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Blog / 04 Jan 2021

(Video) डेली करेंट अफेयर्स (Daily Current Affairs) : पूर्वोत्तर भारत के जूको घाटी में वाइल्ड फायर (Wildfire in Northeast India's Dzuko Valley) - 04 January 2021

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 04 January 2021



जूको घाटी में वाइल्ड फायर

  • वनों में लगने वाली आग को वाइल्ड फायर, बुश फायर या मांउटेन फायर के नाम से जाना जाता है।
  • वनों में लगने वाली आग की घटना प्राकृति तथा मानवीय दोनों कारको से होती है, लेकिन मानवीय कारक ही सर्वप्रमुख होते हैं। भारत के वनों में लगने वाली आग में 90 प्रतिशत का मानवीय योगदान माना जाता है। पर्यटन, झूम कृषि, बिजली चमकना, ज्वालामुखी उद्गार, कोयले में आग लगना, बिजली के तारों से शॉर्ट सर्किट होना तथा मानवीय लापरवाही कुछ प्रमुख कारण हैं।
  • भारत के वनों में हर साल आग लगने की हजारों घटनायें सामने आती है। इंडिया स्टेट ऑफ रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत में 2019 में जंगलों में आग लगने की 30000 से अधिक घटनायें सामने आईं थी। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के जंगल के 1/5 हिस्से में आग का खतरा बना हुआ है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार 6 सालों में जंगलों में आग लगने के मामले 158 फीसदी बढ़े हैं। एक अन्य अनुमान के अनुसार भारत के 3.73 मिलियन हेक्टेयर वनों का क्षेत्रफल लाग से प्रति वर्ष प्रभावित होता है।
  • वनाग्नि की समस्या एक वैश्विक समस्या है, इसीकारण हर साल कई लाख आग की घटनायें सामने आती हैं। वर्ष 2019 में अमेजन वनों में लगी आग की घटना, ऑस्ट्रेलिया वन आग की समस्या, कैलिफोर्निया वन आग की समस्या, किलिमंजारों आग की समस्या ऐसे ही कुछ प्रमुख उदहरण हैं।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण ने वनाग्नि से हुई वार्षिक वन हानि 440 करोड़ रूपये आंकी गई है।

प्रभाव/परिणाम-

  1. पारिस्थतिकी पर प्रभाव
  2. पर्यावरण प्रदूषण
  3. जैव विविधता
  4. मिट्टी की उत्पादकता का ह्रास
  • इस समय मणिपुर-नागालैण्ड सीमा पर स्थिति जूको घाटी (Dzuko Valley) वनाग्नि (Forest Fire) का सामना कर रहा है। यहां पर आग 29 दिसंबर को लगी थी, जिसे अब तक पूरी से बुझाया नहीं जा सकता है।
  • यह घाटी क्षेत्र मणिपुर के सेनापति जिला और नागालैण्ड के कोहिमा जिले में स्थित है। यह घाटी क्षेत्र अपने पर्वतीय तथा वनस्पति विविधता के लिए मशहूर है। इस घाटी की औसत ऊँचाई लगभग 2452 मीटर है।
  • इस घाटी क्षेत्र में ही मणिपुर की सबसे ऊँची चोटियों में से एक माउंट इशो (Mount. Iso) स्थित है।
  • जूको का स्थानीय भाषा में अर्थ बंजर या ऐसी भूमि से है जहां कुछ उत्पन्न नहीं होता है। दरअसल यहां के लोगों ने बहुत पहले कृषि उत्पादन का प्रारंभ किया, जो नहीं हो पाया लेकिन यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है।
  • मानवीय हस्तक्षेप और बसावट कम होने के कारण यहां घने जंगलों और अधिक संख्या में वन्य जीवों का विकास हुआ है।
  • जूको घाटी अपनी फूलों की विविधता, स्वच्छ नदी धारा और ट्रेकिंग उपयुक्तता के कारण पर्यटन का प्रमुख केंद्र है।
  • यहां आग की घटना पर्वतीय भाग से प्रारंभ हुई थी जो अब नीचे के क्षेत्र में फैल रहा है। इसी वजह से लगभग 250 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका है। जिसे बुझाने के लिए केंद्र, राज्य व लोकल स्तर पर संयुक्त प्रयास किया जा रहा है।
  • यहां पर आग बुझाने की समस्या इस वजह से जटिल है क्योंकि यहां तक पहुँचने के लिए कोई सड़क मार्ग का विकल्प नहीं है, जिसके वजह से यहां हेलिकॉप्टर की सहायता से आग बुझाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • यहां NDFR की टीम इण्डियन एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर का प्रयोग किया जा रहा है। यह हेलिकॉप्टर Bambi-Bucket का प्रयोग कर दीमापुर से पानी उठाकर इन वनों पर पानी गिरा रहे है।
  • इण्डियन एयरफोर्स ने अपने हेलिकॉप्टर के साथ CI30J हरक्यूलिस हवाई जहाज को आग बुझाने के लिए NDRF टीम की सहायता कर रहा है और उन्हें आवश्यक स्थानों तक पहुँचा रहा है।
  • NDRF एवं SDRF की टीमें यहां एक फायरलाइन (Firelines) का विकास करने में सक्षम हो गये हैं, जिसकी वजह से आग पर काबू पाना अब आसान हो सकता है। लेकिन नीचे के ढाल पर झाड़ियों की संख्या ज्यादा है जिसकी वजह से आग बेकाबू भी हो सकती है।
  • यहां हवा की गति ज्यादा है, पानी की उपलब्धता कम है, संचार के नटवर्क कम विकसित हैं जिसकी वजह से अभी इसे काबू करना कठिन हो रहा है।
  • मणिपुर में वर्ष 2020 में काफी कम बारिश हुई, जिसकी वजह से इन वनों में शुष्कता बनी हुई है, जिसे Dry Spell कहते है। इससे वन आग के लिए अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • पूर्वोत्तर भारत में नवंबर से फरवरी माह शुष्क काल (Dry Season) माना जाता है, जिसकी वजह से यह मौसम पूर्वोत्तर भारत में आग का प्रमुख कारण माना जाता है।
  • हर साल वनों में लगने वाली आग यहां के जैव विविधता के लिए बहुत घातक है इसलिए एक क्षेत्रीय नेटवर्क स्थापित करने की आवश्यकता बताई जा रही है।
  • मणिपुर में कैबूल लामजाओ नेशनल पार्क और सिरोही नेशनल पार्क दो राष्ट्रीय उद्यान है। वहीं नागालैण्ड में न्टंकी नेशनल पार्क (Ntanki National Park) है।

हिंद महासागर में अंडर वॉटर ड्रोन फैला रहा है चीन

  • चीन इस समय अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए अपने जासूसी नेटवर्क पर सर्वाधिक भरोसा कर रहा है। हाल ही में अफगानिस्तान में एक बड़ा जासूसी नेटवर्क पकड़ा गया था। कुछ दिन पहले दिसंबर 2020 में में यह भी सूचना आई थी कि लगभग 89000 चाइना के लोग चीन के बाहर विभिन्न देशों के महत्वपूर्ण विभागों/मंत्रलयों/सरकारी ऑफिसों/कंपनियों में कार्यरत हैं, जो चीन के लिए न सिर्फ जासूसी करते हैं। बल्कि नीतियों को भी प्रभावित करते है।
  • फोर्ब्स मैगजीन के लिए लिखी गई रिपोर्ट में रक्षा मामलों के विश्लेषक एचआई सटन (HI Sutton) ने बताया है कि चीन ने हिंद महासागर में Sea Wing (Haiyi) ग्लाइडर्स नाम से जाने जाने वाले अंडर वॉटर्स ड्रोन्स टैनात किये हैं, जिसके सहारे वह हिंद महासागर में हो रही सभी गतिविधियों का पता लगा सके।
  • यह ड्रोन्स एक बार तैनात कर दिये जाने के बाद कई माह तक चीन को सूचनायें पहुँचा सकते हैं। यह चीन के टोही विमान का प्रमुख हिस्सा हैं। इनके चीन समुद्र से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखता है।
  • Sea Wing ग्लाइडर एक प्रकार का UUV अर्थात Uncrewed Underwater Vehicle है। अर्थात यह मानव रहित ड्रोन हैं, जो पानी में रहकर सूचनायें एकत्रित करती हैं। इनका निर्माण चीन के साइंस इंस्टीट्यूट ऑफ आशिनोलॉजी (Oceanology) द्वारा किया गया है।
  • इसमें तेल का एक ब्लैडर होता है जो इसे तैरने में मदद करता है। इसमें दो स्थायी पंखे (Wing) भी लगे होते हैं जो इसे तैरने में मदद करते हैं। इनके कारण यह बिना ईंधन के भी लम्बे समय तक तैर सकता हैं हालांकि इसमें एक बैटरी भी होती है जो इसे पॉवर (ऊर्जा) प्रदान करती हैं इसके आगे एंटिना तथा पीछे सेंसर लगा होता है।
  • हवाई ग्लाइडर्स की तरह इन्हें भी गति करते समय बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह बहुत तेजी से गति तो नहीं करते हैं, लेकिन लंबे समय तक यह गति कर सकते हैं।
  • चीन का कहना है कि वह इन ड्रोन का प्रयोग समुद्र के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए करता है लेकिन पूर्वी चीन सागर, दक्षिणी चीन सागर में इसका प्रयोग सैनिक एवं जासूसी उपकरण के रूप में कर चुका है।
  • पूर्वी चाइना सागर एवं दक्षिणी चाइना सागर में उसने वर्ष 2014-15 से ही ऐसे विमानों का प्रयोग प्रारंभ कर दिया था लेकिन मई 2020 से इस प्रकार के विमानों की संख्या चीन हिंद महासागर में भी बढ़ा रहा है, जिन्हें भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से किसी भी तरह ठीक नहीं माना सकता है।
  • HI सटन का मानना है कि चीन आने वाले समय में 14 और ऐसे वॉटर ग्लाइडर्स को हिंद महासागर में तैनात करने वाला है।
  • वर्ष 2019 में चाइना ने इस ग्लाइडर्स के माध्यम से लगभग 3400 से ज्यादा आब्जर्वेशन किये थे।
  • कुछ दिन पूर्व भारत के CDS विपिन रावत ने कहा था कि इस समय हिंद महासागर में 120 से अधिक Warships तैनात हैं जो इस क्षेत्र के तनाव और चिंता का प्रमुख कारण हैं।
  • भारत-चीन सीमा विवाद, भारत-ऑस्ट्रोलिया लॉजिस्टिक सपोर्ट, क्वाड की भूमिका, हिंद महासागर में अमेरिकी नेवी की उपस्थिति से चीन इस क्षेत्र के विषय में अधिक जानने के लिए इ वॉटर्स ग्लाइडर्स का सहारा ले रहा है।