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Daily-current-affairs / 12 Sep 2023

भारत के एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देनाः डिजिटल एकीकरण, चुनौतियां और सरकारी पहलें - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 13-09-2023

प्रासंगिकता: जी. एस. पेपर 3-भारतीय अर्थव्यवस्था

कीवर्ड्स: UNCTAD, OECD, WTO, PMMY

संदर्भ :

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का एकीकरण महत्वपूर्ण है।

भारत का एमएसएमई क्षेत्रः-

  • भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को उनके निवेश के आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
  • एमएसएमई उद्यमों को परिभाषित करने का मानदंड एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 पर आधारित था। यह विनिर्माण और सेवा इकाइयों के लिए अलग था। वित्तीय सीमा (यानी निवेश राशि) के लिहाज से भी यह बहुत कम था। तब से, अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं।
  • विनिर्माण और सेवा इकाइयों के लिए वर्गीकरण का एक नया समग्र फॉर्मूला अधिसूचित किया गया है। अब विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में कोई अंतर नहीं रह गया है।
  • भारत सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक, 2018 द्वारा एमएसएमई को फिर से परिभाषित करने का प्रस्ताव रखा, ताकि उन्हें विनिर्माण या सेवा प्रदान करने वाले उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया जा सके। इस विधेयक के तहत, संयंत्र और आवश्यक मशीनरी में किए जाने वाले आवश्यक निवेश की जांच के लिए बार-बार निरीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। साथ ही, एमएसएमई के संचालन को पारदर्शी, गैर-भेदभावपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण तरीके से जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।
  • नया मानदंड उद्यम की निवेश राशि और टर्नओवर पर आधारित है।
वर्ग निवेश सीमा (रुपये में) टर्नओवर सीमा (रुपये में)
माइक्रो 1 करोर 5 करोड़
छोटा 10 करोड़ 50 करोड़
मध्यम 50 करोड़ 250 करोड़

  • एमएसएमई देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
  • यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,
  • विशेष रूप से अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में, उद्यमिता को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।

भारत का वैश्विक डिजिटल प्रभावः

  • भारत ने घरेलू और निर्यात दोनों क्षेत्रों में डिजिटल परिवर्तनों की गति और विस्तार के मामले में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया है।
  • यूएनसीटीएडी 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में भारत ने 89 बिलियन डॉलर मूल्य की डिजिटल सेवाओं का निर्यात किया।
  • ओईसीडी के अनुसार वैश्विक अनुमानित डिजिटल व्यापार निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 400 प्रतिशत बढ़ी है , जो 1995 में 1 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में लगभग 4 प्रतिशत हो गई।

एमएसएमई और डिजिटल सेवाएं:

  • 2023 के अंत तक भारत में इंटरनेट ग्राहकों की अनुमानित संख्या 800 मिलियन तक पहुंचने के साथ, छोटे व्यवसाय अपने संचालन में डिजिटल सेवाओं को तेजी से एकीकृत कर रहे हैं।
  • इन सेवाओं में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, विपणन और संचार के लिए सोशल मीडिया और डिजिटल भुगतान अनुप्रयोग शामिल हैं।
  • भारतीय एमएसएमई अपनी बाजार पहुंच का विस्तार करने और ग्राहक संबंधों को मजबूत करने के लिए स्मार्टफोन आधारित विपणन और संचार सेवाओं जैसे डिजिटल सेवा इनपुट को भी अपना रहे हैं।

एमएसएमई के सामने चुनौतियां:

1. शुल्क अधिस्थगनः

  • 1998 में, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य पर एक घोषणा को अपनाया था , जिसमें सीमा पार इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण के लिए सीमा शुल्क पर दो वर्ष की छूट शामिल थी।
  • इस स्थगन को हर दो साल में लगातार नवीनीकृत किया गया है, वर्तमान विस्तार 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाला है।
  • भारत को इस रोक से लाभ हुआ है, क्योंकि इसने सेवाओं के निर्यात और आयात को सुगम बनाया है।
  • यदि रोक समाप्त हो जाती है, तो यह सेमीकंडक्टर डिजाइन , एक सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर संगीत, फिल्में, किताबें एवं मनोरंजन जैसी डिजिटल सामग्री सहित विभिन्न प्रकार के नियमित सीमा पार डेटा प्रसारण को बाधित कर सकता है।
  • डिजिटल सेवाओं पर नए टैरिफ लगाने से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है और एमएसएमई के विकास में बाधा आ सकती है।

2. एमएसएमई का बढ़ता एनपीए:

  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार एमएसएमई की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) अब सकल अग्रिम का 9.6 प्रतिशत है, जबकि 2020 में यह 8.2 प्रतिशत था।
  • एमएसएमई क्षेत्र महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ था, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण कई व्यवसाय या तो बंद हो गए थे या उन्हें वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा था।

3. वित्त पोषण की अनुपलब्धता और विलम्बः

  • एमएसएमई को बढती हानि , ऋण और सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • बैंक एमएसएमई को ऋण प्रदान करने में संकोच कर रहे हैं, और उनमें से कई वित्तपोषण के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर निर्भर हैं,जिससे उन्हें सितंबर 2018 से तरलता के मुद्दों का भी अनुभव किया है।

4. औपचारिकता का अभाव:

  • भारत में विनिर्माण एमएसएमई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है परन्तु लगभग 86 प्रतिशत विनिर्माण एमएसएमई उचित पंजीकरण के बिना काम कर रहे हैं।
  • 6.3 करोड़ एमएसएमई में से केवल 1.1 करोड़ ही वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत पंजीकृत हैं और आयकर दाखिल करने वालों की संख्या और भी कम है।

तकनीकी सक्षमता की आवश्यकता

मार्केटप्लेस और डिजिटल प्लेटफॉर्म एमएसएमई के लिए दोहरी भूमिका निभाते हैं। सबसे पहले, वे पहुंच और ग्राहक आधार का विस्तार करते हुए नए बाजारों में प्रवेश का अवसर प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये प्लेटफ़ॉर्म क्लाउड-आधारित एप्लिकेशन, ऑटोमेशन, डेटा एनालिटिक्स और बिजनेस इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों तक भी पहुंच प्रदान करते हैं। ये तकनीकी उपकरण एमएसएमई को बाजार के रुझान और ग्राहक व्यवहार में गहरी अंतर्दृष्टि के साथ सशक्त बनाते हैं, जिससे तेजी से और सूचित निर्णय लेने में वे सक्षम होते हैं, जिससे उनकी बिक्री और राजस्व में वृद्धि होती है।

जहां कई सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों ने स्थानीय बाजारों के लिए डिजिटलीकरण को अपनाया है, वहीं यह सीमा रहित बाजारों के माध्यम से वैश्विक क्षेत्र के लिए भी अवसर प्रदान करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय विस्तार को बढ़ाता है और व्यवसायों को अपने संसाधनों और लागतों को अनुकूलित करने में शक्षम बनता है। ये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, चाहे बाज़ार हों, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म हों या सोशल मीडिया, वेबसाइट, रेटिंग सिस्टम, फीडबैक मैकेनिज्म, पेमेंट टूल्स, कन्वर्सेशन टूल्स और ट्रस्ट सर्टिफिकेट जैसी सुविधाएँ प्रदान करते हैं। ये विशेषताएँ बाजार में विश्वसनीयता का निर्माण करती हैं और एमएसएमई के लिए व्यापार के अवसरों का लोकतंत्रीकरण करती हैं।

वर्तमान परिदृश्य में, व्यवधानों का सामना करने, लचीलापन बढाने और रणनीतिक रूप से स्वयं को बदलने की इच्छा रखने वाले व्यवसायों के लिए डिजिटल दक्षता अनिवार्य है। डिजिटलीकरण का महत्व लगातार बढ़ रहा है। ऑनलाइन मंचों के पूर्ण लाभों का उपयोग करने के लिए, एमएसएमई को डिजिटल रणनीतियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाने या ऑनलाइन विपणन, ग्राहक संवाद मंच और नियामक अनुपालन का प्रबंधन करने के लिए समर्पित संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।

एमएसएमई के विकास के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे का लाभ उठाना

आज के उभरते व्यावसायिक परिदृश्य में अवसरों का लाभ उठाने के लिए छोटे और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाना आवश्यक है, लेकिन अकेले प्रौद्योगिकी उन्हें भारत के विकास के चालकों में नहीं बदल सकती है। एमएसएमई , ऋण और वित्तीय संसाधनों तक अपर्याप्त तथा अनिश्चित पहुंच जैसे लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों से जूझ रहे हैं। ये चुनौतियाँ पर्याप्त संपार्श्विक (collateral) की कमी और कम क्रेडिट स्कोर से उत्पन्न होती हैं, जो उन्हें उच्च ब्याज दरों के साथ असुरक्षित ऋण का सहारा लेने के लिए मजबूर करती हैं। यह न केवल उनके व्यवसायों की आर्थिक व्यवहार्यता को प्रभावित करता है, बल्कि उनके विस्तार और नई तकनीक को अपनाने में भी बाधा उत्पन्न करता है, जिससे उनका मनोबल गिरता है।

इसलिए, डिजिटल वित्तीय सेवाओं का उदय न केवल इन बाधाओं का समाधान प्रदान करता है, बल्कि वित्तीय समावेशन को भी बढ़ावा देता है। भारत का डिजिटल वाणिज्य पारिस्थितिकी तंत्र आपस में जुड़ा हुआ और परस्पर संचालित हो रहा है, जिससे एक मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार हो रहा है जो अन्य डिजिटल सेवाओं के मूल्य को कम कर के नवाचार को बढ़ावा देता है। सरकार की पहलें जैसे आत्मनिर्भर भारत अभियान, केंद्रीय बजट 2022-23 में 15,700 करोड़ रुपये का आवंटन, 7,500 नए उत्पादों को कवर करने के लिए 'एक जिला एक उत्पाद' (ओडीओपी) योजना का विस्तार, उद्यम पंजीकरण पोर्टल और ओएनडीसी का शुभारंभ आदि एक मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में कदम हैं। इसी तरह, इंडियामार्ट और जीईएम जैसे बाज़ार उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और एमएसएमई को सुविधा प्रदान करते हैं जो इस क्षेत्र के विकास को और बढ़ावा देते हैं।

विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में सुधार के बावजूद, भारत में एमएसएमई को अधिक व्यापक राष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता है। उन्हें फलने-फूलने के लिए अधिक अनुकूल कानूनी, नियामक और प्रशासनिक वातावरण की आवश्यक है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन मार्केटप्लेस अपने इंटरफेस में भुगतान और क्रेडिट सेवाओं को एकीकृत करके और एमएसएमई पर विस्तृत डेटा एकत्र करके डिजिटल वित्तीय सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण मध्यस्थों के रूप में काम कर सकते हैं। यह डेटा उन्हें विशिष्ट समूहों के जोखिम प्रोफाइल में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और उनकी अनूठी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय उत्पादों को विकसित करने उत्त्साह प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, सरकार को इस क्षेत्र की सहायता के लिए अपने प्रयासों में तेजी लानी चाहिए और नई तकनीकों के नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए जो व्यक्तिगत डिजिटल समाधान प्रदान करते हैं और इस क्षेत्र की जटिल प्रकृति को देखते हुए ऋण तक पहुंच को सक्षम बनाते हैं।

भारत में एमएसएमई को समर्थन देने वाली सरकारी पहल:

1. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई):

  • पीएमएमवाई विभिन्न सदस्य ऋण संस्थानों (एमएलआई) जैसे बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), माइक्रो वित्तीय संस्थानों (एमएफआई) और अन्य के माध्यम से 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करता है।
  • विभिन्न विकास चरणों और उधारकर्ताओं की वित्त पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, ऋणों को 'शिशु' (50,000 रुपये तक), 'किशोर' (50,000 रुपये से अधिक और 5 लाख रुपये तक), और 'तरुण' (5 लाख रुपये से अधिक और 10 लाख रुपये तक) में वर्गीकृत किया गया है।

2. सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई):

  • यह योजना क्रेडिट गारंटी तंत्र प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।

3. स्टैंड अप इंडिया:

  • यह अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और महिलाओं उद्यमियों को नए उद्यम स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

4. मूल्य श्रृंखलाओं में सामंजस्य स्थापित करना:

  • सरकार का लक्ष्य भारत की मूल्य श्रृंखलाओं को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ एकीकृत करना और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी मूल्य श्रृंखलाओं में भारत को शामिल करने के लिए आकर्षित करने के लिए लॉजिस्टिक्स को सुव्यवस्थित करना है।

5. गुणवत्ता आश्वासनः

  • सरकार वैश्विक मानक स्थापित करके, भारतीय मानकों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करके और गुणवत्ता के लिए बढ़ती उपभोक्ता मांगों को पूरा करके गुणवत्ता मानकों को ऊपर उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।

6. व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (सीईपीए)

  • सीईपीए, भारत और संयुक्त अरब अमीरात में एमएसएमई को एक निर्यात केंद्र पहल के रूप में जिले का लाभ उठाने की सुविधा प्रदान करता है।
  • यह पहल विभिन्न जिलों के अद्वितीय उत्पादों की पहचान करती है, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देती है और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करती है।

आगे का रास्ता

भारत में छोटे व्यवसायों के विकास को सुगम बनाने और उन्हें अपने ग्राहक आधार का विस्तार करने में सक्षम बनाने के लिए, नीति निर्माताओं को ऐसे उपाय करने चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय सेवाओं सहित डिजिटल सेवाओं तक पहुंच की लागत को कम करते हो और प्रक्रिया को सरल बनाते हों ।

पुनः वैश्वीकरण के "अधिक विविध और लोकतांत्रिक" रूप के लिए बी20 शिखर सम्मेलन में विदेश मंत्री के प्रस्ताव के अनुरूप, शुल्कों पर रोक बनाए रखने से उत्पादकों के रूप में वैश्विक दक्षिण देशों के उदय का समर्थन किया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. भारत के एमएसएमई क्षेत्र को आर्थिक वृद्धि और सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रमुख चालक माना जाता है। एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में डिजिटल प्रौद्योगिकियों की भूमिका पर चर्चा करें और कैसे प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी सरकारी पहल उनके विकास का समर्थन कर रही हैं। (15 अंक, 250 शब्द)
  2. सीमा पार इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन के लिए सीमा शुल्क पर रोक का विस्तार बहस का विषय रहा है। यदि यह स्थगन समाप्त हो जाता है तो भारत के एमएसएमई पर संभावित प्रभाव का मूल्यांकन करें और इन प्रभावों को कम करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएं। (10 अंक, 150 शब्द)

Source – The Hindu Business Line