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Daily-current-affairs / 29 Jun 2023

दिल्ली सेवा अध्यादेश के संवैधानिक निहितार्थ - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 30-06-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2: संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ - अध्यादेश

की-वर्ड : अनुच्छेद 239 एए, जवाबदेही की त्रिस्तरीय श्रृंखला, अध्यादेश, अनुच्छेद 123

सन्दर्भ :

दिल्ली सरकार के पक्ष में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद, केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी किया, जिसका उद्देश्य सेवाओं पर निर्वाचित दिल्ली सरकार का नियंत्रण कमजोर करना और इसे केंद्र सरकार को फिर से सौंपना है। इस कार्यवाही से लोकतांत्रिक मूल्यों और जवाबदेही के क्षरण को लेकर चिंताएं उत्पन्न हो गई हैं।

भारतीय राजव्यवस्था में अध्यादेश:

  • अनुच्छेद 123: संविधान के तहत कानून बनाने की शक्ति विधायिका के पास है। परन्तु , ऐसे मामलों में जब संसद सत्र न चल रहा हो, और 'तत्काल कार्रवाई' की आवश्यकता हो, राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं। अध्यादेश एक कानून है, और विधायी परिवर्तन ला सकता है।
  • प्रभाव: विधानमंडल के अधिनियमों के समतुल्य ।
  • संसदीय अनुसमर्थन: अनुसमर्थन के बाद छह सप्ताह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदन आवश्यक है ।
  • वैधता अवधि: अधिकतम अवधि छह महीने और छह सप्ताह।
  • राज्य-स्तरीय अध्यादेश: अनुच्छेद 213 के तहत राज्यपाल का अधिकार।
  • समय संबंधी विवादों का समाधान: बाद के सत्र को प्राथमिकता दी गई।
लाभ सीमाएं
अत्यावश्यक मामलों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई की अनुमति देते हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार करते हैं और संसदीय निरीक्षण को सिमित करते हैं।
विधायी बाधाओं के बिना नीति कार्यान्वयन को सक्षम बनाते हैं। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कमजोर करते हैं और विधायिका के क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं।
न्यायिक अंतराल या अस्पष्टता के मामले में कानूनी निश्चितता और स्पष्टता प्रदान करते हैं। कानूनी अस्थिरता उत्पन्न करते हैं क्योंकि वे अस्थायी होते हैं और परिवर्तन या निरसन के अधीन होते हैं।
  राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए या सार्वजनिक जांच या बहस से बचने के लिए उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।

अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले

  1. आर.सी. कूपर बनाम भारत संघ (1970): इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया की कि अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के अधीन है और यह मौलिक अधिकारों या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
  2. ए.के. रॉय बनाम भारत संघ (1982): सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश की वैधता को बरकरार रखा और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 को संविधान संगत माना साथ ही यह निर्देश दिया कि सरकारें इस अधिनियम को सावधानी से उपयोग में लाएं और बड़े अपराधियों के लिए ही इस कानून का उपयोग करें।
  3. डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य (1987): सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेशों के समय-समय पर पुनः प्रवर्तन को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह विधायी प्रक्रिया को कमजोर करता है, और माना कि यदि पुन: संयोजन के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदित नहीं किया जाता है तो अध्यादेश समाप्त हो जाते हैं।

एनसीटीडी सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 की मुख्य विशेषताएं:

राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की स्थापना:

  • एनसीसीएसए का नेतृत्व दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, जिसमें दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव अन्य दो सदस्य होंगे।
  • इसका प्राथमिक कार्य अखिल भारतीय सेवाओं (एआईएस) और दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सिविल सेवा (डीएनआईसीएस) में कार्यरत अधिकारियों के स्थानांतरण, पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य संबंधित मामलों के संबंध में उपराज्यपाल (एलजी) को सिफारिशें करना होगा।
  • एनसीसीएसए के भीतर निर्णय बहुमत के माध्यम से किए जाएंगे, जिसका अर्थ है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्णय को दो वरिष्ठ नौकरशाहों द्वारा खारिज किया जा सकता है।

उपराज्यपाल (एलजी) की भूमिका:

  • एनसीसीएसए द्वारा दी गई सिफारिशों को लागू करने के लिए उप राज्यपाल आदेश जारी करेंगे।
  • यदि उप राज्यपाल किसी सिफारिश से असहमत हैं, तो वे इसे पुनर्विचार के लिए एनसीसीएसए को वापस कर सकते हैं। अंतत: अंतिम निर्णय एलजी पर निर्भर करता है।

अध्यादेश द्वारा किये गये परिवर्तन:

  • अध्यादेश सूची II से "सेवाओं" को शामिल करके अनुच्छेद 239AA(3)(a) में संशोधन करता है, जिससे संघ के नियंत्रण में मामलों की सीमा का विस्तार होता है।

केंद्र सरकार का तर्क:

  • अध्यादेश के समर्थकों ने दो औचित्य सामने रखे। सबसे पहले, उनका तर्क है कि राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की स्थिति में निर्वाचित दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच हितों का संतुलन आवश्यक है।
  • दूसरे, उनका दावा है कि संविधान का अनुच्छेद 239AA संसद को सेवाओं से संबंधित कानून पारित करने का अधिकार देता है, भले ही वे राज्यों के विशेष अधिकार के अंतर्गत आते हों।

अध्यादेश की सीमाएं:

  • यह अध्यादेश प्रतिनिधि लोकतंत्र और एक उत्तरदायी प्रशासन के आवश्यक सिद्धांतों को कमजोर करता है। निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा घोषित की गई नीतियों और वादों को लागू करने के लिए सेवाओं पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है।
  • निर्वाचित सरकार को इस नियंत्रण से वंचित करके, अध्यादेश "जवाबदेही की “त्रिस्तरीय श्रृंखला" को बाधित करता है जो सिविल सेवकों की कैबिनेट, कैबिनेट की विधायिका और विधायिका की मतदाताओं के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

प्रतिनिधि शासन का संरक्षण:

  • दिल्ली की विशेष स्थिति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 239एए, पहले से ही राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की अद्वितीय स्थिति को स्वीकार करते हैं।
  • सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस जैसे कुछ क्षेत्र स्पष्ट रूप से दिल्ली सरकार के दायरे से प्रतिबंधित हैं, जबकि सेवाएँ इसके अधिकार क्षेत्र में बनी हुई हैं।
  • यह व्यवस्था जवाबदेही की त्रिस्तरीय श्रृंखला को संरक्षित करती है, यह सुनिश्चित करती है कि दिल्ली के नौकरशाह चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह हैं, जिसके परिणाम स्वरुप वो विधायिका और दिल्ली के लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं ।

जवाबदेही की श्रृंखला को बाधित करना:

  • दिल्ली सेवा अध्यादेश केंद्र सरकार को सेवाओं का पूरा नियंत्रण हस्तांतरित करके जवाबदेही की इस स्थापित श्रृंखला को बाधित करता है।
  • कानून की आवश्यकता वाली विशिष्ट परिस्थितियों कासमाधान प्रस्तुत करने के बजाय, अध्यादेश केंद्र सरकार को विशेष शक्ति प्रदान करके संवैधानिक संतुलन को कमजोर करने का प्रयास करता है।
  • अधिनियमन के लिए किसी प्रभावी तर्क का आभाव अधिनियमन को स्पष्ट रूप से मनमाना और असंवैधानिक बना देता है।

निष्कर्ष:

दिल्ली सेवा अध्यादेश इच्छित संवैधानिक ढांचे के विपरीत, प्रतिनिधि लोकतंत्र और उत्तरदायी शासन के लिए एक संकट उत्पन्न करता है। यह जवाबदेही की त्रिस्तरीय श्रृंखला का क्षरण करके दिल्ली में लोकतांत्रिक शासन के आधार को कमजोर करता है। चूंकि यह वाद अभी कि सुप्रीम कोर्ट में है इसलिए अब यह सुप्रीम कोर्ट का उत्तरदायित्व है की वह इसका संविधान सम्मत समाधान प्रदान करे ।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -

  • प्रश्न 1: दिल्ली सेवा अध्यादेश के संवैधानिक निहितार्थ और प्रतिनिधि लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये । (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2: एनसीटीडी सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषण करें और दिल्ली सरकार के संदर्भ में जवाबदेही की त्रिस्तरीय श्रृंखला पर इसके निहितार्थों का मूल्यांकन कीजिये । केंद्र सरकार द्वारा दिए गए औचित्य का आलोचनात्मक परीक्षण करें और अध्यादेश में संवैधानिक खामियों पर चर्चा करें (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: The Hindu