तारीख (Date): 16-09-2023
प्रासंगिकता - जीएस पेपर 3 - विज्ञान और प्रौद्योगिकी
कीवर्ड - जीएमओ, डीएनए, खाद्य सुरक्षा, जीन प्रौद्योगिकी
सन्दर्भ:
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा जैसी जटिल वैश्विक चुनौतियों से भरे युग में, फसल सुधार के लिए विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से आनुवंशिक इंजीनियरिंग को अपनाना आवश्यकता बन गया है। यह लेख वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करने में पारंपरिक प्रजनन विधियों के पूरक के रूप में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों की महत्वपूर्ण भूमिका की पड़ताल करता है।
आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (जी. एम. ओ.) क्या हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार :
- आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (जी. एम. ओ.) पौधों, जानवरों या सूक्ष्मजीवों जैसे जीवित जीव हैं, जिनकी आनुवंशिक सामग्री (डी. एन. ए.) को जानबूझकर इस तरह से बदल दिया गया है जो पारंपरिक प्रजनन या प्राकृतिक आनुवंशिक पुनर्संयोजन के माध्यम से संभव नही है।
- इस तकनीक को प्रायः "आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी" या "जीन प्रौद्योगिकी" के रूप में जाना जाता है। इसे कभी-कभी "पुनर्संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी" या "आनुवंशिक इंजीनियरिंग" के रूप में भी संबोधित किया जाता है।
- आनुवंशिक इंजीनियरिंग विशिष्ट जीन को एक जीव से दूसरे जीव में स्थानांतरित करने में सक्षम बनाती है, भले ही वे असंबंधित प्रजातियां हों। इन आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों से उत्पन्न खाद्य पदार्थों या फसलों को प्रायः जीएम खाद्य पदार्थ या जीएम फसलें कहा जाता है।
- पारंपरिक पादप प्रजनन विधियों के विपरीत, जिसमें निकट से संबंधित प्रजातियों के जीन का संयोजन शामिल है, जीएम तकनीक इन आनुवंशिक बाधाओं के बिना चयन की अनुमति देती है। इस प्रकार यह वांछित लक्षण प्राप्त करने के लिए पौधों और जानवरों सहित विभिन्न जीवित जीवों के जीन को शामिल करने की अनुमति देता है।
वैश्विक खाद्य सुरक्षा के समाधान के रूप में जीएम फसलें
खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति लंबे समय से वैश्विक चिंता का विषय रही है। सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप 2030 तक 'शून्य भूख' का लक्ष्य प्राप्त करना है। जिसे प्राप्त करने के लिए आनुवंशिक संशोधन के माध्यम से फसल सुधार की गति को तेज करने पर बल दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य बेहतर फसल किस्मों को विकसित करना है, जो बढ़ी हुई उत्पादकता के साथ विविध वातावरणों में अनुकूलनशीलता और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता को कम कर सकती हैं। यद्यपि 1960-70 के दशक की हरित क्रांति ने खाद्य उत्पादन को काफी बढ़ावा दिया है परन्तु जलवायु परिवर्तन तथा अन्य चुनौतियों के चलते बेहतर लक्षणों वाली नई बायोटेक/जीएम फसलों के विकास की आवश्यकता है।
जी. एम. फसलों को वैश्विक स्तर पर अपनाना
फसल सुधारों के लिए आनुवंशिक संशोधन तकनिक को अपनान एक वैश्विक घटना है। इंटरनेशनल सर्विस फॉर द एक्विजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एप्लीकेशन (आईएसएएए) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 72 देशों ने मानव उपभोग, पशु आहार और वाणिज्यिक कृषि सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए जीएम फसलों को अपनाया है। विशेष रूप से, विकासशील देशों में वैश्विक जीएम फसल क्षेत्र का 56% हिस्सा है, जो संसाधन-सीमित क्षेत्रों में कृषि में सुधार के लिए इन तकनीकों के महत्व पर जोर देता है। अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में व्यक्तिगत रूप से किसानों और समग्र रूप से सम्पूर्ण राष्ट्रों के लिए यह लाभकारी रहा है।
खाद्य तेल की कमी को दूर करने के लिए सरसों पर ध्यान
भारत खाद्य तेल उत्पादन में अल्प उत्पादन का सामना कर रहा है,जिसके कारण इसकी 60% मांग को आयात द्वारा द्वार पूरा किया जाता है। भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तिलहन फसल सरसों की उत्पादकता वैश्विक औसत की तुलना में बहुत कम है अत: सरसों की उत्पादकता में वृद्धि किसानों के आर्थिक कल्याण और खाद्य तेल उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है।
इस सन्दर्भ में, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सी. जी. एम. सी. पी.) ने डी. एम. एच-11 के रूप में जाना जाने वाला जी. एम. सरसों संकर बनाने के लिए व्यापक शोध किया है। बार्नेस/बारस्टार प्रणाली पर आधारित यह संकर फसल उच्च शक्ति और उपज प्रदर्शित करती है। इसमें घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को बढ़ावा देने और कृषि आय बढ़ाने की क्षमता है। इसमें शाकनाशी सहिष्णुता जीन का समावेश आनुवंशिक रूप से रूपांतरित संकर बीज उत्पादन में सहायता करता है।
डीएमएच-11 (DMH-11), एक ट्रांसजेनिक सरसों
- DMH-11 एक स्वदेशी संकर फसल है, जो हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों के आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण का प्रतिनिधित्व करती है।
- सरसों की यह नवीन किस्म दो अलग-अलग स्रोतों के संकरण से बनाई गई है: जिसमें भारतीय सरसों की प्रजाति 'वरुणा' और पूर्वी यूरोप की'अर्ली हीरा-2' सरसों का प्रयोग किया गया है।
- DMH-11 सरसों की प्रजाति को इसकी जो विशेषता इसे अन्य प्रजातियों से अलग करती है, वह है इसमें मिट्टी में रहने वाले जीवाणु बैसिलस एमाइलोलिकफेशियन्स से प्राप्त दो विदेशी जीन, 'बार्नेज़' और 'बारस्टार' का समावेश। ये जीन उच्च उपज वाले वाणिज्यिक संकर सरसों के विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- 'वरुण' में, बार्नेज़ की उपस्थिति अस्थायी बाँझपन लाती है, जिससे प्राकृतिक स्व-परागण रुक जाता है। इसके विपरीत, 'अर्ली हीरा-2' बारस्टार बार्नेज़ के प्रभावों का प्रतिकार करता है, जिससे बीज के उत्पादन की सुविधा प्राप्त होती है।
- DMH-11 का व्यावहारिक प्रभाव इसके प्रभावशाली प्रदर्शन से स्पष्ट है, जो राष्ट्रीय मानक की तुलना में लगभग 28% अधिक पैदावार और क्षेत्रीय बेंचमार्क की तुलना में 37% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। इसके उपयोग को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) से मंजूरी मिल गई है।
- विशेष रूप से, DMH-11 में "बार जीन" का समावेश संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखने का कार्य करता है, जिससे इसकी कृषि क्षमता और स्थिरता में और वृद्धि होती है।
एक ऐतिहासिक निर्णय:कृषि के लिए स्वीकृति
25 अक्टूबर, 2022 को एक ऐतिहासिक निर्णय में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने खेती के लिए DMH-11 और इसकी मूल प्रजाति को स्वीकृति प्रदान कर दी है । यह निर्णय भारत में आनुवंशिक इंजीनियरिंग अनुसंधान में एक नए युग की शुरुआत करता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता और तेल की गुणवत्ता में वृद्धि सहित बेहतर गुणों वाली सरसों की संकर किस्मों के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
लाभ
- DMH-11 की स्वीकृति और खेती के लिए इसे अपनाने से प्रति हेक्टेयर सरसों का उत्पादन बढ़ने की संभावना है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
- इससे खाद्य तेल आयात पर भारत की निर्भरता को कम करनेमें सहायता मिलेगी, जो 2020-21 में ₹1.17 लाख करोड़ मूल्य का लगभग 13 मिलियन टन था।
- जीएम सरसों की कृषि से खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और कृषि में स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
जीएमओ फसलों की चुनौतियाँ
- स्वास्थ्य और पर्यावरण पर अनिश्चित प्रभाव: सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण (मिट्टी की गुणवत्ता सहित), खाद्य श्रृंखला और भूजल पर जीएम सरसों जैसे आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) की खेती के परिणाम काफी हद तक अज्ञात हैं।
- अनपेक्षित प्रभावों और अपरिवर्तनीय आनुवंशिक परिवर्तनों के जोखिम: आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों में आनुवंशिक संशोधनों से आनुवंशिक स्तर पर अप्रत्याशित परिणामों और अपरिवर्तनीय परिवर्तनों का जोखिम होता है, जो संभावित रूप से अनपेक्षित मुद्दों और विषाक्तता को जन्म दे सकता है।
- खरपतवार में वृद्धि और पोषक तत्वों की कमी: खरपतवार, वे जंगली पौधे हैं जो मिट्टी से पोषक तत्व समाप्त करने के लिए कुख्यात हैं साथ ही फसलों द्वारा महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के अवशोषण को भी बाधित करते हैं, खरपतवारों की यह समस्या आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर सकती हैं।
- एलर्जी के खतरे: जीएमओ मूल रूप से जीव में नहीं पाए जाने वाले प्रोटीन के मिश्रण के कारण एलर्जी का खतरा पैदा करते हैं, जो संभावित रूप से मनुष्यों में एलर्जी प्रतिक्रियाओं को बढ़ा सकता है।
- जैव विविधता का खतरा: जीएमओ जंगली फसल की किस्मों की आनुवंशिक संरचना में परिवर्तन करके, जैव विविधता को कम कर सकते हैं।
- उत्पादकों पर वित्तीय बोझ: जीएमओ अपनाने में प्रायः आवर्ती लागत शामिल होती है क्योंकि उत्पादकों को प्रत्येक रोपण के लिए जीएम फसल कंपनियों से नए बीज खरीदने पड़ते हैं, जिससे उन पर वित्तीय बोझ पड़ता है।
- नैतिक चिंताएं और प्रकृति के साथ छेड़छाड़: जीएमओ का विकास नैतिक चिंताओं को जन्म देता है, जिसमें प्राकृतिक जीवों के आंतरिक मूल्यों के उल्लंघन और क्रॉस-प्रजाति जीन मिश्रण के माध्यम से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के कार्य के बारे में प्रश्न शामिल हैं।
निष्कर्ष:
अंत में, फसल वृद्धि में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का एकीकरण केवल एक आवश्यकता नहीं है, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा की खोज में एक महत्वपूर्ण रणनीति है। जीएम फसलों ने पहले ही अरबों व्यक्तियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। भारत में डीएमएच-11 का हालिया समर्थन खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
अत: स्पष्ट है कि भारतीय किसानों की आर्थिक संभावनाओं के उत्थान और कृषि के स्थायी भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए संवर्धित जीएम खाद्य फसलों का निरंतर विकास अनिवार्य है। हालाँकि, संबंधित चिंताओं और मुद्दों को स्वीकार करना और प्रभावी ढंग से संबोधित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हम खाद्य उत्पादन और वैश्विक पोषण में लगातार विकसित होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए विज्ञान-आधारित समाधानों को अपना रहें हैं।
मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
- खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए कृषि में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को अपनाने के संभावित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? भारत जैसे देश जीएम फसलों के उपयोग को बढ़ावा देते हुए संबंधित चिंताओं को कैसे दूर कर सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
- खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के भारत के प्रयासों के संदर्भ में, आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों डीएमएच-11 की विशेषताओं और लाभों की चर्चा करें। जीएम फसलों को अपनाने से किसानों की आय और कृषि क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? जीएम फसल की खेती से संबंधित नैतिक और पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने के लिए क्या रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द)
Source – The Hindu