(Global मुद्दे) अमेरिका सैन्य वापसी (America : Withdrawal of Forces From Syria and Afghanistan)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत अमेरिका), प्रो. श्रीराम चोलिया (भारत-अमरीकी रिश्तों तथा कूटनीतिक और सामरिक मामलों के जानकार)
सन्दर्भ:
अमेरिका ने सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने सीरिया से सैनिकों को हटाने के पीछे दावा किया कि अमेरिका ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट को हरा दिया है। राष्ट्रपति ट्रंप का ये भी कहना है कि अमेरिका दूसरे देशों के हित में युद्ध लड़ता है, जिसमें क़रीब 7 अरब डॉलर का खर्च आता है। राष्ट्रपति ट्रंप के मुताबिक़ इन युद्धों से अमेरिका को कोई फायदा नहीं है। इसके अलावा अमेरिकी सैनिकों को खोना भी अमेरिका के लिए भारी नुकसान का कारण बताया जा रहा है, जिसकी वजह से अमेरिका अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहता है।
सैनिकों को वापस बुलाना सीरिया की बशर अल असद सरकार के लिए एक तोहफ़े जैसा होगा। माना जा रहा है कि अमेरिका वहां जो मैदान छोड़ेगा वो रूस और ईरान के नियंत्रण में चला जाएगा। दरअसल शान्ति बहाल करने की आड़ में हर बड़ा देश सीरिया में अपने स्तर पर किसी न किसी संगठन का समर्थन कर रहा है। ईरान एक ओर जहां शिया देशों का प्रभुत्व कायम करना चाहता है, तो वहीं सीरिया में असद सरकार की मौजूदगी भी रूस के लिए ज़रूरी है। इन सब के पीछे वजह ये है कि मध्य पूर्व में सीरिया ही एक मुल्क है जिसकी वजह से रूस इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है।
तुर्की भी सीरिया में अपने हितों को साधने में लगा है। उसका मकसद है कि इस क्षेत्र में कोई कुर्दिश राज्य उभरकर न आ पाए। क्यूंकि तुर्की को डर है कि सीरिया से अमरीका के बाहर निकलने के बाद कुर्दिश लड़ाके सीरिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से और इराक़ के उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर कब्जा करके अपना एक नया मुल्क खड़ा कर लेंगे। इसके अलावा अमेरिका को बशर अल असद सरकार और इस्लामिक स्टेट के आतंकवाद से दिक्कत थी जिसके कारण अमेरिका ने सीरिया में अपनी दख़लंदाज़ी बढ़ाई थी।
सीरिया से सैनिकों की वापसी की घोषणा के एक दिन बाद ही अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से भी अपने हज़ारों सैनिकों को वापस बुलाने का एलान किया। अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब सवा 13 हज़ार अमरीकी सैनिक तैनात हैं, जिनमें से लगभग आधे सैनिकों को वापस बुलाया जा रहा है। ऊर्जा के नए स्रोतों के इज़ाद के बाद अमेरिका की रूचि मध्य पूर्व और पश्चिमी एशिया क्षेत्रों से कम हुई है। और शायद यही कारण है कि अब अमेरिका इन देशों से बाहर निकलना चाहता है। ट्रंप सरकार द्वारा अमरीकी कांग्रेस को भेजी गई एक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक - दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमरीका के क़रीब दो लाख से अधिक सैनिक क़रीब 180 देशों में फैले हुए हैं। जिनमें अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया, यमन, सोमालिया, लीबिया और नाइज़र जैसे देशों में सैन्य अभियान काफी बड़े स्तर पर जारी है।
ट्रम्प द्वारा सीरिया और अफगानिस्तान से सैनिकों को हटाए जाने का असर भारत पर भी पड़ेगा। भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में जुटा है और कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान में काफी निवेश कर रखा है। जोकि तालिबानियों के प्रभुत्व में आने पर प्रभावित होगा। साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान के सक्रिय होने के बाद भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। अमेरिका के इस फैसले के बाद भारत की इन क्षेत्रों से कनेक्टिविटी, व्यापार जैसे कई और भी महत्वपूर्ण विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं। जिसमें चाबहार बंदरगाह के ज़रिये भारत को रूस, सेंट्रल एशिया और यूरोप से जोड़ने वाले अफगानिस्तान के एकमात्र ज़मीनी रास्ते पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।