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Blog / 01 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 01 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 01 September 2020



अर्थव्यवस्था की भारी गिरावट और मंदी

  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं के कुल मूल्य को कहते हैं। जीडीपी उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। मूल्य का निर्धारण बाजार मे होता है इसलिए जो बाजार में नहीं बिकता उसका आकलन इसमें शामिल नहीं होता है।
  • जीडीपी के अंतर्गत कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक आते हैं। इन क्षेत्रें में उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है।
  • भारत में हर तीन माह अर्थात तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है। यह तिमाही अप्रैल-जून, जुलाई-सितंबर, अक्टूबर- दिसम्बर, जनवरी-मार्च है। यह कार्य सेंट्रल स्टैटिक्स ऑफीस द्वारा किया जाता है।
  • इन तिमाहियों में कृषि, उद्योग, और सेवा क्षेत्र ने कैसा प्रदर्शन किया यह देखा जाता है। इसके लिए आठ प्रमुख क्षेत्रें से आंकडे प्राप्त किये जाते हैं। यह प्रमुख क्षेत्र कृषि, खनन एवं उत्खनन, विनिर्माण, वानिकी एवं मत्स्य, विद्युत एवं गैस सप्लाई, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, होटल, परिवहन एवं संचार, वित्तीय क्षेत्र, रियल स्टेट, बीमा क्षेत्र आदि है।
  • जीडीपी के चार घटक- कंजम्पशन एक्सपेंडिचर, गवर्नमेंट एक्सपेंडीचर, इनवेस्टमेंट एक्सपेंडीचर और नेट एक्सपोर्ट है।
  • इस शब्द का प्रयोग अर्थशास्त्री साइमन कुज्नेत्स ने 1934 में अमेरिकी कांग्रेस के सामने किया था।
  • जीडीपी का संबंध उत्पादन से है और उत्पादन का संबंध आर्थिक वातावरण से है। कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, सेवा क्षेत्र यदि ज्यादा उत्पादन करता है तो जीडीपी बढ़ती है । यदि सुस्ती दिखाता है तो जीडीपी नीचे जाती है।
  • जीडीपी का कम होना यह दिखाता है कि लोग उत्पादन कम कर रहे हैं, जिससे उनकी आय कम हो रही है और वह खर्च में कटौती कर रहे हैं। यह स्थिति अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है।
  • कोरोना ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को ठप्प कर दिया लेकिन सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर इसका असर अलग-अलग पड़ा है। कोरोना की वजह से मंदी की अवस्था में जाने वाला पहला देश जापान बना था लेकिन अब इसका सबसे बुरा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
  • केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020-21वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानि अप्रैल से जून के बीच विकास दर में -23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
  • इस जीडीपी डाटा का मतलब है कि वर्ष 2019-20 के पहली तिमाही में हमने जितना उत्पादन किया था और उसका जो मूल्य था उसके मुकाबले इस तिमाही (2020-21 की पहली तिमाही) में हमने जो उत्पादन किया है पिछले साल के तिमाही से 23.9 प्रतिशत कम है।
  • यह पहली तिमाही का आंकड़ा है और तीन तिमाहियाँ अभी बची हैं इसलिए पूरे साल की स्थिति क्या होगी यह बस यह अनुमानित है लेकिन इतना जरूर है कि यह नकारात्मक होगी।
  • इससे पहले पूरे वित्त वर्ष में नकारात्मक वृद्धि वर्ष 1979-1980 वित्त वर्ष में देखी गई थी, जब -5.2 प्रतिशत ग्रोथ रेट प्राप्त हुआ था।
  • आजादी के बाद से देखें तो यह सबसे पहले 1957-1958 में -1.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि देखी गई थी। उसके बाद 1965-66 में यह -3.7 प्रतिशत, 1972-73 में -0.3 प्रतिशत नकारात्मक वृद्धि प्राप्त हुई थी।
  • इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था ने इससे पहले 4 बार नकारात्मक वृद्धि हुई है लेकिन इस बार कि नकारात्मक वृद्धि न सिर्फ बहुत ज्यादा है बल्कि इसका प्रभाव भी ज्यादा पड़ेगा। क्योंकि उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट थी नकि पूरे विश्व में। वहीं इस समय वैश्विक समुदाय भी खराब दौर से गुजर रहा है जिससे भारत का व्यापार और निवेश प्रभावित होगा और आने वाले समय में भी उत्पादन में सुस्ती बनी रहेगी।
  • पहली तिमाही में सेक्टर अनुसार यदि गिरावट देखें तो हमें पता चलेगा कि कंस्ट्रक्शन सेक्टर के ग्रोथ में -51.4 प्रतिशत की सर्वाधिक गिरावट आई है। इसके बाद ट्रेड होटल, ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में -47.4 प्रतिशत की गिरावट आई है। माइनिंग सेक्टर में -41.3 प्रतिशत की गिरावट आई है, मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में -39.3 प्रतिशत की गिरावट आई हैं सर्विस सेक्टर में -20.6 प्रतिशत की गिरावट आई है।
  • इस गिरावट के बीच जिस सेक्टर ने नकारात्मक वृद्धि नहीं दर्शायी है वह है कृषि का क्षेत्र। इस क्षेत्र ने 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है।
  • यहाँ पर यह ध्यान देना आवश्यक है कि इस नकारात्मक ग्रोथ के लिए सिर्फ कोरोना वायरस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता हैं पिछले कुछ वर्षों से जीडीपी में गिरावट आ रही है जिसका मतलब है कि पहले से चल आ रही कम वृद्धि (2018-19 में 6.1 प्रतिशत, 2019-20 में 4.2 प्रतिशत) को कोरोना ने और प्रभावित कर दिया।
  • इस समय की वैश्विक स्थिति के आधार पर हम अपने अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्न रूपों में समझ सकते हैं।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि।
  1. Q1FY20 : 5%
  2. Q2FY20 : 4.5%
  3. Q3FY20 : 4.7%
  4. Q4FY20 : 3.1%
  • कोरोना का विश्व के देशों पर प्रभाव
  1. चीन 3.2 प्रतिशत
  2. जापान -7.6 प्रतिशत
  3. अमेरिका -9.5 प्रतिशत
  4. जर्मनी -10.1 प्रतिशत
  5. कनाडा -12.0 प्रतिशत
  6. इटली -12.4 प्रतिशत
  7. फ्रांस -13.8 प्रतिशत
  8. यू.के. -20.4 प्रतिशत
  9. भारत -23.9 प्रतिशत
  • 25 मार्च से देश लाकडॉउन के चरण में प्रवेश कर गया। फलस्वरूप हर प्रकार का न सिर्फ उत्पादन ठप्प हो गया बल्कि मजूदरों एवं असंगठित क्षेत्र के लोगों का प्रवास हुआ जिससे भविष्य में होने वाला उत्पादन भी रूक गया।
  • उद्योग-धन्धों में कमी के साथ-साथ सरकार के राजस्व में भी कमी आई है फलस्वरूप सरकार ने भी कम खर्च किया है।
  • कई समीक्षकों का मानना है कि अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में अर्थव्यवस्था ने अब सुधार प्रारंभ कर दिया है और 'V' शेप रिकवरी दिखाई दे रही है जिससे आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में सुधार आयेगा।
  • सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ पैकेज का परिणाम कुछ समीक्षकों के अनुसार अब दिखने लगेगा।
  • इन सकारात्मक परिणामों के बावजूद असंगठित क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव अभी बने रहने का अनुमान कई समीक्षकों द्वारा लगाया गया है। कुल कार्यबल का 80-90 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है। ऐसे में यदि इस क्षेत्र में सुधार नहीं आता हैं तो इनकी आय प्रभावित होगी। फलस्वरूप मांग कम होगी और इससे उत्पादन पर भी असर पड़ेगा।
  • इस समय देश सिर्फ कोरोना वायरस से प्रभावित नहीं है बल्कि कई क्षेत्रें में प्राकृतिक आपदा का भी सामना कर रहा है जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
  • चीन के साथ तनाव और आयात प्रतिबंध का असर भी बाजार पर पड़ रहा है जिससे आने वाले समय में भी हर क्षेत्र में सुधार की संभावना कम है।
  • सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकोनमी के सर्वे के अनुसार अप्रैल माह में 12 करोड़ 15 लाख लाख लोग बेजरोगार हो गये। सर्वाधिक संख्या असंगठित क्षेत्र के लोगों की थी। इसी रिपोर्ट में यह बताया गया कि मई में बेरोजारी 27.1 प्रतिशत पहुँच गई।
  • कई समीक्षकों ने यह भी कहा है कि भारत में मंदी का प्रारंभ हो चुका है बस उसकी औपचारिक घोषणा बाकि है।
  • अभी कुछ दिन पूर्व GST काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्रालय के तरफ से यह जानकारी दी गई कि सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह राज्यों को GST हानि का भुगतान कर सके।
  • मंदी या रिसेशन का मतलब लगातार दो तिमाही में नकारात्मक विकास है। इस आधार पर हम देखें तो यह पता चलता है कि आने वाली दूसरी तिमाही के आकड़ें सिर्फ इस अवस्था की घोषणा ही करेंगे क्योंकि देश मंदी के दौर में प्रवेश कर चुका है।
  • साल दर साल यदि नकारात्मक विकास हो तो इसे गंभीर मंदी कहते हैं। जब यह अवस्था लंबे समय तक बनी रहती है तो इसे डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है जैसा कि 1930 के दशक में देखा गया था।
  • जीडीपी की गिरावट के साथ कुछ और भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
  1. खपत में गिरावट-ऑटो सेक्टर, तिकाऊ वस्तुएं, रियल स्टेट,
  2. बैंकों द्वारा कर्ज/धन/ऋण वितरण में कमी
  3. निर्यात में गिरावट और आयात पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध से सप्लाई चैन का बाधित होगा।
  4. विदेशी निवेश का प्रभावित होना।
  5. चीन से बाहर जा रही कंपनियों का भारत के संदर्भ में कम रूचि दिखाना।
  6. RBI द्वारा अपनाये जा रहे उपायों का सकारात्मक परिणाम नजर न आना।
  7. कोरोना के केस का बढ़ना तथा चीन के साथ तनाव का कायम रहना।
  • मैक्किंजे ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में 6 क्षेत्रें को चिंहित किया जिसमें सुधार की आवश्यकता सबसे ज्यादा है और रोजगार भी बढ़ सकता है। यह क्षेत्र- विनिर्माण, रियल एस्टेट, कृषि, स्वास्थ्य और खुदरा क्षेत्र है।
  • रिपोर्ट में लचीले श्रम बाजार का निर्माण करने एवं कुशल बिजली वितरण की भी बात की गई है।
  • वहीं अधिकांश भारतीय समीक्षकों का मानना है कि विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता सबसे ज्यादा है। डैडम् में तुरंत जान फूंकने की आवश्यकता है।
  • जुलाई 2020 तक हर महीने कुल कितने लोगों की नौकरी गयी (CMIE) महीना - कुल कितने लोगों की नौकरी गयी (लगभग)
  • अप्रैल - 12 करोड़ा 15 लाख
  • मई - 10 करोड़
  • जून - 3 करोड़ा
  • जुलाई - 1 करोड

सप्लाई चैन रेजीलिंएस इनीशिएटिव (SCRI)

  • किसी वस्तु के निर्माण के लिए कच्चे माल की आवश्यकता होती है, फिर उसे बाजार तक पहुँचाना होता है, उसका निर्यात करना होता है, यह सब सप्लाई चैन से जुड़ा होता है।
  • Covid-19 एवं चीन-अमेरिका तनाव के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित एवं प्रभावित हुई है।
  • इस बाधित सप्लाई चैन के प्रतिउत्तर में जापान ने सप्लाई चैन रेजीलिंएस इनीशिएटिव (SCRI) का विचार कुछ समय पहले प्रस्तुत किया।
  • SCRI के अंतर्गत पहले भारत-ऑस्ट्रेलिया और जापान को जोड़ने का विचार किया जा रहा है जिसमें बाद में आसियान के देशों को भी जोड़ा जायेगा।
  • सप्लाई चैन रेजीलिंएस का विचार इस पर आधारित है कि किसी देश में अपनी संपूर्ण आपूर्ति के लिए किसी एक देश पर निर्भर रहने के बजाय आपूर्ति करने वाले अन्य देशों को जोड़ा जाये। अर्थात यदि एक देश आपूर्ति बाधित कर दे तो अन्य देशों से आपूर्ति का विकल्प बना रहे।
  • जब कोई देश आपूर्ति के लिए किसी एक देश पर निर्भर होता है तो कोई प्राकृतिक या मानवनिर्मित अप्रत्याशित घटना निर्भर देश को प्रभावित कर सकती है।
  • जापान के SCRI के तहत सदस्य देशों के बीच पहले से मौजूद आपूर्ति श्रृंखला के नेटवर्क को और मजबूत किया जायेगा।
  • SCRI का प्राथमिक उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आर्थिक महाशक्ति के रूप में बदलने के लिए अधिक निवेश आकर्षित करना तथा भागीदार देशों के बीच पूरक संबंध स्थापित करना है।
  • इस विचार के केद्र में चीन से जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका बढ़ता तनाव के बीच है क्योंकि चीन इन देशों के लिए एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
  • वर्ष 2019 में जापान ने चीन से लगभग 169 बिलियन डॉलर का आयात किया वहीं भारत ने भी वर्ष 2019-20 में चीन से लगभग 65.26 बिलियन डॉलर का आयात किया। इसी तरह चीन अन्य देशों को भी आयात करता है। यदि किसी संघर्ष या तनाव के कारण चीन पूरी तरह से आपूर्ति रोक देता है तो आयातक देशों को नुकसान पहुँच सकता है।