तारीख (Date): 04-09-2023
प्रासंगिकता - जीएस पेपर 3 - आपदा प्रबंधन
की-वर्ड - एनडीआरएम, एनडीआरएफ, सीडीआरआई, जी20
संदर्भ
पिछले कुछ दशकों से मानवीय गतिविधियों ने जलवायु संबंधी जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
आपदा
आपदा को बड़े पैमाने पर, प्राकृतिक या मानव निर्मित, छोटी या लंबी अवधि में होने वाले व्यवधान के रूप में परिभाषित किया गया है। आपदाएँ मानवीय, भौतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों का कारण बनती हैं, जो प्रभावित समाज की वहनीय क्षमता से परे होती हैं। भारत लगभग 30 विभिन्न प्रकार की आपदाओं के प्रति संवेदनशील है ।
आपदाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- जल और जलवायु आपदा: बाढ़, ओलावृष्टि, बादल फटना, चक्रवात, लू , शीत लहर, सूखा, तूफान।
- भूवैज्ञानिक आपदा: भूस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी, बवंडर।
- जैविक आपदा: वायरल महामारी, कीट हमले, मवेशी महामारी, और टिड्डीयों का हमला।
- औद्योगिक आपदा: रासायनिक और औद्योगिक दुर्घटनाएँ, खदान में आग, तेल रिसाव।
- परमाणु आपदाएँ: परमाणु कोर का पिघलना, विकिरण विषाक्तता।
- मानव निर्मित आपदाएँ: शहर और जंगल की आग, तेल रिसाव, विशाल भवन संरचनाओं का ढहना।
वैश्विक विनाशकारी घटनाएँ
जलवायु परिवर्तन के तेजी से घटित होने के कारण वैश्विक आपदाएं तीव्र और अधिक विनाशकारी हो गई हैं। जैसे -
- हाल में लू ने तीन महाद्वीपों को अपनी चपेट में ले लिया था ।
- बड़े पैमाने पर जंगल की आग ने ग्रीस और कनाडा के बड़े क्षेत्रों को तबाह कर दिया है।
- पिछले महीने, यमुना नदी 45 साल पहले दर्ज किए गए उच्चतम बाढ़ स्तर को पार कर गई थी , जिससे दिल्ली के कई हिस्से जलमग्न हो गए थे ।
प्राकृतिक आपदाओं के मानव-प्रेरित कारक
मानवीय गतिविधियों ने प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जिसके निनमलिखित कारण रहे –
- मानवजनित जलवायु परिवर्तन: पिछले कुछ वर्षों मे आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता में वृद्धि हुई है, जिसमें मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारण है।
- सतत विकास योजना का अभाव : विकास योजना में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पहलू शामिल होने चाहिए। अक्सर, स्थिर विकास पर उचित विचार किए बिना बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जाती है। इसमें बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण, जल निकायों पर अतिक्रमण और अस्थिर शहरी नियोजन जैसे कार्य शामिल हैं।
- पारिस्थितिक और आवास में गिरावट: जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण और वाणिज्यिक गतिविधियों ने संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर अत्यधिक दबाव डाला है। वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव और सीमित भूमि संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा हैं। कृषि के लिए वनों का रूपांतरण , चारे और ईंधन की लकड़ी के लिए वनों का दोहन जैव विविधता को खतरे में डाल रहा है।
परिवर्तित आपदा परिदृश्य: भारत में आपदा परिदृश्य में विभिन्न परिवर्तन हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बदलाव हुए हैं, जिससे उनकी पारिस्थितिक वहन क्षमता पार हो गई है, परिणामस्वरूप नुकसान और क्षति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
भारत में आपदा प्रबंधन संरचना.
भारत ने एक व्यापक आपदा प्रबंधन ढांचा स्थापित किया है, जिसमें शामिल हैं:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए):- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, या एनडीएमए, आपदा प्रबंधन के लिए एक शीर्ष निकाय है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। यह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ): 2006 में स्थापित एनडीआरएफ, आपदा प्रतिक्रिया के लिए समर्पित दुनिया का सबसे बड़ा विशेष बल है। यह महानिदेशक के नेतृत्व में गृह मंत्रालय के अधीन संचालित होता है।
- राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी):- यह मंत्रिस्तरीय सदस्यों से मिलकर बना है जिसमें अध्यक्ष के रूप में केंद्रीय गृह सचिव और कृषि, ऊर्जा, रक्षा, पेयजल आपूर्ति, पर्यावरण और वन, परमाणु आदि मंत्रालयों/विभागों के सचिव शामिल हैं। एनईसी, आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति के अनुसार राष्ट्रीय योजना तैयार करता है।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए):- संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री एसडीएमए का प्रमुख होता है। इसके अलावा राज्य सरकार की एक कार्यकारी समिति (एसईसी) होती है जो आपदा प्रबंधन पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) की सहायता करती है।
- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए):- डीडीएमए का नेतृत्व स्थिति के आधार पर जिला कलेक्टर, उपायुक्त या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है, जिसमें स्थानीय प्राधिकरण के निर्वाचित प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होते हैं। डीडीएमए यह सुनिश्चित करता है कि एनडीएमए और एसडीएमए द्वारा बनाए गए दिशानिर्देशों का जिला स्तर पर राज्य सरकार के सभी विभागों और जिले में स्थानीय अधिकारियों द्वारा पालन किया जाए ।
- स्थानीय प्राधिकरण:- स्थानीय प्राधिकरणों में पंचायती राज संस्थान , नगर पालिकाएं, जिला परिषद जैसे प्राधिकरण शामिल है जो आपदा प्रबंधन मे नागरिक सेवाओं को नियंत्रित और प्रबंधित करते हैं।
भारत की आपदाओं से निपटने हेतु अंतर्राष्ट्रीय पहल
- आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (सीडीआरआई): आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन भारत द्वारा आरंभ की गई पहल है । CDRI राष्ट्रीय सरकारों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसयों , बहुपक्षीय विकास बैंक, निजी क्षेत्र तथा शैक्षणिक व अनुसंधान संस्थानों की एक वैश्विक साझेदारी है। इसका उद्देश्य जलवायु और आपदा जोखिमों हेतु अवसंरचना प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ाना है, जिससे सतत् विकास सुनिश्चित हो सके। इसे 2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
- G20 - आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य समूह: भारत ने G20 आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य समूह की स्थापना मे अग्रणी भूमिका निभाई है। G20 सदस्य देश सामूहिक रूप से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85% और दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस सन्दर्भ मे यह पहल महत्वपूर्ण है । आर्थिक विकल्पों और आपदाओं की संवेदनशीलता के बीच मजबूत संबंध होता है। अतः G20 निर्णय लेने के लिए एक नए दृष्टिकोण को आकार देने के लिए प्रयासरत है जिसमें आपदा जोखिम विचारों को शामिल किया जा सके ।
सुझाव और आगे का रास्ता
- आपदाओं की रोकथाम और शमन : परंपरागत रूप से, राष्ट्रों ने रोकथाम और शमन प्रयासों में सक्रिय रूप से निवेश करने के बजाय आपदा प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण संसाधन खर्च किए हैं।इस संदर्भ मे दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है राष्ट्रों को अग्रिम निवेश के महत्व पर जोर देने की आवश्यकता है, जिससे आपदाओं की रोकथाम और शमन को संभव बनाया जा सके ।
- दीर्घकालिक समाधान अपनाना: आपदाओं से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक, दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता है। इसमें संपूर्ण जोखिम मूल्यांकन शामिल होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि सामाजिक-आर्थिक कारक शहरी क्षेत्रों के भीतर विशिष्ट समुदायों को आपदाओं के प्रति कैसे अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
- वहन क्षमता विश्लेषण: विशिष्ट क्षेत्रों में वहन क्षमता का मूल्यांकन करना आवश्यक है। इसमें शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास प्रथाओं की सीमाओं का पता चलेगा । पारिस्थितिक संरक्षण के साथ बढ़ी हुई विकास की आवश्यकता को संतुलित करना महत्वपूर्ण है।
- पारदर्शिता तंत्र: पारदर्शिता तंत्र का मानकीकरण आवश्यक है। इसमें पारदर्शिता बोर्डों की जाए जो राहत वस्तुओं की लागत, गुणवत्ता और मात्रा पर स्पष्ट जानकारी प्रदान करते हों । सामाजिक ऑडिट और नागरिक समाज की रिपोर्ट सभी सरकारों या नागरिक समाज संगठनों द्वारा संचालित राहत कार्यों में अनिवार्य की जानी चाहिए ।
- ग्रामीण बुनियादी ढांचे और पारंपरिक ज्ञान में निवेश: आपदा-संभावित क्षेत्रों में ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास करना महत्वपूर्ण है, साथ ही इसको आजीविका और स्थानीय समुदायों की तत्काल जरूरतों के साथ सामंजस्य पूर्ण भी हिन चाहिए । भारत में जनजातीय समुदायों द्वारा अपनाई गई स्वदेशी और कम लागत वाली पारंपरिक प्रौद्योगिकियाँ सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
शहरी क्षेत्रों में आपदाओं की बढ़ती प्रवृत्ति का प्रबंधन :-
अनियोजित शहरीकरण को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए, जिसमें तैयार की गई कार्य
योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। दूसरी ओर, संबंधित राज्य सरकारें/केंद्रशासित
प्रदेशों को प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों की गैर-रुकावट पर विशेष ध्यान देने के
साथ शहरी जल निकासी प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।
महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा:- सड़कों, बाँधों, पुलों, सिंचाई नहरों, बिजली स्टेशनों,
रेलवे लाइनों, जल वितरण नेटवर्क, बंदरगाहों और नदी तटबंधों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी
ढाँचे की विश्वव्यापी सुरक्षा बेंचमार्क के आधार पर लगातार जाँच की जानी चाहिए ।
पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देना: सरकारों को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित घरेलू कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को सख्ती से लागू करना चाहिए। यह सक्रिय दृष्टिकोण पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और पर्यावरणीय गिरावट के कारण होने वाली आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न –
- मानवीय गतिविधियों ने, विशेष रूप से भारत जैसे तेजी से विकासशील देशों में, जलवायु-संबंधी आपदाओं के प्रति क्षेत्रों की बढ़ती संवेदनशीलता में कैसे योगदान दिया है? इस मुद्दे के समाधान के लिए संक्षिप्त नीतिगत उपाय सुझाएं। (10 अंक, 150 शब्द)
- भारत के लिए व्यापक आपदा प्रबंधन रणनीति के आवश्यक घटकों की रूपरेखा तैयार करें। इन घटकों को आपदा-संभावित क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से कैसे लागू किया जा सकता है, इसकी संक्षिप्त जानकारी प्रदान करें। (15 अंक, 250 शब्द)