तारीख Date : 03/11/2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3 - पर्यावरण और पारिस्थितिकी
कीवर्ड: सीएचजी, मैक्रोइकॉनमी, आईईए, ईवी
संदर्भ :
भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जक है । जिसने 2021 में 3.9 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया जो कि वैश्विक उत्सर्जन में 7 प्रतिशत के बराबर है। अतः जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंताओं के बीच, परिवर्तनकारी समाधानों के लिए जलवायु प्रौद्योगिकी में निवेश महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारत में जलवायु चुनौतियाँ:
भारत को कोयले के दहन (50 प्रतिशत) और कृषि (लगभग 50 प्रतिशत) से होने वाले हरित गैस उत्सर्जन के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन उत्सर्जनों को कम करने की आवश्यकता को सतत आर्थिक विकास की मांग ने और बढ़ा दिया गया है।
जलवायु परिवर्तन और भारत के समष्टि अर्थशास्त्र (Macro economy) पर इसका दूरगामी प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, जो अर्थव्यवस्था के आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों को प्रभावित करता है। यह वैश्विक घटना विभिन्न क्षेत्रों को बाधित करती है, जिसके कारण कृषि, मत्स्य पालन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, औद्योगिक उत्पादन, ऊर्जा की मांग और वित्तीय सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
1. कृषि और आजीविका पर प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन फसल चक्रों को बाधित करता है, जिससे तापमान, वर्षा पैटर्न और चरम मौसम की घटनाओं में बदलाव के कारण कृषि उत्पादन कम होता है। यह सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है। इससे मत्स्य पालन क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि बढ़ते समुद्र के तापमान से मछली का वितरण पैटर्न बाधित होता है, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होती है।
2. स्वास्थ्य लागत और मानवीय प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन से बीमारियों की घटनाएं बढ़ जाती हैं, जिससे कमजोर समूह प्रभावित होते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य संसाधनों पर दबाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 - 2050 के बीच विभिन्न जलवायु-संबंधी कारकों के कारण लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है।
3. बुनियादी ढांचे को नुकसान और आर्थिक व्यवधान:
सड़कें, पुल और बिजली संयंत्र जैसे भौतिक बुनियादी ढांचे जलवायु-संबंधी घटनाओं के कारण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां बाधित होती हैं। क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे से रखरखाव लागत और आर्थिक नुकसान बढ़ता है। उदाहरण के लिए, भारत को बाढ़ के कारण महत्वपूर्ण आर्थिक क्षति हुई, जो पिछले दशक में वैश्विक नुकसान का 10% था।
4. औद्योगिक उत्पादन और ऊर्जा की माँग:
जलवायु परिवर्तन से परिचालन लागत बढ़ जाती है और उद्योगों में मुनाफा कम हो जाता है, जिससे रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं । अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार भारत में बढ़े हुए तापमान से ऊर्जा की मांग बढ़ेगी जिससे भारत में ऊर्जा संकट गहरा हो सकता है।
5. वित्तीय सेवाओं पर दबाव:
वित्तीय सेवाओं को जलवायु-संबंधी घटनाओं के कारण बढ़े हुए क्रेडिट जोखिम के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उधारकर्ताओं की ऋण चुकाने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह स्थिति संभावित ऋण डिफ़ॉल्ट और क्रेडिट हानि की ओर ले जाती है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन बीमा दावों , यात्रा और आतिथ्य सेवाओं को बाधित करता है, जिससे व्यवसायों की लाभप्रदता प्रभावित होती है।
परिवर्तनकारी जलवायु समाधान:
- परिवर्तनकारी जलवायु प्रौद्योगिकी: वर्तमान में प्रमुख अवसर उन परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों में हैं जो उत्सर्जनकारी औद्योगिक प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करती हैं। इस क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) ने प्रभावशाली परिणाम प्रदान किए है ये जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों की तुलना में 50 प्रतिशत से कम जीएचजी का उत्सर्जन करते हैं, विशेषकर जब इन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ जोड़ा जाता है। कृषि में नवाचार, जैसे कि मीथेन रूपांतरण और उत्पादित (cultivated ) मांस उत्पादन, उत्सर्जन को काफी कम करते हैं।
- डिजिटल प्रौद्योगिकी: इसके लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को अनुकूलित करने, अपव्यय को कम करने और सतत उत्पादों तक पारदर्शी पहुंच सुनिश्चित करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म सर्वोपरि हैं। उदाहरण के लिए, कृषि में डिजिटल समाधान अपव्यय को कम करते हैं और जीएचजी को कम करते हैं। ये प्रौद्योगिकियां प्रौद्योगिकी-संचालित स्थिरता को बढ़ावा देती हैं।
- डेटा संग्रह और विश्लेषण: कार्बन उत्सर्जन की सटीक माप महत्वपूर्ण है। रिमोट सेंसिंग तकनीक किसानों और संगठनों को उनके पर्यावरणीय प्रभाव को समझने में सशक्त बनाती है। सॉफ्टवेयर- और हार्डवेयर-संचालित पद्धतियों का एकीकरण पर्यावरणीय डेटा ट्रैकिंग को बढ़ाता है, जो रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के अनुपालन के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुकूलन और लचीली रणनीतियाँ:
- पैरामीट्रिक बीमा समाधान: जलवायु-संबंधी क्षतियों के खिलाफ अभिनव पैरामीट्रिक बीमा कमजोर समुदायों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह दृष्टिकोण अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों के बीच वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे लचीलापन बढ़ता है।
- तकनीकी नवाचार: जीनोमिक और फेनोटाइपिक डेटा का उपयोग करते हुए नवाचारी प्लेटफॉर्म जलवायु प्रतिरोधी बीज किस्मों का निर्माण करते हैं। यह नवाचार बीज विकास को तेज करता है, जो कृषि अनुकूलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
हितधारकों के लिए सिफारिशें:
- भारत को बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के साथ तीव्र विकास को संतुलित करने की एक अनोखी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
- सतत और हरित विकास प्राप्त करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र में सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
- सरकारी भागीदारी महत्वपूर्ण है, जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए अनुकूल नीतियों, अनुसंधान और विकास के वित्त पोषण, अनुदान और कड़े नियमों के विकास की आवश्यकता है।
- उद्योगों को हरित समाधान अपनाकर और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्केलेबिलिटी के लिए स्टार्टअप के साथ सहयोग करके जलवायु-सकारात्मक अवसरों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- स्टार्टअप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं इसके लिए उन्हें भारत-विशिष्ट जलवायु समाधान विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की रणनीतिक पहलें
- पंचामृत:
- 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना: भारत का लक्ष्य अपने गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों का उल्लेखनीय रूप से विस्तार करना है, जो सतत ऊर्जा उत्पादन और खपत को बढ़ावा देता है।
- 2030 तक 50% नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग: भारत नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से अपनी आधी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिससे जीवाश्म ईंधन निर्भरता घटेगी ।
- 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कटौती: भारत अपने कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में वैश्विक प्रयासों में पर्याप्त रूप से योगदान दे रहा है।
- 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45% की कटौती: भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 2005 के स्तर से 45% तक कम करने की योजना बना रहा है, जिससे ऊर्जा दक्षता और हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिलेगा।
- 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना: भारत का लक्ष्य अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को हटाने के साथ संतुलन बनाना है, 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन स्थिति सुनिश्चित करना, जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित है।
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना:
भारत ने अपनी "पंचामृत" रणनीति में जलवायु कार्रवाई के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को रेखांकित किया है, जिसमें पांच प्रमुख तत्व शामिल हैं:
भारत की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change) विभिन्न हितधारकों, जिनमें सरकारी एजेंसियां, वैज्ञानिक, उद्योग और समुदाय शामिल हैं, के बीच जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है। यह जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले आसन्न खतरे पर जोर देती है और इसका मुकाबला करने के उपायों का समर्थन करती है। यह सक्रिय दृष्टिकोण शिक्षा, सहयोग और स्थायी प्रथाओं के माध्यम से जलवायु चुनौतियों को दूर करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
निष्कर्ष:
भारत एक महत्वपूर्ण मोड पर खड़ा है, जो आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन में कमी के बीच संतुलन बना रहा है। परिवर्तनकारी जलवायु समाधानों में निवेश न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करते हैं बल्कि नवाचार को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे प्रगति और पर्यावरण का सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व सुनिश्चित होता है। भारत अपने लोगों के साथ स्थायी भविष्य के लिए प्रयासरत है, ये व्यापक, लोगों-केंद्रित रणनीतियाँ एक हरित कल के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- 1. जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की पंचामृत रणनीति पर चर्चा करें। इसके प्रमुख घटक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने में कैसे योगदान करते हैं? इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? (10 अंक, 150 शब्द)
- 2. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत की लड़ाई में डिजिटल प्रौद्योगिकियों और अनुकूलन रणनीतियों की भूमिका की जांच करें। पैरामीट्रिक बीमा और जलवायु-प्रतिरोधी बीज किस्मों जैसे अभिनव समाधान जलवायु-संबंधी चुनौतियों के प्रति देश मे लचीलापन कैसे बढ़ा सकते हैं? इन पहलों को लागू करने में सरकार, उद्योगों और स्टार्टअप के बीच सहयोग के महत्व का विश्लेषण करें। (15 अंक, 250 शब्द)
Source: Indian Express