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Daily-current-affairs / 11 Jul 2023

भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन और महिलाओं के जीवन पर इसका प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 12-07-2023

प्रासंगिकता - जीएस पेपर 1 - समाज - महिलाएं।

की-वर्ड - जीवन प्रत्याशा, लिंग-चयनात्मक गर्भपात, जनसांख्यिकीय बदलाव।

सन्दर्भ

भारत की जनसांख्यिकीय यात्रा ने इसके नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। इन वर्षों में, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य, घटती भुखमरी और चिकित्सा प्रगति के कारण भारत की जनसंख्या स्वतंत्रता के समय 340 मिलियन से बढ़कर 1.4 बिलियन हो गई है। विशेष रूप से, पुरुष जीवन प्रत्याशा 1941 में 56 वर्ष से बढ़कर आज 69 वर्ष हो गई है, जिससे परिवार की गतिशीलता और महिलाओं के अनुभवों में पर्याप्त बदलाव आया है।

भारतीय महिलाओं के लिए परिवर्तन:

भारत में छोटे होते परिवारों ने पुत्रों की लालसा में वृद्धि की है जिससे महिलाओं के सन्दर्भ में चुनौती और अधिक स्पष्ट हो गई। छोटे परिवारों में बेटा न होने की संभावना 6% से बढ़कर 25% हो गई। गहरी जड़ें जमा चुके सामाजिक मानदंडों,पितृसत्तात्मक मनोवृति, पैतृक रिश्तेदारी पैटर्न और वित्तीय असुरक्षा ने संयुक्त रूप से , बेटों के लिए प्राथमिकता को बल प्रदान किया है। इस प्राथमिकता के कारण लिंग-चयनात्मक गर्भपात और बीमार बेटियों की उपेक्षा जैसी प्रथाओं को बढ़ावा मिला है, जिससे पांच साल से कम उम्र के प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या में गिरावट आई है।

महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारी योजनायें

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (2015):

  • उद्देश्य: पक्षपातपूर्ण लिंग चयन को रोकना , बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा और भागीदारी को बढ़ावा देना।

वन-स्टॉप सेंटर योजना (2015):

  • उद्देश्य: निजी और सार्वजनिक दोनों स्थानों पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं को सहायता और समर्थन प्रदान करना। प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर/एनसीआर) दाखिल करने की सुविधा प्रदान करना और मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता और परामर्श प्रदान करना।

महिला हेल्पलाइन योजना (2016):

  • उद्देश्य: हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए 24 घंटे टोल-फ्री दूरसंचार सेवा स्थापित करना और प्रभावित महिलाओं को उपलब्ध सहायता सेवाओं और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करें।

उज्ज्वला (2016):

  • उद्देश्य: व्यावसायिक यौन शोषण के लिए महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकना। पीड़ितों को बचाना और उन्हें आश्रय, भोजन, चिकित्सा उपचार, परामर्श, कानूनी सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण सहित तत्काल और दीर्घकालिक पुनर्वास सेवाएं प्रदान करना।

कामकाजी महिला छात्रावास (1972-73):

  • उद्देश्य: कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक आवास को बढ़ावा देना। कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए एक निश्चित आयु तक आवास उपलब्ध करवाना।

स्वाधार गृह (2018):

  • उद्देश्य: आश्रय, भोजन, कपड़े, चिकित्सा उपचार, देखभाल, कानूनी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करके संकटग्रस्त महिलाओं की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करना।

महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम को समर्थन (STEP) (1986-87):

  • उद्देश्य: 16 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम संचालित करना।

नारी शक्ति पुरस्कार (2016):

  • उद्देश्य: समाज में महिलाओं की स्थिति को पहचानना और मजबूत करना। महिलाओं की प्रगति और विकास के लिए काम करने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहित और सम्मानित करना ।

महिला शक्ति केंद्र (एमएसके) (2017):

  • उद्देश्य: ब्लॉक और जिला स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मार्गदर्शन, रोजगार के अवसर आदि तक पहुंच प्रदान करके महिलाओं के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना।

निर्भया (2012):

  • उद्देश्य: समय पर हस्तक्षेप, मामले की सख्त गोपनीयता बनाये रखना और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विभिन्न रूपों को संबोधित करके महिलाओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना।

महिला ई-हाट (2016):

  • उद्देश्य: महिलाओं के लिए ऑनलाइन उद्यमिता के अवसरों को सुविधाजनक बनाना। महिलाओं को ऑनलाइन बिक्री में अपना उद्यम स्थापित करने के लिए शिक्षा और सहायता प्रदान करना ।

महिला पुलिस स्वयंसेवक (2016):

  • उद्देश्य: महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए सार्वजनिक-पुलिस इंटरफ़ेस के रूप में कार्य करना। घरेलू हिंसा, बाल विवाह, दहेज उत्पीड़न और सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा जैसी घटनाओं की रिपोर्ट करना ।

प्रजनन दर में गिरावट ने मातृत्व और शिक्षा के मामले में भी महिलाओं के जीवन को प्रभावित किया है। बच्चों की संख्या में कमी के साथ, सक्रिय मातृत्व ने महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव को रेखांकित किया है , जिससे शिक्षा और रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं । यद्यपि, महिलाओं के लिए शैक्षिक अवसरों में वृद्धि के बावजूद, कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करना प्रभावशाली कारक बने हुए हैं। 1980 के दशक में जन्मे लोगों के लिए पहले जन्म की औसत आयु 22 वर्ष से कम है, जिससे महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी और कुशल नौकरियों तक पहुंच में बाधा आ रही है।

आयु बढ़ने के साथ जनसांख्यिकीय बदलाव भी महिलाओं के जीवन को प्रभावित करते हैं। बढ़ती जीवन प्रत्याशा के साथ, 1950 और 2022 के बीच 65 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिला आबादी का अनुपात 5% से बढ़कर 11% हो गया है। जो महिलाएं आम तौर पर बड़े पुरुषों से शादी करती हैं, उनके अपने पतियों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना होती है। नतीजतन, बुजुर्ग महिलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, लगभग 55%, विधवा हो जाता है, जिससे उनके बच्चों, मुख्य रूप से बेटों पर निर्भरता बढ़ जाती है। यह बेटे को प्राथमिकता देने और विधवा महिलाओं के लिए बचत और संपत्ति तक सीमित पहुंच के दुष्चक्र को कायम रखता है।

लैंगिक लाभांश का दोहन:

यद्यपि पितृसत्तात्मक मानदंडों को बदलने में समय लग सकता है, परन्तु महिलाओं की रोजगार और संपत्ति तक पहुंच बढ़ाना महत्वपूर्ण है। बेटों पर निर्भरता कम करके महिलाएं बचपन से लेकर बुढ़ापे तक चलने वाले लैंगिक भेदभाव के चक्र को तोड़ सकती हैं। हालाँकि, पूर्वी एशियाई देशों के विपरीत, जहाँ जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी हुई है, भारतीय महिलाओं के जीवन में जल्दी विवाह और बच्चे पैदा करना केंद्रीय मुद्दा बना हुआ है। इसलिए, महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में सुधार के प्रयासों के साथ-साथ सुरक्षित और किफायती बाल देखभाल तक पहुंच भीआवश्यक है ।

बाल देखभाल सेवाओं पहुंच का महत्व:

अध्ययनों से पता चला है कि महिलाओं की श्रम भागीदारी पर बाल देखभाल सुविधाओं का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में विश्व बैंक के मूल्यांकन से पता चला है कि जब आंगनबाड़ियों का विस्तार बाल देखभाल सेवाओं को शामिल करने के लिए किया गया तो माताओं की रोजगार दर में वृद्धि हुई। महिलाओं के लिए श्रम बाजार में सुरक्षित संबंध स्थापित करने और कार्य अनुभव प्राप्त करने के लिए बाल देखभाल सेवाओं तक पहुंच आवश्यक है। बच्चों की देखभाल की पहुंच बढ़ाने की रणनीतियों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरईजीएस) के तहत स्टाफिंग क्रेच को काम का एक स्वीकार्य रूप बनाना और शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पड़ोसी बाल देखभाल केंद्र स्थापित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों का उपयोग करना लाभकारी हो सकता है।

निष्कर्ष

भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन से महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये हैं। इस संक्रमण की क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने के लिए, पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देना, रोजगार और संपत्ति तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाना और सुरक्षित और किफायती बाल देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है। ऐसा करके, भारत लैंगिक उपेक्षा के दुष्चक्र को तोड़ सकता है और बहुप्रतीक्षित जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त कर सकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  • प्रश्न 1. भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के संदर्भ में, लिंग-पक्षपाती प्रथाओं से महिलाओं के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और समाज पर उनके प्रभावों की चर्चा कीजिये । इन चुनौतियों से निपटने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ भी सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2. महिलाओं को सशक्त बनाने और भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले मुद्दों के समाधान में सरकारी योजनाओं और पहलों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये । महिलाओं के अधिकारों, सुरक्षा, शिक्षा और आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने में इन योजनाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये । (15 अंक, 250 शब्द)

Source : The Hindu