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Blog / 12 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 12 August 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 12 August 2020



ईरान पर UN हथियार प्रतिबंध और GCC

  • ईरान एशिया के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक प्रमुख देश है, जिसे सन् 1935 तक फारस के नाम से भी जाना जाता था।
  • यहाँ की राजधानी तेहरान है और फारसी मुख्य भाषा है। यहाँ की अर्थव्यवस्था का आधार तेल और प्राकृतिक गैस के निर्यात पर निर्भर है।
  • नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्वक प्रयोग के महत्त्व को समझते हुए ईरान ने भी 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका की मदद से शांति के लिए परमाणु कार्यक्रम (Atoms for Peace Program) को प्रारंभ किया।
  • इस परमाणु कार्यक्रम में अमेरिका के साथ-साथ पश्चिमी यूरोपीय देशों का सहयोग भी ईरान को मिल रहा था।
  • इस परमाणु कार्यक्रम में ईरान के शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी का महत्त्वपूर्ण योगदान था। यह आधुनिकीकरण एवं पश्चिमीकरण के समर्थक थे इसीकारण 1953 अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गये प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को अपदस्थ कर शाह पहलवी को सत्ता सौंप दी थी। इसी कारण शाह पहलवी पश्चिमी देशों से घनिष्ठा बनाये रखे रहना चाहते थे।
  • इनके काल में तेल से प्राप्त पैसे की वजह से शहरों की जहाँ समृद्धि बढ़ी वहीं गांवों में गरीबी भी। इस तरह असमानता बढ़ती गई और असंतोष भी।
  • आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, विदेशी हस्तक्षेप, धार्मिक- सांस्कृतिक परिवर्तन, असमानता आदि ने वहां की जनता के एक बड़े वर्ग को शाह पहलवी से दूर किया तो धार्मिक तौर पर कट्टर विचारों के समर्थक रूहोल्ला खामेनेई के करीब लाया।
  • 1979 में यहाँ ईरान की इस्लामिक क्रांति हुई और अभूतपूर्व प्रदर्शन एवं हिंसक झडपों की वजह से सत्ता परिवर्तित हो गई। इस दौरान अमेरिकी दुतावास को भी घेर लिया गया था तथा और कर्मचारियों को बंधक बना लिया गया था।
  • इस क्रांति के बाद रूढ़िवादिता ने अपने पैर पसारने शुरू किये और शीर्ष पद पर धार्मिक मौलाना/नेता की उपस्थिति बढ़ी। रूहोल्ला खामेनेई को शीर्ष नेता का पद प्राप्त हुआ।
  • इस क्रांति के बाद अमेरिका से ईरान के समाप्त हो गये और यूरोप से भी दूरी बढ़ गई। इस दौरान कुछ वर्षों के लिए ईरान के परमाणु कार्यक्रम में थोड़ा ठहराव आया लेकिन बाद में यह पुनः आगे बढ़ने लगा।
  • ईरान के नाभिकीय/परमाणु कार्यक्रम में एक बड़ी सूचना वर्ष 2002 में आई। यह सूचना यह थी कि ईरान NPT (Non- Proliferation Treaty- परमाणु अप्रसार संधि) का हस्ताक्षरकर्ता होते हुए भी वह अपने नाभिकीय हथियारों को तेजी से इकट्ठा कर रहा है।
  • इसके बाद अमेरिका साहित सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को ईरान से एक प्रकार का खतरा महसूस होने लगा
  • इसके बाद वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये।
  • UNSC का संकल्प संख्या 1947- 24 मार्च, 2007 का संकल्प संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों पर ईरान के साथ सभी प्रकार के हथियारों के हस्तांतरण (आयात और निर्यात दोनों) पर प्रतिबंध लगाता है।
  • इसी के साथ अमेरिका एवं यूरोपीय यूनियन ने अलग से भी कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये।
  • इन प्रतिबंधों की वहज से ईरान का व्यापार बहुत प्रभावित हुआ और ईरान की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी।
  • UNSC संकल्प संख्या 1929- 9 जून, 2010 का यह संकल्प ईरान को युद्ध के लिए हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाता है।
  • इसके बाद ईरान की तरफ से कई प्रकार के आश्वासन दिये गये जिसकी वजह से जुलाई 2015 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य (अमेरिका, चीन, रुस, फ्रांस, ब्रिटेन) एवं जर्मनी तथा यूरोपीय यूनियन ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौता किया। कुछ समीक्षक इसे P5+1 की संज्ञा देते है। अधिकारिक तौर पर इसे JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action साझा व्यापक कार्ययोजना) के नाम से जाना जाता है।
  • इस समझोंते के मुताबिक ईरान को अपने संवृर्द्धित यूरेनियम भंडार को कम करने और अपने परमाणु संयंत्रें को अंतर्राष्र्ट्रीय निगरानी में लाना था।
  • इस समझौते के तहत ईरान पर हथियार खरीदने पर पांच साल और मिसाइल तथा उससे जुड़ी तकनीकी खरीद पर आठ साल का प्रतिबंध लगाया गया।
  • UNSC संकल्प 2231- 17 जुलाई, 2015 का यह प्रस्ताव 18 अक्टूबर, 2020 ईरान को हथियारों के हस्तांतरण पर रोक लगाता है वहीं परमाणु हथियार एवं मिसाइल से संबंधित हस्तांतरण पर रोक 18 अक्टूबर, 2023 तक लगाता है।
  • ईरान इस समझौते की सभी शर्तों पर सहमत हो गया जिसके बदले ईरान को तेल और गैस का कारोबार करने, वित्तीय लेन-देन करने, उड्डयन एवं जहाजरानी उद्योग पर लगे अनेक प्रतिबंधों को शिथिल कर दिया गया।
  • डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनावी भाषणों में इस समझौते की आलोचना करते थे ओर इसके खिलाफ थे। ट्रंप का मानना रहा है कि ईरान चोरी छिपे नाभिकीय हथियारों को इकट्ठा कर रहा है। ट्रंप के अनुसार यह बहुत ही उदार तथा तबाही पैदा करने वाला समझौता है। उसके साथ ही इस समझौते में इजराइल तथा सऊदी अरब की आपत्ति को ध्यान में नहीं रखा गया है। इन सब कारणों को आधार बनाते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 में इस फैसले से अमेरिका को बाहर कर लिया।
  • इसके बाद अमेरिका ने ईरान पर कई प्रकार के प्रतिबंध आरोपित कर दिये। अमेरिका के इस फैसले से यूरोपीय यूनियन, भारत के साथ अन्य देशों के लिए एक विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई।
  • हाल ही में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC- Culf Cooperation Council) द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को एक पत्र लिखकर ईरान पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा हथियार स्थानांतरण/हस्तांतरण प्रतिबंधों को आगे बढ़ाने की मांग एवं समर्थन किया है।
  • अमेरिका का ट्रंप प्रशासन इन प्रतिबंधों को आगे बढ़ाने के लिए अपने समर्थक देशों एवं सुरक्षा परिषद के सदस्यों को मनाने की कोशिश कर रहा है।
  • सऊदी अरब के नेतृत्व वाला एक गठबंधन यमन के हाउथी (Houthi) विद्रोहियों से लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका एवं कई अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इन विद्रोहियों को हथियारों की आपूर्ति ईरान द्वारा किया जाता है। यदि ईरान पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो ईरान बड़ी मात्र में हथियारों का स्थानांतरण कर सऊदी अरब एवं उसके समर्थक देशों के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न कर सकता है। खाड़ी सहयोग परिषद इसे एक विषम स्थिति के रूप देखता है। इसलिए उसने ईरान पर लगे प्रतिबंध को बढ़ाने की मांग की है।
  • इसी के साथ खाड़ी सहयोग संगठन देशों ने ईरान पर लेबनान और सीरिया में हिज्बुल्लाह, इराक में शिया मिलिशिया और बहरीन, कुवैत और सऊदी अरब के आतंकवादी समूहों को हथियार प्रदान करने का आरोप लगाया है।
  • UNSC को लिखे अपेन पत्र में ईरान द्वारा यूक्रेन के यात्री विमान मार गिराने, नौसेनिकों के एक अभ्यास के दौरान 19 नाविकों को मिसाइल हमले में मार गिराने तथा सऊदी अरब के तेल उद्योग पर हमले की घटनाओं का भी जिक्र किया है।
  • ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने के लिए सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों की सहमति आवश्यक है जो कि वर्तमान समय में थोड़ा कठिन है।
  • इस समय अमेरिका के साथ चीन एवं रूस के संबंध बहुत तनावपूर्ण हैं। जिससे अमेरिका को समर्थन प्राप्त करने में कठिनाई महसूस होगी।
  • इसी के साथ यह भी समझना होगा कि रूस और चीन के प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता देश हैं जिससे यह अपने वीटो पावर का प्रयोग कर सकते हैं।
  • यूरोप के कई देश ईरान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहते है और ईरान पर नाभिकीय हथियारों से संबंधित प्रतिबंध को ही आगे बढ़ाने के समर्थन में है।
  • इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है इसलिए अन्य देश अमेरिका का समर्थन इस तथ्य को भी ध्यान में रखकर करेंगे।
  • ईरान ने GCC के सभी आरोपों को खारिज किया है और GCC की इस गतिविधि को ‘गैर जिम्मेदाराना’ बताया है।
  • इसके अलावा GCC को आलोचना यह कहते हुए किया है कि यह देश स्वयं दुनिया के सबसे हथियारों के आयातक हैं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council) संगठन फारस की खाड़ी से घिरे देशों का एक क्षेत्रीय समूह है।
  • इसकी स्थापना 25 मई 1981 को हुई थी।
  • इसके 6 सदस्य देश बहरीन, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, कतर एवं UAE हैं।
  • इसका मुख्यालय सऊदी अरब के रियाद में है और अधिकारिक भाषा अरबी है।
  • इसकी स्थापना के पीछे निम्नलिखित उद्देश्य रखे गये थे।
  1. सदस्य देशों में एकता लाने के लिए आपसी समन्वय एवं सहयोग बढ़ाना।
  2. सभी क्षेत्रें में सदस्य देशों के नागरिकों के मध्य संबंधों को मजबूत करना।
  • GCC ने UNSC को लिखे पत्र में भले ही एकीकृत बयान पेश किया हो लेकिन यह संगठन भी आंतरिक संघर्ष से प्रभावित है।
  • वर्ष 2017 में कतर संकट के दौरान बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और अमीरात ने कतर के साथ अपने राजनीतिक संबंध समाप्त कर दिये थे।
  • ओमान तेहरान और पश्चिमी दुनिया के बीच एक वार्ताकार की भूमिका निभाता है जिससे ओमान-ईरान रिश्ते ठीक हैं।