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Blog / 26 Mar 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत के जननायक : डॉ. लोहिया - विचारधारा और व्यक्तित्व (Dr. Lohia : Ideology and Personality)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत के जननायक : डॉ. लोहिया : विचारधारा और व्यक्तित्व (Dr. Lohia : Ideology and Personality)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रो. आनंद कुमार (समाजशास्त्री), प्रोफेसर प्रेम सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय)

सन्दर्भ:

डॉ राममनोहर लोहिया का भारतीय राजनीति में अहम योगदान रहा है। कई दशकों तक स्वतंत्रता आन्दोलन का हिस्सा रहे लोहिया छोटी सी उम्र से ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक हो गए। लोहिया 1934 में बनी ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ के संस्थापक सदस्य थे। ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ के नेताओं में लोहिया के साथ जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्रदेव और युसूफ मेहरअली जैसे स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में समाजवादियों ने अहम भूमिका निभाई। लोहिया उस वक़्त भूमिगत थे और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट नाम से एक रेडियो चलाया। 1944 में लोहिया गिरफ़्तार कर लिए गए और अंग्रेज़ों ने उन्हें लाहौर जेल में बंद कर दिया। क़रीब 2 साल तक जेल में बंद रहने के बाद लोहिया 1946 में रिहा हुए। लाहौर जेल में अंग्रेजों ने लोहिया को जमकर यातनाएं दीं, जिससे उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा। जेल से छूट कर लोहिया स्वस्थ्य होने के मक़सद से गोवा के अपने एक दोस्त के घर गए। उन दिनों गोवा में पुर्तगाली शासन था। लोहिया को जब पता चला कि पुर्तगालियों ने गोवा में किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा रखी है, तो जून 1946 में लोहिया ने एक जनसभा करके पुर्तगाली प्रतिबंध को चुनौती दे डाली और गोवा आंदोलन के प्रणेता बने।

लोहिया भारत विभाजन के सख़्त विरोधी थे। भारत विभाजन और महात्मा गांधी के निधन के बाद लोहिया ने कांग्रेस पार्टी में काफी बदलाव देखा नतीजे में वो उससे अलग अलग हो गए और 1948 में अपनी ‘सोशलिस्ट पार्टी’ का गठन किया। लोहिया आज़ाद भारत के पहले ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभाई। भारत की आज़ादी और बंटवारे के बीस वर्षों बाद तक लोहिया समाजवादी आन्दोलन को मज़बूती देने और उसका नेतृत्व करने में लगे रहे। 1963 में फर्रुखाबाद से चुनाव जीत कर लोहिया पहली बार संसद पहुंचे। लेकिन भारतीय राजनीति के महान विचारक डॉ राममनोहर लोहिया का अक्टूबर 1967 में निधन हो गया और वो सिर्फ तीन साल तक ही संसद के सदस्य रह पाए। लेकिन इतने कम समय में भी उन्होंने संसद में कई ऐसी बहसें छेड़ी जो आज भी बहुत महत्वपूर्ण है।

बिंदास और विद्रोही प्रवृत्ति के लोहिया ग़रीबों, शोषितों, और वंचितों की आवाज़ थे साथ ही वो महिलाओं के भी हिमायती थे । लोहिया हर उस परम्परा, विचार और रूढ़िवाद के ख़िलाफ़ थे जो भारत के हित में नहीं था। लोहिया के विचारों में दर्शन, इतिहास और सामाजिक चिंतन का अद्भुत संगम था। लोहिया भारतीय जाति प्रथा को एक कुप्रथा मानते थे। लोहिया स्वतंत्रता, समता और संपन्नता के साथ मज़बूत लोकतंत्र के पक्षधर थे। लोहिया ने जर्मनी में रहते हुए कार्ल मार्क्स को पढ़ा और उसे भारत के लिहाज़ से अपूर्ण करार दिया। लोहिया देश, परिस्थिति और काल के हिसाब से राजनीति करने के पक्षधर थे।

लोहिया भारत में सप्त क्रांति चाहते थे, जिनमें पुरुष और स्त्री की समानता, जन्म और जाति संबंधी असमानताओं का अंत, अमीर गरीब की ग़ैरबराबरी और मानवाधिकारों के हनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने जैसे मुद्दों को वो ज़रूरी मानते थे। साथ ही वो सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह और सिविल नाफ़रमानी के भी हिमायती थे। डॉ. लोहिया ने सिर्फ विचार ही नहीं किया, बल्कि वो हमेशा अपने विचारों को पूरा करने की भी कोशिश करते रहे। डॉ भीमराव अंबेडकर मानते थे कि लोहिया महान राजनेता हैं और उन्हें भारत की सही समझ है। लोहिया ने महज़ अपने 57 साल के जीवन में विचारों और बहसों एक अमर और अमिट छाप छोड़ी है।

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