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क्यों महत्वपूर्ण है रोहिणी आयोग
- देश जब आजाद हुआ तो हमारे सामने कई प्रकार की चुनौतियां थी। इन्हीं चुनौतियों में एक चुनौती सभी वर्गों के विकास, अवसर, समानता और सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व से जुड़ी थी।
- भारतीय संविधान में इसी आवश्यकता/चुनौती का समाधान करने के लिए अनुच्छेद340 को बनाया गया। इसी अनुच्छेद में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जांच करने के लिए तथा उनकी स्थिति में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान करने के लिए एकआदेश के माध्यम से एक विशेष आयोग की नियुक्ति कर सकते हैं।
- यह आयोग संदर्भित मामलों की जांच कर सिफारिशों के साथ अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
- इन्हीं प्रावधानों के तहत जनवरी 1953 में काकाकालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग गठित हुआ।
- इस आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों (SC) अनुसूचित जनजातियों (ST) के अतिरिक्त अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान की, जिनके लिए विशेष उपबंध करने की आवश्यकता थी।
- आयोग ने सामाजिक और शैक्षिक आधार पर पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए 4 मानक बनाए थे।
- इस आयोग द्वारा 2399 पिछड़ी जातियों की सूची बनाई गई जिनमें 837 जातियां अति पिछड़ी थी।
- आयोग के अध्यक्ष ने पिछड़ेपन के आधार के रूप में जाति को शामिल करने के खिलाफ राष्ट्रपति को पत्र लिखा।
- इस पर गृह मंत्रालय ने कहा कि पिछड़ी जातियों का चयन राज्य सरकारों की मर्जी पर है, पर केंद्र की राय में उचित होगा की जाति के बजाय आर्थिक आधार को माना जाए।
- जबकि अनुच्छेद 340 कहता है कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग को फायदा दिया जाए।
- आगे चलकर वर्ष 1979 में सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो की पहचान के उद्देश्य से मंडल आयोग का गठन किया गया।
- आयोग ने पिछड़ेपन का निर्धारण करने के लिए 11 सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक संकेतको का प्रयोग करके 1980 में अपनी रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की।
- भारत के सातवें प्रधानमंत्री वीपी सिंह (विश्वनाथ प्रताप सिंह) जब सत्ता में आए तो उन्होंने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की।
- इस निर्णय के बाद पूरे देश में आंदोलन प्रारंभ हुए तथा राजनीति में भी कई प्रकार की उठा-पटक चालू हुई।
- मामला सुप्रीम कोर्ट गया तो अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार का फैसला मान्य है। और इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर अपनी सहमति दे दी।
- साथ ही न्यायालय ने आगे जोड़ा कि इसका लाभ उन लोगों को नहीं मिलना चाहिए जो सामाजिक दृष्टि से अगड़े हैं। यही आगे चलकर क्रीमी लेयर का आधार बना।
- अगड़ों को चिन्हित करने के लिए एक कमेटी बनी, परिभाषा बनाई गई जिसमें कई बार परिवर्तन हो चुका है।
- आरक्षण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए 1992 में सरकारी नौकरियों में तथा वर्ष 2006 में उच्च शिक्षा संस्थान में लागू किया गया !
- लोकसभा सचिवालय द्वारा फरवरी 2019 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक ग्रुप A में OBC का प्रतिनिधित्व 13.01%, ग्रुप B में 14.78%, ग्रुप C में 22.65% है।
- इससे यह पता चलता है कि पिछले 3 दशकों में भी पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण नौकरियों में अभी तक नहीं मिल पाया है।
- इसी के साथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि समय-समय पर यह बात भी कोर्ट, संसद-सड़क सभी जगह उठती रही है कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को नहीं मिल पाया है जिन्हें मिलना चाहिए था।
- दूसरे शब्दों में SC/ST एवं OBC में कुछ ऐसी जातियां हैं जिन्होंने आरक्षण का लाभ ज्यादा उठाया है।
- इसका एक प्रमुख कारण भारत की सामाजिक व्यवस्था है ! इस व्यवस्था में OBC के तहत आने वाली कुछ जातियां अन्य OBC जातियों से बेहतर स्थिति में हैं !
- इसी कारण OBC के अंदर ही श्रेणीकरण की मांग लंबे समय से उठती रही है ! देश के अंदर केंद्रीय स्तर पर तो इस प्रकार का कोई श्रेणीकरण नहीं किया गया है लेकिन कई राज्यों में श्रेणीकरण की व्यवस्था लागू की गई है !
- इन्हीं मांगों और परिवर्तनों को समझते हुए वर्ष 2015 में सर्वप्रथम National Commission for Backward Classes NCBC (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) ने OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गो, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों जैसे तीन श्रेणियों में वर्गीकृत की जाने की सिफारिश की थी !
- इस सिफारिश को ध्यान में रखकर अनुच्छेद 340 के तहत 2 अक्टूबर 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी की अध्यक्षता मे एक आयोग का गठन किया गया !
- इसका मुख्य उद्देश्य OBC के अंतर्गत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था !
- इस आयोग को जिम्मेदारी दी गई है कि OBC की केंद्रीय सूची में मौजूद 5000 जातियों को उप-वर्गीकृत कर सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में अवसर के अधिक न्याय संगत वितरण को सुनिश्चित कर सकें !
- यही आयोग उप-वर्गीकृत करने के लिए तंत्र और मापदंड भी विकसित करेगा !
- वर्ष 2017 में गठित हुई इस समिति का कार्यकाल कई बार बढ़ाया जा चुका है !
- दिसंबर 2017, मार्च 2018, जून 2018, वर्ष 2019 में कई बार कार्यकाल में वृद्धि की जा चुकी है !
- कुछ समय पहले इस आयोग ने पुनः 31 जुलाई 2020 तक अपने कार्यकाल को बढ़ाए जाने की मांग की थी !
- हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस कमेटी को 6 माह का और विस्तार दे दिया है ! अब इस आयोग को अपनी रिपोर्ट 31 जनवरी 2021 तक सौंपना है !
- दरअसल Covid-19 के चलते यात्रा पर लागू किए गए प्रतिबंध और ऑफिस-क्लोज के चलते आयोग अपना कार्य पूरी क्षमता से नहीं कर पा रहा था !
- सामाजिक न्याय और समान अवसर को सुनिश्चित करने के लिए यह आयोग मंडल आयोग के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण आयोग माना जा रहा है !
- इस आयोग को लेकर कुछ विवाद भी हैं ! जैसे आयोग अपनी रिपोर्ट का आधार 2011 की जनगणना को बना रहा है ना कि अपना कोई सर्वेक्षण !
- स्वतंत्र भारत में अभी तक जाति आधारित जनगणना सिर्फ एक बार 2011 में हुई थी जिसके अंतिम परिणाम को अभी तक जारी नहीं किया गया है जिससे लोगों को अपनी ही जाति के विषय में संपूर्ण आर्थिक जानकारी नहीं है !
गेहूं की राष्ट्रीय खरीद
- गेहूं (Wheat) का वैज्ञानिक नाम Triticumaestivum है। यह एक विश्वव्यापी फसल है।
- विश्व के कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूं की खेती की जाती है।
- यह विश्व की 20% जनसंख्या का मुख्य आधार है।
- गेहूं मुख्यतः दो प्रकार का होता है शीतकालीन और बसंत कालीन।
- शीतकालीन गेहूं ठंडे देशों जैसे कि यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस आदि क्षेत्रों में उगाया जाता है। वही बसंत कालीन गेहूं एशिया और USA के दक्षिणी भाग में उगाया जाता है।
- भारत में भी गेहूं खाद्यान्न में चावल के बाद दूसरा प्रमुख स्थान रखता है।
- भारत चीन के बाद गेहूं उत्पादन में दूसरा स्थान रखता है। इस फसल के लिए 50-100 सेमी वर्षा, प्रारंभ में 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा बाद में 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है।
- उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं।
- PDS, मिड डे मील एवं अन्य योजनाओं के लिए केंद्र सरकार इन राज्यों से बड़ी मात्रा में गेहूं खरीदती है।
- समान्यतः यह कार्य Food Corporation of India (FCI) के माध्यम से किया जाता है।
- केंद्र सरकार राज्यों से गेहूं की जो खरीद करती है उसे राज्यों का Wheat Contribution माना जाता है।
- अर्थात जो राज्य अधिक मात्रा में केंद्र को गेहूं बेच पाता है उसका Wheat कंट्रीब्यूशन उतना ही ज्यादा होता है।
- अभी हाल में सूचना आई है कि मध्यप्रदेश में गेहूं के कंट्रीब्यूशन में पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। अर्थात केंद्र सरकार को पंजाब से अधिक गेहूं मध्यप्रदेश ने बेचा है।
- इसका प्रमुख कारण मध्यप्रदेश में गेहूं की कृषि का विस्तार है।
- यहां वर्ष 2007-08 में जहां 41 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर कृषि की जाती थी वही यह 2018-19 में बढ़कर 77.22 लाख हेक्टेयर हो गया है।
- वर्ष 2019-20 मे इसमें लगभग 25 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई और यह बढ़कर 102 लाख हेक्टेयर हो गया है।
- वहीं पंजाब में इसका उत्पादन कई वर्षों से लगभग 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सीमित है।
- लेकिन पंजाब में प्रति हेक्टेयर उत्पादन मध्य प्रदेश की तुलना में 52% अधिक है।
- वर्ष 2019-20 में स्वतंत्रता के बाद से सबसे अधिक क्षेत्र में गेहूं की कृषि की गई है और इसके अंतर्गत लगभग 330.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर उत्पादन किया गया है।
- हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा खरीदे गए गेहूं में पंजाब का हिस्सा जहां 33.27% रहा है वहीं मध्यप्रदेश का हिस्सा 33.83% रहा है।
- पंजाब में प्रति हेक्टेयर उत्पादन वर्ष 2019-20 में जहां 50.08 क्विंटल रहा वहीं मध्यप्रदेश में 32.98 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहा है।