तारीख (Date): 27-06-2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2: संवैधानिक और गैर संवैधानिक निकाय - परिसीमन आयोग
की-वर्ड्स : चुनाव आयोग, जनगणना, निर्वाचन क्षेत्र,
सन्दर्भ:
चुनाव आयोग ने हाल ही में असम के लिए परिसीमन दस्तावेज़ का मसौदा जारी किया, जिसमें कई लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं में संशोधन का सुझाव दिया गया है। यद्दपि, इस प्रस्ताव पर राज्य में विरोध और विवादों को जन्म दे दिया दिया है।
परिसीमन और इसका उद्देश्य:
- परिसीमन का अर्थ जनसंख्या में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिए संसदीय और विधानसभा के सीटों की सीमाओं को पुनः से निर्मित करना होता है।
- इसका उद्देश्य जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना और किसी भी राजनीतिक दल को अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकना है।
- असम में, सुरक्षा चिंताओं के कारण 2008 में परिसीमन को स्थगित कर दिया गया था और 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 2020 में इसे आधिकारिक तौर पर पुनः प्रारंभ किया गया ।
प्रस्ताव की मुख्य बातें:
इस मसौदे में सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नही किया गया है (126 विधानसभा और 14 लोकसभा), परन्तु भौगोलिक सीमाओं में बदलाव और अनुसूचित जनजाति (ST ) और अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में वृद्धि का सुझाव देता है।
प्रस्ताव के महत्वपूर्ण बिंदु :
- बढ़ी हुई आरक्षित सीटें: अनुसूचित जाति (SC ) के लिए विधानसभा सीटें 8 से बढ़ा कर 9 करने का प्रस्ताव है , और अनुसूचित जनजाति (ST ) के लिए विधानसभा सीटें 16 से बढ़ा कर 19 करने का प्रस्ताव है।
- स्वायत्त परिषद वाले जिलों के लिए अधिक सीटें: पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में एक विधानसभा सीट में वृद्धि हुई, और बोडो प्रादेशिक क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें बढ़ाई गई हैं ।
- नाम परिवर्तन: कलियाबोर लोकसभा क्षेत्र का नाम बदलकर 'काजीरंगा' कर दिया गया।
प्रक्रिया और विवाद:
- राजनीतिक दलों और संगठनों के सुझावों पर विचार करते हुए 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया गया है।
- यद्दपि, इस मसौदे पर पक्षपातपूर्ण और विभाजनकारी होने के आरोप लगे हैं। विरोधियों, विशेष रूप से बंगाली मूल के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले एआईयूडीएफ का तर्क है कि यह प्रस्ताव मतदाताओं को धार्मिक आधार पर विभाजित करता है और उनके समुदाय को राजनीतिक रूप से हानि पहुंचाता है।
- उनका तर्क है कि मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को हिंदू-बहुल आबादी में मिला दिया गया है, जिससे उन निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम हो गई है जहां मुस्लिम विधायक चुने जा सकते हैं।
क्या आप जानते है?
प्रति जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के
अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है। भारत में, ऐसे
परिसीमन आयोगों का गठन अब तक 4 बार किया जा चुका है- 1952 में परिसीमन आयोग
अधिनियम, 1952 के तहत; 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के तहत; 1973 में
परिसीमन अधिनियम, 1972 के तहत; 2002 में परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत।
परिसीमन आयोग का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का अवकाश प्राप्त जज होता है, और
इसके सदस्यों में मुख्य निर्वाचन आयुक्त या मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा नामित
कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त और संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त भी शामिल होते
हैं।
भारत में परिसीमन आयोग की भूमिका और चुनौतियाँ
परिसीमन आयोग: यह बाध्यकारी निर्णयों वाला एक आधिकारिक निकाय है जो निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके निर्णयों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और राजनीतिक शक्ति के समान वितरण पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
परिसीमन आयोग के दायित्व
- निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण: परिसीमन आयोग को निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का सीमांकन करने का दायित्व प्रदान किया गया है। यह जनगणना के आंकड़ों पर सावधानीपूर्वक विचार करता है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की समान संख्या सुनिश्चित करने का प्रयास करता है, जिससे 'एक व्यक्ति, एक वोट' के सिद्धांत को बनाए रखा जा सके।
- प्रत्येक सीट पर समान जनसंख्या प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना; आयोग का लक्ष्य प्रत्येक सीट की जनसंख्या को संतुलित करके समान प्रतिनिधित्व प्राप्त करना है। जनगणना आंकड़ों के सूक्ष्म विश्लेषण के माध्यम से, यह निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को निर्धारित करता है जो जनसंख्या के आकार में असमानताओं को कम करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक वोट का समान महत्व हो।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें निर्धारित करना; हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने के लिए, परिसीमन आयोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसँख्या वाले क्षेत्रों की पहचान करता है। यह इन समुदायों के लिए विशेष रूप से कुछ सीटें आरक्षित करता है, उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता है , जिससे उनका प्रतिनिधत्व सुनिश्चित किया जा सके ।
- बहुमत के निर्णयों के माध्यम से असहमतियों का समाधान: परिसीमन आयोग में कई सदस्य होते हैं और मतभेद की स्थिति में बहुमत का निर्णय मान्य होता है। यह तंत्र सुनिश्चित करता है कि निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाएं और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करें।
परिसीमन प्रक्रिया में जनता की भागीदारी:
- मसौदा प्रस्ताव: प्रकाशन और समीक्षा
- खुली बैठकें: जनता को शामिल करना
- संशोधन: आवश्यकतानुसार प्रस्ताव को अपनाना
- आयोग सार्वजनिक परामर्श के दौरान प्राप्त फीडबैक को ध्यान में रखता है और उठाई गई चिंताओं की वैधता पर सावधानीपूर्वक विचार करता है। यदि आवश्यक समझा जाता है, तो मसौदा प्रस्तावों में संशोधन किए जाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि अंतिम निर्णय आयोग के सदस्यों और जनता दोनों के सामूहिक विमर्शों को दर्शाता है।
परिसीमन आयोग का महत्व:
स्वतंत्र निकाय: कार्यकारी और राजनीतिक दलों से पृथक
- परिसीमन आयोग अपनी निष्पक्षता और गैर-पक्षपातपूर्ण प्रकृति सुनिश्चित करते हुए, कार्यकारी शाखा और राजनीतिक दलों से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। यह स्वतंत्रत परिसीमन प्रक्रिया की विश्वसनीयता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है।
अंतिम निर्णयों: निर्णय की न्यायालय या विधायी समीक्षा नहीं की जा सकती है
- एक बार जब परिसीमन आयोग अपना अंतिम आदेश जारी कर देता है, तो उसके निर्णय बाध्यकारी माने जाते हैं और उन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती या विधायी तरीकों से बदला नहीं जा सकता। इससे स्थिरता सुनिश्चित होती है और निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के संबंध में अनावश्यक विवादों को समाप्त कर दिया जाता है।
समान वितरण: उचित जनसंख्या प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना
- निर्वाचन क्षेत्रों में समान जनसंख्या प्रतिनिधित्व पर आयोग का ध्यान असमानताओं को रोकने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक वोट का समान प्रभाव हो। यह निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देकर और सत्ता के संकेन्द्रण को रोककर देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को बढ़ाता है।
जनगणना डेटा पर निर्भरता: निर्णय लेने का आधार
- परिसीमन आयोग के निर्णय नवीनतम जनगणना आंकड़ों पर आधारित होते हैं । विश्वसनीय और सटीक जनसांख्यिकीय जानकारी का उपयोग करके, यह उस निर्वाचन क्षेत्र की तार्किकता को सुनिश्चित करता है
निष्कर्ष:
असम परिसीमन मसौदे में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं में बदलाव का प्रस्ताव है, जिसने विरोध और विवादों को जन्म दिया है जबकि कुछ समूह व समुदायों के प्रतिनिधियों ने प्रस्ताव का स्वागत किया है, साथ ही जिन बंगाली मूल के मुस्लिम समुदाय का यह तर्क है कि उन्हें राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है उनकी आशंकाओं का समाधान भी करना आवश्यक है क्योंकि यही प्रतिनिधित्व लोकतंत्र की मूल विशेषता है जिसमें मतदाता स्वयं को सरकार के निर्वाचन की केन्द्रीय भूमिका में पाए ।
मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न -
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भारत में परिसीमन आयोग की क्या भूमिका है? निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में इसकी जिम्मेदारियों और महत्व पर चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
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समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और राजनीतिक शक्ति के संकेन्द्रण को रोकने में परिसीमन आयोग की भूमिका का मूल्यांकन करें। लोकतांत्रिक समाज में 'एक व्यक्ति, एक वोट' के सिद्धांत को बनाए रखने पर इसके प्रभाव पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत : The Indian Express