तारीख Date : 03/01/2024
प्रासंगिकता : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3, सीमा सुरक्षा क्षेत्र में चुनौतियां और उनका प्रबंधन
की-वर्ड्स : सशस्त्र बलों का सुधार , चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) दोहरी उपयोग वाली प्रौद्योगिकीयां और आईपी विकास, अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक, 2023
संदर्भ -
सशस्त्र बलों के अंदर बेहतर एकीकरण के उद्देश्य से भारत में सैन्य सुधारो की आवश्यकता महसूस हो रही है। इन सुधारो का प्रमुख विषय एकीकरण की अवधारणा है जिसमें सैन्य बलों के आपस साथ-साथ नागरिक समाज के मध्य विभिन्न स्तरों पर सहयोग सम्मिलित है। इस लेख में हम वास्तविक एकीकरण प्राप्त करने के लिए पांच बुनियादी तथ्यों और वर्तमान सैन्य सुधारों में चुनौतियों और अवसरों का परीक्षण करेंगे ।
एकीकरण के पाँच मूल तत्व
- सेवाओं और संसाधनों का एकीकरण:
इष्टतम परिचालन दक्षता के लिए तीनों सशस्त्र सेवाओं और उनके संसाधनों का निर्बाध एकीकरण अनिवार्य है। इसमें संस्थागत परिवर्तन और विविध चुनौतियों का सामना करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देना सम्मिलित है। - अर्धसैनिक बलों के साथ समन्वय:
यह एकीकरण सशस्त्र बलों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल तथा असम राइफल जैसे अर्धसैनिक बलों के एकीकरण तक भी विस्तृत है । ध्यातव्य है कि सीमा सुरक्षा में इन बलों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। - रक्षा विनिर्माण के लिए सहयोगः
रक्षा में आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) प्राप्त करने के लिए, सशस्त्र बलों और रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के बीच, विशेष रूप से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों जैसे संगठनों के साथ एकीकरण होनी चाहिए। - उद्योग और शिक्षाविदों के साथ एकीकरणः
रक्षा में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सशस्त्र बलों को उद्योग और शिक्षाविदों के साथ संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें स्वदेशी विनिर्माण और तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक साझा दृष्टिकोण और सहयोगात्मक कार्रवाई शामिल है। - राष्ट्रीय विकास के लिए नागरिक-सैन्य संलयनः
2047 तक भारत को एक विकसित देश का दर्जा (विकसित भारत) प्राप्त करने के लिए सैन्य सेवाओं और नागरिक नौकरशाही के बीच एक सामान्य दृष्टि और कार्रवाई का समन्वय आवश्यक है। यह व्यापक नागरिक-सैन्य समन्वय राष्ट्रीय विकास में योगदान देता है।
सशस्त्र बलों में सुधार -
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)
2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति सशस्त्र बलों को एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रहा है। थिएटर कमांड का निर्माण इस सुधार का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसमें भौगोलिक कमांड भारत की उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर खतरों को संबोधित करते हैं और समुद्री हितों को सुरक्षित करते हैं। - चुनौतियां और सहमति
थिएटर कमांडो के निर्माण सहित प्रमुख पुनर्गठन के लिए तीनों सेवाओं के बीच आम सहमति प्राप्त करने जैसी कई चुनौतियां है। सार्वजनिक विमर्श, विविध दृष्टिकोण पर विचार करने और परिचालन प्रभावशीलता एवं दक्षता बढ़ाने के लिए सूचित निर्णय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। - मानव संसाधन पर विचार
सशस्त्र बलों की पिरामिडनुमा संरचना और सेवाओं के बीच ऐतिहासिक विविधताएं, संसाधनों के सही आकार और अनुकूलन की आवश्यकता को उजागर करते हैं। तकनीकी प्रगति के साथ मानव संसाधन को संतुलित करना ,विशेष रूप से विकसित युद्ध प्रौद्योगिकियों के आलोक में, महत्वपूर्ण है, । - युद्ध प्रौद्योगिकी
आधुनिक युद्ध प्रौद्योगिकी को अपनाना मानव संसाधन और प्रौद्योगिकी के बीच संतुलन की मांग करता है। साइबर, ए.आई. और गहन तकनीक सहित उच्च तकनीक क्षेत्रों में विशेषज्ञता आवश्यक है। सशस्त्र बलों का खुफिया जानकारी , निगरानी आदि प्रोद्योगिकियों में त्वरित प्रगति को समायोजित करना शामिल है।
सुधारों के माध्यम से एकीकरण-
- एकीकृत रक्षा कर्मचारी मुख्यालय
एकीकृत रक्षा कर्मचारी मुख्यालय के माध्यम से सशस्त्र बलों के सभी स्तरों पर तालमेल बनाया जा रहा है। सैन्य अभियानों के लिए एक अधिक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हुए, प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया जा रहा हैं। - समावेशी भर्ती
भर्ती में अग्निवीर योजना जैसी पहलों का उद्देश्य सशस्त्र बलों की गुणात्मकता में सुधार करना है। यह टूथ-टू-टेल अनुपात, संसाधन आवंटन में दक्षता बढ़ाने जैसी चिंताओं को दूर करने के प्रयासों के साथ समन्वित है। - राष्ट्रीय कैडेट कोर की भूमिका
राष्ट्रीय कैडेट कोर जमीनी स्तर पर नागरिक-सैन्य एकीकरण में योगदान देता है। इसकी पहुंच का विस्तार, विशेष रूप से संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में, सुरक्षा को बढ़ाता है और युवाओं में जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देता है। - सीमा सुरक्षा बल
प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिए बीएसएफ और आईटीबीपी जैसे सीमा सुरक्षा बलों के बीच एकीकरण को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। सूचना प्रवाह, प्रशिक्षण और उपकरण प्रोफाइल में सहयोगात्मक प्रयास एक अधिक समन्वित रक्षा रणनीति में योगदान करते हैं।
रक्षा उत्पादन में संयुक्तता
- रक्षा में आत्मनिर्भर भारत
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए सहयोग और स्वायत्तता के बीच संतुलन जरूरी है। डीआरडीओ की प्रभावकारिता को बढ़ाना और अंतिम उपयोगकर्ताओं, उद्योग एवं शिक्षाविदों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। - "मेड इन इंडिया" उपकरणों में विश्वास
आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी रक्षा उत्पादों में विश्वास को बढ़ावा देना आवश्यक है। यह विश्वास न केवल घरेलू रक्षा उद्योग को मजबूत करेगा बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रतिस्पर्धात्मकता भी लाएगा। - दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियां और आईपी विकास
सही मायने में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए, भारत को रक्षा अनुसंधान और उद्योग में अपनी बौद्धिक संपदा (आईपी) को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसमें दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना शामिल है, जिससे न केवल सशस्त्र बलों को लाभ होता है, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी बढावा मिलता है।
हाल की पहलः
- तीनों सेवाओं को एकीकृत
करने में हाल की प्रगति को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति और रक्षा बलों के समन्वय में महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करने वाले सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) की स्थापना द्वारा चिह्नित किया गया है। - समान मानकीकरणः
एक उल्लेखनीय परिवर्तन में ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल के रैंक वाले अधिकारियों के बीच एकरूपता को अपनाना शामिल है। इसमें एक मानकीकृत रंग के बेरेट पहनना, रैंक के सामान्य बैज का उपयोग करना, एक समान बेल्ट बकल का उपयोग करना, जूतों के एक सुसंगत पैटर्न का पालन करना और कंधों पर लैनार्ड का उपयोग बंद करना शामिल है। - विधायी उपायः
लोकसभा में अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक, 2023 को पेश किया गया है। इस कानून का उद्देश्य नामित सैन्य कमांडरों को सशक्त बनाना है, जिससे वे सैनिकों पर नियंत्रण रखने और अनुशासन लागू करने में सक्षम हो सकें, चाहे वे किसी भी विशिष्ट सेवा से संबंधित हों।
निष्कर्ष -
भारत की विविध सुरक्षा चुनौतियों के लिए अपने सैन्य सुधारों में संयुक्तता और एकीकरण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। तकनीकी प्रगति के साथ सैन्य सेवाओं को संतुलित करना, सभी स्तरों पर सहयोग को बढ़ावा देना और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना प्रमुख अनिवार्यताएं हैं। विकसित और सुरक्षित राष्ट्र के निर्माण में नागरिक समाज, उद्योग और विश्वविद्यालय के साथ सशस्त्र बलों का एकीकरण महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारत का लक्ष्य विकसित भारत बनाना है। राष्ट्र जिन विशेष जोखिमों और कठिनाइयों का सामना कर रहा है, उनसे निस्तारण हेतु , वर्णित सिद्धांतों द्वारा संचालित सुधार महत्वपूर्ण हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
- भारत के सैन्य सुधारों में संयुक्तता के पांच बुनियादी पहलुओं पर चर्चा करें और प्रत्येक से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर विस्तार से चर्चा करें। (10 Marks, 150 Words)
- तीनों सेनाओं के बीच समन्वय और एकीकरण बढ़ाने में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति और समान मानकीकरण उपायों जैसी हालिया पहलों की भूमिका की जांच करें। भारत के सैन्य सुधारों के व्यापक संदर्भ में उनके महत्व का आकलन करें। (15 Marks, 250 Words)
Source- ORF