Date : 31/10/2023
प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2 - राजनीति ,जीएस पेपर 3 - विज्ञान और प्रौद्योगिकी
की-वर्ड डीपफेक (Deepfake), एआई, एंड टू एंड एन्क्रिप्शन, गोपनीयता का अधिकार
सन्दर्भ:
राजनीति और गलत सूचना हस्तांतरण का संबंध वर्षों पुराना है और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, राजनीतिक गलत सूचना से निपटना एक शीर्ष एवं नैतिक चिंता का विषय बना हुआ है। इसमें शामिल जटिलताओं को देखते हुए, वर्ष 2021 के सूचना मध्यस्थ प्रौद्योगिकी (आईटी) दिशानिर्देशों के नियम 4 (2) से संबंधित संभावित नतीजों और बहसों को संबोधित करना आवश्यक है।
राजनीतिक डीप फेक क्या है?
- राजनीतिक डीपफेक का तात्पर्य अत्यधिक परिष्कृत रूप से हेरफेर किए गए या मनगढ़ंत ऑडियो, वीडियो अथवा छवियों से है, हालांकि ये सभी प्रामाणिक प्रतीत होते हैं और इसमें राजनीतिक हस्तियां भी शामिल होते हैं।
- ये मिथ्या सूचना; मीडिया उपकरण तंत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और गहन शिक्षण तकनीकों का उपयोग करके बनाए गए हैं, जिससे उन्हें वास्तविक कंटेंट सामग्री से अलग करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- राजनीतिक डीपफेक में अक्सर धोखा देने, जनता की राय में हेरफेर करने या चुनाव जैसी राजनीतिक घटनाओं को प्रभावित करने के इरादे से राजनेताओं के भाषणों, साक्षात्कारों या सार्वजनिक उपस्थिति को भी शामिल किया जा सकता है।
- इन हेरफेर किए गए मीडिया को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, समाचार आउटलेट या अन्य ऑनलाइन चैनलों पर साझा किया जा सकता है, जो संभावित रूप से गलत सूचना फैलाकर राजनीतिक प्रक्रियाओं में विश्वास को कम कर सकते हैं।
राजनीति में गलत सूचना के संबंध में चिंताएँ
- हाल की एआई प्रगति के सन्दर्भ में सिंथेटिक मीडिया का विकास गहरी नकली छवियों, वीडियो और आवाजों को बनाना सरल बना दिया है, जिससे राजनीति में गलत सूचना का प्रसार बढ़ गया है।
- सिंथेटिक मीडिया, मतदाताओं सहित अन्य उपयोगकर्ताओं को गुमराह कर सकता है, उनके कार्यों को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से चुनाव के दौरान, ऐसी तकनीक का जानबूझकर दुरुपयोग किया जा सकता है।
गलत सूचना को संबोधित करने के लिए सरकारी उपाय
- वर्तमान सरकार वर्ष 2021 के आईटी दिशानिर्देशों के नियम 4(2) के आधार पर राजनीतिक डीप फेक से निपटने के लिए नियम 4(2) का उपयोग करने की योजना बना रही है। साथ ही सोशल मीडिया संस्थाओं से उनके प्लेटफ़ॉर्म पर सूचना के पहले प्रवर्तक की पहचान करने की मांग की जा रही है।
- यह पहचान प्रक्रिया प्रवर्तक पहचान के लिए अदालत के आदेश या सरकारी शक्तियों के तहत लागू किया जा सकता है, जिससे गोपनीयता, सुरक्षा और इस नियम के संभावित दुरुपयोग की सम्भावना को लेकर बहस छिड़ सकती है।
नियम 4(2) से जुड़े विवाद
- लक्ष्य निर्धारण: एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन नियम 4(2) मुख्य रूप से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड प्लेटफ़ॉर्म को लक्षित करता है, जो गोपनीयता बनाम सुरक्षा और सरकार के एन्क्रिप्टेड संचार तक पहुंचने के अधिकार से सम्बंधित है।
- गोपनीयता बनाम सुरक्षा: यह नियम गोपनीयता के हनन से सम्बंधित चिंताओं को जन्म देता है, जो प्रत्येक नागरिक के लिए "मूवमेंट टैग (Movement Tag)" संलग्न करने के समान है। यह सुरक्षा उद्देश्यों की पूर्ति में गोपनीयता अधिकारों से संभावित रूप से समझौता करता है।
- कार्यान्वयन के लिए अस्पष्ट आधार: सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव जैसे व्यापक रूप से परिभाषित आधार इस अतिरेक का कारण बन सकते हैं। अतः इसके लिए विभिन्न संदर्भों में संभावित दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया है, जिससे नियम को विवेकपूर्ण ढंग से लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- अपरिभाषित प्रथम प्रवर्तक: अपरिभाषित शब्द "प्रथम प्रवर्तक" के कारण अस्पष्टता उत्पन्न होती है, जिससे कई प्रकार का भ्रम होता है और अनजाने व्यक्तियों के प्रवर्तक बनने का जोखिम बना रहता है।
- लॉजिस्टिक चुनौतियां और गोपनीयता संबंधी चिंताएं: कोई भी संदेश सभी उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता से समझौता करती है, आनुपातिकता और व्यावहारिकता के बारे में प्रश्न करती है, विशेषज्ञों का तर्क है कि यह विधियां गोपनीय आक्रामक और अक्षम्य हैं।
एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन नियम क्या है?
एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन नियम एक सुरक्षित संचार पद्धति है, जो दो उपकरणों के बीच आदान-प्रदान किए गए डेटा को एन्क्रिप्ट करके सुरक्षित रखती है। यह एन्क्रिप्शन तकनीक सुनिश्चित करती है कि तीसरे पक्ष, जैसे क्लाउड सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी), और साइबर अपराधी, ट्रांसमिशन के दौरान डेटा तक पहुंचने में असमर्थ हैं।
यह कैसे काम करता है?
एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन में, एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन दोनों के लिए उपयोग की जाने वाली क्रिप्टोग्राफ़िक आंकड़े संचार उपकरणों पर संग्रहित की जाती हैं। इस प्रक्रिया में मानक टेक्स्ट को अपठनीय प्रारूप में बदलने के लिए एक विशिष्ट एल्गोरिदम को नियोजित किया जाता है।
इस एन्क्रिप्टेड प्रारूप को केवल डिक्रिप्शन रखने वाले व्यक्ति ही समझ सकते हैं। विशेष रूप से, ये सभी आंकड़े विशेष रूप से संचार उपकरणों पर संग्रहित हो कर संचार की सुविधा प्रदान करने वाले सेवा प्रदाताओं सहित किसी भी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं की जाती हैं।
आईटी मध्यवर्ती दिशानिर्देश 2021 के नियम 4(2) को कानूनी चुनौतियाँ
प्रवीण अरिम्ब्रथोडियिल (Praveen Arimbrathodiyil) बनाम भारत संघ
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के एन्क्रिप्शन अधिकार को केरल उच्च न्यायालय में; एक याचिका में नियम 4(2) का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई। इस चुनौती में यह भी दावा किया गया कि ट्रेसेब्लिटी प्रावधान बिचौलियों को बाधित करते हैं, जो अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत व्यापार और पेशे की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
एंथोनी क्लेमेंट बनाम भारत संघ
- मद्रास उच्च न्यायालय ने एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के साथ उपयोगकर्ता ट्रेसेब्लिटी (traceability) के सह-अस्तित्व को संबोधित किया। इसके साथ ही एक प्रस्ताव में समस्या का समाधान करने के उद्देश्य से डिस्क्रिप्शन के दौरान प्रदर्शित प्रत्येक संदेश में प्रवर्तक जानकारी जोड़ने का सुझाव दिया गया।
व्हाट्सएप बनाम भारत संघ (2021)
- व्हाट्सएप इंक और फेसबुक ने नियम 4(2) को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी और यह तर्क दिया कि यह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में उन्होंने तर्क दिया कि इसमें आनुपातिकता, आवश्यकता और न्यूनतम करण का अभाव है।
त्रिपुरा एचसी का हालिया आदेश
- त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था के लिए स्थापित खतरे की कमी का हवाला देते हुए व्हाट्सएप से फर्जी आंकड़ों की मांग करने वाले आदेश पर रोक लगा दी।
आईटी मध्यवर्ती दिशानिर्देश 2021 के नियम 4(2) पर सरकार का दृष्टिकोण
- सरकार निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने पर जोर देती है, लेकिन कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के अपने कर्तव्य पर जोर देती है। इसका तर्क है कि ट्रेसेब्लिटी प्रावधान मौलिक अधिकारों की सीमा के भीतर एक उचित प्रतिबंध होने के कारण गोपनीयता अधिकारों से समझौता नहीं कर सकता है।
- सरकार के अनुसार, नियम 4(2) आनुपातिकता परीक्षण में सफल है, क्योंकि यह सार्वजनिक हित में काम करता है। इसका तर्क है कि व्यापक सार्वजनिक भलाई के अनुरूप, अपराधों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाने और उन्हें दंडित करने के लिए पता लगाने की क्षमता या ट्रेसेब्लिटी आवश्यक है।
निष्कर्ष
नियम 4(2); राजनीतिक फर्जीवाड़े और चुनावी अखंडता पर इसके प्रभाव को लेकर चल रही वर्तमान समय की चर्चा लगातार गति पकड़ रही है। परिणामस्वरूप अदालतें नियम 4(2) की वैधता की जांच कर रही हैं। गोपनीयता और सुरक्षा के बीच एक नाजुक संतुलन हासिल करना एक कठिन कार्य साबित होता जा रहा है। अतः ऐसे समाधान की तत्काल आवश्यकता बनी हुई है जो स्थिति को बढ़ाए बिना समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान कर सके।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न
- बढ़ते राजनीतिक डीपफेक के संदर्भ में, राजनीतिक क्षेत्र में गलत सूचना के नैतिक और सामाजिक निहितार्थों की व्याख्या करें। इस मुद्दे के समाधान में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की भूमिका और आईटी मध्यस्थ दिशानिर्देश 2021 के नियम 4(2) द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें। बढ़ती प्रौद्योगिकी के सामने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता की रक्षा के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
- राजनीतिक डीपफेक चुनावी अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता के रूप में उभरे हैं। राजनीतिक प्रक्रियाओं और नेताओं में जनता के विश्वास पर डीपफेक तकनीक के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करें। व्यक्तिगत गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन पर विचार करते हुए राजनीतिक डीपफेक का मुकाबला करने में नियम 4(2) की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। राजनीतिक डीपफेक के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जनता को शिक्षित करने के लिए कौन सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? (15 अंक, 250 शब्द)
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस