तारीख Date : 9/12/2023
प्रासंगिकताः जीएस पेपर 2 - अंतर्राष्ट्रीय संबंध
की-वर्ड्स : नेबरहुड फर्स्ट' नीति, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, वैक्सीन डिप्लोमेसी, गुजराल सिद्धांत
संदर्भ :
वर्तमान में भारतीय विदेश नीति के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों में निहित है। भारत ने वैश्विक दक्षिण में अग्रणी राष्ट्र,वैश्विक भू-राजनीतिक संघर्षों में मध्यस्थ और विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण अभिकर्ता बनने जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखें हैं ।
इस संदर्भ में भारत को अपने ही पड़ोसी देशों से बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। अन्य प्रमुख शक्तियों के विपरीत, भारत को दक्षिण एशिया में जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
इस तरह की परिस्थित इस क्षेत्र में एक उभरती हुई महाशक्ति के कारण और भी जटिल हो गई है। यद्यपि भारत क्षेत्रीय सहयोग का लक्ष्य रखता है, परंतु पड़ोसी देश भारत के दृष्टिकोण को पूरी तरह से अपनाने में झिझकते हुए दिखाई दे रहे हैं, जो इसकी आकांक्षाओं में अप्रत्यक्ष रूप से बाधाएँ उत्पन्न कर रहे है।
पड़ोसी देशों के साथ भारत की विदेश नीति का विकास
ब्रिटिश काल से 1950 तक:
औपनिवेशिक युग के दौरान, भारत की विदेश नीति काफी हद तक ब्रिटिश हितों से प्रभावित थी। भूटान ने अपने रणनीतिक दर्रे अंग्रेजों को सौंप दिए थे, लेकिन अपनी स्वायत्तता बनाए रखी। 1816 में अंग्रेजों के पक्ष में सगौली की संधि के साथ नेपाल की स्वतंत्र स्थिति समाप्त हो गई थी । आंग्ल-बर्मा युद्धों के कारण 1885 में बर्मा पर नियंत्रण हो गया था।
1950 और 1960 का दशक:
इस अवधि में भारतीय विदेश नीति आदर्शवाद से प्रेरित थी । इस नहरुवादी चरण में भारत की विदेश नीति ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) और चीन के साथ पंचशील सिद्धांतों को अपनाया परंतु 1962 के भारत-चीन युद्ध ने संबंधों के पुनर्मूल्यांकन के लिए प्रेरित किया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध ने तनाव को और बढ़ा दिया।
1970 और 1980 का दशक:
भारतीय विदेश नीति में यह इंदिरा गांधी का चरण था इसमें भारत ने आदर्शवाद से यथार्थवाद की विदेश नीति को अपनाया । इस दौरान भारत ने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हस्तक्षेप करते हुए एक अधिक मुखर विदेश नीति प्रकट की । 1985 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए सार्क का गठन किया गया । 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते ने श्रीलंका के गृहयुद्ध को संबोधित किया और 1988 में ऑपरेशन कैक्टस ने मालदीव में तख्तापलट को विफल कर दिया था।
शीत युद्ध के बाद:
शीत युद्ध के बाद भारत ने बदली वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में अपनी विदश नीति में आर्थिक विकास को प्राथमिकता प्रदान की और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को अधिक प्रगाढ़ बनाया । इसी प्रकार भारत की 'पूर्व की ओर देखो' नीति (1991) का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना था। गुजराल सिद्धांत (1996) ने पड़ोसियों के साथ गैर-पारस्परिकता, गैर-हस्तक्षेप और शांतिपूर्ण विवाद समाधान पर जोर दिया। बिम्सटेक (1997) और आईओआरए (1997) ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया।
'नेबरहुड फर्स्ट' नीति, 2014:
2014 में शुरू की गई इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग और विकास पर बल देते हुए दक्षिण एशियाई और हिंद महासागर के देशों के साथ संबंध बढ़ाना है।
भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ :
- भारत विरोधी व्यवस्थाओं का उदय:
मालदीव में राजनीतिक रूप से भारत विरोधी शासन की स्थापना हुई है और वहाँ की सरकार भारतीय नागरिकों से वहां से चले जाने का आग्रह कर रही है यह भारत के समक्ष एक प्रत्यक्ष चुनौती है।
इसके अतिरिक्त, ढाका में खालिदा जिया के नेतृत्व वाली सरकार बनने की संभावना बढ़ रही है ,जो वैचारिक रूप से भारत से विरोध रखती हैं इससे भारत के लिए जटिलता और बढ़ सकती है। - बीजिंग के प्रभाव से संरचनात्मक दुविधाएं: दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव , विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से, भारत की क्षेत्रीय स्थिति को जटिल बना रहा है। छोटे राज्यों तक बीजिंग की पहुंच अक्सर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति मे स्वीकृत मानक विचारों को दरकिनार कर देती है
- बदलता भूराजनीतिक परिदृश्य : बदलते क्षेत्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य में संयुक्त राज्य अमेरिका की घटती उपस्थिति के साथ विकसित हुई शक्ति शून्यता को चीन द्वारा भरे जाने का प्रयास किया जा रहा है ।
भारत की दुविधाओं के कारण:
क्षेत्रीय भूराजनीति:
- दक्षिण एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका की घटती उपस्थिति ने एक शक्ति निर्वात उत्पन्न कर दिया है। चीन का आक्रामक उदय छोटे राज्यों के लिए एक भू-राजनीतिक बफर के रूप में कार्य कर रहा है, जिससे उन्हें भारत का विकल्प मिल रहा है।
नीतिगत रुख और मान्यताएँ:
- सामान्यतः भारत की नीति अपने पड़ोसी देशों में सत्ता में बैठे लोगों पर ही केंद्रित रहती है जिससे अन्य सत्ता केंद्र अलग-थलग पड़ जाते हैं जो बदली परिस्थियों में भारत के लिए दुविधा उत्पन्न करता है । उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के आलोक में यह संदेहपूर्ण है कि विश्वास कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध स्वाभाविक रूप से बेहतर संबंधों को बढ़ावा देंगे।
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने के लिए विभिन्न पहलें:
- 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति: यह नीति पड़ोसी देशों की चिंताओं और प्राथमिकताओं को संबोधित करने के लिए आपसी सम्मान, समझ और संवेदनशीलता पर जोर देती है।
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी: यह पहल क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई और एशिया-प्रशांत देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर केंद्रित है।
- कनेक्टिविटी पहल: भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे, ईरान में चाबहार बंदरगाह और म्यांमार में कलादान मल्टीमॉडल पारगमन परिवहन परियोजना जैसी परियोजनाओं के माध्यम से कनेक्टिविटी को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
- विकास सहयोग: भारत तकनीकी,आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) कार्यक्रम और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से विकास सहायता प्रदान कर रहा है।
- वैक्सीन कूटनीति: भारत ने अपनी वैक्सीन कूटनीति पहल के हिस्से के रूप में पड़ोसी देशों को टीके की आपूर्ति करके क्षेत्र की COVID-19 प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (बीबीआईएन) नेटवर्क: भारत पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए इस उप-क्षेत्रीय समूह का सदस्य है।
विभिन्न देशों के संदर्भ में -विशिष्ट पहलें :
- भूटान: भारत, भारत-भूटान शांति और मित्रता संधि तथा जलविद्युत परियोजनाओं पर समझौतों के माध्यम से भूटान का समर्थन कर रहा है।
- नेपाल: 1950 में ही अरुण जलविद्युत परियोजना जैसी परियोजनाओं पर समझौते के साथ शांति और मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- श्रीलंका: भारत 'एकात्मक डिजिटल पहचान ढांचे' को लागू करने में सहायता करता है और आर्थिक चुनौतियों के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- बांग्लादेश: बांग्लादेश के साथ नदी जल बंटवारे से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
- मालदीव: भारतीय कंपनियां ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना और अड्डू एटोल जैसी परियोजनाओं में शामिल हैं।
- म्यांमार: भारत शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आपदा प्रबंधन, क्षमता निर्माण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सहायता प्रदान करता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारत ने दक्षिण एशियाई देशों के बीच संचार और आपदा प्रबंधन संबंधों को बढ़ाने के लिए दक्षिण एशिया उपग्रह (एसएएस) लॉन्च किया है।
नेबरहुड फर्स्ट' नीति
नेबरहुड फर्स्ट' नीति, जिसे भारत ने 2014 में अपनाया गया था, एक विदेश नीति पहल है जो अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर केंद्रित है। इसके मुख्य उद्देश्यों में बढ़ी हुई कनेक्टिविटी, आर्थिक सहयोग और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देकर एक शांतिपूर्ण व स्थिर पड़ोस को बढ़ावा देनाआदि शामिल है।
नेबरहुड फर्स्ट' नीति नीति के प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:
- संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना।
- आपसी सम्मान और संवेदनशीलता को बढ़ावा देना।
- आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना।
- साझा समृद्धि को बढ़ावा देना।
- क्षेत्रीय एकीकरण के लिए कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देना।
- लोगों के बीच आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
भावी रणनीति :
बदली हुई वास्तविकताओं को स्वीकार करना:
- भारत को क्षेत्र में शक्ति संतुलन में मूलभूत बदलाव को स्वीकार करना चाहिए।
- पड़ोसी देशों में भारतीय प्रधानता का पुराना प्रतिमान अब कायम नहीं है, और उभरती गतिशीलता के साथ जुड़ने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
बाहरी शक्तियों की भागीदारी:
- चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए मित्रवत बाहरी शक्तियों के साथ सक्रिय जुड़ाव महत्वपूर्ण है।
- क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाने के लिए रणनीतिक गठबंधन और सहयोग की आवश्यकता है।
लचीली कूटनीति:
- भारतीय कूटनीति को पड़ोसी देशों के भीतर सभी पक्षों के साथ जुड़ने के लिए अनुकूलित करना चाहिए।
- विपक्षी तत्वों को अलग-थलग करने के बजाय भारत विरोधी भावनाओं को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना अधिक प्रभावी दृष्टिकोण है।
राजनयिक संसाधनों का विस्तार:
- राजनयिकों की कमी भारत की विदेश नीति के कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
- उभरते अवसरों और संकटों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए भारत को इस कमी को संबोधित करना आवश्यक है।
2014 से नेबरहुड फर्स्ट' नीति से जुड़े कुछ प्रमुख घटनाक्रम
- 2014:
- भारतीय प्रधान मंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए सभी दक्षिण एशियाई राष्ट्राध्यक्षों को निमंत्रण भेजना नेबरहुड फर्स्ट' नीति की शुरुआत का संकेत था।
- 2015:
- अफगानिस्तान के साथ मजबूत संबंधों का एक उल्लेखनीय उदाहरण 2015 में सामने आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगान संसद का उद्घाटन करने के लिए वहाँ का दौरा किया, जो भारत द्वारा समर्थित एक परियोजना थी।
- 2016 में, वह हेरात में सलमा बांध का उद्घाटन करने के लिए अफगानिस्तान लौटे, जिससे द्विपक्षीय संबंध और मजबूत हुए।
- 2014-2023:
- नेपाल के मामले में, पीएम मोदी ने 2014 में 17 वर्षों बाद इस देश का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बनकर इतिहास रचा।
- बांग्लादेश के साथ संबंधों में 2015 में एक महत्वपूर्ण विकास हुआ जब प्रधानमंत्री ने इस देश का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान, भारत और बांग्लादेश ने ऐतिहासिक भूमि सीमा पर एक समझौते को अंतिम रूप देते हुए अनुसमर्थन के साधनों का आदान-प्रदान किया।
- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल) के सदस्यों के बीच वाहनों के आवागमन को विनियमित करने के उद्देश्य से एक क्षेत्रीय पहल, BBIN मोटर वाहन समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए, जो क्षेत्रीय सहयोग के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है ।
निष्कर्ष:
भारत की अपने पड़ोस में उभरती विदेश नीति की चुनौतियाँ एक व्यापक और रणनीतिक दृष्टिकोण की मांग करती हैं। भारत विरोधी शासन व्यवस्था के उदय, चीन के बढ़ते प्रभाव और क्षेत्रीय गतिशीलता में बदलाव के कारण भारत की पारंपरिक मान्यताओं और नीतिगत रुख का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक हो गया है। बदली हुई वास्तविकताओं को स्वीकार करना, बाहरी तत्वों को सक्रिय रूप से शामिल करना, लचीली कूटनीति अपनाना और राजनयिक संसाधनों की कमी को दूर करना भारत के लिए अपने पड़ोस की दुविधाओं को सफलतापूर्वक हल करने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं। भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत के लिए लगातार बदलते विश्व में अपनी स्थिति को सुरक्षित करने के लिए अनुकूलनशीलता, नवीनता और ऐतिहासिक प्रतिमानों से बदलाव की मांग करता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- पड़ोसियों के साथ भारत की विदेश नीति में ऐतिहासिक बदलावों पर चर्चा करें और भारत विरोधी शासन और चीन के प्रभाव से उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण करें। भारत क्षेत्रीय सद्भाव को बढ़ावा देते हुए बदलती गतिशीलता को रणनीतिक रूप से कैसे अपना सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति पहल, क्षेत्रीय स्थिरता पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन करें और पड़ोस में मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नवीन राजनयिक दृष्टिकोण स्पष्ट करें । (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu