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Blog / 18 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 18 August 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 18 August 2020



असम समझौते की धारा 6 चर्चा में क्यों है?

  • असम या आसाम उत्तर-पूर्व भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसके उत्तर में अरूणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैण्ड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बांग्लादेश स्थित है।
  • असम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़कर बांग्लादेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था। धीरे-धीरे राजनीति एवं जनजातीय मुद्दों के समाधान के रूप में यह विभाजित होता गया।
  • वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिसक कार्रवाई प्रारंभ हुई तो वहां के लगभग 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली। बांग्लादेश बनने के बाद भी बड़ी संख्या में प्रवासी वापस नहीं गये।
  • 1971 के बाद भी जब बांग्लादेशी अवैध रूप से असम आते रहे तो इससे असम के मूल निवासियों की भाषायी, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पहचान खतरे में पड़ गई।
  • असम में 1978 में अपनी पहचान बचाने का आंदोलन प्रारंभ हुआ जिसने 1983 में भीषण हिंसक स्वरूप धारण कर लिया। इसके बाद समझौते के लिए बातचीत की प्रक्रिया को तेज कर दिया गया।
  • 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौता (Assam Accord) के नाम से जाना जाता है।
  • समझौते के अनुसार 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आये सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहां से जाना होगा, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान।
  • 1951 से 1961 के बीच असम आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता एवं मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया।
  • 1961 से 1971 के बीच असम आये सभी लोगों को नागरिकता एवं अन्य अधिकार दिये गये किंतु उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
  • इस समझौते की धारा 6 यह कहती है कि- असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान और धरोहर के संरक्षण तथा उसे बढ़ावा देने के लिए उचित संवैधानिक, विधायी तथा प्रशासनिक उपाय एवं सुरक्षा के प्रावधान किये जायेंगे।
  • धारा-6 के प्रावधान को अभी तक ठीक से लागू नहीं किया जा सका है इसी कारण असम समझौते को लेकर जो संभावना व्यक्त की गई थी वह पूरी नहीं हो पाई।
  • धारा/खण्ड 6 असमिया कौन है इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाता है।
  • केन्द्र सरकार द्वारा जुलाई 2019 में न्यायमूर्ति बिप्लब कुमार शर्मा की अध्यक्षता में एक 15 सदस्यी कमेटी का गठन धारा-6 के कार्यान्वयन की समीक्षा करने ओर सिफारिश देने के लिए की गई थी।
  • फरवरी 2020 में इस उच्चाधिकार प्राप्त समीति ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
  • असम सरकार ने इस रिपोर्ट को गृह मंत्रलय के पास भेज दिया था और उसे ही निर्णय लेना था।
  • केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इस मुद्दे पर अभी तक अपना रूख (स्टैंड) स्पष्ट न करने के कारण 4 सदस्यों ने स्वयं के पास उपलब्ध जानकारी को सार्वजनिक कर दिया है।
  • सार्वजनिक जानकारी के अनुसार असमिया की परिभाषा के अंतर्गत स्थानीय आदिवासियों, अन्य स्थानीय समुदायों तथा भारत के सभी अन्य ऐसे नागरिकों को शामिल किया गया है जो 1 जनवरी, 1951 या उससे पहले से असम में रह रहे हों दूसरे शब्दों में इस परिभाषा के अंतर्गत वह लोग शामिल होंगे जो 1951 से पहले से असम में अपनी उपस्थिति साबित कर सकें।
  • सार्वजनिक जानकारी के अनुसार सुरक्षा उपायों के तहत असमिया लोगों के लिए विधायिका एवं नौकरियों में आरक्षण दिया जाना चाहिए तथा भूमि आधिकार को असमिया लोगों तक सीमित किया जाना चाहिए।
  • वर्ष 1951 के बाद से तथा 24 मार्च, 1971 से पहले प्रवेश करने वाले लोग (प्रवासी) असमिया नहीं हैं लेकिन भारतीय माने जायेंगे। इन्हें मतदान का अधिकार तो होगा लेकिन चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा।
  • असम राज्य का इतिहास प्रवासियों के आगमन से भरा पड़ा हैं वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर यहां के लोगों के दर्द को समझ सकते हैं।
  • 1991 से 2001 के बीच यहां असमी भाषी लोगों की आबादी 58 प्रतिशत से घटकर 48 प्रतिशत हो गई है जबकि बांग्लाभाषी आबादी 21 प्रतिशत से बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई है।
  • आज के समय में असमीभाषी लोगों का प्रतिशत लगभग 40 प्रतिशत और बांग्लाभाषी आबादी लोगों का प्रतिशत लगभग 60 प्रतिशत है जो असमीभाषी लोगों की चिंता का मुख्य कारण है।
  • यहां प्रवास की समस्या सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी वजह से संसाधनों पर नियंत्रण एवं उपभोग, भूमि अधिकार विकास की दर, नीति-निर्माण एवं कार्यान्यवयन आदि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा हिंसा बढ़ती है। इन सब कारणों से यहां उत्पन्न होने वाली अशांति पूरे देश के चिंता का कारण बन जाती है।

कन्वेंशन 182 चर्चा में क्यो है

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) की एक विशिष्ट एजेंसी के रूप में वर्ष 1919 में की गई थी।
  • यह एजेंसी अंतर्राष्ट्रीय आधार पर मजदूरों तथा श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए नियम बनाता है, श्रम संबंधी समस्याओं को देखता है तथा सभी के लिए कार्य के अवसर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर देशों के बीच सहमति बनाने का प्रयास करता है।
  • वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 187 है जिसमें Cook’s Island ऐसा सदस्य है जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है।
  • लीग ऑफ नेशंस (राष्ट्र संघ) की जगह जब संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) ने लिया तब से इसे संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के तौर पर देखा जाता हैं । 1946 में ILO पहला संगठन था जो संयुक्त राष्ट्र में एक स्पेशलाइज्ड एजेंसी के तौर पर शामिल हुआ।
  • इसका सचिवालय/मुख्यालय स्विटज़लैण्ड के जिनेवा में है।
  • यह अपने कार्य संचालन एवं नीति निर्माण में सरकार, नियोक्ता एवं मजदूर वर्ग के प्रतिनिधियों को 2:1:1 के अनुपात में शामिल करती है ताकि सभी के बीच बातचीत हो सके एवं प्रभावी निर्णय लिये जा सकें।
  • विभिन्न वर्गों के बीच शांति स्थापित करने के लिए, मजदूरों के मुद्दों को देखने के लिए, राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए तथा उन्हें तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए वर्ष 1969 में इसे शांति के नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • नोबेल पुरूस्कार मिलने के बाद भी इस संगठन के सामने एक सामाजिक समस्या अभी तक बनी हुई थी, जिसका समाधान ILO को अभी तक करना था। यह समस्या बाल श्रम की थी।
  • ILO बाल श्रम को एक ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित करता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है तथा बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए हानिकारक है।
  • वर्तमान समय में भी यह समस्या बनी हुई है और कम विकसित देशों में, चार बच्चों में से एक से अधिक बच्चे बालश्रम में लगे हुए हैं जो उनके स्वास्थ्य एवं विकास के लिए हानिकारक है।
  • ILO एवं संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसके उन्मूलन के कई प्रयास किये जा रहे हैं और इन्हीं प्रयासों के तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2021 को बालश्रम के उन्मूलन के लिए वर्ष घोषित किया गया है।
  • वर्ष 1999 में जिनवा में सदस्य देशों की बैठक में कन्वेंशन 182 को अपनाया गया था।
  • इसका उद्देश्य बच्चों को बालश्रम के सबसे बुरे कार्यों जैसे तस्करी, वेश्यावृत्ति, दासता एवं सशस्त्र संघर्ष से बचाना है।
  • कन्वेंशन 182 ऐमी सामाजिक बुराई के खिलाफ है जिसे सभी समुदाय बुरा मानता है, इसीकारण इसे बहुत तेजी से समर्थन मिला है।
  • ILO के 100 वर्ष को अधिक के कार्यकाल में यह पहला कन्वेंशन है जिसे सार्वभौमिक अनुसमर्थन (Universally Ratified) प्राप्त हो गया है।
  • हाल ही में किंगडम ऑफ टोंगा (Kingdom of Tonga) ने भी इसकी पुष्टि कर दिया है जिससे यह ILO के 187 सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने वाला कन्वेंशन बन गया है।
  • सार्वभौमिक अनुसमर्थन से बालश्रम के उन्मूलन का रास्ता आसान होगा, हालांकि गरीब एवं निम्न विकसित देशों में इसका उन्मूलन अभी कठिन नजर आता है।
  • एक अनुमान के मुताबिक अभी भी लगभग 152 मिलियन बच्चे बालश्रम में शामिल हैं जिसमें से 72 मिलियन बच्चे तो खतरनाक कार्य में लगे हुए है।
  • Covid-19 के कारण जिस तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था और लोगों की आमदनी प्रभावित हो रही है इससे आने वाले समय में बालश्रम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • कई ऐसी रिपोर्ट इस समय सामने आ रही है जिनसे यह पता चलता है कि बालश्रम से मुक्त हो चुके या मुक्त कराये जा रहे बच्चे वापस बालश्रम करने पर मजबूर हैं।
  • बालश्रम पर इसके अलावा दो अन्य कन्वेंशन महत्वपूर्ण है- यूएन कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड, 1989 एवं मिनिमम ऐज कन्वेंशन 1973
  • पहला कन्वेंशन बच्चों को कार्य करने की एवं कार्य चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करता है वहीं दूसरा कन्वेंशन कम आयु के बच्चों को बालश्रम करने से रोकता है।
  • भारत ने कन्वेंशन 182 एवं मिनिमम ऐज कन्वेंशन, 1973 की पुष्टि की जा चुकी है।
  • ILO ने पिछले वर्ष अपनी स्थापना के शताब्दी के अवसर पर 7 पहलें की थीं जिससे मजदूरों की स्थिति में सुधार आने की संभावना है। (1) फ्रयूचर ऑफ वर्क इनिशिएटिव, (2) वीमेन एट वर्क इनीशिएटिव, (3) एंड टू पावर्टी इनीशिएटिव, (4) द ग्रीन इनीशिएटिव, (5) द स्टैंडडर््स इनीशिएटिव, (6) द गवर्नेंस इनीशिएटिव, (7) द इंटर प्राइजेज इनिशिएटिव।
  • ILO के 8 मुख्य कन्वेंशन:
  1. बालश्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर कन्वेंशन (संख्या 182)
  2. न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन (संख्या 138)
  3. भेदभाव (रोजगार व व्यवसाय) पर कन्वेंशन (संख्या 111)
  4. बलात श्रम के उन्मूलन पर कन्वेंशन (संख्या 105)
  5. समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन (संख्या 100)
  6. संगठित एवं सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार पर कन्वेंशन (संख्या 98)
  7. संघ की स्वतंत्रता एवं संगठित होने की सुरक्षा पर कन्वेंशन (संख्या 87)
  8. बलात श्रम पर कन्वेंशन (संख्या 29)