% की कमी कर्मियों की अपर्याप्तता पर जोर देती है।

ख़राब स्वास्थ्य शिक्षा:

  • स्वस्थ जीवन शैली और निवारक उपायों पर शिक्षा और जागरूकता की कमी रोकथाम योग्य बीमारियों और स्थितियों में वृद्धि में योगदान करती है।

भारत का स्वास्थ्य व्यय और तुलना

  • कम स्वास्थ्य व्यय:
    भारत का वर्तमान स्वास्थ्य व्यय, इसके सकल घरेलू उत्पाद (8 लाख करोड़ रुपये) का लगभग 3.2% है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में सकल घरेलू उत्पाद के औसत, जो लगभग 5.2% है; स्वास्थ्य व्यय हिस्से से काफी कम है, ।
  • सरकारी व्यय असमानताएँ:
    भारत में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार का स्वास्थ्य व्यय चीन, थाईलैंड, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।

डिजिटल स्वास्थ्य पहल

  • डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल:
    डिजिटल स्वास्थ्य में भारत के नेतृत्व को जी 20 की अध्यक्षता में शुरू की गई डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल के माध्यम से उजागर किया गया है। इस पहल का उद्देश्य डिजिटल स्वास्थ्य में निवेश आकर्षित करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाना है।
  • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन:
    भारत का स्वदेशी डिजिटल स्वास्थ्य आंदोलन, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, गति पकड़ रहा है। डिजिटल स्वास्थ्य को यूएचसी विस्तार की जटिलताओं के प्रबंधन, प्रभावी अनुबंध प्रशासन और मूल्य-आधारित प्रतिपूर्ति के माध्यम से चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका:
    एआई दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा में तेजी से बदलाव ला रहा है और भारत इस क्रांति का नेतृत्व करने की स्थिति में है। निदान में, एआई-संचालित उपकरण सटीकता और दक्षता बढ़ाते हैं, जबकि पूर्वानुमानित विश्लेषण और वैयक्तिकृत उपचार स्वास्थ्य देखभाल प्रक्रियाओं और दवा खोज में क्रांतिकारी बदलाव लाते हैं।

दूसरों के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे का प्रसार

  • डिजिटल बुनियादी ढांचे की आवश्यकता:
    डिजिटल स्वास्थ्य में भारत की यात्रा यूएचसी का विस्तार करने की इच्छा रखने वाले अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य करती है। व्यापक डिजिटल और डेटा बुनियादी ढांचे के महत्व को रेखांकित किया गया है।
  • मेडिकल ब्रेन ड्रेन और 'हील इन इंडिया':
    'हील इन इंडिया' जैसी पहल और पश्चिम में व्यापक स्टाफ की कमी चिकित्सा प्रतिभा पलायन (मेडिकल ब्रेन ड्रेन) को बढ़ा सकती है। भारत की इस प्रकार की नीतियों से सबक लेकर अन्य देशों को कर्मचारियों की कमी को दूर करने में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी

  • सार्वजनिक क्षेत्र के समाधानों से परे:
    यह स्वीकार करते हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र अकेले यूएचसी हासिल नहीं कर सकता, निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया गया है। सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा (पीएफएचआई) के विस्तार में निजी क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से को सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल ढांचे में एकीकृत करना शामिल है।
  • बहुपक्षीय सहयोग:
    आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों की जटिल प्रकृति के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को शामिल करते हुए बहुपक्षीय और सहक्रियात्मक गठबंधन की आवश्यकता है। व्यापक यूएचसी के लिए सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण हैं।

WHO की सिफ़ारिशें और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण

  • स्वास्थ्य प्रणालियों का पुनरुद्धार:
    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (पीएचसी) दृष्टिकोण का उपयोग करके स्वास्थ्य प्रणालियों को फिर से तैयार करने की सिफारिश करता है। साथ ही इस बात पर भी जोर डेटा है, कि 90% आवश्यक यूएचसी हस्तक्षेप पीएचसी के माध्यम से वितरित किए जा सकते हैं, संभावित रूप से जीवन बचा सकते हैं और वैश्विक स्तर पर जीवन प्रत्याशा बढ़ा सकते हैं।

आगे का रास्ता

  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को संतुलित करना:
    यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि यूएचसी को प्राप्त करने में राष्ट्रीय हित; अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के साथ संरेखित हों। ग्लोबल साउथ को ध्यान में रखते हुए गैर-प्रतिस्पर्धी समाधान तैयार करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना अनिवार्य है।
  • वृद्धिशील सुधार और सर्वोत्तम प्रथाएँ:
    विभिन्न देशों से अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मजबूत करने के लिए मौजूदा प्रणालियों का पुनर्निर्माण करने, सुधारों और सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करने का आग्रह किया जाता है।
  • उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्धता:
    आगे बढ़ने के लिए ठोस प्रयासों और उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। निरंतर समर्पण के साथ, एक स्वस्थ और अधिक समृद्ध भारत का निर्माण किया जा सकता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए कल्याण सुनिश्चित करेगा।
  • स्वास्थ्य वित्तपोषण:
    यूएचसी हासिल करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि सरकारें गरीबों और कमजोर लोगों की सहायता के लिए अपने देश की स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली में हस्तक्षेप करे।
    • इसके लिए अनिवार्य रूप से सार्वजनिक रूप से शासित स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित रूप से धन जुटाने, संसाधनों को एकत्रित करने और सेवाओं की खरीद में राज्य की मजबूत भूमिका हो।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए अधिक लक्षित वित्तपोषण से, स्वास्थ्य देखभाल और पहुंच की गुणवत्ता के आसपास अंतर्निहित कमजोरियों से निपटने में मदद मिलेगी, दवाओं पर जेब से खर्च कम होगा और मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे की कमी में सुधार होगा।

यूएचसी के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास:

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 ने प्राथमिक देखभाल के लिए दो-तिहाई या उससे अधिक संसाधनों को आवंटित करने की वकालत की, क्योंकि इसमें "निवारक और प्रचारात्मक स्वास्थ्य देखभाल अभिविन्यास के माध्यम
  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के लिए इस वर्ष स्वास्थ्य आवंटन में 167% की वृद्धि हुई है - बीमा कार्यक्रम जिसका लक्ष्य 10 करोड़ गरीब परिवारों को प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक के अस्पताल में भर्ती खर्च के लिए कवर करना है।
  • टियर II और टियर III शहरों में अस्पताल खोलने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के हालिया प्रयास:

  • व्यक्तिगत राज्य स्वास्थ्य-बीमा योजनाओं का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी अपना रहे हैं। उदाहरण के लिए, रेमेडिनेट टेक्नोलॉजी (भारत का पहला पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक कैशलेस स्वास्थ्य बीमा दावा प्रसंस्करण नेटवर्क) को कर्नाटक सरकार की हाल ही में घोषित कैशलेस स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए प्रौद्योगिकी भागीदार के रूप में अनुबंधित किया गया है।

निष्कर्ष

अंत में, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में यात्रा डिजिटल प्रौद्योगिकियों, निजी क्षेत्र की भागीदारी और वैश्विक सहयोग का लाभ उठाते हुए एक व्यापक और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की मांग करती है। चुनौतियाँ विकट हैं, लेकिन रणनीतिक योजना और साझा प्रतिबद्धता के साथ, राष्ट्र एक स्वस्थ भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन जैसी डिजिटल स्वास्थ्य पहल का एकीकरण, भारत और अन्य विकासशील देशों में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) प्राप्त करने में चुनौतियों पर काबू पाने में कैसे योगदान दे सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. स्वास्थ्य व्यय में असमानताओं और यूएचसी में निजी क्षेत्र की भूमिका के आलोक में, सभी नागरिकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकारें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी के बीच संतुलन कैसे बना सकती हैं? (15 अंक,250 शब्द)

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस/संसद टीवी