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Blog / 25 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 25 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 25 September 2020



CAG की कौन सी रिपोर्ट्स चर्चा में हैं?

  • ‘‘भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG-कैग) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है जो यह देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक खर्च न हो पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाए।’’ – डॉ. भीमराव अंबेडकर
  • यह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (Indian Audit and Account Department) का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख संरक्षक है।
  • CAG के माध्यम से संसद एवं राज्य विधानसभाओं के लिए सरकार और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (सार्वजनिक धन खर्च करने वाले) की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
  • अनुच्छेद-148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक और महालेखापरीक्षक को नियुक्त करने का प्रावधान किया है।
  • अनुच्छेद-149 में CAG के कर्तव्यों एवं शक्तियों का उल्लेख है।
  • अनुच्छेद-150 कहता है कि संघ के खतों से संबंधित CAG अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपेगा, जो संसद के प्रत्येक पटल पर रखवायेगा।
  • CAG भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य, केंद्रशासित प्रदेश जिसकी विधानसभा होती है, की संचित निधि से संबंधित खातों के सभी प्रकार के खर्चों का परीक्षण करता है।
  • भारत की आकस्मिक निधि और भारत के सार्वजनिक खाते के साथ-साथ प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते से होने वाले सभी खर्चों का परीक्षण करता है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण, लाभ- हानि खातों, बैलेंस शीट और अन्य अतिरिक्त खातों का ऑडिट करता है।
  • संबंधित कानूनों द्वारा आवश्यक होने पर वह केंद्र या राज्यों के राजस्व से वित्तपोषित होने वाले सभी निकायों, प्राधिकरणों, सरकारी कंपनियों, निगमों और निकायों की आय-व्यय का परीक्षण करता है।
  • राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुशंसित किये जाने पर किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है, जैसे- कोई स्थानीय निकाय।
  • केंद्र और राज्यों के खाते जिस प्रारूप में रखे जाएंगे, उसके संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है।
  • केंद्र के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को राष्ट्रपति को सौंपता है, जो संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती है।
  • किसी राज्य के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है, जो राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाती है।
  • CAG इस समय दो रिपोर्ट की वजह से चर्चा में है। कैग की एक रिपोर्ट रक्षा खरीद से जुड़ी है तो दूसरी रिपोर्ट सरकारी विद्यालय में शौचालय के सर्वेक्षण से जुड़ी है।
  • CAG कैग ने अपनी रिपोर्ट 23 सितंबर, 2020 को संसद को सौंपा, जिसमें रक्षा खरीद प्रक्रिया की बात की गई है और कहा गया है कि विदेशी हथियार विक्रेता या ठेकेदार टेंडर पाने के लिए ऑफसेट के रूप में कई-कई वादे करते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने में सुस्ती दिखाते हैं, रफाल के विषय में भी ऐसा हुआ है।
  • भारत हथियारों का प्रमुख खरीदार देश है और आने वाले समय में भी हथियार की मांग बनी रहेगी।
  • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक वर्ष 2015 से 2019 के बीच भारत दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा बड़ा आयातक था। अब भी भारत तीसरे-चौथे स्थान बना हुआ है।
  • कुल मिलाकर हम हथियारों के मामले में आयात पर निर्भर है जिसमें भारी रकम (पैसा) खर्च होता है।
  • भारत ने वर्ष 2005 में यह नियम लगाया कि 300 करोड़ से बड़े किसी भी सौदे में विदेशी वेंडर को कम से कम 30 फिसदी रकम भारत के रक्षा या एयरोस्पेस सेक्टर में लगानी होगी।
  • इसके लिए विदेशी कंपनी को भारत में एक पार्टनर खोजना होता है।
  • ऑफसेट नीति के तहत एक तरह से मोलभाव करके कुछ वायदे करवाये जाते है, जिससे भारत के रक्षा क्षेत्र में प्रगति हो सके। इसके तहत विदेशी कंपनी भारत में कोई कंपनी खोल सकती है (FDI आयेगा), तकनीकी हस्तांतरण कर सकती है या भविष्य के लिए कोई उत्पादन कर सकती है।
  • यदि ऑफसेट की नीति का पालन किया जाये तो न सिर्फ तकनीकी हस्तांतरण होगा बल्कि यहां का रक्षा उद्योग विकसित होगा और धीरे-धीरे रक्षा उपकरणों का आयात कम होगा।
  • ऑफसेट की नीति के तहत वेंडर भी किसी हस्तातरण (उपकरण के हस्तांतरण) की अधिक कीमत वसूल करता है, इसलिए सामान का मूल्य बढ़ जाता है। अर्थात हमें भविष्य तकनीकी हस्तांतरण, FDI एवं अन्य प्रकार के सहयोग प्राप्त हो सकते हैं तो दूसरी तरफ विक्रेता को अधिक मूल्य प्राप्त होता है। इस तरह ऑफसेट की नीति रक्षा उपकरण की प्राप्ति के साथ-साथ भारत के रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । राफेल की खरीद के समय इसीलिए कहा गया था कि इससे सेना के साथ-साथ अर्थव्यवसथा को भी मजबूती मिलेगी, अर्थात रफॉल के तहत की गई ऑफसेट से यहां FDI आयेगा।
  • CAG की रिपोर्ट बताती है कि भारत रक्षा खरीद तो कर रहा है लेकिन उसका 100 फीसदी फायदा उसे नहीं हो रहा है क्योंकि वेंडर ऑफसेट कमिटमेंट पूरा नहीं कर रहे हैं।
  • ऑफसेट के नियमों का पालन न होने की वजह से हमारे पैसे बर्बाद होते है क्योंकि इस नियम की वजह से ही हम अधिक कीमत अदा करते है। दूसरी तरफ हमें जो सेवाएं ऑफसेट के तहत प्राप्त होनी थी वह भी नहीं हो पाती है।
  • भारत के रक्षा खरीद का आकार बहुत बड़ा है इसलिए यदि ऑफसेट के नियमों का पालन नहीं होता है तो इससे भारत के हजारों करोड़ रुपये बर्बाद हो जाते हैं।
  • इसके माध्यम से तकनीक की भी मांग की जाती है जैसे अमेरिका F-35 फाइटर जेट तो बेचता है लेकिन F-22 किसी को नहीं बेचता है, इसके पीछे का कारण यह है कि यह एक अनोखी और विशिष्ट तकनीकी से लैस है।
  • भारत में रक्षा खरीद से कौशल बढ़े, प्राइवेट कंपनियां भी बढ़े इसके लिए भी ऑफसेट का पालन करवाना आवश्यक है।
  • रफाल सौदे का हिस्सा बनने वाली दासौ (दसॉल्ट) एविएशन और MBDA ने वादा किया था कि ऑफसेट कमिटमेंट का 30 प्रतिशत वह डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन (DRDO) को हाई टैवनोलाजी देकर पूरा करेंगे। DRDO स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस (लाइट कॉम्बैट एयरफ्रॉफ्रट) के लिए इंजन बनाने में मदद चाहता था, लेकिन आज तक यह तकनीकी नहीं दी गई। अभी तेजस में जनरल इलेक्ट्रिक (GE) कंपनी का इंजन लगा है, जिसमें स्वदेश निर्मित कावेरी नामक इंजन DRDO लगाना चाहता है।
  • कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2005 से लेकर मार्च 2018 तक 46 ऑफसेट कांट्रेक्ट साइन किए गये, जिनकी कुल कीमत 66 हजार करोड़ से ज्यादा थी। इनमें से 19 हजार 223 करोड़ के कांट्रेक्ट दिसंबर 2019 तक पूरे होने थे, लेकिन 41 प्रतिशत कांट्रेक्ट अभी तक पूरे नहीं हुए हैं।
  • CAG ने पाया कि ऑफसेट कमिटमेंट के लिए विदेशी कंपनियां तकनीकी देने से लगातार स्थित रही हैं। कैग ने यहां तक कहा है कि एक भी वेंडर ने हाई टैक्टनोलॉजी भारत को नहीं दी। FDI का तो और भी बुरा हाल है। अब तक सिर्फ 3.5 प्रतिशत ऑफसेट कमिटमेंट रक्षा क्षेत्र में FDI के जरिये आये हैं ।
  • उपरोक्त अनेक आधारों पर कैग ने कहा है कि रक्षा मंत्रलय को इस नीति और इसके अमल पर दोबारा विचार करना चाहिए।
  • कैग ने एक और रिपोर्ट सरकारी विद्याालयों के शौचालयों के संदर्भ में दी है, जिसे संसद में प्रस्तुत किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों द्वारा शिक्षा के अधिकार के हिस्से के रूप में सरकारी विद्यालयों में निर्मित 1.4 लाख शौचालयों में से लगभग 40 प्रतिशत अस्तित्वहीन, आंशिक रूप से निर्मित और प्रयुक्त हैं।
  • CAG ने यह निष्कर्ष 15 राज्यों के 2695 सरकारी विद्यालयों के शौचालयों का सर्वेक्षण कर के निकाला है।
  • CAG ने कहा है कि 70 प्रतिशत से अधिक शौचालयों में पानी की सुविधा उपलब्ध है तो 75 प्रतिशत शौचालयों में निर्धारित मानकों का सही ढंग से पालन नहीं किया गया है।
  • अनेक शौचालय ऐसे हैं जो बने हैं तो हैं लेकिन सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण वह उपयोग में नहीं है।
  • 27 प्रतिशत स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचाल उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है।
  • 55 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां हाथ धोने की कोई सुविधा नहीं है।
  • 75 प्रतिशत शौचालय ऐसे हैं जहां दिन में कम से कम एक बार अनिवार्य सफाई के मानक का पालन नहीं किया जा रहा है।
  • शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के जनादेश को पूरा करने के लिए वर्ष 2014 में स्वच्छ विद्यालय अभियान को लॉच किया गया था, जिसका उद्देश्य विद्यालयों में शौचालय का निर्माण करना तथा हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध कराना था।