तारीख (Date): 23-09-2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - आंतरिक सुरक्षा - सीमा सुरक्षा प्रबंधन
की-वर्ड: सलामी स्लाइसिंग रणनीति, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
सन्दर्भ:
- पिछले एक दशक से, भारत को अपनी उत्तरी और उत्तर-पूर्वी सीमाओं पर चीनी आक्रामकता से संबंधित बढ़ती चुनौतियों का अत्यधिक सामना करना पड़ रहा है।
- इस लेख में चर्चा की गई है, कि कैसे चीन ने शांति की एक लंबी अवधि के दौरान अपनी सीमा के बुनियादी ढांचे में सुधार किया, जिससे भारत के लिए सीमा सुरक्षा परिदृश्य तनावपूर्ण हो गया।
- वर्तमान समय में चल रही बातचीत के बावजूद, इस सम्बन्ध में कोई तत्काल समाधान नजर नहीं आ रहा है, जिससे भारत के लिए चीन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखते हुए सीमा पर शांति बनाए रख पाना संभव हो।
सीमा सुरक्षा की बदलती गतिशीलता:
- चीनी आक्रामकता का बढ़ना: चीन के निरंतर गैर-मानक व्यवहार और "सलामी स्लाइसिंग" रणनीति के कारण भारतीय सीमा सुरक्षा सम्बन्धी नई चुनौतियां उत्पन्न होती जा रही हैं। चीन द्वारा उत्तराखंड, पूर्वी लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं के पास उत्तर पूर्व क्षेत्रों में सैन्य नियंत्रित नागरिक बस्तियों के सीमावर्ती गांवों का विकास और देपसांग के मैदानों में व्यापक बफर ज़ोन की चीन की माँगें भारत के गश्ती अधिकारों को नकारती हैं। साथ ही इस क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित करने के चीन के बढ़ते प्रयासों को भी दर्शाती हैं।
सलामी स्लाइसिंग रणनीति क्या है?
- सैन्य भाषा में, सलामी स्लाइसिंग शब्द को एक ऐसी रणनीति के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसमें विरोध पर नियंत्रण पाने और नए क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिए क्षेत्रों एवं गठबंधनों में फूट डालो और राज करो की प्रक्रिया शामिल है।
- सलामी स्लाइसिंग रणनीति को 1940 के दशक में मैटियास राकोसी द्वारा बनाई गई थी। चीन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इस रणनीति को अपना रहा है, जिसका क्षेत्रीय और वैवाहिक दोनों ही दृष्टि से विस्तार किया जा रहा है, जिसमें तिब्बत का अधिग्रहण, अक्साई चिन पर कब्ज़ा और पारासेल द्वीपों पर नियंत्रण करने जैसी कार्रवाइयां शामिल हैं।
- भारत की प्रतिक्रिया: इस समय भारत का रुख यथास्थिति को बहाल करने और बनाए रखने का है। गश्त का अधिकार छीन जाना और सीमा सुरक्षा की बढ़ती जटिलताओं से पता चलता है, कि यद्यपि बातचीत अभी जारी रहेगी। तथापि इस चुनौती को एक मजबूत सैन्य प्रयास द्वारा समाप्त करने की कूटनीतिक को संतुलित करना आवश्यक है।
रणनीतिक परिणाम:
- शांति और तैयारी: भारत-चीन सीमा पर भारत की लंबे समय तक शांति ने दोनों देशों को अपनी स्थिति मजबूत करने की अनुमति दी है। चीन ने अपने संचार नेटवर्क, स्थायी बुनियादी ढांचे और सैन्य क्षमताओं का विस्तार किया। इस कारण हाल ही में भारतीय सैन्य बलों की व्यापक तैनाती चीन की अस्थिर करने वाली गतिविधियों के प्रत्युत्तर में एक मजबूत कार्रवाई का प्रतीक है।
- तार्किक चुनौतियां: हालांकि, अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सतर्कता के इस स्तर को बनाए रखना और सेना की तैनाती साजो-सामान और अनुकूलन संबंधी चुनौतियां प्रस्तुत करती है। इसमें सैनिकों, टैंकों, तोपखाने, लड़ाकू उपकरणों और वाहनों को एयरलिफ्ट करना शामिल है, जिसके लिए सावधानीपूर्वक योजना निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता होती है।
एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
- कूटनीति और सैन्य प्रतिक्रिया: यद्यपि राजनयिक और सैन्य वार्ता आवश्यक हैं, लेकिन वे सीमा मुद्दे को व्यापक रूप से हल करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती हैं। एक दृढ़ सैन्य प्रतिक्रिया और मजबूत कूटनीति चीन से निपटने में ऐतिहासिक रूप से प्रभावी रही है। यह सामान्यतः नाथू ला और सुमदोरोंग चू में अतीत के टकराव से लेकर हाल के डोकलाम और गलवान की घटनाओं में देखा जा सकता है।
चीन का रणनीतिक बदलाव:
वैश्विक छवि और महत्वाकांक्षाएँ:
- चीन की वैश्विक छवि और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का दर्जा बढ़ाने में उसकी अनिच्छा के कारण बातचीत लम्बे समय तक चल पाना मुश्किल है। जी 20 शिखर सम्मेलन में चीन की उल्लेखनीय अनुपस्थिति, संभवतः नई दिल्ली के नेतृत्व वाली आम सहमति को कमजोर करने के इरादे से, स्पष्ट रूप से विफल रही है। जबकि शिखर सम्मेलन एक गंभीर क्षेत्रीय और वैश्विक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को रेखांकित करने के लिए आयोजित किया जाता है।
सीमा के पास सैन्य क्षमता को मजबूत करना:
- पूर्वी लद्दाख में डेपसांग के पास चीन द्वारा भूमिगत सैन्य बुनियादी ढांचे और अन्य भूमिगत सुविधाओं की नवीनतम भू-खुफिया चित्रण, संवेदनशील क्षेत्र में हवाई खतरे की धारणा को रेखांकित करती है। साथ ही यह उनकी भविष्य की सैन्य धारणाओं को भी उजागर करती है। चीन हर संभव प्रयास कर रहा है, कि भारत के पक्ष में किसी भी असममित सैन्य लाभ को कम किया जाए या निष्प्रभावी किया जाए।
- ताइवान और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में सैन्य विकास की प्राथमिकता सहित पीएलए नौसेना की विमानन संपत्तियों का पीएलएएएफ को हालिया हस्तांतरण; चीन की क्षेत्रीय रणनीति में वायु सेना की शक्ति के महत्व पर जोर देता है। तिब्बत में बढ़ती सैन्य उपस्थिति चीन की दीर्घकालिक महत्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित करते हैं।
वृद्धि परिदृश्य:
- चीन के साथ भविष्य में किसी भी संघर्ष का परिणाम स्थानीय झड़प से आगे बढ़ सकता है, जिससे भारत की सैन्य निरोधात्मक गतिविधि और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति प्रभावित हो सकती है। यह एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
एक समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति:
शक्ति के सभी तत्वों की भागीदारी:
- इन चुनौतियों से निपटने के लिए, भारत को अपने महाद्वीपीय खतरे के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। पारंपरिक निरोध को मजबूत करने के लिए इस रणनीति में थल सेना, वायु सेना, नौसेना और राष्ट्रीय शक्ति के अन्य तत्व भी शामिल होने चाहिए।
पारंपरिक निवारण प्रक्रिया पर ध्यान देना:
- चीन के साथ 1962 के युद्ध में वायु शक्ति की ऐतिहासिक चूक के कारण हाल ही में भारत की महाद्वीपीय खतरे की रणनीति में वायु शक्ति को शामिल करना आवश्यक हो गया है। यह संयुक्त दृष्टिकोण बहु-डोमेन संयुक्त अभ्यास की आवश्यकता पर बल देते हुए भारत की सैन्य शक्ति के सभी तत्वों का लाभ उठाता है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इसे और मजबूत करना होगा। चीन की बढ़ती क्षमताओं के कारण भारत को इन्वेंट्री अंतराल को भरने, प्रौद्योगिकी में सुधार और सैन्य क्षमता अंतर को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- ब्रिक्स में भारत का वैश्विक नेतृत्व उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है। अपनी स्थिति सुरक्षित करने के लिए उसे स्पष्ट और व्यापक सुरक्षा रणनीति अपनानी चाहिए। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, यहां तक कि तिब्बत की संप्रभुता, ताइवान के संबंध में इसकी एक-चीन नीति और एससीएस पर प्रभुत्व सहित क्षेत्रीय मुद्दों का लाभ उठाना अनिवार्य है। क्योंकि अधिकांश राष्ट्र चीन के खिलाफ नेतृत्व के लिए भारत के पक्षधर हैं।
प्राथमिकताओं को संतुलित करना:
आर्थिक विकास और सुरक्षा को संतुलित करना:
- आर्थिक वृद्धि और विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सराहनीय है, लेकिन यह सैन्य ताकत की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। अकेले आर्थिक विकास सुरक्षा खतरों को कम नहीं कर सकता।
बजटीय पुनर्आवंटन:
- भारत की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने में देरी करने से यह भविष्य में और अधिक चुनौतीपूर्ण और महंगा हो जाएगा। चीन का बजट आधिकारिक तौर पर भारत से तीन गुना अधिक है, जिसके गंभीर निहितार्थ हैं। प्रौद्योगिकी अंतर और इन्वेंट्री असमानताएं भारत के पारंपरिक प्रतिरोध के लिए खतरा हैं क्योंकि चीन अपने सैन्य उद्देश्यों की ओर आगे बढ़ रहा है। चीन के सैन्य आधुनिकीकरण के निरंतर प्रयास और इसके बजट लाभ के कारण भारत के रक्षा बजट का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक हो गया है।
समुद्री और महाद्वीपीय सुरक्षा:
- भारत की समुद्री सुरक्षा और महाद्वीपीय सुरक्षा अलग-अलग चुनौतियां उत्पन्न करती हैं। हालाँकि, समुद्री सुरक्षा क्षेत्रीय सहयोग की अनुमति देती है, फिर भी महाद्वीपीय सुरक्षा पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
पारंपरिक निरोध को बढ़ाना:
- महाद्वीपीय खतरे को रोकने के लिए, भारत को संयुक्त बहु-डोमेन दृष्टिकोण के माध्यम से अपनी पारंपरिक निरोध को बढ़ाना होगा, जिसमें अपनी वायु सैन्य शक्ति क्षमताओं का लाभ उठाना भी शामिल है।
निष्कर्ष:
भारत की विकसित होती सीमा सुरक्षा रणनीति को उसकी उत्तरी और उत्तरी पूर्वी सीमाओं की बदलती गतिशीलता के अनुकूल होना चाहिए। एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जो पारंपरिक निरोध को प्राथमिकता देती है, सेना को मजबूत करती है और आर्थिक विकास को संतुलित करती है, आवश्यक है। जैसे-जैसे भारत वैश्विक मंच पर उभर रहा है, एक मजबूत रक्षा स्थिति बनाए रखना अनिवार्य है, विशेष रूप से बदलते भू-राजनीतिक गतिशीलता और विवादित सीमाओं वाले क्षेत्र में इसकी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- चीन की "सलामी स्लाइसिंग" रणनीति भारत की सीमा सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है और सीमा पर शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए यह कौन सी प्रमुख चुनौतियां पेश करती है? (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए तिब्बत में चीन की बढ़ती सैन्य क्षमताओं और बुनियादी ढांचे के विकास के रणनीतिक निहितार्थ क्या हैं और इन चुनौतियों के जवाब में भारत की रक्षा रणनीति कैसे विकसित होनी चाहिए? (15 अंक,250 शब्द)
स्रोत- द हिंदू