तारीख (Date): 05-09-2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- सामाजिक न्याय - स्वास्थ्य
की-वर्ड: सभी के लिए स्वास्थ्य, ज़ूनोटिक रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, कोविड-19
सन्दर्भ:
- हाल ही में बेंगलुरु में “स्वास्थ्य:अवसर और चुनौतियां” विषय पर G20 कार्यशाला का आयोजन किया गया।
- वर्तमान समय में भारत 'राष्ट्रीय एक स्वास्थ्य (One Health) मिशन' आरम्भ करने की प्रक्रिया में है, जो स्वास्थ्य संकटों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने की भारत की क्षमता को संरेखित करता है।
एक स्वास्थ्य (वन हेल्थ) दृष्टिकोण:
- वन हेल्थ दृष्टिकोण एक व्यापक रणनीति है जो मनुष्यों, जानवरों, पौधों और उनके साझा पर्यावरण के स्वास्थ्य के मध्य जटिल संबंधों को स्वीकार करती है।
- इस अवधारणा का पता सर्वप्रथम हिप्पोक्रेट्स (460-367 ईसा पूर्व) के प्राचीन लेख में लगाया जा सकता है। इस लेख में सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण के मध्य साझा संबंधों का उल्लेख किया गया है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण का महत्व:
- ज़ूनोसेस के साथ सम्बन्ध: मानव आबादी में लगातार वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण ने जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया है। ये पर्यावरणीय परिवर्तन ज़ूनोटिक रोगों से निकटता से जुड़े हुए हैं, जो जानवरों और मनुष्यों के बीच प्रसारित होने वाले संक्रमण हैं। आज लगभग 60% बीमारियां जो मनुष्यों को प्रभावित कर सकती हैं, वे ज़ूनोटिक हैं, जिनमें बर्ड फ्लू, इबोला, रेबीज और जापानी एन्सेफलाइटिस जैसे उदाहरण शामिल हैं।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध: मानवता को रोगाणुरोधी प्रतिरोध, खाद्य सुरक्षा और वेक्टर-जनित रोगों के नियंत्रण से संबंधित महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन अंतर संयोजी मुद्दों के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो वन हेल्थ के माध्यम से उपलब्ध है।
- पर्यावरणीय व्यवधान: पर्यावरणीय स्थितियों और वन्य आवासों में व्यवधान जानवरों की बीमारियों के संभावित रूप से मनुष्यों तक फैलने के कारण बना सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय यात्रा एवं व्यापार: अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार के माध्यम से लोगों, जानवरों और पशु उत्पादों की वैश्विक आवाजाही बढ़ गई है। इस बढे हुए संपर्क सूत्र के कारण बीमारियों का प्रसार सीमाओं के पार और यहां तक कि वैश्विक स्तर पर भी तेजी से हो सकता है।
- वन्य जीवन में वायरस: वैज्ञानिकों ने वन्य पर्यावासों में उपस्थित 1.7 मिलियन से अधिक वायरस की पहचान की है, जिनमें से अधिकांश मनुष्यों को संक्रमित कर सकते हैं। अतः वन हेल्थ अवधारणा भारत सहित वैश्विक स्तर पर भी महामारी के जन्म और प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी प्रयास हो सकता है।
- संसाधन आवश्यकताओं को न्यूनतम करना: वन हेल्थ दृष्टिकोण स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, मत्स्य पालन, पशुपालन, डेयरी, पर्यावरण और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालयों सहित विभिन्न सरकारी इकाइयों में समन्वय को बढ़ावा देकर संसाधन बोझ को कम करता है। परिणामतः शोधकर्ता प्रयोगशालाओं और निष्कर्षों को आपस में साझा कर लचीली, सतत, दीर्घकालिक और पूर्वानुमानित नीतियां बना सकते हैं।
- आर्थिक लाभ: वन स्वास्थ्य रणनीति का उपयोग करके किसी महामारी के प्रबंधन की लागत को कम करना इस दृष्टिकोण के आर्थिक महत्व को स्पष्टतः उजागर करते हैं। जी 20 संयुक्त वित्त और स्वास्थ्य कार्यबल के एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी के बाद की लागत लगभग 30 अरब डॉलर वार्षिक हो सकती है। इसके विपरीत, विश्व बैंक के अनुमानों ने इसकी लागत प्रति वर्ष $10.3 बिलियन से $11.5 बिलियन के बीच आंकलित की है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की चुनौतियाँ:
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आसन्न चुनौती उन सभी वैज्ञानिक निष्कर्षों में निहित है, जो विभिन्न जीवों के अस्तित्व को चिन्हित करते हैं। वन्यजीवों में 1.7 मिलियन से अधिक वायरस हैं और इस बात की बहुत अधिक संभावना है, कि इनमें से कई प्रकृति में ज़ूनोटिक हैं। समय पर पता लगाने और सक्रिय उपायों के बिना, भारत को भविष्य में और अधिक महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।
- 'एक स्वास्थ्य' दृष्टिकोण द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को साकार करने के लिए, सरकार के वर्तमान प्रयासों को विशिष्ट चुनौतियों पर नियंत्रण पाने की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में में पशु चिकित्सा में जनशक्ति की कमी, पशु-वध, मानव और स्वास्थ्य संस्थानों के बीच अपर्याप्त सूचना साझाकरण, खाद्य-सुरक्षा, खाद्य-वितरण आदि सुनिश्चित करने में बेहतर समन्वय की आवश्यकता शामिल है।
भारत की पहल:
भारत ने विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के उत्तरार्ध में कई महत्वपूर्ण वन हेल्थ पहल की हैं, जो इस दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करती हैं। जैसे:
- कोविड-19 पहल: कोविड-19 महामारी ने वन हेल्थ के महत्व को रेखांकित किया। कोविड-19 के मद्देनजर, वन हेल्थ मॉडल पर आधारित कई वैश्विक हस्तक्षेप शुरू किए गए हैं।
- ज़ूनोस पर स्थायी समिति: वर्ष 2006 में, भारत सरकार ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के तहत 'ज़ूनोसिस पर स्थायी समिति' की स्थापना की। इस समिति को जूनोटिक रोगों से संबंधित चुनौतियों पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मार्गदर्शन और सिफारिशें प्रदान करने का काम सौंपा गया था।
- एक स्वास्थ्य पर सहायता संघ: 2021 में, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने वन हेल्थ पर भारत का पहला सहायता संघ शुरू किया। इस संघ में विभिन्न मंत्रालयों के 27 संगठन शामिल हैं और इसका उद्देश्य पांच सीमा पार पशु रोगों और 10 चयनित जूनोटिक रोगों का आकलन करना है।
- एक स्वास्थ्य पायलट परियोजना: वर्ष 2022 में, पशुपालन और डेयरी विभाग ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन तथा भारतीय उद्योग परिसंघ के सहयोग से कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों में वन हेल्थ पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। इस परियोजना का लक्ष्य पशुधन, मनुष्यों, वन्य जीवों और पर्यावरण के स्वास्थ्य में सुधार के लिए क्षमता निर्माण के माध्यम से अंतर-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना है।
- राष्ट्रीय एक स्वास्थ्य (वन हेल्थ) मिशन: वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार; प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में 'राष्ट्रीय एक स्वास्थ्य मिशन' की तैयारी की प्रक्रिया में है। मिशन का लक्ष्य देश भर में सभी मौजूदा वन हेल्थ पहलों का समन्वय, समर्थन और एकीकरण करना है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से अपनाने के लिए, कई महत्वपूर्ण प्रयास किये जा सकते हैं जैसे:
- मजबूत संचार: विभिन्न मंत्रालयों और क्षेत्रों के बीच मौलिक संचार तंत्र स्थापित करना। साथ ही साथ इसका प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, कि प्रमुख हितधारकों को अच्छी तरह से जानकारी हो और वे वन हेल्थ परिवर्तन के दौरान सक्रिय रहें। उन्हें नियमित बैठकें और प्रगति समीक्षा की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए।
- आपसी सहयोग: एक बार संचार चैनल स्थापित हो जाने के बाद, संलग्न सभी तंत्रों को सक्रिय रूप से अपने ज्ञान और विशेषज्ञता को साझा करना चाहिए। ज़ूनोज़ के प्रबंधन में प्रत्येक क्षेत्र की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित और स्पष्ट करना आवश्यक है। सहयोग में जोखिम मूल्यांकन, निगरानी, क्षमता निर्माण, अनुसंधान और सार्वजनिक आउटरीच जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
- समन्वय: इस चरण की गतिविधियाँ अक्सर नियमित और दीर्घकालिक होती हैं। राष्ट्रीय या उपराष्ट्रीय एजेंसियों को वन हेल्थ दृष्टिकोण पहल की अगुवाई करनी चाहिए। इन एजेंसियों के पास कई मंत्रालयों को प्रभावी ढंग से समन्वयित करने के लिए आवश्यक अधिकार और संसाधन होने चाहिए।
- एकीकरण: संबंधित क्षेत्रों को संसाधनों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने और उनके मौजूदा कार्यक्रमों को एकीकृत करने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है। वर्तमान में, भारत में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम तथा पशुपालन और डेयरी विभाग के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण योजना जैसे कार्यक्रम स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं।
निष्कर्ष
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण में स्पष्ट संचार स्थापित करना, सहयोग को बढ़ावा देना, उपयुक्त एजेंसियों के माध्यम से केंद्रीय प्रयासों को समन्वित करना अनिवार्य है। इस संदर्भ में स्वास्थ्य चुनौतियों के लिए समग्र एवं प्रभावी प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए सभी क्षेत्रों में मौजूदा कार्यक्रमों को एकीकृत करना चाहिए।
- वन हेल्थ दृष्टिकोण के लाभों का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए, भारत को अस्थायी सहयोग से आगे बढ़ना चाहिए और एक व्यापक, विज्ञान-संचालित ढांचा स्थापित करना चाहिए। इस ढांचे को अन्य अपशिष्ट पदार्थों सहित जल एवं अन्य विविध महंगे और नैतिक रूप से संवेदनशील नमूनों के आधार पर संबंधित चुनौतियों का समाधान ढूंढना चाहिए।
- इस एकीकृत प्रणाली के माध्यम से, विभिन्न क्षेत्रों के शोधकर्ताओं को प्रयोगशालाओं और आवश्यक संसाधनों तक निर्बाध पहुंच मिलनी चाहिए तभी यह दृष्टिकोण वन हेल्थ दृष्टिकोण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों से निपटने में अपना अहम योगदान दे सकेगा।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
- प्रश्न 1. वन हेल्थ दृष्टिकोण जूनोटिक रोगों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान कैसे करता है, और विशेष रूप से भारत के संदर्भ में इसके बढ़ते महत्व के प्रमुख कारण क्या हैं? चर्चा करें (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2. क्या आप कोविड-19 महामारी के जवाब में भारत द्वारा की गई विशिष्ट वन हेल्थ पहलों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं और ये पहल भविष्य के स्वास्थ्य संकटों के लिए देश की तैयारियों में कैसे योगदान करती हैं? (15 अंक,250 शब्द)
स्रोत - पीआईबी, आकाशवाणी, द हिंदू