(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 07 September 2020
सर्बिया-कोसोवो समझौता
- कोसोवो का अधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ कोसोवो है। यह दक्षिण-पूर्व यूरोप में स्थित है।
- इसका क्षेत्रफल 10,887 वर्ग किमी- है। यह एक भू-आबद्ध क्षेत्र है जिसकी सीमाएं सर्बिया, नॉर्थ मेसिडोनिया, अल्बानिया एवं मांटेनेग्रो से लगती हैं।
- कोसोवो को वर्तमान समय में अधिकांश देशों द्वारा एक देश के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई है लेकिन भारत, रूस, चीन, स्पेन, ग्रीस, सर्बिया, बोस्निया जैसे कुछ देश ऐसे भी हैं जो इसे एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देते हैं।
- 1360 AD के समय दक्षिण-पूर्व यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य सर्बियन साम्राज्य था, जिसका विस्तार व्यापक था। यह आज के सर्बिया, कोसोवो, मांटेनेग्रो, बोसनिया एवं हर्जेगोविना तक विस्तारित था।
- ऑटोमन साम्राज्य का जब विस्तार होना प्रारंभ हुआ तो इसने तुर्की की सीमाएं लांघकर सर्बिया साम्राज्य के अनेक क्षेत्रें पर कब्जा कर लिया, जिसमें कोसोवो क्षेत्र भी शामिल था।
- ऑटोमन साम्राज्य के दौरान यहां मुस्लिम समुदाय की आबादी बढ़ी तथा इसाई समुदाय की आबादी घटी। इस तरह सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन बड़े मैमाने पर हुए।
- यहां की वर्तमान आबादी में 88 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, 5.8 प्रतिशत कैथोलिक है, 2.9 प्रतिशत पूर्वी आर्थोडोक्स एवं लगभग 2.5 प्रतिशत आबादी गैर धार्मिक है।
- बीसवीं सदी के प्रथम दशक तक ऑटोमन साम्राज्य लगभग कमजोर हो चुका था, फलस्वरूप 1912 में सर्बिया ने पुनः कोसोवो को अपने अधीन कर लिया था।
- इस समय तक कोसोवो बहुत बदल चुका था अर्थात कोसोवो और सर्बिया सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से बिल्कुल अलग हो चुके थे लेकिन सार्बिया इसे ऐतिहासिक रूप से अपना भाग मानता आया था फलस्वरूप उसने अपना कब्जा बनाये रखा।
- प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में यह क्षेत्र अशांत रहा और 1946 में यह क्षेत्र (कोसोवो एवं सर्बिया) यूगोस्लाविया फेडरेशन के अधीन आ गये।
- 1974 में यूगोस्लाविया ने अपने अधीन कुछ स्वात्तता कोसोवो को प्रदान कर दी।
- 1992 में यूगोस्लाविया के विखण्डन के बाद सर्बिया पुनः अस्तित्व में आया जिसका एक भाग कोसोवो भी था।
- सर्बिया में इस घटना का बड़ा प्रभाव हुआ और राष्ट्रवाद की भावना बहुत मजबूत हुई। फलस्वरूप यहां की नीतियों में कोसोवो एक ज्वलंत मुद्दा बना रहा।
- दूसरी तरफ कोसोवो के लोग अपनी आजादी की न सिफ मांग कर रहे थे बल्कि उसके लिए संघर्ष भी कर रहे थे।
- सर्बिया के अनुसार कोसोवो समुदाय के लोग सीमावर्ती क्षेत्र में हिंसा को अंजाम देता है।
- सर्बिया और कोसोवो के बीच बढ़ते तनाव के कारण 1998- 99 के दौरान दोनों देशों में युद्ध भी हुआ।
- इसी बीच बड़ा परिवर्तन रूस की सत्ता में आया और यह परिवर्तन था ब्लादिमीर पुतिन के रूप में एक मजबूत नेता के उभार की।
- वर्ष 2000 के बाद रूस ने सर्बिया का समर्थन करना प्रारंभ कर दिया जिससे अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोपीय देशों की चिंता इस क्षेत्र को लेकर बढ़ने लगी।
- सर्बिया में रूस के बढ़ते प्रभाव के कारण अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी यूरोपीय देशों ने कोसोवो का समर्थन करना प्रारंभ कर दिया।
- इन्हीं विवादों और शक्ति संघर्ष के मध्य कोसोवो ने खुद को 17 फरवरी 2008 को खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
- इस घटना के बाद सर्बिया रूस के समीप गया तो कोसोवो मजबूत तरीके से नाटो देशों के समीप पहुँच गया।
- नाटो सेना ने कोसोवो फोर्स का गठन करवाया।
- अमेरिका और उसके सहयोगियों की मदद से कोसोवो प्डथ् एवं विश्व बैंक का भी भाग बन गया।
- हाल के समय में चीन का प्रभाव भी इस क्षेत्र में बढ़ा है। चीन लगातार इस क्षेत्र में अपने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट द्वारा अपने प्रभाव में वृद्धि कर रहा हैं ऐसे में अमेरिका और उसके समार्थिक देशों के लिए चीन और रूस दो शक्तियों के प्रभाव को रोकने का कार्य करना पड़ता है।
- हालांकि कोसोवो भी कई बार नाटो को चिंतित करता आया है। दिसंबर 2018 में यह घोषण किया कि वह एक शक्तिशाली सेना का गठन करने जा रहा है। इससे यूरोपीय यूनियन और नाटो भी चिंतित हो गये।
- अमेरिका इस क्षेत्र में लंबे समय के रूस और चीन के प्रभाव को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है
- इसी प्रयास के क्रम में अमेरिका ने एक समझौता सर्बिया और कोसोवो के मध्यम करवाया है।
- UAE-इजराइल समझौति के बाद यह ट्रंप की दूसरी एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है जिसके माध्यम से अमेरिका ने रूस और चीन दोनों को एक साथ साध लिया है।
- लंबे प्रयास के बाद अमेरिका दोनों देशों को वाशिंगटन D.C. में एक पंच पर लाने पर सफल हो गया है और दोनों के मध्य एक समझौता भी करवाया हैं यह समझौता एक साल के लिए है।
- इसमें दोनों देशों ने एक दूसरे को यह वायदा किया है कि 1 साल तक न तो कोसोवो किसी देश से यह कहेगा कि वह कोसोवो को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा प्रदान करे और न ही सर्बिया किसी देश से यह कहेगा कि उनके द्वारा कोसोवो को दी गई मान्यता को समाप्त कर दें। अर्थात् यथास्थिति बनी रहेगी।
- अमेरिका ने सर्बिया और कोसोवो को आर्थिक पक्ष पर कार्य करने के लिए तैयार कर लिया हैं इसके तहत अमेरिका दोनों देशों को लोन देगा।
- दोनों देश एक दूसरे के राजनायिक को स्वीकार करेंगे तथा संवाद बनाये रखेंगे।
- इसके साथ ही दोनों देश सीमा विवाद या किसी अन्य तनाव से बचेंगे।
- दोनों देश इजराइल में अपनी एम्बेसी तेल अवीब से जेरूशलम में शिफ्रट करेगी। इसे दोनों देश जुलाई 2021 तक करेंगे। यह इजराइल की बहुत बड़ी जीत मानी जा रही है।
- सर्बिया पहला यूरोपीय देश और कोसोवो पहला मुस्लिम बहुल देश होगा जो जेरूशलम में अपनी एम्बेसी शिफ्रट करेंगे।
- इससे इजराइल की जेरूशलम पर मान्यता बढ़ेगी।
- अमेरिका ने चीन को साधने के लिए दोनों देशों से अपने देश में चीन 5जी के प्रवेश को रोकने के लिए भी तैयार कर लिया है।
- समझौते में यह भी कहा गया है कि वह हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन मानेंगे और उसको वित्तीय सहयोग नहीं देंगे।
- होमो सेक्सुअलटी को लेकर भी बात की गई है क्योंकि यहाँ की प्रथाएं इसे स्वीकृति नहीं देती हैं जिसकी वजह से यहां होमो सेक्सुअबल होना अपराध है।
- तुर्की ने जेरूशलम में एम्बेसी स्थानांतरित करने के मुद्दे को लेकर अपनी नाराजगी बताई हैं जेरूशलम के मुद्दे पर अन्य मुस्लिम देशो की प्रतिक्रिया भी इस समझौते के खिलाफ आ सकती है।
- कोसोवो ने इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता प्रदान कर दिया है और भविष्य में इजराइल भी उसे स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता प्रदान कर सकता है।
- भारत सहित दुनिया के अधिकांश देश तेल अवीव को ही इजराइल की राजधानी मानते है। भारत के साथ अच्दे संबंध के बावजूद भारत ने अपनी एम्बेसी जेरूशलम में स्थानांतरित नहीं किया है।
- इस समझौते में यह भाव निहित है कि दोनों देशों सर्बिया कोसोवो में आर्थिक और व्यापारिक संबंध बढ़ने से रिश्ते सामान्य हो सकते हैं।
- समीक्षकों का मानना है कि सर्बिया ने यह समझौते रूस की सहमति से किया है इसलिए रूस इस समझौते को मान्यता दे देगा।
- राष्ट्रपति चुनाव अमेरिका में करीब आ गये है इसलिए एक साल का यह समझौता सिर्फ चुनाव को ध्यान में रखकर करवाया गया है, यह कई आलोचकों का मानना है।
- भारत नॉन-एलाइंस ग्रुप का संस्थापक देश है इसलिए वह दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को स्वीकार करने की नीति के तहत कोसोवो के मुद्दे पर भारत खुद को दूर रखता है।
असम राइफल्स पर नियंत्रण संबंधी विवाद क्या है?
- ब्रिटिश कंपनी/सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में जब अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया तो उन्हें कई प्रकार के विरोध का सामना वहां के जनजातीय समुदाय और लोगों से करना पड़ा।
- यहां की भौगोलिक परिस्थितियां मैदानी क्षेत्रें से बहुत भिन्न थीं इसलिए कंपनी के सामान्य सैनिक यहां बहुत कारगार सिद्ध नहीं हो पाते थे। इसलिए कंपनी ने एक पुलिस बल/सैन्य टुकड़ी बनाने का निर्णय लिया। इसी क्रम में असम राइफल्स की स्थापना 1835 में कचार लेवी के नाम से की गई। असम के सिलचर के पास का क्षेत्र कचार के नाम से जाना जाता है।
- इसे कंपनी की सुरक्षा करना था, ब्रिटिश हितों को आगे बढ़ाना, असम के बागान एवं कंपनी बागन को सुरक्षित रखना था, पूवोत्तर भारत और म्यामार के जनजातियों से इस क्षेत्र को सुरक्षित रखना था।
- प्रथम विश्वयुद्ध में इसने अच्छी सेवाएं दी फलस्वरूप कुछ और टुकडियों को कचार लेवी में मिलाकर 1917 में असम राइफल्स के रूप में कचार लेवी का पुनर्गठन किया।
- यह भारत की एकमात्र पैरामिलिट्री फोर्स है। इसने अपनी स्थापना के बाद हुए सभी युद्धों में भाग लिया है।
- इसका प्रमुख कार्य-पूर्वोत्तर में अलगाववाद को रोकना है।
- इसके सभी जवान पूर्वोत्तर भारत से ही होते है। इस बल को ‘पूर्वोत्तर का प्रहरी’ और ‘पर्वतीय लोगों का मित्र’ कहा जाता है।
- पूर्वोत्तर भारत बाढ़ एवं अन्य प्रकार की चुनौतियों का जब भी सामना करता है असम राइफल्स सर्वाधिक एक्टिव संगठन के रूप में सामने आता है।
- वर्ष 2002 से यह इंडो-म्यांमार सीमा की सुरक्षा करती है।
- इसे पूर्वोत्तर भारत में पुलिस का दायां हांथ एवं आर्मी का बायां हांथ माना जाता है।
- इस पर दो मंत्रालयों - गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का नियंत्रण है।
- गृह मंत्रालय असम राइफल्स के प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता है। वहीं रक्षा मंत्रालय इस पर आपरेशनल कंट्रोल रखता है। इसके अंतर्गत डिप्लॉयमेंट, पोस्टिंग, ट्रांसफर, डेपुटेशन एवं आपरेशन संचालित करना शामिल है।
- असम राइफल्स के अधिकारी अधिकांशतः आर्मी से आते है और इसके डायरेक्टर जनरल भी आर्मी से ही होते है।
- यह कार्य आर्मी की तरह करती है लेकिन वेतन, पेंशन एवं अन्य सुविधायें गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल-CAPF की तरह प्राप्त करती है।
- गृह मंत्रालय के अधीन 6 CAPF बल हैं। यह हैं- BSF (बार्डर सिक्योरिटी फोर्स), CRPF (सेंट्रल रिजर्व पुलिस बल), CISF (सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स), ITBP (इंडो- तिब्बतन बॉर्डर पुलिस), NSG (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) और SSB (सशस्त्र सीमा बल) है।
- एक संगठन पर दो मंत्रालयों के नियंत्रण से कई प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न होती आई हैं। वहीं इससे रिटायर्ड लोगों का मानना है कि असम राइफल्स को भी आर्मी की सुविधायें मिलना चाहिए न कि CAPF की सुविधायें।
- असम राइफल्स के पूर्व कर्मचारियों ने दिल्ली हाइकोर्ट में एक केस दायर कर इस दो मंत्रालय के नियंत्रण को समाप्त करने की अपील की थी। आर्मी की कार्य के दौरान और कार्य के बाद मिलने वाली सुविधायें CAPF से अच्छी मानी जाती हैं।
- वहीं गृह मंत्रालय का कहना है कि जितने भी CAPF है वह सब हमारे अंदर हैं इसलिए असम राइफल्स का भी नियंत्रण हमारे पास रहना चाहिए जिससे सीमाओं की सुरक्षा बेहतर तरीके से हो सकेगी।
- वही रक्षा मंत्रालय और आर्मी का कहना है कि असम राइफल्स पर आपरेशनल नियंत्रण रक्षा मंत्रालय के पास रहना चाहिए जैसा कि अभी है।
- रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह हमेशा से मिलिट्री फ़ोर्स के रूप में कार्य करती आई है इसलिए आर्मी के साथ इसका जुड़ा रहना आवश्यक है।
- यह विवाद कई साल से चल रहा है। यह मामला तीन साल से अदालत में भी लंबित हैं । कोर्ट ने अब इसमें गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, दोनों मंत्रालयों के सचिवों, असम राइफल्स के महानिदेशक को इस पर निर्णय लेने के लिए 12 हफ्ते का समय दिया है।
- 12 सप्ताह के अंदर यह फैसला लेना होगा कि क्या यही स्थिति बरकरार रखी जायेगी या इसे किसी एक मंत्रालय को सौंप दिया जाये।
- जस्टिस राजीव सहाय और जास्टिस आशा मेनन की पीठ ने कहा इस मामले में सैनिक/पूर्व सैनिक शामिल हैं जिनका हित न सिर्फ सर्वोपरी हैं बल्कि सरकार के विभिन्न मंचों से इन्हें सर्वोच्च भी घोषित किया गया है। अतः इस प्रकार के फैसलों में देरी नहीं करनी चाहिए।