तारीख (Date): 24-07-2023
प्रासंगिकता - जीएस पेपर 2 - अंतर्राष्ट्रीय संबंध
की-वर्ड: रुपया-रूबल व्यापार समझौता, नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन, वैकल्पिक भुगतान तंत्र
सन्दर्भ :
पिछले वर्ष फरवरी में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के मद्देनजर, भारतीय तेल शोधन शालाएं सक्रिय रूप से रियायती रूसी तेल की मांग और खरीद कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, रूस ने अब भारत के कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता के रूप में शीर्ष स्थान प्राप्त कर लिया है, जो भारत के कुल कच्चे तेल आयात का लगभग 40% है। भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल के आयात में जून तक, अर्थार्त लगातार दस महीनों तक महीने-दर-महीने वृद्धि देखी गई है।
रूस के साथ भारत के तेल व्यापार का परिवर्तन
- वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCI&S) की रिपोर्ट के अनुसार, रूस के साथ भारत के तेल व्यापार में एक उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। अप्रैल 2022 के बाद से, रूस से भारत का तेल आयात दस गुना से अधिक बढ़ गया है।
- यह वृद्धि दिसंबर 2022 से विशेष रूप से बनी हुई है है, जो कि समुद्र से आने वाले रूसी कच्चे तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत सीमा लागू करने के जी7 के फैसले के साथ मेल खाती है। इस अवधि के दौरान रूस से भारत द्वारा तेल आयात को बढ़ावा देने में इस सीमा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
रूसी तेल के भारत द्वारा आयात में वृद्धि के कारक
रूसी तेल पर पश्चिमी प्रतिबंध
- यूरोपीय संघ ने रूसी कोयले का आयात बंद कर दिया और परिष्कृत तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- अमेरिका और ब्रिटेन ने सभी रूसी तेल और गैस आयात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- जर्मनी ने रूस से नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन के उद्घाटन को रोक दिया।
- दिसंबर 2022 में, EU और G7 ने रूसी कच्चे तेल की अधिकतम कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल निर्धारित की।
रूस द्वारा दी जा रही भारी छूट
- पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद से रूस तेल निर्यात के लिए भारत, चीन, तुर्की और बुल्गारिया जैसे देशों पर बहुत अधिक निर्भर था।
- रूस ने इच्छुक देशों को कच्चे तेल पर भारी छूट की पेशकश की। जिसका भारत ने लाभ प्राप्त किया किया ।
वास्तविक छूट: रूस और अन्य आपूर्तिकर्ता
- भारतीय तेल शोधन शालाओं ने किफायती रूसी तेल का लाभ उठाया है, परन्तु तेल कार्गो के मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता की कमी के कारण रूस द्वारा दी जाने वाली सटीक छूट का खुलासा नहीं किया गया ।
- भारतीय तेल शोधन शालायें 'डिलीवर' आधार पर तेल खरीदते हैं ,जिसकी कीमत में माल ढुलाई, बीमा और तेल की लागत शामिल होती है।
- छूट का आकलन करने के लिए, रूसी कच्चे तेल की औसत पहुंच कीमत और अन्य आपूर्तिकर्ताओं से आयातित तेल की औसत कीमत के बीच तुलना की जाती है।
- पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल के लिए माल ढुलाई और बीमा लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से तेल की कीमत पर अधिक छूट और उतरने की कीमत (माल ढुलाई और बीमा लागत सहित) पर छूट कम हुई है।
हाल के महीनों में भारत के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ताओं के बाजार भागीदारी में बदलाव
अन्य आपूर्तिकर्ताओं की कीमत पर रूस का लाभ
- अप्रैल 2023 तक अर्थार्त विगत 14 महीनों के दौरान, पिछले वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष 2021-22) की तुलना में भारत के कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता बाजार शेयरों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। विशेष रूप से, रूस ने बाजार हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि की है , जो वित्त वर्ष 2021-22 के मात्र 2% से बढ़कर हाल के 14 महीने की अवधि में प्रभावशाली रूप से 24.2% हो गया है ।
- दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान कई अन्य प्रमुख कच्चे तेल आपूर्तिकर्ताओं के बाजार शेयरों में गिरावट देखी गई। विशेष रूप से इराक, नाइजीरिया और अमेरिका की बाजार हिस्सेदारी में उल्लेखनीय कमी आई है , जो दर्शाता है कि रूस ने इन आपूर्तिकर्ताओं की कीमत पर बाजार हिस्सेदारी में वृद्धि की है।
भारत के तेल आयात में ओपेक की हिस्सेदारी में गिरावट
- पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक), जो पहले भारत के तेल आयात में एक प्रमुख स्थान रखता था, की संचयी बाजार हिस्सेदारी में भारी गिरावट आई है । जब से भारत में रूसी तेल का आयात बढ़ाया है, तब से ओपेक की बाजार हिस्सेदारी मई 2022 में 75.3% से गिरकर मई 2023 में 40.3% हो गई।
- ज्ञातव्य है कि, इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, नाइजीरिया और अंगोला ओपेक कार्टेल के सदस्य हैं।
- अप्रैल 2022 से मई 2023 की अवधि के दौरान, भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 6% से बढ़कर 40.4% हो गई, जिससे भारत में ओपेक की समग्र बाजार हिस्सेदारी में गिरावट आई है।
रियायती रूसी तेल से भारत को क्या लाभ हुआ है?
भारतीय तेल शोधन शालाओं द्वारा महत्वपूर्ण बचत
- मई 2023 तक अर्थार्त विगत 14 महीनों के दौरान, भारतीय तेल शोधन शालाओं ने रियायती रूसी तेल की अपनी खरीद बढ़ाकर विदेशी मुद्रा में पर्याप्त बचत की। यह कुल बचत कम से कम $7.17 बिलियन थी।
- अप्रैल 2022 से मई 2023 की अवधि के दौरान भारत का कुल तेल आयात 186.45 बिलियन डॉलर का था। हालाँकि, यदि भारतीय तेल शोधन शालाओं ने अन्य सभी आपूर्तिकर्ताओं से कच्चे तेल की औसत कीमत का भुगतान किया होता, तो कुल आयात बिल 193.62 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाता।
- रियायती रूसी तेल खरीदने में उल्लेखनीय वृद्धि ने भारत के लिए समग्र लागत बचत में योगदान दिया और देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर उल्लेखनीय प्रभाव डाला।
परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत का उदय
- भारत ने स्वयं को पेट्रोल और डीजल के एक महत्वपूर्ण निर्यातक के रूप में स्थापित किया है, जिसके चलते भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल को यूरोप सहित विभिन्न गंतव्यों के लिए परिष्कृत किया गया है।
- उल्लेखनीय रूप से, यूरोपीय संघ को, भारत के पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात में अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान साल दर साल 20.4 प्रतिशत की पर्याप्त वृद्धि हुई है, जो 11.6 मिलियन टन तक पहुंच गयी है। निर्यात में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप भारतीय तेल शोधन शालाओं को "मजबूत मार्जिन" से लाभ हुआ है, जो उनके लिए अनुकूल आर्थिक स्थिति का संकेत देता है।
रूसी तेल आयात में भारत के लिए उभरती चुनौतीयां
अस्थिर छूट स्तर
- रूसी तेल पर दी जाने वाली छूट में हाल के दिनों में उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ है। शुरुआत में, मई 2022 में, छूट का स्तर बढ़ा लेकिन जून में काफी कम हो गया। इसके बाद, छूट फिर से बढ़ी और अगले चार महीनों तक स्थिर रही।
- हालांकि, उद्योग के सूत्रों की रिपोर्ट है कि पिछले कुछ हफ्तों में छूट अब काफी कम हो गई है, रूस का प्रमुख कच्चा तेल जी 7 मूल्य सीमा को भी पार कर गया है। रूसी कच्चे तेल पर छूट 25-30 डॉलर प्रति बैरल के पिछले शिखर स्तर से काफी कम होकर केवल 4 डॉलर प्रति बैरल रह गई है।
- यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो छूट के अवसर कम होने के कारण भारतीय तेल शोधन शालाओं को आने वाले महीनों में रूसी तेल कम आकर्षक लग सकता है। यह उन्हें बेहतर मूल्य निर्धारण और आर्थिक लाभ के लिए अन्य तेल स्रोतों का पता लगाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
भारतीय तेल शोधन शालाओं के लिए भुगतान संकट
- पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण भारतीय तेल शोधन शालाओं लिए भुगतान निपटन चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है ।
- उदाहरण के रूप में इंडियन ऑयल कॉर्प को देख सकते हैं , जिसे पारंपरिक मुद्राओं में भुगतान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसलिए उसने वैकल्पिक समाधान के रूप में, युआन का उपयोग किया , क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने शिपिंग एजेंसी पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भुगतान संसाधित करने से इनकार कर दिया था।
क्या आप जानते हैं?
रूस के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर भारत की चिंताएँ क्या हैं?
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में, रूस से भारत का आयात 17.23 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि मॉस्को को भारत का निर्यात अपेक्षाकृत कम था, जिसका मूल्य केवल 992.73 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच 16.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नकारात्मक व्यापार संतुलन रहा। हालाँकि, व्यापार असंतुलन के बावजूद, भारत के समग्र व्यापार में रूस की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो 2020-21 में 3.54% तक पहुँच गई है, जो पिछले वर्ष में 1.27% थी।
- दिलचस्प बात यह है कि पिछले 25 वर्षों में, भारत के कुल व्यापार में रूस की हिस्सेदारी आम तौर पर 2% से नीचे रही है, जबकि 1997-98 में यह 2.1% तक पहुंच गई थी। जबकि , वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में भारत को रूस के साथ 14.7 बिलियन डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा।
- इस आर्थिक गतिशीलता को देखते हुए, भारत के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय लेन-देन और निपटान में रुपये को व्यापक रूप से बढ़ावा देना है। इस पहल से व्यापार असंतुलन को कम करने और भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंधों को और प्रगाढ़ करने में मदद मिलेगी ।
रुपया-रूबल व्यापार समझौता क्या है?
- रुपया-रूबल व्यापार व्यवस्था एक वैकल्पिक भुगतान तंत्र के रूप में कार्य करती है, जो डॉलर या यूरो के बजाय भारतीय रुपये में निपटान की अनुमति देती है।इस अवधारणा की शुरुआत 1953 में भारत-सोवियत व्यापार समझौते के हिस्से के रूप में हुई थी । इस समझौते के अनुसार, भारत और तत्कालीन सोवियत गणराज्य यूएसएसआर के बीच सभी लेनदेन में भारतीय रुपये का उपयोग किया जा सकता है ।
- इस व्यवस्था को सुविधाजनक बनाने के लिए, यूएसएसआर के स्टेट बैंक को भारत में अधिकृत वाणिज्यिक बैंकों के साथ एक या अधिक खाते रखने के लिए नामित किया गया था, जिससे घरेलु मुद्रा में लेनदेन संभव हो सके। इसके अतिरिक्त, यदि आवश्यक समझा जाए, तो यूएसएसआर का स्टेट बैंक सुचारू लेनदेन की सुविधा के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ एक और खाता रख सकता है। इस व्यवस्था ने भारत और पूर्व सोवियत गणराज्य के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने में मदद की और दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को आकार देने में आधारभूत भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष
- भारत ने रूस को अलग-थलग करने के पश्चिमी दबाव के आगे न झुकने का विकल्प चुना है और अपने पुराने सहयोगी के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करने का रास्ता अपनाया है। इस रणनीतिक निर्णय से कई फायदे मिले हैं, जिसमें मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने की क्षमता के साथ-साथ लागत बचत भी शामिल है।
- बहरहाल, रूसी छूट में हालिया कटौती से भारतीय तेल शोधनशालाओं की गतिशीलता में बदलाव आया है। कम होती छूट के जवाब में, उन्हें वैकल्पिक स्रोतों से अपनी तेल आपूर्ति बढ़ाने की आवश्यकता का सामना करना पड़ सकता है। यह स्थिति भारत की तेल आयात रणनीतियों के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित कर सकती है और संभावित रूप से उभरती बाजार स्थितियों के सामने प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए उनके ऊर्जा स्रोतों में विविधता ला सकती है।
मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न :
- प्रश्न 1: रूस के साथ भारत के तेल व्यापार में हाल के परिवर्तन को स्पष्ट करें, रूस अब कच्चे तेल का प्राथमिकआपूर्तिकर्ता है, जो भारत के आयात का 40% हिस्सा है। इस बदलाव के पीछे के कारकों और भारत की ऊर्जा सुरक्षा और अन्य तेल आपूर्तिकर्ताओं के साथ आर्थिक संबंधों पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये । (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2: तेल आयात में हालिया वृद्धि के आलोक रूस के साथ भारत के व्यापार संबंधों में रुपया-रूबल व्यापार समझौते के महत्व का विश्लेषण करें। इस वैकल्पिक भुगतान तंत्र द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों और अवसरों का आकलन करें और दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को मजबूत करने के उपाय सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)
Source – Indian Express