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Daily-current-affairs / 07 Dec 2023

स्थानीय शासन में महिलाओं को सशक्त बनाना: पंचायतों में 30 वर्षों के आरक्षण पर विचार - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 8/12/2023

प्रासंगिकताः जीएस पेपर 2 - राजनीति, सामाजिक न्याय

मुख्य शब्दः ईडब्ल्यूआर, राजनीतिक सशक्तिकरण, महिला आरक्षण विधेयक, स्थानीय निकाय

संदर्भ-

पिछले तीन दशकों में भारतीय स्थानीय शासन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है। इसे 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से पंचायतों में महिला आरक्षण के कार्यान्वयन द्वारा चिन्हित किया जा सकता है। इस लेख का उद्देश्य इन आरक्षणों के प्रभाव का पता लगाना, उपलब्धियों को पहचानना, निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करना और अधिक समावेशी तथा प्रभावी राजनीतिक परिदृश्य के लिए उपाय सुझाना है। चूंकि महिलाओं के लिए विधायी सीटें सुरक्षित करने वाला बहु-प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक एक वास्तविकता बन गया है, इसलिए स्थानीय सरकार में महिलाओं के अनुभवों से प्रेरणा लेना महत्वपूर्ण है।


73वां और 74वां संवैधानिक संशोधन के प्रमुख तथ्य

1992 में पारित 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम से भारत के संविधान में एक नया खंड, भाग-IX जोड़ा गया । इसके माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक संस्था के रूप में स्थापित किया गया । यह भाग अनुच्छेद 243 से 243 ओ (O) में विस्तृतरूप से पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित विभिन्न प्रावधानों को शामिल करता है। इसके अतिरिक्त, संशोधन में 11वीं अनुसूची को भी शामिल किया गया जिसमें पंचायतों के लिए 29 कार्यात्मक विषयों को सूचीबद्ध किया गया है।

इसी प्रकार , 74वां संविधान संशोधन अधिनियम-1992, 1 जून, 1993 को लागू किया गया। इस संवैधानिक संशोधन से शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया । इस संवैधानिक संशोधन से भाग IX-A जोड़ा गया तथा अनुच्छेद 243-P से 243-ZG में शहरी स्थानीय निकायों के लिए प्रावधान किया गए । इसके साथ ही, 74वें संशोधन से 12वीं अनुसूची को भी शामिल किया, जिसमें नगरपालिकाओं के संचालन के लिए 18 कार्यात्मक विषय सूचीबद्ध हैं ।

महिला राजनीतिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण प्रगति:

30 वर्ष पहले प्रस्तुत किए गए संवैधानिक संशोधनों से स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया , जिसके परिणामस्वरूप 1.4 मिलियन से अधिक महिलाएं स्थानीय निकायों में नेतृत्वकारी पदों पर पहुँच पायीं हैं । भारत, स्थानीय स्तर पर महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और जापान जैसे प्रमुख देशों को पीछे छोड़ते हुए विश्व स्तर पर शीर्ष प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है। वर्तमान में, पूरे भारत में स्थानीय निकायों में लगभग 44 प्रतिशत सीटें महिला प्रतिनिधियों के पास हैं।

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के सकारात्मक प्रभाव से प्रोत्साहित होकर, कई राज्यों ने महिला प्रतिनिधियों के लिए आरक्षण का विस्तार किया है। वर्तमान में 20 राज्यों ने पंचायती राज संस्थानों (PRIs)में महिलाओं के लिए आरक्षण एक तिहाई से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है, जिसके चलते महिलाओं का प्रतिनिधित्व तेजी से बढ़ा है । उदाहरण के लिए , कर्नाटक में, महिलाओं ने 50 प्रतिशत की सीमा को पार करके, उन चुनावी वार्डों में भी अपनी सफलता का प्रदर्शन किया है जो उनके लिए आरक्षित नहीं थे ।

जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाना:

पंचायत स्तर की राजनीति महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुई है। इससे निर्णय-निर्माण संरचनाओं में उनकी भागीदारी बढ़ी है जिससे उनके आत्मविश्वास व क्षमता में वृद्धि हुई है । अध्ययनों से पता चलता है कि पंचायत स्तर पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधि भ्रष्टाचार मे कमी और स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण जल सुविधाओं में सुधार सहित विकासात्मक पहलों में कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन कर रहीं हैं।

इसके अलावा, स्थानीय शासन में महिलाओं की उपस्थिति ने नीतियों को प्रभावित किया है, जिससे वे महिलाओं की जरूरतों और चिंताओं के साथ अधिक निकटता से जुड़ गई हैं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने लिंग संबंधी मुद्दों का समाधान करने, घरेलू हिंसा और बाल विवाह के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी प्रकार गैर-पारंपरिक स्थानों में उनका प्रवेश ग्रामीण भारत में प्रचलित लैंगिक मानदंडों को चुनौती देता है, जो अन्य महिलाओं की राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रेरणा और रोल मॉडल के रूप में कार्य करता है।

निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:

इन सकारात्मक परिवर्तनों के बावजूद, महिला प्रतिनिधियों को अपने पुरुष समकक्षों से अलग संस्थागत और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चक्रीय आरक्षण की नीति महिलाओं के राजनीतिक कैरियर की निरंतरता में एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है। यह बाधा महिला उम्मीदवारों को अपने अनुभव का लाभ उठाने से रोकती है, जिससे अक्सर उन्हें पंचायत के एक कार्यकाल के बाद घरेलू भूमिकाओं में वापस लौटना पड़ता है।

इसके अतिरिक्त, लैंगिक डिजिटल विभाजन, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित, महिला प्रतिनिधियों के लिए एक चुनौती है। जैसे-जैसे स्थानीय सरकारें सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए डिजिटलीकरण को अपना रहीं हैं वैसे-वैसे महिलाओं के लिए सीमित डिजिटल साक्षरता प्रशासनिक कार्यों में बाधा के रूप में सामने आ रही है। बिहार में एक सर्वेक्षण में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि केवल 63 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि प्रतिभागियों के पास फोन था, और केवल 24 प्रतिशत के पास स्मार्टफोन था।

कुछ राज्यों ने चुनाव लड़ने के लिए दो बच्चों के मानदंड और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता जैसे प्रतिबंधात्मक उपाय लागू किए हैं, जिससे राजनीति में महिलाओं का प्रवेश सीमित हो गया है।

वित्तीय बाधाएँ महिलाओं की चुनाव मे भागीदारी में बाधा डालती हैं, क्योंकि वे अक्सर अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में निम्न आर्थिक समूहों से होती हैं।

लिंग आधारित भेदभाव व्यापक स्तर पर बना हुआ है, कई महिला प्रतिनिधियों ने शिकायत की है कि उन्हें महिला होने के कारण पंचायतों में उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। प्रशासनिक भूमिकाओं में अक्सर पुरुषों का वर्चस्व होता है, जिससे महिलाओं के लिए अधिकारियों, संबंधित विभागों और पुलिस के साथ प्रभावी ढंग से बातचीत करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कुछ मामलों में, महिला नेताओं को उनके परिवार और समुदाय के पुरुष सदस्यों द्वारा नियंत्रित प्रॉक्सी उम्मीदवारों के रूप में चुना जाता है, जो एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है।

उच्च प्रशासनिक उपलब्धियों के बावजूद, महिला प्रतिनिधियों को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कमजोर आँका जाता है। साथ ही काम और घरेलू जिम्मेदारियों को संतुलित करने जैसी चुनौतियां भी हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भावी रणनीति :

  • स्थानीय स्तर पर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • सबसे पहले, चक्रीय आरक्षण की नीति पर दोबारा विचार करना होगा और महिलाओं के कौशल विकास के माध्यम से सामान्य अनारक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने और जीतने में सक्षम बना कर उनके राजनीतिक करियर की निरंतरता को बनाए रखना आवश्यक है ।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लैंगिक डिजिटल विभाजन को पाटने और प्रशासनिक भूमिकाओं में महिला प्रतिनिधियों की दक्षता बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
  • नीतिगत परिवर्तन, जैसे कि दो बच्चों के मानदंड और न्यूनतम साक्षरता योग्यता का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
  • प्रतियोगी और प्रतिनिधि दोनों के रूप में महिला नेताओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

निष्कर्ष:

पिछले 30 वर्षों में पंचायतों में महिला आरक्षण की यात्रा परिवर्तनकारी रही है, जिससे लाखों महिलाएं नेतृत्व की स्थिति में पहुंची हैं और स्थानीय शासन की गतिशीलता को नया आकार दिया गया है। सकारात्मक प्रभाव को स्वीकार करते हुए, महिला प्रतिनिधियों के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करना और उनके सशक्तिकरण के लिए उपायों को लागू करना महत्वपूर्ण है। चूँकि महिला आरक्षण विधेयक विधायी सीटों पर महिलाओं के लिए नए रास्ते खोलता है, स्थानीय सरकार की उपलब्धियों और विफलताओं से सबक लेते हुए महिलाओं की राजनीतिक क्षमता को मजबूत करने और राष्ट्रीय व राज्य विधानसभाओं में अधिक सार्थक भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में भविष्य के प्रयासों का मार्गदर्शन किया जा सकता है। अंततः, स्थानीय शासन में महिलाओं को सशक्त बनाना केवल सांकेतिक प्रतिनिधित्व का मामला नहीं है, बल्कि समावेशी और प्रभावी लोकतंत्र का मार्ग है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. ?पंचायतों में महिला आरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थानीय शासन पर 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन के प्रभाव की व्याख्या करें। पिछले 30 वर्षों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डालें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. ?स्थानीय शासन में महिलाओं के लिए सामाजिक और संस्थागत चुनौतियों की पहचान करें। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी और प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

Source- ORF