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Blog / 28 Dec 2018

(Global मुद्दे) क़तर ओपेक से बाहर (Qatar Exit from OPEC)

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(Global मुद्दे) क़तर ओपेक से बाहर (Qatar Exit from OPEC)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): डा. वायेल अव्वाद (वरिष्ठ अरब पत्रकार), कमर आगा (पश्चिम एशियाई देशों की राजनीती के जानकार और विश्लेषक)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, 3 दिसम्बर 2018 को कतर ने विश्व के तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज से अलग होने की घोषणा की है। अपने देश में प्राकृतिक गैस का उत्पादन बढ़ाने के उद्द्येश्य से कतर ने एक जनवरी 2019 से ओपेक संगठन से बाहर होने का निर्णय लिया है।

  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और उनके सहयोगी तेल उत्पादक देश छह महीने की अवधि के लिए 12 लाख बैरल प्रतिदिन की दर से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती पर सहमत हो गए हैं। यह अवधि एक जनवरी से लागू होगी।
  • ओपेक देशों के इस फैसले को लेकर कहा जा रहा है कि इसका भारत पर खासा असर पड़ेगा। तेल की कीमतें एक बार फिर से आसमान छू सकती हैं।
  • सऊदी अरब के तेल मंत्री ने कहा कि तेल निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) गिरती कीमतों को थामने के लिए निर्यात में कटौती पर फैसले से भारतीय प्रधानमंत्री सहित दुनियाभर के नेताओं के बयान पर गंभीरता से विचार करेगा।
  • भारत तेल का उपयोग करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत अपनी ऊर्जा संबंधी 80 प्रतिशत जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है।
  • भारतीय प्रधानमंत्री की अगुवाई में विश्व नेताओं ने ओपेक से कच्चे तेल की उचित एवं जवाबदेह कीमत तय करने को कहा था।

क्या है ओपेक?

तेल निर्यातक देशों का संगठन यानी ओपेक उन देशों की अंतरराष्ट्रीय संस्था है जहां प्रचूर मात्रा में तेल पाए जाते हैं। वर्ष 1960 में इसका गठन तेल उत्पादन एवं तेल के कीमत-निर्धारण जैसे मामलों पर तेल कंपनियों से बातचीत के मकसद से किया गया था।

ओपेक की स्थापना का उद्द्येश्य

  • ओपेक की स्थापना का उद्देश्य इसके सदस्य देशों के बीच पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात से संबंधित नीतियों को लेकर समन्वय स्थापित करना और उपभोक्ता देशों को नियमित रूप से निर्यात सुनिश्चित करना था।
  • ओपेक द्वारा सदस्यों की आम सहमति से तेल निर्यात के लिए मूल्य तय किया जाता है जिससे न केवल सदस्य देशों को बिना किसी हितों के टकराव के समुचित लाभ भी हो जाता है, बल्कि उपभोक्ता देशों पर अधिक भार भी नहीं पड़ता।
  • इसके अलावा तेल उत्पादन की मात्रा का निर्धारण भी ओपेक द्वारा किया जाता है।

इससे पहले भी कुछ देश अलग हुए हैं ओपेक से

ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला- इन पांच देशों ने मिलकर वर्ष 1960 में ओपेक की स्थापना की थी।

  • फिर वर्ष 1961 से लेकर वर्ष 2018 के बीच कतर, इंडोनेशिया, लीबिया, यूएई, अल्जीरिया, नाईजीरिया, इक्वाडोर, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, गबोन और कांगो जैसे देश इस संगठन में शामिल होते गए। हालांकि वर्ष 2016 में इंडोनेशिया ने अपनी सदस्यता वापस ले ली।
  • इससे पूर्व इक्वाडोर 1992 में ओपेक से अलग हुआ था। आर्थिक और राजनीतिक संकट के कारण उसकी सदस्यता वर्ष 2007 तक निलंबित रही।
  • इसी तरह गबोन भी 1995 में ओपेक से अलग हुआ था, लेकिन 2016 में उसने फिर संगठन में वापसी कर ली।
  • ओपेक की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक वर्तमान समय में इसके सदस्यों की संख्या कतर सहित 15 है।

तेल बाजार में ओपेक की क्या भूमिका है?

साल 2017 में ओपेक के 15 सदस्य देशों के पास दुनियाभर के कुल तेल के खजाने का 82 प्रतिशत हिस्सा था।

  • पिछले वर्ष इन्हीं 15 देशों ने दुनिया का कुल 43.5 प्रतिशत तेल उत्पादन किया था।
  • ओपेक अपने सदस्य देशों के लिए तेल उत्पादन की मात्रा तय कर दुनियाभर में पेट्रोलियम की कीमतें नियंत्रित करता है।

ओपेक पर उठते रहे हैं सवाल

ओपेक का प्रमुख लक्ष्य सदस्य देशों के हितों का संरक्षण एवं तेल निर्यात पर लाभ बढ़ाना है। हालांकि, आलोचक कहते हैं कि ओपेक पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्ते निर्धारित करने में तेल को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है।

  • उदाहरण के तौर पर, साल 1973 में इजरायल का सीरिया एवं मिस्र के साथ योम किप्पूर युद्ध होने के बाद ओपेक ने उन पश्चिमी देशों को तेल बेचने से इनकार कर दिया जिन्होंने युद्ध में इजरायल का समर्थन किया था। ओपेक के उस कदम से तेल संकट पैदा हो गया था और तेल की कीमतें चौगुनी हो गई थीं।
  • यही वजह है कि अमेरिका ने पश्चिम एशियाई राजनीति में दखलअंदाजी बढ़ा दी और सऊदी अरब के साथ रिश्ता पक्का कर लिया।

क़तर क्यों छोड़ रहा है ओपेक?

कतर ओपेक देशों के कुल तेल उत्पादन में महज 2 प्रतिशत का योगदान करता है, इसलिए ओपेक के नीतिगत फैसलों में इसके विचारों को बहुत तवज्जो नहीं मिलती है, साथ ही कतर पर सऊदी अरब के साथ बिगड़े रिश्ते का असर पड़ रहा था।

  • दूसरी तरफ, कतर प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक है जिससे उसकी तेल पर निर्भरता नहीं के बराबर है।
  • कतर का कहना है कि वह अपनी संभावनाएं तेल की बजाय गैस उत्पादन में देख रहा है और उसी पर ध्यान देना चाहता है, इसलिए उसने ओपेक की सदस्यता छोड़ने का निर्णय लिया है। क़तर गैस उत्पादन की क्षमता को 77 मिलियन टन प्रतिवर्ष से बढ़ाकर 110 मिलियन टन करना चाहता है।

क्या होंगे क़तर के अलग होने के मायने?

चूँकि कतर ओपेक देशों के कुल तेल उत्पादन में महज 2 प्रतिशत का योगदान करता है, ऐसे में क़तर के ओपेक से अलग होने से अंतराष्ट्रीय तेल बाज़ार पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।

  • लेकिन, पिछले कई दशकों में, क़तर ओपेक के भीतर आंतरिक प्रतिद्वंद्वियों के आपसी मामलों में और रूस जैसे उत्पादकों के साथ उत्पादन-कटौती सम्बन्धी सौदों में मध्यस्थ की भूमिका निभाता रहा है।
  • इन मामलों में, ओपेक के भीतर क़तर की कमी ज़रूर खटक सकती है।

क्या अब घटेगी ओपेक की प्रासंगिकता?

ओपेक का ग्लोबल एनर्जी मार्केट पर दबदबा 1970 के दशक की तुलना में घटा है। इसकी वजह यह है कि अब वाहनों के लिए सिर्फ पेट्रोलियम ही एकमात्र ईंधन का साधन नहीं रह गया है।

  • ऊपर से कच्चे तेल का 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाने से अमेरिकी शेल ऑइल प्रॉडक्शन के लिए वरदान साबित हुआ।
  • आकलनों के मुताबिक, अमेरिका तेल उत्पादन के मामले में जल्द ही सऊदी अरब और रूस, दोनों को पीछे छोड़ देगा।
  • ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई खाड़ी देश ओपेक की सदस्यता छोड़ रहा है, और इसे ओपेक में टूट के तौर पर देखा जा रहा है।

भारत पर इसका प्रभाव

भारत अभी प्राकृतिक गैस के मामले में बहुत हद तक कतर पर निर्भर है, लेकिन कच्चे तेल के लिए उसकी निर्भरता प्रमुख रूप से इराक, सऊदी अरब और ईरान पर टिकी हुई है।

  • अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए उसके तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की दशा में भारत के पास अब कच्चे तेल के लिए कतर भी एक स्वतंत्र विकल्प के रूप में मौजूद रहेगा। स्वतंत्र खरीद की स्थिति में ओपेक देशों की अपेक्षा कतर से भारत को कम मूल्य पर तेल मिलने की भी संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
  • चूंकि भारत के संबंध कतर और सऊदी अरब दोनों से ही अच्छे हैं, ऐसे में तेल तो नहीं, लेकिन किसी भी विवाद की स्थिति में प्राकृतिक गैस पर तलवार लटक सकती है। आज इन दोनों देशों के बीच तनाव साफ झलक रहा है। ऐसे में भारत के सामने यह चुनौती होगी कि इन दोनों ही देशों या फिर ओपेक समूह और कतर दोनों ही से अपने संबंध संतुलित ढंग से रखे जिससे तेल और गैस के आयात में उसे आर्थिक नुकसान न उठाना पड़े।

एशिया पर इसका प्रभाव

कतर के निर्यात का तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्सा एशिया में आता है।

  • अपने कुल गैस उत्पादन का करीब 15 प्रतिशत हिस्सा कतर भारत को निर्यात करता है। भारत की लगभग 65 प्रतिशत गैस जरूरतें कतर से ही पूरी होती हैं।
  • यानी अगर ओपेक और कतर के बीच में कोई विवाद की स्थिति हुई और एशिया (अथवा भारत को भी) को दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ा तो इससे मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। हालांकि उस दशा में प्रभाव कैसा होगा, यह काफी हद तक कतर और एशियाई देशों के रुख पर निर्भर करेगा।

निष्कर्ष

कतर ने ओपेक की सदस्यता त्यागने की घोषणा की है जो बीते 57 वर्षों से इस संगठन का सदस्य था। हालांकि ओपेक देशों द्वारा तेल उत्पादन में कतर की हिस्सेदारी महज दो फीसद है, लेकिन इसके इस संगठन से बाहर निकलने को मध्य पूर्व देशों की राजनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है जिसके अनेक दूरगामी नतीजे सामने आ सकते हैं।

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