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Blog / 20 Aug 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म (Article 370 Abrogation)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म (Article 370 Abrogation)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): कपिल काक (रिटायर्ड एयर मार्शल), अमित रैना (कश्मीर मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों?

बीते 5 अगस्त को राष्‍ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 से जुड़ा एक बड़ा ऐलान किया। राष्ट्रपति की ओर से जारी संवैधानिक आदेश में जम्‍मू-कश्‍मीर से जुड़े इस अनुच्छेद के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी खंडों को हटा दिया गया है। इसको लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक प्रस्ताव भी पेश किया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्ज़ा अब खत्म हो गया है। गृह मंत्री ने सदन को बताया कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अब केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा। इसमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा के साथ और लद्दाख बिना विधानसभा के केन्द्र शासित प्रदेश बनेंगे।

मामला अदालत में पहुंचा

अनुच्छेद 370 को लेकर सरकार के ऐलान के बाद इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है। इस संबंध में दायर याचिका में राष्ट्रपति के इस आदेश को संविधान की मूल भावना के खिलाफ़ बताया गया है। साथ ही इस याचिका में जम्मू-कश्मीर कि स्थिति बदलने के लिए सरकार द्वारा किए गए संशोधन को भी असंवैधानिक बताया गया है। याचिकाकर्ता का तर्क है की सरकार द्वारा किया गया यह संशोधन तभी मान्य होगा, जब इस पर जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की राय ली गई हो। वकील मनोहर लाल शर्मा द्वारा दायर इस याचिका में राष्ट्रपति की इस अधिसूचना को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है।

क्या है अनुच्छेद 370?

अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक अस्थाई, संक्रमण कालीन और विशेष प्रावधान है। यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर की स्वायत्तता से जुड़ा हुआ है। इस अनुच्छेद के मसौदे का उल्लेख संविधान के भाग XXI में किया गया है।

अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के मुताबिक भारतीय संसद को जम्मू कश्मीर के बारे में केवल रक्षा, विदेश, संचार और वित्त के विषय में कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। इन विषयों के अलावा केंद्र सरकार द्वारा किसी अन्य विषय पर कानून बनाने और उसे जम्मू-कश्मीर में लागू करवाने के लिए राज्य सरकार का अनुमोदन जरूरी होता था।

क्या दिक्कतें थीं अनुच्छेद 370 की वज़ह से?

अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती, और ना ही राष्ट्रपति के पास जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार था। इसके अलावा राष्ट्रपति को वहां अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात लगाने का भी अधिकार नहीं था।

  • जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी - एक भारत की और दूसरी जम्मू-कश्मीर की।
  • भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में कुछ ही विषयों से जुड़े कानून बना सकती थी।
  • जम्मू-कश्मीर का अपना एक अलग ध्वज और एक अलग संविधान था।
  • अनुच्छेद 370 के तहत भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते थे। हालांकि यह प्रावधान भारत के कुछ अन्य राज्यों में भी है।
  • जम्मू कश्मीर के अपने संविधान के मुताबिक वहां की विधानसभा का कार्यकाल 6 सालों का होता था, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल सिर्फ 5 साल का ही होता है।
  • इससे भी विचित्र बात यह थी कि भारत के सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश जम्मू-कश्मीर के भीतर लागू या मान्य नहीं होते थे।
  • अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी। वहीँ अगर वह महिला पकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी कर ले तब उसकी नागरिकता खत्म नहीं होती थी। उससे भी अजीब बात तो यह थी कि उस महिला के पाकिस्तानी पति को भी जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।
  • अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई, शिक्षा के अधिकार और कैग (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते थे।
  • जम्मू-कश्मीर में सिर्फ महिलाओं पर शरियत कानून लागू था और साथ ही वहां पंचायतों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।

अनुच्छेद 370 का इतिहास: कश्मीर में डोगरा राजवंश की शुरुआत

साल 1589 में मुगल शासक अकबर ने जम्मू कश्मीर पर क़ब्ज़ा किया था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद यहां पठानों का कब्जा हो गया। उसके बाद साल 1814 में पंजाब के तत्कालीन शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को हराकर यहां पर अपना राज्य कायम किया। लेकिन साल 1846 में अंग्रेजों द्वारा सिखों की हार के बाद इन दोनों के बीच लाहौर संधि की गई। साथ ही, इसी कड़ी में अंग्रेजों और महाराजा गुलाब सिंह के बीच अमृतसर की संधि भी की गई।

ग़ौरतलब है कि साल 1809 में गुलाब सिंह महाराजा रंजीत सिंह की सेना में शामिल हुए थे और साल 1822 में उन्हें पुरस्कार के तौर पर जम्मू का राजा बनाया गया। जम्मू के डोगरा राजा महाराज गुलाब सिंह ने मार्च 1846 में अमृतसर संधि के तहत कश्मीर घाटी को 75 लाख रुपए में अंग्रेज़ी सरकार से ख़रीद लिया। यहीं से जम्मू कश्मीर में डोगरा राजवंश की शुरुआत हुई। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह साल 1925 में गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 तक शासन किया।

अनुच्छेद 370 का इतिहास: आज़ादी के समय जम्मू-कश्मीर की स्थिति

भारत की आज़ादी के वक्त देश को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो मुल्कों में बांट दिया गया था। साथ ही, तत्कालीन भारत में मौजूद देसी रियासतों को यह अधिकार था कि वह चाहे तो पाकिस्तान में या फिर भारत में शामिल हो जाए। अगर वे दोनों में शामिल नहीं होना चाहते हैं, तो वे स्वतंत्र तौर पर यानी आज़ाद रह सकते हैं। देसी रियासतों के लिए भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए उन्हें 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन' के दस्तावेज़ पर दस्तखत करना पड़ता था। महाराज हरि सिंह ने भारत या पाकिस्तान, किसी के भी पक्ष में हस्ताक्षर नहीं किए थे। एक सोच थी कि शायद वो जम्मू और कश्मीर को आज़ाद रखने के पक्ष में थे।

अनुच्छेद 370 का इतिहास: भारत-पकिस्तान विवाद

भारत की आज़ादी के वक़्त शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की प्रमुख राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसलमान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे क्योंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश था। वहीं पाकिस्तान का मानना था कि कश्मीर एक मुसलमान बाहुल्य प्रांत है इसलिए उसे पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान इस हद तक चला गया कि साल 1947-48 में पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों की भेष में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया। यहीं से भारत और पकिस्तान के बीच विवाद शुरू हो गया।

अनुच्छेद 370 का इतिहास: 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर दस्तख़त होना

महाराजा हरि सिंह के लिए ये चुनौती की घड़ी थी - एक तरफ़ बिगड़ती क़ानून व्यवस्था और दूसरी तरफ़ क़बायली घुसपैठियों की ओर से हमला। उन्होंने उस वक्त भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से संपर्क किया और भारत से मदद मांगी। भारत में उस समय मदद देने से मना कर दिया क्योंकि भारत का यह सिद्धांत था कि वह दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी नहीं करेगा। ऐसे में महाराजा हरि सिंह ने मदद का आधार बनाने के लिए 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ ऐक्सेशन' दस्तावेज़ यानी भारत में आने से जुड़े दस्तावेज़ पर दस्तख़त कर दिया।

अनुच्छेद 370 का इतिहास: विवाद सुलझाने के लिए क्या प्रयास किये गए?

उस समय तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने मोहम्मद अली जिन्नाह से विवाद को जनमत-संग्रह के ज़रिए सुलझाने की पेशकश की। लेकिन जिन्नाह को अपनी सैनिक कार्रवाई पर बहुत भरोसा था, शायद इसीलिए उन्होंने उस वक्त जनमत संग्रह की बात को मना कर दिया। उधर महाराजा हरि सिंह ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से कश्मीर का भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर लिया। अनुच्छेद 370 इन्हीं शर्तों का परिणाम है।

भारतीय सेना ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया, जहां मामला अभी भी लंबित चल रहा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के चलते कश्मीर में जिन इलाक़ों पर जिस देश का क़ब्ज़ा था वह यथास्थिति बनी हुई है।

इसके पहले भी अनुच्छेद 370 में हो चुके हैं बदलाव

साल 1954 के राष्ट्रपति एक आदेश के बाद संघ सूची में दिए गए लगभग सभी विषयों पर क़ानून बनाने के भारतीय संसद के अधिकार को जम्मू-कश्मीर में लागू कर दिया गया था। राष्ट्रपति के इस आदेश को राज्य विधानसभा ने भी पास कर दिया था।

  • इसी आदेश के बाद अनुच्छेद 35ए प्रभाव में आई थी। अनुच्छेद 35A में राज्य में रहने वाले स्थायी नागरिकों को विशेषाधिकार देने की बात की गई थी।
  • पहले जम्मू और कश्मीर में प्रधानमंत्री और सदर-ए-रियासत होते थे। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में इसे मुख्यमंत्री और गवर्नर में बदल दिया गया था।
  • पहले सदर-ए-रियासत को का चुनाव किया जाता था। चुनाव के बाद इसका अनुमोदन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता था। अब बाकी राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी गवर्नर को नामित किया जाता है।