तारीख (Date): 06-07-2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3: अर्थव्यवस्था- राजकोषीय नीति
की-वर्ड: राजकोषीय घाटा, ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात, राजस्व घाटा, राजकोषीय स्थिरता
संदर्भ:
- वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अलग-अलग राज्य बजटों के डेटा का विश्लेषण देश की उभरती वित्तीय स्थिति में व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- राजस्व जुटाने, सरकारी व्यय और उधार लेने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए, भारत में राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य को समझना महत्वपूर्ण है।
राजकोषीय नीति
- राजस्व उत्पन्न करने और व्यय बढ़ाने के लिए सरकारी वित्त या नीति को बजट नीति या राजकोषीय नीति कहा जाता है।
FRBM अधिनियम क्या है?
- इसे अगस्त 2003 में अधिनियमित किया गया था।
- इसका उद्देश्य केंद्र सरकार को राजकोषीय प्रबंधन और दीर्घकालिक व्यापक आर्थिक स्थिरता में अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार बनाना है।
- इस अधिनियम में केंद्र सरकार के ऋण और घाटे पर सीमा निर्धारित करने की परिकल्पना की गई है।
- इसने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित कर दिया है।
- यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य भी वित्तीय रूप से विवेकशील हों, वर्ष 2004 में 12वें वित्त आयोग की सिफारिशों ने राज्यों को ऋण राहत के साथ समान कानून बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
- राज्यों ने तब से अपना-अपना वित्तीय उत्तरदायित्व कानून बनाया है, जो उनके वार्षिक बजट घाटे पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) की 3% की सामान सीमा निर्धारित करता है।
- यह केंद्र सरकार के राजकोषीय संचालन और मध्यम अवधि के ढांचे में राजकोषीय नीति के संचालन में अधिक पारदर्शिता को भी अनिवार्य करता है।
- केंद्र सरकार के बजट में एक मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति वक्तव्य शामिल है, जो तीन साल के समयावधि पर वार्षिक राजस्व और राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को निर्दिष्ट करता है।
- अधिनियम को लागू करने के नियमों को जुलाई 2004 में अधिसूचित किया गया था। नियमों में 2018 में संशोधन किया गया था, और हाल ही में मार्च 2023 के लिए 3.1% का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
- एनके सिंह समिति (2016 में स्थापित) ने सिफारिश की, कि सरकार को 31 मार्च, 2020 तक के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद के 3% के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखना चाहिए, इसे 2020-21 में 2.8% और 2023 तक 2.5% तक कम करना चाहिए।
FRBM अधिनियम के तहत छूट
- एस्केप क्लॉज:
- अधिनियम की धारा 4(2) के तहत, केंद्र कुछ आधारों का हवाला देते हुए वार्षिक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पार कर सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्ध
- राष्ट्रीय आपदा
- कृषि का गिरता स्तर
- संरचनात्मक सुधार
- किसी तिमाही में वास्तविक उत्पादन वृद्धि में पिछली चार तिमाहियों के औसत से कम से कम तीन प्रतिशत अंक की गिरावट।
राजकोषीय असंतुलन और समेकन:
- कोविड-19 महामारी के बीच, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने महत्वपूर्ण वित्तीय सुधार किए हैं, जिससे राजकोषीय घाटे में कमी आई है।
- संघ का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.1% से घटकर 5.9% हो गया, जबकि राज्य का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.1% से घटकर 3.24% हो गया।
- प्रमुख राज्यों को 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.9% राजकोषीय घाटा हासिल होने की उम्मीद है। हालाँकि, सामान्य सरकारी वित्त का एक समग्र दृष्टिकोण वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, और व्यक्तिगत राज्य बजट का विश्लेषण मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
राजकोषीय चुनौतियाँ:
- हालाँकि राज्य अपने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं, फिर भी इस सन्दर्भ में अभी भी कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ व्याप्त हैं जिनका समाधान करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से राजस्व घाटे से संबंधित।
- 2023-24 के बजट में 17 प्रमुख राज्यों में से 13 में राजस्व घाटा है। सात राज्यों, अर्थात् आंध्र प्रदेश, हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में राजस्व घाटे के कारण राजकोषीय असंतुलन पैदा हो रहा है।
- इन राज्यों में ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात भी उच्च है, जो सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता को दर्शाता है।
राजस्व घाटा समेकन का महत्व:
- यद्यपि राजस्व घाटे की उपस्थिति आवश्यक रूप से राजकोषीय फिजूलखर्ची का संकेत नहीं देती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव हैं और इसमें सुधार की आवश्यकता है।
- इन सात राज्यों के लिए राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे का विशिष्ट हिस्सा 39.7% से 70.7% तक है। 2023-24 में सभी राज्यों के लिए राजकोषीय घाटे में कुल राजस्व घाटा 27% होने की उम्मीद है।
- राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करने और राज्य-विशिष्ट विकास को समर्थन देने के लिए राजस्व घाटे को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
राजस्व घाटा समेकन के लिए रूपरेखा:
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाते हुए राजस्व घाटा समेकन के लिए एक रूपरेखा स्थापित की जानी चाहिए।
- राजस्व घाटे में कमी के लिए केंद्र सरकार से ब्याज मुक्त ऋण को जोड़ने जैसे उपायों से राजस्व व्यय के वित्तपोषण के लिए उधार लिए गए संसाधनों के विचलन को रोका जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, राजस्व घाटे में कमी और प्रदर्शन प्रोत्साहन अनुदान के लिए एक परिभाषित समयावधि राज्यों को राजकोषीय संतुलन हासिल करने और व्यय की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
निष्कर्ष:
भारत में राज्यों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए राजस्व घाटा प्रबंधन पर ध्यान देना जरूरी है। प्रोत्साहन और प्रदर्शन-आधारित अनुदान सहित राजस्व घाटे में कमी के लिए एक व्यापक ढांचा, राजकोषीय संतुलन को बहाल करने और राज्य-विशिष्ट विकास का समर्थन करने में मदद कर सकता है। चुनौतियों का समाधान करने और राज्य के वित्त की राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक वृहद एवं समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।
मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
- प्रश्न 1. राजकोषीय घाटे, ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात और राजस्व घाटे जैसे प्रमुख संकेतकों को ध्यान में रखते हुए, भारत में राज्यों के राजकोषीय स्वास्थ्य पर चर्चा करें। राज्यों की समग्र राजकोषीय स्थिरता और आर्थिक विकास का समर्थन करने की उनकी क्षमता पर राजस्व घाटे के निहितार्थ का विश्लेषण करें। राजस्व घाटा समेकन के लिए एक रूपरेखा का प्रस्ताव करें, जिसमें राज्यों को प्रोत्साहित करने और उधार संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के उपाय शामिल हों। (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2. भारत में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारी वित्त के प्रबंधन में राजकोषीय अनुशासन और अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी सुनिश्चित करने में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। राजकोषीय घाटे में कमी और दीर्घकालिक व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने पर एफआरबीएम अधिनियम के प्रभाव का आकलन करें। (15 अंक,250 शब्द)
स्रोत: द हिंदू