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Daily-current-affairs / 05 Sep 2023

विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन: सतत विकास और महिला सशक्तिकरण - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 06-09-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - समाज- महिला सशक्तिकरण

की-वर्ड: एसडीजी, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), स्वरोजगार महिला संघ (SEWA), जेंडर समावेशी योजना

सन्दर्भ:

  • विश्व की सर्वाधिक गंभीर वैश्विक चुनौतियों में से एक जलवायु परिवर्तन; स्थान, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और लैंगिक आधार पर समग्र विश्व को असमान रूप से प्रभावित करता है।
  • इस सन्दर्भ में अधिकांशतः महिलाएं, विशेष रूप से विकासशील और कम आय वाले देशों में, प्राकृतिक संसाधनों और श्रम-केंद्रित आजीविका पर निर्भरता के कारण असंगत प्रभाव का अनुभव करती हैं।
  • यहां हम जलवायु परिवर्तन के संबंध में विकासशील देशों में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली बहुमुखी समस्या और उनके उपायों, संख्यात्मक आंकड़ों, तथ्यों और कुछ उदाहरणों की चर्चा करेंगे।

विकासशील देशों में महिलाओं के लिए चुनौतियां:

  • आंशिक भागीदारी: दुनिया की आधी आबादी महिलाओं और लड़कियों से बनी है, फिर भी जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो अक्सर उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन यदि हम वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें सभी को इसमें शामिल करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ है, कि महिलाओं और लड़कियों को अधिक सशक्त बनाने और इसमें शामिल होने की जरूरत है। क्योंकि किसी भी जलवायु कार्रवाई के लिए 100 प्रतिशत आबादी की पूर्ण भागीदारी की आवश्यकता होती है।
  • आर्थिक भेद्यता: कम आय वाले क्षेत्रों में महिलाओं को भोजन, पानी और अवैतनिक घरेलू श्रम सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका के कारण वित्तीय दबाव का सामना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन इन चुनौतियों को और बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए, 2019 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक, उच्च तापमान के कारण दुनिया भर में कुल कामकाजी घंटों का 2.2% का नुकसान हो सकता है, जो 80 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है।
  • ग्रामीण परिवेश: जलवायु परिवर्तन उन ग्रामीण महिलाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है जो अक्सर पानी और ईंधन इकट्ठा करने के लिए प्रतिदिन लंबी दूरी तय करती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।
  • व्यावसायिक भेद्यता: कम आय वाले और विकासशील देशों में महिलाएं कृषि और श्रम-गहन कार्यों जैसे जलवायु-असुरक्षित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। ILO के अनुसार, दक्षिणी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में 60% से अधिक कामकाजी महिलाएँ कृषि कार्य में संलग्न हैं। इस क्षेत्र में कम वेतन पर अधिक काम कराया जाता है।
  • भूमि का कम स्वामित्व: खाद्य उत्पादन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, महिलाओं के पास कृषि योग्य भूमि का केवल 10% हिस्सा है। भूमि स्वामित्व में यह असमानता उनकी आर्थिक सुरक्षा और जलवायु संबंधी चुनौतियों के प्रति सुभेद्यता को सीमित करती है।
  • विस्थापन एवं शोषण: जब जलवायु संबंधी आपदाएं आती हैं, तो विस्थापित होने वालों में महिलाओं और लड़कियों की बहुमत (लगभग 80%) होती है। ऐसी घटनाओं के बाद, महिलाओं को शोषण, तस्करी और लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। इसका एक उदाहरण 2015 नेपाल भूकंप के बाद का परिणाम है, जब संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने महिलाओं की तस्करी और शोषण के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता की सूचना दी थी। इसके अतिरिक्त, सामाजिक नेटवर्क से अलगाव, रोजगार, शिक्षा और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं; जैसे यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तथा मनोसामाजिक समर्थन तक पहुंच में कमी, कुछ अन्य लिंग-विशिष्ट संकट हैं, जिनका अधिकांश महिलाओं को सामना करना पड़ता है।
  • कृषि उत्पादकता और खाद्य संकट: जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। बढ़ता तापमान, वर्षा के बदलते पैटर्न और अधिक बार होने वाली चरम मौसम की घटनाएं फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। कृषि में लगी महिलाओं को अक्सर गुणवत्तापूर्ण संसाधनों, शिक्षा और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की कमी होती है, जिससे वे इन प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में 60% भूखी और कुपोषित महिलाएँ हैं। भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच में लैंगिक असमानता लड़कियों और महिलाओं को कुपोषण और बौनेपन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।

जलवायु कार्रवाई में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका:

  • महिला सशक्तिकरण से बेहतर जलवायु समाधान प्राप्त होते हैं: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में कृषि कार्यबल का लगभग आधा हिस्सा महिलाएँ हैं। जब संसाधनों तक समान पहुंच प्रदान की जाती है, तो महिलाएं कृषि उपज को 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ा सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुल कृषि उत्पादन में 2.5 से 4 प्रतिशत की वृद्धि होगी और वैश्विक भूख में 12 से 17 प्रतिशत की कमी आएगी। कृषि में महिलाओं की भागीदारी में निवेश से गरीबी कम करते हुए स्थिरता और जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • सामुदायिक जलवायु लचीलेपन के लिए महिलाएं आवश्यक हैं: महिलाएं समुदायों के भीतर जलवायु लचीलापन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संयुक्त राष्ट्र इस बात पर जोर देता है कि जब महिलाएं योजना में शामिल होती हैं तो समुदायों को लचीलापन और क्षमता निर्माण रणनीतियों में अधिक सफलता मिलती है। महिलाएं अक्सर प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रथम संरक्षणकर्ता के रूप में काम करती हैं और आपदा जोखिम कम करने के प्रयासों का नेतृत्व करती हैं। अपने परिवारों की शीघ्र पुनर्प्राप्ति आवश्यकताओं को संबोधित करके सामुदायिक एकजुटता को मजबूत करती है साथ ही साथ आपदा के बाद की पुनर्स्थापन प्रक्रिया में योगदान देती हैं।
  • ज्ञान और विशेषज्ञता: महिलाओं के पास अमूल्य पारंपरिक ज्ञान सहित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, कृषि एवं संरक्षण से संबंधित कौशल भी है। स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणालियों और संरक्षण प्रथाओं के बारे में उनकी गहरी समझ प्रभावी जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और शमन रणनीतियों के कार्यान्वयन को अपेक्षित रूप से बढ़ा सकती है।
  • वकालत और नेतृत्व: महिलाओं के नेतृत्व वाले संगठनों और आंदोलनों ने जागरूकता बढ़ाने, नीतिगत बदलावों की वकालत करने और स्थानीय संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निर्णयन भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जलवायु नीतियां और पहल अधिक समावेशी, न्यायसंगत और प्रभावशाली होंगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर प्रभाव: संसद में अधिक महिला प्रतिनिधित्व वाले देश, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण समझौतों का समर्थन करने और कठोर जलवायु नीतियों को लागू करने में अधिक सफल रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कार्य स्थलों के भीतर महिलाओं के नेतृत्व ने पर्यावरणीय समस्याओं के निदान और कार्बन उत्सर्जन में कमी के संबंध में पारदर्शिता के साथ सकारात्मक संबंध दिखाया है।

क्या आप जानते हैं?

केवल छह देशों की संसद में एकल या निचले सदनों में 50 प्रतिशत या अधिक महिलाएँ हैं; उदाहरणार्थ: रवांडा (61 प्रतिशत), क्यूबा (53 प्रतिशत), निकारागुआ (52 प्रतिशत), मैक्सिको (50 प्रतिशत), न्यूजीलैंड (50 प्रतिशत), और संयुक्त अरब अमीरात (50 प्रतिशत)।

  • सतत ऊर्जा पहुंच: जलवायु परिवर्तन को कम करने और आजीविका में सुधार करने; दोनों के लिए स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा तक पहुंच आवश्यक है। महिलाएं, विशेषकर विकासशील देशों में, ऊर्जा और गरीबी से व्यापक रूप से प्रभावित हैं। सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास में महिलाओं को शामिल करने से अधिक समावेशी, सतत और दीर्घकालिक समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
  • सतत जीवन शैली को बढ़ावा देना: महिलाएं अक्सर घरेलू उपभोग संबंधी निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे वे अच्छे विकल्पों की प्रभावशाली चालक बन जाती हैं। अपने परिवारों और समुदायों के भीतर पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देकर, महिलाएं कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और सतत जीवन शैली की संस्कृति को बढ़ावा देने में अहम योगदान दे सकती हैं।

अग्रगामी रणनीति:

  • महिला शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश: एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के जोखिमों, प्राकृतिक आपदाओं और खाद्य मुद्रास्फीति जैसे कारकों के महिलाओं की असमानता पर असर पड़ने के कारण 2050 तक 130 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं। कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने से जलवायु अनुकूलन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उचित प्रौद्योगिकी और संसाधन प्रदान करके, हम अधिक सतत खेती और संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा दे सकते हैं। साथ ही साथ गरीबी को कम करके, हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से कम कर सकते हैं। अतः महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण और संसाधनों तक पहुंच में निवेश महत्वपूर्ण है। भारत में स्वरोजगार महिला संघ (SEWA) जैसी पहल इस संबंध में एक सशक्त उदाहरण हैं। यह महिला किसानों को सिखाता है, कि आर्थिक रूप से खुद को बेहतर समर्थन देने के लिए बदलते जलवायु पैटर्न का सामना कैसे किया जाए।
  • लिंग-समावेशी जलवायु नीति: प्रभावी शमन और अनुकूलन रणनीतियों के लिए सभी स्तरों पर जलवायु नीति निर्णय लेने में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। उनकी बढ़ती असुरक्षा को देखते हुए, निर्णय लेने वाले निकायों में लैंगिक समानता आवश्यक है। दक्षिण एशिया में लिंग आधारित जलवायु परिवर्तन विकास कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना है। वैश्विक स्तर पर, कुशल जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और शमन के लिए समान प्रयासों की आवश्यकता है।
  • नीति-निर्धारण निकायों में प्रतिनिधित्व: जैसे-जैसे महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व मिल रहा है, निर्णयन निकायों के माध्यम से कई देश लैंगिक कार्य योजनाएँ विकसित करना शुरू कर रहे हैं। यह प्रयास लैंगिक समानता में सुधार के प्रयासों के साथ जलवायु कार्रवाई बढ़ावा देती है। ग्रीन क्लाइमेट फंड जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण फंडों को अब यह बताने के लिए अनुदान आवेदन की आवश्यकता है कि महिलाओं को एक कार्यक्रम में कैसे शामिल किया जाएगा ताकि, कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय समूह भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित महिला किसानों को प्राथमिकता दे सकें।
  • लिंग-विशिष्ट योजना: फंडिंग संगठनों और फंडदाताओं को जलवायु परिवर्तन अनुकूलन से संबंधित प्रौद्योगिकियों को विकसित और पेश करते समय महिला-विशिष्ट परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। उन आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए जो महिलाओं को लाभ पहुंचाने और उनका उपयोग करने से रोक सकती हैं। नई योजनाओं के निर्माण में महिलाओं को शामिल करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि वे कितने अनुकूल, उपयुक्त और स्थायी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्रीय नीतियों एवं रणनीतियों के साथ-साथ सतत विकास और जलवायु परिवर्तन योजनाओं में लैंगिक असमानता को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

विकासशील देशों में, जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मामलों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका उनकी अद्वितीय कमजोरियों और योगदानों से रेखांकित होती है। जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्यता बनाने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और लिंग-समावेशी नीतियों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना आवश्यक है। महिलाओं के नेतृत्व वाली जलवायु कार्रवाई बदलते विश्व की न केवल एक आवश्यकता है बल्कि समय की सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक को संबोधित करने के लिए उत्प्रेरक भी है। वर्ष 2050 तक, जलवायु परिवर्तन के जोखिम, प्राकृतिक आपदाएं और खाद्य मुद्रास्फीति 130 मिलियन लोगों को निर्धारित गरीबी रेखा से नीचे ले जा सकती है, जिससे महिलाओं समग्र विकास सहित पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार, महिला सशक्तिकरण में निवेश अधिक स्थायी,सतत और न्यायसंगत भविष्य की दिशा में एक अनिवार्य कारण बन जाता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  • प्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विकासशील देशों में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली बहुमुखी कमजोरियों पर चर्चा करें। लिंग-समावेशी योजना और नीतियां इन कमजोरियों को कैसे दूर कर सकती हैं और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में कैसे योगदान दे सकती हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2. जलवायु कार्रवाई में, विशेषकर कृषि और सामुदायिक लचीलेपन में महिलाओं के योगदान का विकासशील और उभरते देशों में कैसे उपयोग और समर्थन किया जा सकता है, चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत - द हिंदू, यूएनओ रिपोर्ट

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