तारीख (Date): 26-06-2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2: द्विपक्षीय संबंध
की-वर्ड: शक्ति संतुलन, भू-राजनीति, बहुध्रुवीय एशिया, क्वाड, गलवान संघर्ष
सन्दर्भ:
- भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के मध्य संपन्न हालिया समझौतों ने भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक व्यापक महत्वाकांक्षा को सूत्र रूप देने का प्रयास किया है। इन समझौतों में प्रौद्योगिकी सहयोग, जलवायु परिवर्तन, रक्षा सहयोग और बहुपक्षवाद जैसे प्रमुख आयाम शामिल हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत देते हैं।
- भारत और अमेरिका के बीच संपन्न यह समझौता स्थिर एशियाई शक्ति संतुलन प्रणाली के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है और एशियाई भू-राजनीति पर इसका व्यापक प्रभाव भी पड़ता है।
भू-राजनीति क्या है?
- भू-राजनीति, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भूगोल (मानवीय और भौतिक) के प्रभावों का अध्ययन है।
- भू-राजनीति भौगोलिक स्थान से जुड़ी राजनीतिक शक्ति पर ध्यान केंद्रित करती है, विशेष रूप से, राजनयिक इतिहास के साथ संबंध में जल और भूमि दोनों क्षेत्रों पर।
स्थिर एशियाई शक्ति संतुलन का निर्माण:
- भारत और अमेरिका के मध्य विकसित हो रही रक्षा साझेदारी अपरिहार्य रूप से चीनी प्रभुत्व की अवधारणा के विरुद्ध एशियाई भू-राजनीति में एक निर्णायक क्षण का प्रतीक है।
- चीन को नियंत्रित करने की कोशिश करने के बजाय, इस साझेदारी का लक्ष्य एक बहुध्रुवीय एशिया की स्थापना करना है, जो सभी क्षेत्रीय राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए पर्याप्त निवारक क्षमताओं से समृद्ध हो।
- जैसा कि भारत की सहनशील भागीदारी और सीमा पर बढ़ते तनाव के खिलाफ सुरक्षा स्थापित करने के अमेरिकी समर्थित प्रयासों से पता चलता है, भारत और अमेरिका दोनों ही राष्ट्र चीन के साथ उत्पादक संबंध बनाए रखने के महत्व को समझते हैं।
पिछली असहमतियों पर नियंत्रण:
- अतीत में, भारत और अमेरिका को एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य पर अलग-अलग विचारों के कारण उपयोगी संबंध स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता था।
- इस असहमति में सोवियत रूस, कम्युनिस्ट चीन, शीत युद्ध गठबंधन और 1971 में भारत के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान के लिए अमेरिका के समर्थन के आकलन जैसे कारक भी शामिल थे। जिस कारण आंतरिक अर्थव्यवस्था पर भारत के आर्थिक सम्बन्ध के माध्यम से राजनीतिक मतभेदों को समाप्त करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न की थी।
- इस सन्दर्भ में सहयोग के लिए अवसर अपेक्षाकृत कम थे, जैसे कि 1960 के दशक में भारत पर चीनी हमले और 2007 में क्वाड मंच का गठन इन सभी पहलों ने भारत और अमेरिका दोनों के लिए एशियाई रणनीतिक सहयोग की संभावना को सीमित कर दिया था।
- हालाँकि, वर्तमान रक्षा सहयोग दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के अभिसरण को दर्शाता है। भारत के रक्षा औद्योगिक आधार के आधुनिकीकरण के लिए अमेरिका के समर्थन, जिसमें भारत में F-414 फाइटर जेट इंजन का संयुक्त उत्पादन और उन्नत हथियारबंद ड्रोन की आपूर्ति शामिल है, का उद्देश्य भारत की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना और चीन के खिलाफ अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है।
- यह सहयोग हथियारों की बिक्री से आगे बढ़कर अमेरिकी रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारतीय कंपनियों की भागीदारी पर विशेष बल देता है, जिसमें उत्पाद और सेवाएँ दोनों क्षेत्रक शामिल हैं।
शी जिनपिंग की नीतियों की भूमिका:
- विडंबना यह है कि भारत और अमेरिका को पहले से कहीं अधिक करीब लाने का श्रेय शी जिनपिंग की मुखर नीतियों को जाता है। दोनों देशों को अलग रखने के चीन के लगातार प्रयासों के बावजूद, हाल के चीनी विरोध ने भारत-अमेरिका संबंधों को और भी घनिष्ठ बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
- असैन्य परमाणु पहल और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता जैसी पिछली पहलों पर चीन की आपत्तियाँ दिल्ली और वाशिंगटन के बीच रणनीतिक सहयोग के बारे में बीजिंग की चिंताओं को उजागर करती हैं।
रणनीतिक साझेदारी की ओर भारत का बदलाव:
- डोकलाम (2017) और गलवान (2020) में चीन के साथ भारत के दोहरे संकट ने इसके दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन को अत्यधिक आवश्यक बना दिया है।
- चीन के खिलाफ प्रतिरोध को मजबूत करने की तात्कालिक आवश्यकता ने भारत को अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी के अवसर तलाश करने के लिए प्रेरित किया है।
- इसी तरह, अमेरिका ने अपनी एशिया नीति को बीजिंग के साथ केवल द्विपक्षीय संबंधों से दूर कर दिया है, जबकि पारंपरिक गठबंधनों को पुनर्जीवित किया है और नए रणनीतिक सम्बन्ध बनाए हैं। यद्यपि रणनीतियों के इस पुनर्गठन ने भारत के साथ उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा सहयोग को सुविधाजनक बनाया है, जो एशियाई भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को रेखांकित करता है।
भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान रूपरेखा :
द्विपक्षीय व्यापार का विकास:
- आईसीटी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंधों के कारण भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है। वर्ष 2023 में 78 अरब डॉलर के निर्यात और 50 अरब डॉलर के आयात के साथ अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार देश है।
आर्थिक संबंधों में बढ़ावा:
- 10 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष निवेश के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निवेश भागीदार है। अमेरिका द्वारा रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण-1 (एसटीए-1) का दर्जा दिए जाने से भारत में उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्यात में आसानी हुई है। इसके साथ ही साथ दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों पर निर्यात नियंत्रण भी आसान कर दिया गया है।
आतंकवाद-निरोध पर सहयोग:
- अमेरिका भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों का प्रमुख समर्थक रहा है। इसके लिए अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को आर्थिक और रणनीतिक समर्थन कम हो गया है, विशेषतः ओसामा बिन लादेन की मृत्यु के बाद, इस संबंध में अमेरिका भारत की पहल के साथ और अधिक जुड़ गया है।
प्रवासी भारतीयों में वृद्धि:
- अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की लगातार वृद्धि ने ज्ञान-आधारित रोजगार और प्रेषण के माध्यम से दोनों देशों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण दिया है। समृद्ध एशियाई भारतीय प्रवासी पर्याप्त वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव रखते हैं।
सामरिक एवं रक्षा संबंध:
- विगत वर्षों में भारत और अमेरिका दोनों देशों ने महत्वपूर्ण रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA), लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), और कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) आदि शामिल हैं। ये समझौते खुफिया जानकारी साझा करने, रसद समर्थन, सुरक्षित संचार और प्रौद्योगिकी विनिमय की जैसी सुविधाएं प्रदान करते हैं।
प्रमुख चुनौतियां:
- सकारात्मक विकास के बावजूद, भारत-अमेरिका संबंधों में अभी भी कई संदर्भों में विविध प्रकार की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- उच्च टैरिफ और संरक्षणवादी नीतियों सहित व्यापार विवादों ने आर्थिक संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं, अमेरिका इस क्षेत्र में भारत की नीतियों की आलोचना कर रहा है।
- पाकिस्तान को अमेरिकी समर्थन भले ही कम हो गया है, लेकिन भारत के लिए यह एक मुद्दा बना हुआ है।
- रूस के साथ संबंधों में मतभेद, विशेषकर भारत की एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद ने रक्षा क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया है।
- इसके अलावा, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत के रणनीतिक हितों पर भी प्रभाव पड़ता है, विशेषकर तेल आयात के संबंध में।
आगामी रणनीति:
- भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए, दोनों देशों को व्यापार विवादों को सुलझाने, बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी चिंताओं को दूर करने और आतंकवाद-निरोध और रक्षा जैसे पारस्परिक हित के क्षेत्रों में अधिक सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- नियमित द्विपक्षीय संवाद और भारत-यूएस व्यापार नीति फोरम जैसे मंच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश मुद्दों को संबोधित करने में मदद कर सकते हैं। उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाना और डेटा गोपनीयता तथा निष्पक्ष कराधान पर सक्रिय नियमों को बढ़ावा देना भी साझेदारी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के बीच समझौते और सहयोग भारत-अमेरिका संबंधों में एक आदर्श बदलाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक स्थिर एशियाई शक्ति संतुलन प्रणाली के निर्माण की दिशा में उनके संयुक्त प्रयासों की भू-राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यह उभरती साझेदारी चीन के साथ उत्पादक संबंध बनाए रखते हुए एक बहुध्रुवीय एशिया स्थापित करना चाहती है। भारत और अमेरिका के बीच सहयोग, रक्षा बिक्री से परे, दीर्घकालिक सहयोग और पारस्परिक लाभ पर जोर देता है। कुल मिलाकर, उभरती भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी में भविष्य की एशियाई वास्तुकला को आकार देने, क्षेत्र में स्थिरता और संतुलन लाने की अपार संभावनाएं हैं।
मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- प्रश्न 1: एशियाई क्षेत्र में स्थिर शक्ति संतुलन प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के विकास और एशियाई भूराजनीति के लिए उनके निहितार्थों पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
- प्रश्न 2: भारत-अमेरिका संबंधों को आकार देने में चीन की हालिया नीतियों और कार्यों की भूमिका का विश्लेषण करें। चर्चा करें कि चीन की आपत्तियों और दृढ़ व्यवहार ने भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंधों में कैसे योगदान दिया है, और क्षेत्रीय भू-राजनीति पर इसके निहितार्थ क्या हैं ? (15 अंक,250 शब्द)
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस