तारीख Date : 02/01/2024
प्रासंगिकता: ससामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 - आपदा प्रबंधन
की-वर्ड्स : चक्रवात मिचुआंग, जनसांख्यिकीय विचार, जवाबदेही, पारदर्शिता
संदर्भ -
हाल ही में चेन्नई में आए चक्रवात मिचुआंग और उसके बाद स्थानीय निवासियों की ओर से लिए गए निर्णयों के कुछ परिणाम स्पष्ट थे, जबकि कुछ गौण तथा अस्पष्ट थे, जिस कारण वहाँ की सरकार को जीवन रक्षक उपाय अपनाने के दौरान विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इस प्रकार के अस्पष्ट निवारक उपाय, चक्रवात सहित अन्य आपातकालीन घटनाओं के दौरान और उसके बाद में उत्पन्न व्यवधान, गहन समीक्षा की मांग करता है।
2015 कि बाढ और सीखे गए सबक:
चेन्नई में वर्ष 2015 में आई बाढ़ तथा संबंधी अन्य प्राकृतिक आपदाओं ने आपातकालीन निर्णयन प्रक्रिया की महत्ता को रेखांकित किया है। इस संदर्भ में जलाशयों से देरी से पानी छोड़ना, पर्याप्त चेतावनी या सावधानियों के बिना किया गया कार्य आदि सभी कारक बाढ़ के दु:खद परिणामों को बढ़ाने में शामिल थे। यह ऐतिहासिक संदर्भ पिछली गलतियों को दोहराने से बचने के लिए निवारक उपायों के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की आवश्यकता को चिन्हित करता है। प्रत्यक्ष परिणामों से परे, वर्ष 2015 की बाढ़ ने संचार सहित अन्य तकनीकी एवं मानवीय कमजोरियों को भी उजागर किया, जो एक व्यापक और सक्रिय रणनीति की अनिवार्य मांग को दर्शाता है। इस निहितार्थ प्रभावी संकट प्रबंधन के लिए निरंतर सीखने की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जिसमें निर्णय लेने के प्रोटोकॉल को परिष्कृत करने और सामुदायिक लचीलेपन को बढ़ाने के लिए पिछली घटनाओं से मिले सबक को शामिल किया जाता है।
वर्ष 2015 की बाढ़ के दौरान उत्पन्न कारकों की जटिल परस्पर प्रक्रिया ने न केवल तत्काल कार्रवाई के महत्व पर बल्कि, आपदा तैयारियों के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी जोर दिया। जिससे यह स्पष्ट हो गया कि संकट के दौरान लिए गए निर्णय से तात्कालिक परिस्थितियों के साथ-साथ उस क्षेत्र की भविष्यगामी नीति-नियमन और उसकी पुनरबहाली भी प्रभावित होती है। अतः वर्ष 2015 की बाढ़ से सीखे गए सबक को भविष्य के निवारक उपायों का मार्गदर्शन बनाना चाहिए और अनुकूली रणनीतियों के महत्व को रेखांकित कर उभरती चुनौतियों और गतिशील स्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए।
बिजली व्यवधान के अनपेक्षित परिणाम:
यद्यपि चक्रवाती हवाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बिजली कटौती का निर्णय तत्कालीन रूप से उचित लगता है, लेकिन निवारक उपाय के रूप में इसका विस्तारित कार्यान्वयन दूसरी समस्याओं को भी जन्म दे सकता है। क्षतिग्रस्त बिजली के तारों से तत्काल सुरक्षा के अलावा, घरों और आस-पड़ोस को अंधेरे में रखना कई जोखिमों का कारण बनता है। विशेष रूप से तमिलनाडु की व्यापक बुजुर्ग आबादी, जिनमें अकेले रहने वाले लोग भी शामिल हैं; के लिए बिजली व्यवधान अपने आप में एक संकट बन जाता है। दुर्घटनाओं, चोटों और सुरक्षा चिंताओं की बढ़ती संभावना के कारण शीघ्र निर्णयन की प्रक्रिया में एक सूक्ष्म दूर दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, कई मायनों मे सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर जन आबादी पर लंबे समय तक बिजली कटौती का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। अतः किसी संकट के दौरान और उसके बाद बाधित बिजली आपूर्ति और दैनिक जीवन से जुड़े मानसिक स्वास्थ्य पहलुओं को संबोधित करना, प्रभावित समुदाय के समग्र कल्याण का अभिन्न अंग बन जाता है।
अन्य बातों के अलावा बहुआयामी जनसांख्यिकीय विचार, बुजुर्ग आबादी से परे विशेष जरूरतों वाले व्यक्तियों और बिजली से संचालित जीवन रक्षक/सहयोगी उपकरणों की आवश्यकता को भी रेखांकित करते हैं। चक्रवातों के दौरान बिजली व्यवधान अनजाने में इन कमजोर समूहों के लिए चुनौतियों को बढ़ा सकता है। इस प्रकार सुलभ संचार रणनीतियों और लक्षित सहायता कार्यक्रमों का समदर्शी दृष्टिकोण; इन वांछित आबादी की विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए निवारक उपायों को तैयार करने सहित एक लचीली और समावेशी सामुदायिक प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य है।
सुरक्षा आवश्यकता का संतुलन:
आपातकालीन संकट के दौरान निर्णय लेना एक बहुआयामी चुनौती है, जिसमें बौद्धिक, विश्लेषणात्मक निर्णय और व्यक्तिगत क्षमता की आवश्यकता होती है। गलतियों के संभावित परिणाम निर्णय निर्माताओं को रूढ़िवादी विकल्पों की ओर ले जाते हैं, लेकिन दूसरे पक्ष की उपेक्षा करने से निष्क्रियता और अन्य दूसरी गंभीर जटिलताएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसीलिए प्रभावी संकट प्रबंधन के लिए सुरक्षा उपायों और आवश्यक सेवाओं की समय पर बहाली के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। निर्णय लेने वालों को अपनी पसंद के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणामों पर विचार करते हुए संभावित अनिश्चितता से पार पाने के जटिल कार्य का सामना करना पड़ता है। विषम परिस्थितियों में निर्णयन दबाव, सावधानी और आवश्यक कार्रवाई के बीच एक नाजुक संतुलन की आवश्यकता को उजागर करती है।
यद्यपि निर्णय लेने की प्रक्रिया स्थिर नहीं है; यह संकट की बदलती गतिशीलता के साथ विकसित होती रहती है। तथापि समय पर सूचित निर्णयन आवश्यक हैं, साथ ही वास्तविक समय के विकास के आधार पर रणनीतियों को अनुकूलित करने और संशोधित करने की क्षमता भी महत्वपूर्ण है। दूसरी तरफ निर्णय लेने के लिए एक कठोर दृष्टिकोण उभरती चुनौतियों को नजरअंदाज कर सकता है या उभरती जरूरतों को पूरा करने में विफल हो सकता है। इसलिए, निर्णय लेने वालों को मानसिक रूप से क्षमतावान होने के साथ प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना चाहिए और समय आने पर अपनी कार्रवाई के तरीके को समायोजित करते रहना चाहिए; ताकि तत्काल संकट से परे समुदाय के लचीलेपन, पुनर्प्राप्ति और दीर्घकालिक कल्याण के संबंध में निर्णयों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कर संतुलन बनाया जा सके।
निर्णय लेने में जवाबदेही/उत्तरदायित्व:
एक नौकरशाह या सरकारी अधिकारी को निवारक उपायों को लागू करने के लिए कार्यकारी शक्ति दी गई है, उसे वास्तविक समय में निर्णयों को उचित ठहराने और दस्तावेजीकरण करने में सक्षम होना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे निर्णयों कि , यह स्वीकार करते हुए कि कोई उद्देश्यपूर्ण "सुरक्षित" विकल्प नहीं है , के औचित्य पर विचार करना चाहिए । लंबे समय तक बिजली कटौती से जुड़े संभावित जोखिमों के लिए एक कठोर समीक्षा प्रक्रिया की आवश्यकता होती है जिससे इस निर्णय प्रक्रिया से जुड़े लोगों के उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किया जा सके । यद्यपि संबंधित सभी जवाबदेही निर्णयों के तात्कालिक परिणामों से परे है ओर इसमें प्रभावित आबादी पर दीर्घकालिक प्रभाव और क्षेत्र की समग्र पुनर्प्राप्ति भी सम्मिलित है।
जवाबदेहिता के ढाँचे में व्यक्तिगत निर्णय निर्माताओं के अतिरिक्त उन संगठनात्मक संरचनाओं और प्रणालियों को शामिल करना चाहिए जो संकट प्रबंधन का समर्थन और मार्गदर्शन करते हैं। एक समुचित और नियमित ऑडिट, पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का सार्वजनिक प्रकटीकरण, जवाबदेही की संस्कृति में अहम योगदान देता है। पिछली सभी घटनाओं से सीखे गए सबक, जिनमें ऐसे कई उदाहरण भी शामिल हैं जहां निर्णय इष्टतम नहीं थे; को निरंतर सुधार पहल की आवश्यकता है । निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के एक अभिन्न अंग के रूप में जवाबदेही स्थापित करने से अधिकारियों के बीच उत्तरदायित्व की भावना पैदा होती है और संकटों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की सरकार की क्षमता में जनता का विश्वास मजबूत होता है।
निर्णय लेने में चुनौतियाँ:
संकट की स्थितियों में निर्णय लेना भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है, जिसमें निर्णय और व्यक्तिगत मानसिक क्षमता पर तनाव बढ़ जाता है। निर्णयन गलतियों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जो निर्णय निर्माताओं को रूढ़िवादी विकल्पों की ओर प्रेरित करते हैं। हालाँकि, निवारक उपायों की संभावित कमियों को नजरअंदाज करने से जटिलताएँ बढ़ सकती हैं, जो नाटकीय लेकिन समान रूप से गंभीर हो सकती हैं। अतः इस दौरान सावधानी और आवश्यक कार्रवाई के बीच संतुलन बनाना अत्यावश्यक है। साथ ही निर्णय लेने वालों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक असर को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि वे उन विकल्पों के बोझ से जूझते हैं जो जीवन और समुदायों को प्रभावित करते हैं।
किसी संकट के दौरान निर्णय लेने में चुनौतियाँ प्रभावी विकल्पों की तत्काल आवश्यकता से कहीं अधिक होती हैं। संचार, समन्वय और संसाधन आवंटन अतिरिक्त जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं, जिनसे निर्णय निर्माताओं को कठिनाई होती है। जनता की उम्मीदें, जो अक्सर सूचना की तात्कालिकता और त्वरित कार्रवाई की इच्छा से निर्मित होती हैं, निर्णय निर्माताओं पर दबाव बढ़ा सकती हैं। इसीलिए निर्णयन प्रक्रियाओं के लचीलेपन को बढ़ाने हेतु इन चुनौतियों को पहचानना और उनका समाधान करना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, मनोवैज्ञानिक सहायता तंत्र और सरकारी एजेंसियों के सहयोगात्मक प्रयास अधिक मजबूत निर्णय लेने की रूपरेखा में योगदान कर सकते हैं जो संकट प्रबंधन की जटिलताओं का सामना कर सकता है।पारदर्शिता बनाम विशिष्ट निर्णय लेना:
संकट प्रबंधन की विशिष्ट और गोपनीय प्रकृति को देखते हुए, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की मांग को अक्सर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। पारदर्शिता जनता के विश्वास के लिए महत्वपूर्ण है, ऐसे जटिलतापूर्ण निर्णय विशेषज्ञों और विषय-वस्तु विशेषज्ञों के दायरे में ही रहने चाहिए। निर्णय लेने को लोकलुभावनवाद में बदलने से रोकने के लिए सार्वजनिक पारदर्शिता और विशेषज्ञ निर्णय की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए। पारदर्शिता की मांग को प्रभावी संकट प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक गोपनीयता से समझौता नहीं करना चाहिए।
संकट प्रबंधन की जटिलताओं में अक्सर गोपनीय जानकारी, रणनीतिक विचार और वास्तविक समय के आकलन शामिल होते हैं जो सार्वजनिक प्रकटीकरण के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते हैं। पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच सही संतुलन बनाने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों और संचार रणनीतियों की आवश्यकता होती है। संवेदनशील विवरणों से समझौता किए बिना सटीक और समय पर जानकारी प्रदान करने वाले संचार चैनलों के माध्यम से जनता के साथ जुड़ना; निर्णय लेने की प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा करते हुए जन विश्वास को बढ़ावा दे सकता है। अतः पारदर्शिता को जवाबदेही और सार्वजनिक समझ के लिए एक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक पूर्ण मांग के रूप में जो संकट प्रतिक्रिया रणनीतियों की प्रभावशीलता को खतरे में डाल सकती है।
साझा उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक जवाबदेही:
कोई भी निर्णयन प्रक्रिया, कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा नियंत्रित एक विशेष डोमेन में नहीं होनी चाहिए। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में, किसी भी व्यक्ति या समूह के पास लाखों लोगों को प्रभावित करने वाले निर्णयों पर निरंकुश अधिकार नहीं होना चाहिए। विशेषज्ञों की विशेषज्ञता को पहचानते हुए, संबंधित प्रभाव क्षेत्र जनसंख्या आकार के आधार पर जिम्मेदारी के स्तर के एक पदानुक्रमित दृष्टिकोण को बढ़ा सकता है। इस संदर्भ में समावेशिता समीक्षा और जवाबदेही निर्णय लेने की प्रक्रिया तंत्र का एक अभिन्न अंग होना चाहिए। साथ ही साथ समुदायों को प्रभावित करने वाले निर्णयों में उन समुदायों के प्रतिनिधियों का इनपुट शामिल होना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों पर किस प्रकार विचार किया जाए ?
अन्य सभी बातों के अलावा एक साझा जिम्मेदारी मॉडल संकट प्रबंधन की सहयोगात्मक प्रकृति को स्वीकार करता है। स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों सहित सरकारी एजेंसियों को अपनी अंतर्दृष्टि के लिए मिलकर काम करना चाहिए। निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सामुदायिक भागीदारी और निवारक उपायों तथा उससे उत्पन्न प्रतिक्रिया रणनीतियों की प्रभावशीलता को बढ़ाती है। लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए विशेषज्ञ निर्णय और सामुदायिक भागीदारी के बीच संतुलन, यह मानते हुए कि सामूहिक रूप से लिए गए निर्णय अच्छी तरह से सूचित और आबादी की विविध आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करने वाले होते हैं; आवश्यक होती है। इस प्रकार एक सहयोगात्मक निर्णय लेने की रूपरेखा स्थापित करके लोकतांत्रिक प्रक्रिया; संकट प्रबंधन में लचीलेपन और समावेशिता के लिए एक प्रेरक शक्ति बन जाती है।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त वर्णित सभी तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, प्राकृतिक आपदाओं जैसे संकटों के दौरान निर्णय लेने के लिए निवारक उपायों और संभावित अनपेक्षित परिणामों के बीच एक संतुलन अनिवार्य है। चक्रवातों के दौरान और उसके बाद बिजली व्यवधान का मामला एक सूक्ष्म और जवाबदेह दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। एक पदानुक्रमित निर्णय लेने की प्रक्रिया, जिसमें विशेषज्ञता, आवधिक समीक्षा और जवाबदेही तंत्र शामिल हैं, एक अधिक व्यापक और जिम्मेदार रणनीति सुनिश्चित कर सकती है।इस संबंध में एक आदर्श समाधान के लिए प्रयास करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन ऐसी घटनाओं से प्रभावित लाखों लोगों की भलाई के लिए संकट प्रबंधन में निरंतर सुधार का प्रयास आवश्यक है। अतीत से लिए गए सीख का एकीकरण, जनसांख्यिकीय बारीकियों की स्वीकार्यता और निर्णय लेने की चुनौतियों की पहचान; एक समग्र दृष्टिकोण में योगदान करती है जो जन समुदायों को सशक्त बनाती है, नागरिकों और सरकार के मध्य लचीलेपन को बढ़ावा देती है और संकट प्रबंधन के लोकतांत्रिक मॉडल को प्रोत्साहित करती है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
- निर्णयकर्ता किसी संकट जैसे कि चक्रवाती घटनाओं में बिजली व्यवधान, के दौरान निवारक उपायों की आवश्यकता को, संभावित अनपेक्षित परिणामों पर विचार करते हुए, विशेष रूप से कमजोर आबादी के लिए कैसे संतुलित कर सकते हैं? जनसांख्यिकीय विचारों और दीर्घकालिक सामुदायिक लचीलेपन को ध्यान में रखते हुए एक सूक्ष्म और जवाबदेह दृष्टिकोण के महत्व पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
- संकट प्रबंधन के संदर्भ में, निर्णय लेने में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कौन सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं? पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र, नियमित ऑडिट और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के सार्वजनिक प्रकटीकरण की भूमिका का पता लगाएं, साथ ही संकट स्थितियों की जटिलताओं से निपटने में निर्णय निर्माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान के उपाय भी सुझाएं । (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu