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Blog / 31 Jul 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 31 July 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 31 July 2020



कोरोना वैक्सीन कब तक आयेगी?

  • दिसंबर-जनवरी 2020 में कोरोना बायरस का प्रसार चीन में बहुत ज्यादा हो चुका था लेकिन अन्य देशों में इसका प्रसार इतना ज्यादा नहीं हुआ था।
  • इसी समय चीन में एक पुराना रिसर्च फिर से प्रारंभ हो गया। वह था वर्ष 2002-2003 में चीन फैली सार्स महामारी पर होने वाला अध्ययन। वर्ष 2003 में इस बीमारी पर रोक लग जाने के कारण यह रिसर्च भी लगभग रूक गया। लेकिन जब कोरोना वायरस का प्रसार बढ़ा तो यह पुनः प्रारंभ हो गया। कोरोना वायरस दरअसल सार्स (SARS) का ही एक नया रूप है इसीकारण इसे सार्स Cov-2 नाम WHO के द्वारा दिया गया।
  • SARS (Severe Acute Respiratory Syndrome) कोरोना वायरस या नोवल कोरोना वायरस ने फरवरी माह में चीन से बाहर अपने कदम बढ़ाने प्रारंभ कर दिये।
  • 11 मार्च को कोरोना वायरस या Covid-19 को वैश्विक महामारी पोषित कर दिया गया। इसका अर्थ यह है कि इस बामारी को रोकने के लिए उस समय दवाएं उपलब्ध नहीं है और सभी देशों को सचेत हो जाता चाहिए।
  • इसके बाद से दो प्रक्रियाएं एक साथ प्रारंभ हुईं। एक था इस बीमारी का तेजी से फैलना और दूसरा था इसके लिए मेडीसिन बैक्सीन (दवा) का निर्माण।
  • इस समय कोरोना के केस बढ़कर लगभग 1 करोड़ 75 लाख हो गये हैं और यह बीमारी रूकने का नाम नहीं ले रही। इसलिए पूरी दुनिया यह मानकर चल रही है कि जब तक इसकी वैक्सीन (टीका) नहीं आ जाती तब तक इस बीमारी से ईलाज संभव नहीं हो पायेगा।
  • संक्रामक बीमारी के विरूद्ध इम्युनिटी क्षमता विकसित करने के लिए जो दवा ड्रॉप्स, इंजेक्शन या किसी अन्य रूप में लोगों को दी जाती है उसे वैक्सीन (टीका) कहा जाता है और यह प्रक्रिया टीकाकरण (Vaccination) कहलाती है।
  • इससे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर में प्रवेश कर चुके वायरस, बैक्टीरिया, सूक्ष्मजीव को नष्ट करना हमारे इम्युनिटी सिस्टम के लिए आसान होता है।
  • संक्रामक बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए टीकारण ही सबसे प्रभावी उपाय माना जाता है।
  • प्रश्न आयेगा कि फिर अभी तक वैक्सीन बन क्यों नहीं पाई? इसका उत्तर है वैक्सीन निर्माण में लगने वाला लंबा समय और उसके निर्मित होने के कई चरण से गुजरना ।
  • सामान्यतः एक वैक्सीजन के निर्माण में औसतन 7-8 साल का समय लगता है अर्थात दवा लोगों के हाथों तक अंतिम रूप से लंबे समय बाद पहुँच पाती है।
  • अभी तक सबसे तेजी से विकसित की जाने वाली वैक्सीन Mumps या MMR वैक्सीन थी जिसके निर्माण में 4 साल का समय लगा था।
  • Mumps या MMR वैक्सीन बीमारियों- Measles ,Mumps और रूबेला से हमें बचाती है।
  • कोरोना वायरस जिस तेजी से फैल रहा है ऐसे में यदि इसे जल्दी नहीं रोका गया तो यह मानवीय अस्तित्व पर संकट का कारण बन जायेगा। इसीलिए पूरी दुनिया जल्द से जल्द इसका वैक्सीन बनाने के कार्य में लगी है।
  • इस समय विश्व में 23 प्रमुख परियोजनाओं के माध्यम से कोरोना वैक्सीन निर्माण का कार्य किया जा रहा है इनमें से अधिकांश दूसरे चरण में है तो कुछ तीसरे चरण में प्रवेश कर रही है। अर्थात अभी लोगों तक पहुँचने में इन्हें लंबा समय लगेगा।
  • एक वैक्सीन का निर्माण 6 चरणों (कहीं-कहीं 5 चरण) से होकर गुजरता है। यह चरण हैं- (1) Exploratory Stage, (2) Pre-Clinical, (3) Clinical Trial, (4) Regulatory review and Approval, (5) Manufacturing, (6) Quality Control.
  • पहला चरण Exploratory Stage (शोध एवं अन्वेषण) जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसमें शोध किया जाता है अर्थात उस एंटीजन (Antigen) का पहचान करने का प्रयास किया जाता है जो बीमारी का कारण है, और एंटीजन की विशेषताओं को समझने का प्रयास किया जाता है।
  • एंटीजन की कुछ ऐसी विशेषताएं होती है जिनके पता चलने के बाद हम अपनी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित कर सकते हैं। और इस चरण में उसके DNA एवं RNA या जीन की संरचना को समझने का प्रयास करते हैं। इसमें प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों वायरस से संबंधित शोध किये जाते हैं ।
  • इस चरण में संबंधित रोगाणु से किसी रिकंम्बिनेंट प्रोटीन का निर्माण करने का प्रयास किया जाता है।
  • अर्थात मैसेंजर RNA के माध्यम से ऐसे प्रोटीन का निर्माण किया जाता है जो एंटीबॉडीज के साथ मिलकर शरीर की प्रतिरक्षा को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है।
  • दूसरा चरण प्री-क्लिनिकल होता है। इसमें यह चेक करने का प्रयास किया जाता है कि संबंधित उपरोक्त प्रक्रिया से प्रतिरोधि क्षमता विकसित की जा सकती है या नहीं।
  • इसमें कोशिका संवर्द्धन प्रणाली का उपयोग कर जंतुओं (बंदर, चूहा, खरगोश) पर परीक्षण किया जाता है। यदि जानवरों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है तो अगे (अगले चरण) बढ़ते हैं नहीं तो पुनः शोध एवं अन्वेषण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।
  • जानवरों पर यदि वैक्सीन कारगर सिद्ध होती है तो इसके बाद तीसरा चरण (क्लिनिकल ट्रायल) प्रारंभ होता है। इसमें दूसरे चरण में अपनायी गई कोशिका संवर्द्धन प्रणाली के माध्यम से जंतु या पौधों में उत्पन्न प्रतिरोधी क्षमता का मानव पर परीक्षण किया जाता है।
  • क्लिनिकल ट्रायल के तीन फेज होते हैं।
  • फेज-1 इसमें वैक्सीन का परीक्षण 20 से 80 लोगों के एक छोटे समूह पर किया जाता है। इसमें यह देखने का प्रयास किया जाता है कि मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
  • फेज-2 इसमें लोगों की संख्या बढ़ा दी जाती है और सभी आयुवर्ग को इसमें शामिल करने का प्रयास किया जाता है।
  • इसमें वैक्सीन के अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव के साथ वैक्सीन के इफ्फेक्टिवनेस का परीक्षण किया जाता है।
  • फेज-3 इस अवस्था में कई हजार लोगों के समूह पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है वैक्सीन के दीर्घकालीन प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। परीक्षण के सभी उद्देश्यों पर यदि वैक्सीन खरी उतरती है तो इसे अगले चरण अर्थात नियामकीय समीक्षा व अनुमोदन (Regulatory review and approval) हेतु आगे बढ़ा दिया जाता है।
  • इस चरण में प्रत्येक देश की रेगुलेटरी एजेंसी द्वारा वैक्सीन परीक्षण के सभी चरणों की समीक्षा की जाती है और सभी तथ्य सही पाये जाने पर वैक्सीन के विनिर्माण का अनुमोदन प्रदान कर दिया जाता है।
  • भारत में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया (Drug Controller General of India) WHO के मानकों के आधार परीक्षण कर अनुमति प्रदान करता है।
  • अगला चरण विनिर्माण का होता है जिसमें कंपनियाँ तेजी से विनिर्माण करती है।
  • अंतिम चरण गुणवत्ता कंट्रोल का होता है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि गुणवत्ता में किसी प्रकार की गिरावट न आये। इसलिए समय समय पर वैज्ञानिकों तथा विनयामक प्राधिकरणों के माध्यम से गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है।
  • कोरोना को रोकने के लिए इस समय ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वैक्सीन प्रोजेक्ट, मॉडेर्ना फार्मास्यूटिकल्स प्रोजेक्ट एवं चीनी कंपनी सिनोवेक बायोटेक के प्रोजेक्ट सबसे आगे हैं।
  • ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल का काम कई देशों में चल रहा है।
  • पहला और दूसरे चरण के ट्रायल का काम अप्रैल माह में इंग्लैण्ड में किया।
  • इसमें 18 से 55 साल के 1 हजार से अधिक (बालंटियर) को इसमें शामिल किया गया।
  • इसमें वैक्सीन की सुरक्षा और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का अध्ययन किया गया।
  • अब ट्रायल अंतिम अर्थात तीसरे फेज में है। जिसमें लगभग 50000 वालंटियर को शामिल किया जा सकता है।
  • भारत की सीरम इंस्ट्रीट्यूट ऑफ इण्डिया ने भी इसके साथ करार किया है और भारत में परीक्षण की अनुमति मांगी है।
  • सब ठीक रहा तो ऑक्सफोर्ड इस वैक्सीन के लिए विनिर्माण का आवेदन इस साल के अंत तक ब्रिटेन की रेगुलेटरी एजेंसी को दे सकती है।
  • दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट मॉडेर्ना का है। बोस्टन की यह कंपनी तीसरे चरण को प्रारंभ कर रही है। इसमें 30,000 लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। ट्रंप ने इसे अब तक की सबसे तेज वैक्सीन बताया है।
  • इसके क्लिनिकल ट्रायल में अमेरिका NIH (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होल्थ) भी शामिल है।
  • यह कंपनी इस साल के अंत तक वैक्सीन बना लेने के लक्ष्य को लेकर अगे बढ़ रही है।
  • तीसरी कंपनी चीन की सिनोवक बायोटेक है। यह भी क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे फेज में है अर्थात अंतिम चरण में है।
  • इसका ब्राजील में 9000 वालंटियर पर ट्रायल चल रहा है।
  • अगले साल के प्रारंभ तक यह मेडीसिन भी सरकारी अनुमति के लिए तैयार हो सकती है।
  • भारत में दो प्रोजेक्टों को भारत में हूयूमन ट्रायल की अनुमति दी गई है। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन (कोवक्सीन) इसमें प्रमुख है। इसमें सरकारी एजेंसी इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भी शामिल है।
  • अमेरिकी कंपनी फाइजर और जर्मनी कंपनी बायो एंड टेक मिलकर एक अन्य कोरोना वैक्सीन प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे है।
  • इनके द्वारा भी तीसरे फेज का परीक्षण अपने अंतिम चरण में है। इसमें 3000 वालंटियर्स को शामिल किया गया है। और लगभग 120 देशों में इसके परीक्षण चल रहे है।
  • अक्टूबर के अंत तक यह सरकारी अनुमति के लिए आवेदन कर सकते हैं।
  • अमेरिकी सरकार ने इसके 10 करोड़ डोज का एडवांस ऑर्ड दे दिया है।
  • कुलामिलकर हम वैक्सीन निर्माण में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं लेकिन तीसरे फेज का ट्रायल यह बतायेगा कि अभी कितना समय लग सकता है।
  • तीसरे फेज के बाद सरकारी अनुमती मिलने में लगने वाला समय अलग है।
  • सरकारी अनुमति के बाद उत्पादन और उसका वितरण भी समय लेगा।
  • भारत जैसे देश में इसका वितरण और कठिन होगा क्योंकि दवा आपूर्ति का चैन अभी बहुत विकसित नहीं है।
  • दवा की कीमत भी लोगों तक इसके पहुंच में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
  • कितने डोज दिये जायें ओर किसकों पहले यह भी एक चुनौती है।