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Daily-current-affairs / 22 Dec 2023

भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रवर्तन में चुनौतियां - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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Date : 23/12/2023

प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3- सुरक्षा- सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप

की-वर्ड्स : धन शोधन का मुद्दा, ईडी की शक्तियां, न्यायिक समीक्षा, पीएमएलए

संदर्भ:

हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) की व्याख्या की गई है । ध्यातव्य है कि यह अधिनियम नशीली दवाओं से सम्बद्ध संकट तथा आतंकवाद के निस्तारण हेतु भारत की प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण विधायी उपकरण है । इस लेख में हम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तलाशी, कुर्की और गिरफ्तारी से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डालते हुए मुख्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के निहितार्थ परीक्षण करेंगे।


धन शोधन क्या है?

  • धन शोधन/मनी लॉन्ड्रिंग , आपराधिक गतिविधियों यथा मादक पदार्थों की तस्करी या आतंकवादी फंडिंग से प्राप्त धन के रूपांतरण की प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है , जिससे इस काले धन को वैध रूप से अर्जित धन के रूप में दिखाया जा सके।
  • अवैध हथियारों और नशीली दवाओं की तस्करी से लेकर इनसाइडर ट्रेडिंग, रिश्वतखोरी तथा कंप्यूटर धोखाधड़ी आदि अवैध धन के स्त्रोत हैं।
  • धन शोधन एक ऐसी प्रक्रिया जिसके माध्यम से उपर्युक्त गतिविधियों से अर्जित अवैध धन को वैध बनाने का प्रयास किया जाता है।
  • सार रूप में कहें तो धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) एक अवैध प्रक्रिया है जिसमें अवैध रूप से अर्जित धन के स्रोत को छिपाया जाता है तथा उसे वैध दिखाया जाता है

धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए)

  • उद्देश्य: यह अधिनियम धन शोधन के अपराधों की जांच, संपत्ति की कुर्की और जब्ती की कार्रवाई करने तथा मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में सम्मिलित व्यक्तियों के खिलाफ अभियोग हेतु प्रावधान करता है।
  • प्रवर्तन: धन शोधन अपराधों की जांच हेतु ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) उत्तरदायी है।
  • सूचना विश्लेषण: वित्तीय खुफिया इकाई - भारत (FIU-IND) संदिग्ध वित्तीय लेनदेन पर सूचना संसाधित करती है।
  • अनुसूचित अपराध: अन्य एजेंसियां, जैसे स्थानीय पुलिस, सीबीआई, सीमा शुल्क और सेबी, अपने संबंधित अधिनियमों के तहत अनुसूचित अपराधों की जांच करती हैं।
  • अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई: अपराधियों के लिए दंडात्मक उपायों के साथ संपत्ति की जब्ती और कुर्की सम्मिलित है।
  • सज़ा: इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधियों को कम से कम तीन वर्ष के कठोर कारावास का सामना करना पड़ता है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और बिना किसी निर्दिष्ट सीमा के जुर्माना लगाया जा सकता है।

विजय मदनलाल चौधरी वाद (2022) में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

  • 2022 के विजय मदनलाल चौधरी तथा अन्य बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के आवेदन को अनुसूचित अपराधों से संबंधित गलत और अवैध लाभ तक सीमित कर दिया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अभियोग हेतु अधिकृत अधिकारी का अधिकार अधिनियम,2002 की धारा 2(1)(यू) में परिभाषित अपराध की आय के अस्तित्व पर निर्भर करता है।
  • पंकज बंसल बनाम भारत संघ के नवीनतम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना की मीडिया ने अपनी शक्तियों के बाहर ईडी की कार्रवाइयों को रिपोर्ट किया था इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की आलोचना भी की थी साथ ही न्यायालय ने ईडी द्वारा ईमानदारी, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।

पावना डिब्बर मामले में न्यायिक जांच (2023)

नवंबर 2023 में, पावना डिब्बर बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले में जस्टिस अभय एस. ओका और पंकज मिथल ने पीएमएलए के महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पीएमएलए की धारा 3 के तहत किसी भी अपराध के लिए "अपराध की आय" का अस्तित्व एक अनिवार्य शर्त है।

धन शोधन निवारण अधिनियम का संघवाद पर प्रभाव

  • गैर-अनुसूचित अपराधों में सत्ता का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदान की गई स्पष्टता के बावजूद, विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में सत्ता के दुरुपयोग को लेकर चिंताएं व्यक्त की जाती रहीं हैं। उदाहरण के लिए खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957, (पीएमएलए की अनुसूची में शामिल नहीं है) के अंतर्गत राज्य के अधिकार क्षेत्र के तहत एक मामूली खनिज, रेत के कथित अवैध खनन में ईडी जांच देखी गई है। यह संघवाद और ईडी के अधिकार की सीमाओं के बारे में प्रश्न उत्पन्न करता है ।
  • केस स्टडी: झारखंड में, अनुसूचित अपराधों या अपराध की आय के संदर्भ में ईडी की कार्रवाइयों से शंकाएं उत्पन्न होती हैं। ईडी का उन मामलों में भी सम्मिलित होना जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं, कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के आरोपों को जन्म देते हैं ।
  • जांच एजेंसियों द्वारा पक्षपातपूर्ण कार्रवाई: यह विपक्ष द्वारा शासित राज्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जांच एजेंसियों द्वारा चयनात्मक लक्ष्यीकरण को प्रदर्शित करता है। ईडी द्वारा झारखंड में राजनीतिक हस्तियों को कथित तौर पर निशाना बनाना और अवैध खनन के उच्च मामलों के बावजूद भाजपा शासित राज्यों में कथित निष्क्रियता,ईडी की निष्पक्षता के विषय में संदेह उत्पन्न करती है।
  • कानूनी प्रक्रियाओं में हेरफेर: यह कानूनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग के उदाहरणों पर प्रकाश डालता है, जैसे नोटिस जारी करने वाली पीठ में बदलाव और बाद के न्यायिक निर्णयों की उपेक्षा करना । इससे सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाहर काम करने का अवसर मिलता है।
  • संवैधानिक निहितार्थ: केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग भारत में लोकतंत्र की स्थिति और संवैधानिक सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न आरोपित करता है। विपक्ष शासित राज्यों मे प्रशासन की निंदा संबंधी न्यायालयों के वक्तव्य संघवाद का क्षरण (संविधान का एक बुनियादी पहलू ),को स्पष्ट करता है । जबकि अन्य जगहों पर इसी तरह की कार्रवाइयों की अनदेखी की जाती है।

भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के प्रवर्तन में सामान्य चुनौतियां

  1. कानूनी ढांचे की जटिलता:
    PMLA कानून जटिल भाषा और तकनीकी शब्दावली से भरा हुआ है, जिससे इसकी व्याख्या और अनुपालन मुश्किल हो जाता है। विभिन्न प्रावधानों के बीच अस्पष्टता भी मौजूद हैं, जिससे विधिक अनिश्चितता पैदा होती है।
  2. संस्थागत क्षमता में कमी:
    PMLA के प्रभावी प्रवर्तन के लिए आवश्यक मानव संसाधन, प्रशिक्षण और तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी है। प्रवर्तन एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ED) और वित्तीय खुफिया इकाई (FIU) में कर्मचारियों की संख्या अपर्याप्त है, और उनके पास उन्नत डेटा विश्लेषण और जांच तकनीकों तक पहुंच नहीं है।
  3. अंतर-एजेंसी समन्वय की कमी:
    PMLA के प्रवर्तन में विभिन्न एजेंसियां शामिल हैं, जिनमें ED, FIU, केंद्रीय बैंक, पुलिस और अन्य नियामक शामिल हैं। इन एजेंसियों के बीच डेटा साझाकरण और समन्वय की कमी PMLA के प्रभावी प्रवर्तन में बाधा डालती है।
  4. राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार:
    राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार PMLA के प्रवर्तन में बाधा डाल सकते हैं। कुछ मामलों में, राजनीतिक रूप से जुड़े व्यक्तियों को जांच से बचाया जा सकता है, जिससे PMLA की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  5. साक्ष्य जुटाने में कठिनाई:
    धन शोधन के मामलों में साक्ष्य जुटाना मुश्किल होता है, क्योंकि अपराधी अक्सर जटिल लेनदेन और कानूनी संस्थाओं का उपयोग अपनी गतिविधियों को छुपाने के लिए करते हैं।
  6. अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी:
    धन शोधन एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है, इसलिए PMLA के प्रभावी प्रवर्तन के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। हालांकि, विभिन्न देशों के बीच कानूनी ढांचे और प्रवर्तन तंत्र में अंतर PMLA के प्रभावी प्रवर्तन में बाधक सिद्ध होते हैं ।
  7. जन जागरूकता की कमी:
    PMLA और धन शोधन के खतरों के बारे में जन जागरूकता की कमी है। इससे लोगों को PMLA उल्लंघन की रिपोर्ट करने और धन शोधन गतिविधियों में संलिप्त होने से रोकने में बाधा आती है।

निष्कर्ष

यह व्यापक विश्लेषण भारत में पीएमएलए के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों और चिंताओं को प्रकाश में लाता है। धन शोधन से निपटने और संवैधानिक मूल्यों, विशेषकर संघवाद के संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन, चल रही बहस में सबसे महत्वपूर्ण है। चूँकि देश इन मुद्दों से जूझ रहा है परंतु संभावना है कि संवैधानिक संस्थाएँ देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने की रक्षा के लिए निष्पक्षता, पारदर्शिता और विधि के शासन के पालन को प्राथमिकता देंगी।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रमुख उद्देश्यों और प्रवर्तन तंत्रों की 5 चर्चा करें। मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और वित्तीय खुफिया इकाई - भारत (एफआईयू-आईएनडी) की भूमिकाओं पर प्रकाश डालें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. विजय मदनलाल चौधरी मामले और पावना डिब्बर मामले में सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के सामने आने वाली हालिया चुनौतियों की जांच करें। मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने की प्रभावशीलता पर निहितार्थ का आकलन करें और इन चिंताओं को दूर करने के उपाय सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)।

Source- The Hindu



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