तारीख Date : 13/12/2023
प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा
कीवर्ड्स: COP- 28, आजीविका और आय संवर्धन के लिए कृषक सहायता (KALIA), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP)
संदर्भ :
- हाल ही में दुबई में सम्पन्न हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP- 28) ने जलवायु संकट के बढ़ते प्रभाव को दूर करने के लिए प्रभावी रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है।
- वहीं दूसरी तरफ बढ़ते खाद्य संकट के चिंताजनक अनुमानों के मध्य ओडिशा का परिवर्तनकारी कृषि विकास मॉडल एक आशा की किरण बनकर उभरा है। यह प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार खाद्य सुरक्षा को सामान्य व निरंतरता के आधार पर स्थापित किया जा सकता है। यह मॉडल निश्चित ही अन्य राज्यों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में स्थापित हो सकता है।
खाद्य सुरक्षा
- खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य भोजन की निरंतर उपलब्धता और व्यक्तियों की उस तक पहुंच की क्षमता से है। इसकी परिभाषा में लोगों के लिए पूरे वर्ष सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की पर्याप्त और स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना भी सम्मिलित है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, भारत में 195 मिलियन कुपोषित व्यक्ति हैं, जिनमें से 43% बच्चे दीर्घकालिक अल्पपोषण से ग्रसित हैं।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022 में भारत 113 प्रमुख देशों में 68वें स्थान पर है।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता क्यों है?
- बढ़ती जनसंख्या, कम कृषि उत्पादकता, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जल की कमी, भूमि क्षरण और भंडारण अक्षमताओं जैसे कारकों के कारण भारत के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है।
- ये चुनौतियाँ ग्रामीण तथा विशेष रूप से वंचित समुदायों में गरीबी और असमानता में वृद्धि करती हैं।
इन मुद्दों के समाधान के लिए अपनाई जा सकने वाली विभिन्न रणनीतियाँ:
- सतत कृषि पद्धतियाँ: जैविक खेती, कृषि वानिकी और एकीकृत कीट प्रबंधन को प्रोत्साहित करना, जो नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए उत्पादकता और लचीलेपन(नम्यता ) को बढ़ाने में सहायक होंगी।
- सिंचाई और जल प्रबंधन: सिंचाई के बुनियादी ढांचे में सुधार, जल-कुशल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और अनियमित वर्षा पैटर्न के प्रभाव को कम करने के लिए जल संचयन तकनीकों को लागू करना।
- अनुसंधान और प्रौद्योगिकी: उच्च उपज देने वाली और जलवायु प्रतिरोधी फसल किस्मों के लिए अनुसंधान में निवेश करना और परिशुद्ध (Precision) कृषि और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: फसल विविधीकरण, चक्रानुक्रम और कृषि पारिस्थितिकीय प्रथाओं को लागू करना। चरम मौसम की घटनाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
- भंडारण अवसंरचना: खाद्यान के नुकसान और बर्बादी को कम करने के लिए आधुनिक भंडारण और शीत शृंखला (Cold Chain) सुविधाओं में निवेश करना।
- खाद्य वितरण प्रणालियों को सुदृढ़ करना: बेहतर लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और बाजार संपर्क के माध्यम से खाद्य वितरण में दक्षता बढ़ाना।
खाद्य सुरक्षा हेतु भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
- प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना
- समेकित बाल विकास योजना (ICDS)
- राष्ट्रीय पोषण रणनीति
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)
ओडिशा में कृषि का रूपांतरण
पिछले दो दशकों में, ओडिशा के कृषि परिदृश्य में एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखा है । चावल का शुद्ध आयातक होने की स्थिति से 2022 में रिकॉर्ड उत्पादन प्राप्त करने तक, राज्य ने एक मजबूत कृषि रूपांतरण का प्रदर्शन किया है। यह उपलब्धि विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के माध्यम से प्राप्त हुई है, जो स्थिर फसल क्षेत्रों के उपरांत भी उत्पादन वृद्धि में योगदान दे रहे हैं।
- धान की पैदावार में वृद्धि: 2000-01 में ओडिशा में धान की औसत पैदावार 10.41 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जबकि 2020-21 तक यह बढ़कर 27.30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई। कभी "कुपोषित जिला" के रूप में जाना जाने वाला कालाहांडी जिला अब ओडिशा का धान का कटोरा बन गया है। यह प्रगति सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2 के 'शून्य भुखमरी' लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
- छोटे और सीमांत किसानों का सशक्तिकरण: आजीविका और आय संवर्धन के लिए कृषक सहायता (KALIA) जैसी पहलों ने न सिर्फ छोटे और सीमांत किसानों की आय में सुधार किया है बल्कि खाद्य सुरक्षा और संधारणीय आजीविका में प्रत्यक्ष योगदान दिया है।
- फसल विविधीकरण और जलवायु अनुकूलन: ओडिशा ने मिलेट मिशन जैसी प्रमुख योजनाओं के माध्यम से फसलों का व्यापक विविधीकरण किया है। इस प्रयास से कृषि क्षेत्र में जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा मिला है। पारंपरिक और डिजिटल विस्तार विधियों के माध्यम से प्रसारित वैज्ञानिक फसल प्रबंधन प्रथाओं ने गैर-धान फसल की खेती का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लचीला(नम्य) और संधारणीय पहल:
ओडिशा सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रति राज्य की संवेदनशीलता के संदर्भ में व्यापक जलवायु परिवर्तन कार्य योजना विकसित की है। यह बॉटम-अप दृष्टिकोण पर आधारित है, जो सामुदायिक भागीदारी और लचीलापन निर्माण के उपायों पर बल देती है।
- व्यापक जलवायु परिवर्तन कार्य योजना: ओडिशा की इस योजना मे कृषि, तटीय क्षेत्र संरक्षण, ऊर्जा, मत्स्य पालन, स्वास्थ्य, उद्योग, खनन, परिवहन और जल संसाधनों जैसे व्यापक क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इस योजना को विभिन्न विभागों द्वारा लागू किया जा रहा है तथा इसमें विशेषज्ञों और नागरिक समाज के सुझावों को भी सम्मिलित किया जाता है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति द्वारा इसकी निगरानी की जाती है।
- समुदाय-चालित जलवायु लचीलापन: फसल मौसम हेतु निगरानी समूह की नियमित बैठकें और फील्ड विजिट आयोजित की जाती हैं इसके साथ ही यह फसल कार्यक्रमों की निगरानी के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस का उपयोग करता है। यह समुदाय-चालित दृष्टिकोण चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी प्रतिकूल मौसम की स्थिति के लिए समय पर प्रतिक्रिया को सक्षम बनाता है।
- जलवायु-नम्य प्रथाओं को अपनाना:इसमें जिला स्तर के अधिकारी कृषि-जलवायु क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए फसलों की योजना बनाने के साथ जलवायु-लचीली कृषि प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं। किसानों को एकीकृत कृषि, शून्य-इनपुट-आधारित प्राकृतिक खेती, जल-बचत उपकरण, ई-कीट निगरानी और बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
सामाजिक सुरक्षा पहल:
धान उत्पादन में अधिशेष राज्य के रूप में ओडिशा की सफलता ने इसे एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित किया है। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग ने खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाने वाली नवीन योजनाओं को सहयोग प्रदान किया है।
- बायोमेट्रिक तकनीक और फोर्टीफिकेशन: राज्य में खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बायोमेट्रिक तकनीक के अनुप्रयोग और चावल के फोर्टीफिकेशन (सुदृढ़ीकरण) सहित नवीन पायलट परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम रैंकिंग: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के राज्य रैंकिंग सूचकांक में ओडिशा 2022 में शीर्ष स्थान पर पहुंच गया। जो इसकी खाद्य सुरक्षा पहलों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करता है।
- WFP के साथ सहयोग: ओडिशा सरकार द्वारा WFP के साथ खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जलवायु नम्य पहलों पर सहयोग किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे राज्य से अधिशेष उत्पादक राज्य बनने तक ओडिशा की परिवर्तनकारी यात्रा उसकी दूरदर्शी नीतियों और समुदाय-चालित पहलों का प्रमाण है। ओडिशा ने कृषि प्रणाली के जलवायु अनुकूलन, फसल का विविधीकरण और छोटे किसानों के कल्याण को प्राथमिकता देकर एक अनूठा विकास मॉडल प्रस्तुत किया है।
जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौतियों के समक्ष ओडिशा का समग्र दृष्टिकोण अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है। यह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, जलवायु अनुकूलन बढ़ाने और सतत विकास को बढ़ावा देने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करता है। जब विश्व खाद्य उत्पादकता का संकट उत्पन्न करने वाले जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से जूझ रही है, ऐसे समय में ओडिशा का यह समग्र दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- खाद्य सुरक्षा को परिभाषित कीजिए और भारत में खाद्य सुरक्षा की चिंताओं को दूर करने के लिए राज्यों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों एवं योजनाओं की रूपरेखा तैयार कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)
- धान की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हासिल करने सहित राज्य की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ओडिशा में कृषि रूपांतरण हेतु किन प्रमुख रणनीतियों को अपनाया गया है? चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)
Source- The Hindu